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इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों से जुड़ी समस्याओं को कैसे सुलझा रहे हैं बेंगलुरु के ये स्टार्टअप्स

  • बेंगलुरु के कई स्टार्टअपों ने हाल के कुछ वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनों के बैटरियों को बेहतर बनाने और इससे जुड़े कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए बहुत से समाधान दिये हैं।
  • देश के साथ कर्नाटक में भी इलेक्ट्रिक वाहनों का अच्छा विस्तार हो रहा है। अधिकांश इलेक्ट्रिक वाहनों में लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल होता है।
  • ऐसी कई बैटरी के रीसाइक्लिंग या पुनर्चक्रण करने वाली कंपनियों का कहना है कि देश के अधिकांश हिस्सों में बैटरी रिसाइकलिंग की समुचित व्यवस्था और जागरूकता की कमी के कारण ऐसे बैटरियों को अक्सर कूड़े में फेक दिया जाता है जिससे वातावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है और साथ ही इनमें प्रयोग होने वाले बैटरियों की खरीद भी बढ़ रही है। इलेक्ट्रिक वाहनों को जीवाश्म ईंधन से चलने वालें वाहनों की तुलना में पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर माना जाना है। हालांकि, इसमें प्रयोग होने वाले बैटरियों का अगर सही तरीके से निपटान नहीं किया गया या कम समय में ज्यादा बैटरियां इस्तेमाल होने लगीं तो यह पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। 

बेंगलुरु शहर के कई युवा और स्टार्टअप अब इसके लिए नए समाधान ले कर आ रहे हैं। इन समाधानों के माध्यम से इन इलेक्ट्रिक वाहनों में प्रयोग होने वाले बैटरियों का न केवल कार्बन फुटप्रिंट कम किया जा सकता है बल्कि इनके गलत तरीके से निपटान से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का भी बहुत हद तक हल निकाला जा सकता है। 

इस दिशा में एक प्रयास बेंगलुरु की एक कंपनी लॉग9 ने किया है जिसने इलेक्ट्रिक वाहनों में प्रयोग होने वाले लिथियम आयन बैटरियों का एक विकल्प तैयार किया है जिससे कि देश में लिथियम आयन की बैटरी का आयात कम किया जा सके। देश में आज भी इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए लिथियम आयन बैटरी या लिथियम विदेशों से आयत होता है। इस कंपनी की स्थापना अक्षय सिंघल, कार्तिक हजेला और पंकज शर्मा ने 2015 में की थी। सिंघल और हजेला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-रुड़की से पढ़े हैं जबकि शर्मा आईआईटी दिल्ली में पहले एक वैज्ञानिक रह चुके है। 

सर्वश्रेष्ठ, विश्वसनीय और टिकाऊ कोशिकाओं को तैयार करने के लिए अनुकूलित और अनुकूलित सेल डिजाइन और प्रक्रियाओं के लिए सेल फैब्रिकेशन और असेंबली लैब। तस्वीर- लॉग9
सर्वश्रेष्ठ, विश्वसनीय और टिकाऊ बैटरी सेल तैयार करने के लिए सेल फैब्रिकेशन और असेंबली लैब। तस्वीर- लॉग9

इन तीनों ने अपनी कंपनी के माध्यम से एक ऐसे स्वदेशी लिथियम आयन बैटरी का मॉडल बनाया हैं जिसमें एक नैनो कण-लिथियम टाइटनेट का प्रयोग किया गया है। उनका कहना है कि यह बैटरी सामान्य लिथियम आयन बैटरी की तुलना में नौ प्रतिशत जल्दी चार्ज होता है और नौ प्रतिशत बेहतर प्रदर्शन देता है। साथ ही, यह 15 साल तक इस्तेमाल भी किया जा सकता है जबकि दूसरे सामान्य बैटरी 4-5 साल में ही खराब हो जाती हैं।

“देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए लिथियम आयन बैटरियों का इस्तेमाल तो हो रहा है लेकिन इन्हें भारत जैसे गर्म जलवायु के लिए नहीं बनाया गया था जिसके कारण कई बार अधिक तापमान में यह खराब होने लगता है। हमने इसका विकल्प बनाने के लिए एक नैनो कण का इस्तेमाल किया है। सामान्यतः हर चार्जिंग के समय बैटरी के पुर्जों को कुछ नुकसान पहुंचता है जिसके कारण वह धीरे-धीरे समय के साथ खराब होते जाते हैं। हमारे नैनो कण के कारण हमने इस नुकसान को बहुत हद तक रोक दिया जिससे इसकी आयु में बढ़ोतरी हुई है। इतना ही नहीं, जहां आम बैटरी 60-100 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान तक ही सह सकते हैं। वहीं यह बैटरी 230 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान तक सह सकती है जो अधिक तापमान में होने वाले आग के खतरे से भी वाहनों को सुरक्षित रख सकती है,” शर्मा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। 

कई इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माता अब लॉग9 के उपभोक्ता बन चुके हैं। तीन और चार पहिया वाहनों में अब इनकी बैटरी भी कमर्शियल तरीके से प्रयोग की जा रही है। इस कंपनी ने इस बैटरी को बनाने के लिए एक नया 50 मेगावाट की क्षमता वाला प्लांट भी बनाया है जबकि 2 गीगावाट के क्षमता वाला बैटरी पैक बनाने वाला एक और प्लांट जल्द ही शुरू होने जा रहा है। इन तीन युवाओं और इनकी टीम ने अब तक अपने अनोखे काम के कारण 50 से ज्यादा पेटेंट भी अपने नाम कर रखा हैं। 

भारत सरकार के अनुसार देश में कुल 13,34,385 इलेक्ट्रिक वाहन है जिसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश, दिल्ली और कर्नाटक में है। आंकड़ें कहतें हैं कि कर्नाटक में कुल 1,35,095 इलेक्ट्रिक वाहन हैं। राज्य की खुद की इलेक्ट्रिक वाहन नीति का लक्ष्य है कि 2030 तक राज्य में चल रहें सभी ऑटो रिक्शा, कॉर्पोरेट गाडियां, टैक्सी सर्विस और स्कूल के वाहन पूर्णत इलेक्ट्रिक वाहन में तब्दील हो।  

इस्तेमाल हुई ईवी बैटरियों का पुनः प्रयोग

देश में आज भी बहुत सी इस्तेमाल की हुई इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियां आज भी कूड़े में सीधे फेक दी जाती हैं जो अलग अलग कूड़े के ढेर (लैंडफिल साइट) तक जा पहुंचती हैं जिसके कारण ऐसे जगहों पर आग लगने के खतरे को बढ़ा देते हैं जबकि इन बैटरियों में कई ऐसे हानिकारक रसायन भी होते हैं जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक समस्या पैदा कर सकतें हैं। 


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बेंगलुरु में स्थित एक स्टार्टअप इस क्षेत्र में ही काम कर रहा है जो इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) में प्रयोग हो चुकी बैटरी को एक और मौका देकर पुनः प्रयोग के लायक बनाती है। दर्शन वीरूपक्ष बेंगलुरु स्थित नुनम नाम की स्टार्टअप के सह-संस्थापक रहें है। इस संस्था ने पहले लैपटॉप की बैटरी में कुछ प्रयोग किए ताकि इसे पुनः प्रयोग के लायक बनाया जा सके और सफल भी रहें। अब विरूपाक्ष और उनकी टीम ईवी में प्रयोग हुई खराब बैटरियों का पुनः प्रयोग कर उन्हें दोबारा इस्तेमाल के लायक बना रहें हैं जिससे इनका उपयोग ग्रामीण इलाकों और कई अन्य जगह ऊर्जा की जरूरतों के लिए किया जा सके। आज के समय में छोटे ग्रामीण इलाकों में इन बैटरियों का उपयोग छोटे दुकान, सब्जी और फल बेचने वाले ठेले से लेके सरकारी टेलीकॉम कंपनियों के टावर की ऊर्जा के जरूरतों के लिए किया जा रहा है। शुरू के दिनों में इस स्टार्टअप को इस क्षेत्र में काम करने के लिए कर्नाटक सरकार ने कुछ आर्थिक मदद भी दी थी।  

मेटास्टेबल नाम का स्टार्टअप ईवी बैटरी की प्रमुख धातुओं को फिर से उपयोग करने लायक बना रहा है। तस्वीर- मेटास्टेबल
मेटास्टेबल नाम का स्टार्टअप ईवी बैटरी की प्रमुख धातुओं को फिर से उपयोग करने लायक बना रहा है। तस्वीर- मेटास्टेबल

वीरूपक्ष ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “ऐसा नहीं है कि जब ईवी की बैटरी ईवी में इस्तेमाल करने लायक न हो तो वह किसी काम की नहीं होती। इन बैटरियों को दूसरी कई छोटी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए अगले पांच साल तक इस्तेमाल में लाया जा सकता है। लेकिन अगर ईवी की बैटरियों को उसके इस्तेमाल के बाद तुरंत फेक दिया जाये तो कई ऐसी ईवी की बैटरियां कई बार समय से पहले ही लैंडफिल साइट तक पहुंच जाती हैं। हमनें अपनी खुद की तकनीक से यह सुनिश्चित किया कि कुछ परिवर्तन कर के खराब हो चुकी ईवी की बैटरियों की बची हुई क्षमता को पुनः इस्तेमाल में लाया जा सके। हम इसका प्रयोग अब कुटीर उद्योग, इंडस्ट्री, छोटे और माध्यम उद्योगों में करतें हैं। इसका सीधा आर्थिक और पर्यावरण लाभ भी है। हम अब इस प्रयास में हैं कि कैसे और क्या नए तरीके हो सकते हैं जिसके माध्यम से हम देश में बैटरी की बर्बादी को रोक सकतें हैं,” 

विरूपक्ष कहते हैं कि देश के ग्रामीण इलाकों में अक्सर लोग बिजली के ना होने पर अपने छोटे व्यापार के लिए रातों में लीड के बैटरी का प्रयोग करते दिखते हैं जो अपनी क्षमता का केवल 60% ही उपयोग में ला पाता है जबकि ईवी में प्रयोग में आने वाली लिथियम आयन बैटरियां अपनी क्षमता के 80% तक का प्रदर्शन देता है और उनका वजन भी लीड बैटरी से कम होता है। विरूपक्ष का कहना है कि लिथियम आयन बैटरी के पुनः प्रयोग से देश में कार्बन फुटप्रिंट और चीन से बैटरी आयात से भी कुछ हद तक कमी लाई जा सकती है। 

लिथियम आयन बैटरी का ईवी में प्रयोग या किसी और क्षेत्र में प्रयोग इसकी खासियत के कारण हो रहा है। ऐसी बैटरियां दोबारा चार्ज की जा सकती हैं, ज्यादा समय तक चलती हैं और इसमें भंडारण की भी क्षमता अधिक होती है। लेकिन अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी कहती है कि लिथियम आयन बैटरी खतरनाक भी होती है और इन्हें घर के या नगर निगम के कचरे में नहीं डालना चाहिए नहीं तो इसके यातायात में या लैंडफिल साइट में इसके कारण आग तक लग सकती है। 

कैसे हो रहा है शहरी कचरे का सकारात्मक खनन 

बेंगलुरु के एक और स्टार्टअप – मेटास्टेबल मटेरियल्स की स्थापना भारतीय प्रौद्योगिकी संसथान (आईआईटी) रुड़की से पढे शुभम विश्वकर्मा ने कुछ वर्षों पहले की जब उनका ध्यान ईवी में इस्तेमाल होने वाले बैटरी के कचरे पर गया। विश्वकर्मा अपनी स्टार्टअप को एक शहरी खनन की कंपनी कहते हैं क्योंकि इनका ध्येय शहरों में ईवी की बैटरियों जैसे कचरे के निपटान में है। 

इस स्टार्टअप का कहना है कि ईवी में प्रयोग होने वाले लिथियम आयन बैटरियों में ऐसे बहुत से मेटल होते हैं जिसका प्रयोग बहुत से उद्योगों में किया जा सकता है जो ऐसे कई हानिकारक मेटल को कचरे में जाने से बचा सकता है। यह स्टार्टअप दावा करता है कि अपने खुद के तकनीक के माध्यम से इस्तेमाल किये गए ईवी की बैटरियों में से 90% तक का निष्कर्षण सही तरीके से किया जाना संभव हो पाया है ताकि इसमें से निकाले गए मेटल का पुनः प्रयोग किया जा सके। ऐसे ईवी के बैटरियों में से एल्यूम्युनियम, कोबाल्ट, निकल और लिथियम जैसी धातुएं निकाली जा सकती हैं अगर इसका सही तरीके से पुनर्चक्रण हो सके तो। 

अपनी बिजली की जरूरतों के लिए नुनाम की रिसाइकल की गई बैटरी का उपयोग कर रहा एक व्यापारी। तस्वीर- नुनाम
अपनी बिजली की जरूरतों के लिए नुनाम की रिसाइकल की गई बैटरी का उपयोग कर रहा एक व्यापारी। तस्वीर- नुनाम

“हम ईवी के बैटरियों का पुनर्चक्रण करतें हैं लेकिन यह एक विशेष तरीके से किया जाता है। सामान्य पुनर्चक्रण के तरीकों से एक मिश्रित केमिकल का निष्काषन होता है जबकि हमारे तकनीक के माध्यम से सभी मुख्य मेटल को उनके मुख्य रूप में ही निकालते हैं ताकि उनका सीधा प्रयोग उससे जुड़े उद्योगों में किया जा सके,” सौरव गोयल, इस स्टार्टअप के संस्थापक सदस्य ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। 

गोयल ने बताया कि इस पूरे प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य ईवी के बैटरियों के पुनर्चक्रण को मजबूत बनाना है ताकि लिथियम और कोबाल्ट जैसी चीजों के आयात को कम किया जा सके क्योंकि इन चीजों की खानें अभी के समय में देश में नहीं हैं। 

भारत सरकार ने हाल ही में संसद में दिये अपने बयान में सदन को बताया था कि सरकार देश में एडवांस्ड कैमिस्ट्रि सेल्स (एसीसी) के क्षेत्र में काम करने के लिए उत्पादन से जुड़ी सब्सिडी भी दे रही है। लिथियम आयन बैटरी भी एक प्रकार का एडवांस्ड कैमिस्ट्रि सेल है। हाल ही में नीति आयोग ने बैटरी स्वापिंग की नीति भी सार्वजनिक की जिसमें देश में ईवी के लिए चार्जिंग सुविधा के अलावा बैटरी स्वापिंग को एक सेवा के तौर पर पेश किया गया जिसके अंतर्गत ईवी के उपभोक्ता ईवी को बिना बैटरी के खरीद सकते हैं और बैटरी को एक सिलिंडर जैसी सुविधा की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। वो इन स्टेशनों पर एक डिस्चार्ज बैटरी को चार्ज बैटरी को कुछ शुल्क देके बदल सकतें हैं। ऐसी स्थिति में बैटरियों के संख्या में और बढ़ोतरी हो सकती है और इससे जुड़ी चुनौतियां भी बढ़ सकती है।

 

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बैनर तस्वीरः सामान्यतः हर चार्जिंग के समय बैटरी के पुर्जों को कुछ नुकसान पहुंचता है जिसके कारण वह धीरे-धीरे समय के साथ खराब होते जाते हैं। बेंगलुरु के स्टार्टअप्स इस समस्या के कई समाधान लेकर आए हैं। प्रतीकात्मक तस्वीर– Tokumeigakarinoaoshima 

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