- लेह में इस साल आने वाले पर्यटकों की संख्या ने यहां के पर्यटन के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इस साल जून और जुलाई महीने में लगभग 2,50,000 पर्यटक लेह में घूमने आए। इन दो महीनों के दौरान आए पर्यटकों की संख्या लेह शहर की स्थानीय आबादी से लगभग आठ गुना अधिक थी।
- पर्यावरणविद् चिंतित हैं कि लेह में तेजी से बढ़ता पर्यटन वहां की स्थायी जीवन शैली को प्रभावित कर रहा है। इससे कचरे का उत्पादन, पानी की मांग, वाहनों के यातायात और निर्माण कार्यों में वृद्धि रही है।
- पर्यटकों के सहयोग के लिए और अधिक बुनियादी ढांचे का विकास होने के बावजूद कुछ गैर सरकारी संगठन और पर्यावरणविद्, पर्यटकों की आवाजाही पर संयम, जिम्मेदार-पर्यटन को बढ़ावा देने और लेह में सावधानीपूर्वक यात्रा की मांग कर रहे हैं।
अक्टूबर 2020 में रोहतांग दर्रे पर अटल सुरंग (टनल) खुलने के बाद पिछले दो वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में वाहनों का आवागमन बहुत बढ़ा है। लद्दाख के लेह शहर या हिमाचल प्रदेश की दर्शनीय लाहौल घाटी की ओर जाने वाले पर्यटकों के कारण वाहनों का आवागमन बढ़ने की अधिक संभावना है।
राजमार्ग पर सुरंग खुलने से पहले जनवरी 2018 और अक्टूबर 2020 के बीच रोहतांग दर्रे से 4.5 लाख (450,000) वाहनों का आवागमन था। हिमाचल प्रदेश पुलिस से मिले के आंकड़ों के अनुसार, आम लोगों के लिए सुरंग खुलने के 22 महीनों, अक्टूबर 2020 से अगस्त 2022 के बीच, 17 लाख वाहन अटल टनल से होकर गुजरे हैं। वास्तव में, सुरंग खुलने के बाद के दो वर्षों में, सुरंग के खुलने से पहले के दो वर्षों की तुलना में यातायात में लगभग 400% की बढ़ोतरी हुई है।
आंकड़ों के मुताबिक इस साल, 2022 में 1 जनवरी से 19 अगस्त के बीच आठ महीनों में 7.62 लाख (762,000) वाहन सुरंग से गुजर चुके हैं।
सुरंग बनने से पहले हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में पर्यटन स्थलों के लिए लोकप्रिय मार्ग मनाली-लेह राजमार्ग था, जो नवंबर से अप्रैल के बीच कभी-कभी छह महीनों तक मौसमी कारणों से लगातार बंद रहता था।
लाहौल और स्पीति के पुलिस अधीक्षक (एसपी) मानव वर्मा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “नौ किलोमीटर लंबी अटल टनल को जनता के लिए खोले जाने के बाद से यातायात में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा, पहली बार हो रहा है कि पर्यटक अब सर्दियों के दौरान भी यात्रा कर रहे हैं।
यातायात की प्रकृति पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि इसकी पहचान करना कठिन था, लेकिन उन्होंने अनुमान लगाया कि 80% यातायात पर्यटकों का था, जिनमें ज़्यादातर लेह और कुछ लाहौल घाटी की ओर के पर्यटक थे।
समुद्र तल से लगभग 10,000 फीट ऊपर निर्मित अटल सुरंग (जिसे रोहतांग सुरंग के रूप में भी जाना जाता है) के माध्यम से पर्यटकों के यातायात के इस भारी प्रवाह के कारण गैर सरकारी संगठन और पर्यावरणविद संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र पर बढ़ते पर्यटकों और वाहनों के प्रभाव को लेकर चिंतित हैं। चिंता इस बात की भी है कि लद्दाख के मार्ग को हर मौसम में निर्बाध आवागमन योग्य बनाने के और प्रयास किए जा रहे हैं।
पर्यटन में बेतहाशा बढ़ोत्तरी और इसका प्रभाव
जब लद्दाख पहली बार 1974 में पर्यटन के लिए खुला, तो सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 527 पर्यटक थे, जिसमें 500 विदेशी और 27 घरेलू आगंतुक थे।
अब, लगभग 50 साल बाद, 1 जनवरी से 31 अगस्त 2022 तक के आठ महीनों में इस साल पर्यटकों की संख्या बढ़कर 4.5 लाख (450,000) हो गई है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस साल गर्मी में लेह में पर्यटकों की संख्या ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। केवल दो महीनों, जून और जुलाई, में 2.5 लाख (250,000) पर्यटकों ने लेह का दौरा किया। यह संख्या लेह शहर के 30,870 लोगों (2011 की जनगणना) की स्थानीय आबादी से आठ गुना अधिक है और लेह जिले की आबादी जो लगभग 1.33 लाख (133,000) है, उसका लगभग दोगुना है।
लद्दाख में ‘जिम्मेदार पर्यटन’ पर काम कर रहे एनजीओ लोकल फ्यूचर्स के सदस्य एलेक्स जेन्सेन का कहना है, “जलवायु संकट की चपेट में रहने वाले शहर के लिए पर्यटकों की संख्या बहुत अधिक है।”
जेन्सेन ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि लोकप्रिय बॉलीवुड फिल्मों, ख़ास तौर से 3 इडियट्स जिसमें लद्दाख को दिखाया गया है, साथ ही सड़क संपर्क और सरकार की प्रचार नीतियों के कारण लेह भारतीय पर्यटकों के बीच एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है।
हालांकि यह पर्यटन के लिए बहुत अच्छा है लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। उदाहरण के लिए, पर्यटकों द्वारा बड़े पैमाने पर कचरा पैदा किया जाता है, जो पहले से ही नाजुक पारिस्थितिकी पर एक भार है। जेन्सेन ने कहा, “पीक टूरिज्म के दिनों में, यहां 30,000 खाली प्लास्टिक की बोतलें पाई गईं। सबूत के तौर पर इसे किसी भी डंपिंग ग्राउंड में देख सकता है।”
उन्होंने कहा कि स्थानीय प्रशासन द्वारा पानी भरने के विकल्प देने के कुछ छोटे प्रयास किए गए हैं, जैसे कि वाटर एटीएम, लेकिन शायद ही इसका उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा, “जब तक यहां बोतलबंद पानी पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है, तब तक इन प्रयासों (पानी भरने के विकल्पों का) का कोई प्रभाव होता नहीं दिख रहा है।”
जेन्सेन ने यह भी बताया कि लेह में होटल और रेस्तरां की मांग बढ़ने के कारण इनके निर्माण में बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2016 में, लेह में कुल बिस्तर क्षमता 12,474 थी, जो 7 जुलाई, 2022 तक बढ़कर 17,104 हो गई है। इस अवधि के दौरान, होटल/गेस्ट हाउस/होमस्टे की कुल संख्या लगभग 70% बढ़कर 520 से 881 हो गई है, जबकि रेस्तरां की संख्या 2016 में 57 से 145% बढ़कर 2022 में 140 हो गई है।
इसकी वजह से बिजली और पानी की मांग बढ़ी है। अधिकांश होटल और होमस्टे पर्यटकों की सेवा के लिए बोरवेल लगाकर और सेप्टिक टैंकों में पानी जमा करने के लिए भू-जल खींच रहे हैं। इसके अलावा यह निर्माण तेजी से खेतों को विस्थापित करके उसकी जगह ले रहा है। यह न केवल खुली जगह को कम कर रहा है बल्कि स्थायी रूप से भोजन का उत्पादन करने वाली भूमि को समाप्त कर रहा है। वाणिज्यिक खाद्य प्रणाली पर शहर की निर्भरता बढ़ रही है और यह उन्माद मिट्टी में जैविक रीसायकल (मानव अपशिष्ट सहित) को हतोत्साहित कर रहा है।
बढ़ती समस्याओं का धीमा समाधान
बढ़ते पर्यटकों और उनसे जुड़े कचरे का मुद्दा समस्या का दूसरा पहलू है।
हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स इन लद्दाख (एचआईएएल) के शोधकर्ता उज्ज्वल जगिट्टा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि लेह कभी अपनी स्थायी जीवन-शैली के लिए प्रसिद्ध था। यहां चीजें काफी बदल गई हैं।
कचरे का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बन गया है, क्योंकि वर्तमान में मौजूद ट्रीटमेंट प्लांट दैनिक कचरे को निपटाने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि पहले लद्दाख में लोग मुश्किल से ही कचरा पैदा करते थे, क्योंकि उनका सारा कचरा या तो रिसाइकिल हो जाता था या फिर खाद के रूप में इस्तेमाल हो जाता था।
लेह स्थित एनजीओ, इकोलोजिकल डेवलपमेंट ग्रुप (एलईडीईजी) ने 2019 में अपने अध्ययन में खुलासा किया था, “पर्यटकों की मांग के कारण सूखे शौचालयों को पानी आधारित फ्लश शौचालयों से बदल दिया गया है जिससे पानी की खपत बढ़ रही है। एलईडीईजी, एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ब्रेमेन ओवरसीज रिसर्च एंड डेवलपमेंट एसोसिएशन (बोरडा) के साथ साझे रिसर्च में पाया कि लेह में घरेलू उद्देश्यों (बागवानी और निर्माण उद्देश्य को छोड़कर) के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कुल पानी गर्मियों में प्रति दिन 5 मिलियन लीटर (एमएलडी) है जबकि वास्तविक मांग 7.4 मिलियन लीटर या इससे भी ज़्यादा है।
लेह के मुख्य योजना अधिकारी तसेवांग ग्यालसन का दावा है कि लेह में पानी की कोई कमी नहीं है, जबकि एक रिपोर्ट ने खुलासा किया कि लेह में 2,000 से अधिक घरों में टैंकरों के माध्यम से पानी की आपूर्ति होती है।
इस रिपोर्ट में भूमिगत जल की गुणवत्ता के मुद्दे पर भी गंभीर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि परंपरागत रूप से, लेह के लोगों द्वारा उपयोग किया जाने वाला 90% पानी सतही धाराओं के रूप में बर्फ के पिघले हुए पानी से मिलता है और शेष 10% प्राकृतिक झरनों से आता है।
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रिपोर्ट बताती है कि “हालांकि, अब घरेलू उपयोग के लिए 92% पानी भूमिगत स्रोतों से लिया जा रहा है, जिसमें से 70% लेह के जल-स्रोतों से लिया जा रहा है। यह पानी तेजी से दूषित हो रहा है, फिर भी भूजल की गुणवत्ता की निगरानी या इसके प्रदूषण को रोकने के लिए का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है, न इसके लिए कोई योजना है।
एलईडीईजी के निदेशक, एशेय तन्दुप ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी और कम बर्फबारी सहित कई कारणों से कुछ सालों से लेह के लिए पानी एक बड़ी चुनौती बनने जा रहा है।
तन्दुप ने कहा, “यहां ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पहले से ही है, जिसे गर्मी बढ़ने और तेजी से घटते ग्लेशियरों के रूप में देखा जा सकता है। पर्यटक-वाहनों के लगातार बढ़ने की वजह से स्थानीय स्तर पर प्रदूषण बढ़ने के कारण समस्या और भी बदतर होती जा रही है।”
पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए लेह में कृत्रिम ग्लेशियर (हिमनद) बनाने जैसे प्रयोग किए जा रहे हैं। तन्दुप ने कहा कि आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए जल संरक्षण विधियों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि एलईडीईजी पहले से ही होमस्टे और गेस्ट हाउस मालिकों के और पर्यटकों के बीच पानी आधारित फ्लश सिस्टम की तुलना में सूखे शौचालयों का उपयोग और पानी की खपत को कम करने के प्रति जागरूकता पैदा कर रहा है।
लेकिन जैसा कि लोकल फ्यूचर्स के जेन्सेन का कहना है, जब तक निर्माण कार्यों के विस्तार, प्लास्टिक-पैकेजिंग वाले उत्पादों, हर दिन की वायुयान उड़ानों और पर्यटकों की संख्या आदि को विनियमित (रेग्युलेट) करने के लिए गंभीर नीतिगत बदलाव नहीं होते हैं, तब तक जागरूकता व्यक्तिगत प्रयास असफल होते रहेंगे। इसके बिना लेह में एक स्थायी और रहने योग्य भविष्य को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।
एचआईएएल के जगिथा का कहना है कि अक्सर पर्यटकों के जीप, सफारी और ऑफ-रोडिंग लैंड-अप के कारण स्थानीय लोगों और जंगली जीवों को परेशानी होती है। उन्होंने कहा, “हमें आर्थिक और पारिस्थितिक जरूरतों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए जिम्मेदार पर्यटन पर समाज में व्यापक बहस की जरूरत है।”
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बैनर तस्वीरः लेह और हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते पर्यटन से बढ़ता कचरा। तस्वीर- जुआन डेल रियो/लोकल फ्यूचर्स।