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कॉप27: जलवायु एजेंडा में शामिल हुआ ‘लॉस एंड डैमेज’ का मुद्दा, रंग लाई भारत की कोशिशें

  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों ने लॉस एंड डैमेज (नुकसान और क्षति) की भरपाई को आधिकारिक एजेंडा में शामिल करने पर सहमति व्यक्त की है। इससे जलवायु आपातकाल के सबसे बुरे प्रभावों की चपेट में आने वाले देशों की आर्थिक मदद हो सकेगी।
  • एजेंडा में इस मुद्दे का शामिल होना एक तरह से वैश्विक मंच पर भारत के रुख को मजबूत करता है। भारत का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों को झेल सकने के लिए अमीर देशों को दूसरे देशों की पैसों से मदद करना चाहिए।
  • संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख संगठनों ने एक हालिया रिपोर्ट में कहा है कि भले ही उत्सर्जन की वजह से वैश्विक तापमान बढ़ गया हो, लेकिन जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए फंडिंग की स्थिति उत्साहजनक नहीं है।

पूर्वी मिस्र में शर्म-अल-शेख में आयोजित कॉप27 (COP27) संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन से एक आशावादी जानकारी सामने आई है। सभी भाग लेने वाले देशों ने सम्मेलन के आधिकारिक एजेंडे पर लॉस एंड डैमेज (नुकसान और क्षति) के वित्तपोषण को शामिल करने पर सहमति व्यक्त की है। अब तक हुए कॉफ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप) में यह पहला मौका होगा जिसमें इस मुद्दे को चर्चा के लिए आधिकारिक तौर पर शामिल किया गया हो। कॉप को पिछले 28 वर्षों से आयोजित किया जा रहा है।

मिस्र के कॉप27 अध्यक्ष समेह शौकी के अनुसार, 48 घंटे से अधिक समय तक “अनौपचारिक वार्ता” के बाद यह सकारात्मक बात सामने आई। वार्ताकारों ने 20-सूत्रीय अंतरिम एजेंडे पर सहमति व्यक्त की जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण होने वाले नुकसान और क्षति के लिए धन से संबंधित मामलों पर भी चर्चा की जाएगी। चर्चा 18 नवंबर तक चलेगी।

लॉस एंड डैमेज का अर्थ उन सामाजिक और आर्थिक नुकसानों से है जो जलवायु परिवर्तन की वजह से होते हैं। जैसे बाढ़ या चक्रवात की वजह से जान-माल का नुकसान या अधिक गर्मी की वजह से फसल के बर्बाद होने से आजीविका का नुकसान। चरम मौसम की घटनाओं के अलावा समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने की वजह से हो रही परेशानियां भी शामिल हैं।

विकासशील देश जलवायु परिवर्तन की वजह से नुकसान तो झेल रहे हैं लेकिन इस परिवर्तन में उनका विकसित देशों जितना योगदान नहीं है। इसे ऐतिहासिक प्रदूषण या इतिहास में विकास के लिए किया गया प्रदूषण कहते हैं।

लॉस एंड डैमेज के तहत एक ऐसे वित्तीय कोष की परिकल्पना की गई है जिससे आपदा की स्थिति में कमजोर देशों की मदद की जा सके। छोटे द्वीप राष्ट्र और भारत जैसे विकासशील देश लंबे समय से पश्चिमी देशों से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए लॉस एंड डैमेज पर एक अलग कोष की मांग कर रहे हैं।

हालांकि, कुछ विकसित देशों के विरोध की वजह से यह कोष अब तक नहीं बन पाया है।

मिस्र में होने वाली शीर्ष बैठक के एजेंडा में लॉस एंड डैमेज का मुद्दा शामिल होने के बाद विकासशील देशों की उम्मीदें बढ़ी हैं।

विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने इस कदम की सराहना की। थिंक टैंक ‘वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’ के अध्यक्ष अनिरुद्ध दासगुप्ता ने एक बयान में कहा, “सदस्य देशों ने नुकसान और नुकसान को दूर करने के लिए वित्तपोषण के विचार को स्वीकार कर एक ऐतिहासिक बाधा को पार कर लिया है।”

पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कहा कि संघर्ष में यह सिर्फ शुरुआती कदम था। गैर लाभकारी संस्था क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में वैश्विक राजनीतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह के अनुसार, “कॉप27 के एजेंडे में लॉस एंड डैमेज को शामिल करने से लोगों के लिए अपने घरों, फसलों और आय खत्म होने की स्थिति में न्याय की लड़ाई फिर से शुरू हो गई है।”

मिस्र में कॉप27 के उद्घाटन समारोह के दौरान प्रस्तुत किया गया एक प्रेजेंटेशन। तस्वीर– किआरा वर्थ/यूएन क्लाइमेट चेंज/फ्लिकर

सिंह ने कहा कि जलवायु आपातकाल के लिए जिम्मेदार अमीर देश अतीत में गरीब देशों की चिंताओं की अवहेलने करते हुए नुकसान की भरपाई से बचते रहे हैं।

“कॉप27 की बैठक में लोगों को जलवायु संकट के प्रभावों से उबरने में मदद करने के लिए एक लॉस एंड डैमेज फंड स्थापित करने पर सहमत होना चाहिए,” उन्होंने आगे कहा।

संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन का प्रमुख लक्ष्य उत्सर्जन को अनिवार्य तौर पर नियंत्रित करना है। विश्व बैंक के अनुसार, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होगी। हरित ऊर्जा में वैश्विक निवेश को 2022 के $1 ट्रिलियन प्रति वर्ष से तीन गुना बढ़ाने की आवश्यकता है। बहुपक्षीय बैंक ने कहा कि इसे विकासशील देशों पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जो आज के अधिकांश उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं।

विशेषज्ञों ने बार-बार कहा है कि इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अमीर देशों से रियायती ऋण और वित्तीय सहायता आवश्यक है। हालांकि, अमीर देश 2009 में किए गए वादे को पूरा करने में विफल रहे हैं, जिसमें हर साल जलवायु वित्त (क्लाइमेट फाइनेंस) में $100 बिलियन प्रदान करने का वादा किया गया था। ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट ने पिछले साल निर्धारित किया था कि अनुकूलन वित्त (एडेप्टेशन फाइनेंस) को दोगुना किया जाना चाहिए। एडेप्टेशन का अर्थ जलवायु परिवर्तन से हो रहे नुकसानों को झेलने की क्षमता विकसित करने से है।

भारत ने कॉप27 में अपना रुख दोहराया

क्लाइमेट फाइनेंस या जलवायु वित्त के मुद्दे पर भारत का रुख स्पष्ट रहा है। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने मिस्र रवाना होने से पहले एक बयान में कहा, “कॉप27 को कॉप ऑफ एक्शन होना चाहिए, जिसमें प्रमुख रूप से क्लाइमेट फाइनेंस, एडेप्टेशन और लॉस एंड डैमेज को परिभाषित करने पर ध्यान होना चाहिए।”

भारत से विकासशील देशों की जरूरतों को पूरा करने वाली रणनीतियों के निर्माण की मांग जारी रखने की उम्मीद है। मंत्री यादव के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने रेखांकित किया है कि एडेप्टेशन और लॉस एंड डैमेज दो मुद्दे हैं जो केंद्र में हैं। दोनों मुद्दों पर प्रगति एक दूसरे की पूरक होनी चाहिए।

भारत के लाभ के लिए, संयुक्त राष्ट्र उसके रुख से सहमत है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि जीवाश्म ईंधन कंपनियों पर एक अप्रत्याशित टैक्स होना चाहिए, जिसका उपयोग लॉस एंड डैमेज से पीड़ित देशों की मदद के लिए किया जा सके।


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“कमजोर देशों को सार्थक कार्रवाई की जरूरत है। लॉस एंड डैमेज से अर्थव्यवस्थाओं को अब नुकसान हो रहा है, और इसपर ध्यान देने की जरूरत है। कॉप27 से इसकी शुरुआत होनी चाहिए,” गुटेरेस ने कहा।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के अनुसार, जलवायु अनुकूलन को प्रतिकूल जलवायु के प्रभावों से लड़ने के लिए पारिस्थितिक, सामाजिक या आर्थिक प्रणालियों में समायोजन के रूप में परिभाषित किया गया है।

लेकिन एडेप्टेशन फंडिंग पर कोई खास काम नहीं हुआ है। पिछले साल नवंबर में स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में कॉप26 आयोजित किया गया था। तीन नवंबर को जारी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एडेप्टेशन गैप रिपोर्ट 2022 के अनुसार विकासशील देशों के लिए वैश्विक अनुकूलन वित्त अनुमानित आवश्यकताओं से 5-10 गुना कम है और उल्लंघन लगातार बढ़ रहा है।

A man tries to restore his house in Puri close to the outskirts of the city. Credit-Manish Kumar
साल 2019 चक्रवात फनी के बाद ओडिशा के पुरी के पास अपने टूटे मकान का मुआयना करता एक आदमी। फाइल तस्वीर: मनीष कुमार

रिपोर्ट से पता चला है कि अमीर देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए वित्त 2020 में केवल $29 बिलियन था जो कि 2019 के बाद से केवल 4% की बढ़ोतरी है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एजेंसी ने अपनी वार्षिक एडेप्टेशन गैप रिपोर्ट में कहा कि दुनिया भर में अनुमानित वार्षिक जलवायु अनुकूलन की जरूरत 2030 तक $160-340 अरब और 2050 तक $315-565 अरब है।

अनुकूलन के वैश्विक लक्ष्य पर भारत के विचार स्पष्ट हैं। भारत सरकार ने दोहराया है कि कॉप27 को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जलवायु अनुकूलन के संबंध में प्रगति हो। भारत सरकार ने दोहराया कि अमीर देश सह-लाभ के नाम पर क्लाइमेट मिटिगेशन के लिए संसाधन जुटाने के नाम पर इस कोष को कमजोर न करें। क्लाइमेट मिटिगेशन का अर्थ जलवायु परिवर्तन को रोकने से है।

भारत की पर्यावरण सचिव लीना नंदन ने पिछले सप्ताह कहा था कि इस कॉप में अनुकूलन पर अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है।

इस मुद्दे पर पैसों का हिसाब-किताब देखें तो यह उत्साहजनक नहीं है। एडेप्टेशन गैप का कहना है कि अगर 2025 तक 2019 के वित्त प्रवाह को दोगुना करना है, तो तेजी से कदम उठाने की जरूरत है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “एडेप्टेशन को जलवायु परिवर्तन की वैश्विक प्रतिक्रिया में मिटिगेशन के साथ-साथ केंद्र में रखना चाहिए।”

1.15 डिग्री सेल्सियस गर्म हुई दुनिया

इस बीच जलवायु आपातकाल की चेतावनी के संकेत कई गुना बढ़ गए। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने रविवार को अपनी वार्षिक स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट में कहा कि पृथ्वी अब पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है, और तापमान में वृद्धि जारी है।

संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी (डब्ल्यूएमओ) ने अपनी अस्थायी रिपोर्ट में कहा कि 2021 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.11 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जो 2022 में बढ़कर 1.15 डिग्री सेल्सियस हो गया। इसमें कहा गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की सांद्रता ने 2021 में एक बार फिर रिकॉर्ड तोड़ दिया।

डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटेरी तालास ने कहा, “गर्मी जितनी अधिक होगी, प्रभाव उतना ही बुरा होगा।”

उन्होंने आगे कहा, “हमारे पास अब वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का इतना उच्च स्तर है कि पेरिस समझौते के मुताबिक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान को रखना मुश्किल है।”

राष्ट्रों ने 2015 में ऐतिहासिक पेरिस समझौते के माध्यम से वैश्विक तापमान वृद्धि को “2 डिग्री सेल्सियस के भीतर” नियंत्रित करने पर सहमति व्यक्त की थी और कहा था कि वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए। यदि वैश्विक तापमान मौजूदा गति से बढ़ता रहा तो 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य पूरा करना असंभव होगा।

डब्लूएमओ ने कहा कि पिछले आठ साल उच्च उत्सर्जन और वातावरण में संचित गर्मी के कारण सबसे गर्म रहे। जुलाई और अगस्त में अत्यधिक वर्षा के कारण पाकिस्तान में भीषण बाढ़ आई, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 1,700 लोग मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए। एक अन्य उदाहरण में, भारत में मार्च और अप्रैल में अत्यधिक गर्मी की लहर ने यूक्रेन के संघर्ष से उत्पन्न वैश्विक खाद्य कमी के बीच गेहूं की फसल खराब हो गई।


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“गर्मी के कारण फसल की पैदावार में गिरावट आई। यह गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध और भारत में चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ संयुक्त रूप से अंतरराष्ट्रीय खाद्य बाजारों के लिए खतरा है। पहले से ही मुख्य खाद्य पदार्थों की कमी से प्रभावित देशों के लिए यह एक खतरा है,“ डब्ल्यूएमओ ने कहा।

गुटेरेस ने एक बयान में कहा, “जैसा कि विश्व मौसम विज्ञान संगठन स्पष्ट रूप से दिखाता है, परिवर्तन विनाशकारी गति से हो रहा है। इससे हर महाद्वीप पर जीवन और आजीविका को खतरा है।”

उन्होंने आगे कहा, “लोगों को हर जगह जलवायु आपातकाल के तत्काल और लगातार बढ़ते जोखिमों से बचाया जाना चाहिए।”

गुटेरेस ने कहा, “हमें कार्रवाई के साथ पृथ्वी पर मंडरा रहे संकट के संकेतों पर कुछ करना चाहिए। इसके लिए महत्वाकांक्षी और विश्वसनीय जलवायु कार्रवाई (क्लाइमेट एक्शन) की जरूरत है। कॉप27 में इस मुद्दे पर तत्काल काम होना चाहिए।”

 

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बैनर तस्वीर- कर्नाटक के कोडगु में 2019 की बाढ़ में क्षतिग्रस्त हुआ एक मकान। तस्वीर- अभिषेक एन चिनप्पा/मोंगाबे

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