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[कमेंट्री] खतरे में राष्ट्रीय पक्षी मोर: भारत में एक दशक में अवैध व्यापार और मनुष्यों के साथ संघर्ष की सच्चाई

मोर महिमा, अनुग्रह, आनंद, वैभव, प्रेम और गौरव का प्रतीक है। लोगों का विश्वास है कि घर में पंख रखने से सकारात्मक ऊर्जा आती है क्योंकि मोर विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों से भी जुड़े हैं। तस्वीर- सोनिका कुशवाहा

मोर महिमा, अनुग्रह, आनंद, वैभव, प्रेम और गौरव का प्रतीक है। लोगों का विश्वास है कि घर में पंख रखने से सकारात्मक ऊर्जा आती है क्योंकि मोर विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों से भी जुड़े हैं। तस्वीर- सोनिका कुशवाहा

  • मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित हुए 59 वर्ष हो गए हैं, लेकिन अब भी उनकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं दिखता। आए दिन मोर की तस्करी या शिकार की जानकारियां सामने आती रहती हैं।
  • घरेलू बाजार में मोर के पंखों से बनी वस्तुओं के व्यापार और इस्तेमाल की छूट है। इसके लिए प्राकृतिक रूप से गिरे पंखों का इस्तेमाल करना जरूरी है। हालांकि, यह छूट मोर के शिकार की बड़ी वजह है।
  • अवैध व्यापार को रोकने के लिए कई याचिकाएं और अभियान चलाए जा रहे हैं। मोर संरक्षण के लिए कई संस्थाएं 15 नवंबर को विश्व मयूर संरक्षण दिवस घोषित करने की मांग कर रही हैं।
  • इस लेख में व्यक्त विचार लेखकों की निजी राय है।

भारत ने 1963 में मोर (वैज्ञानिक नाम- पेवो क्रिस्टेटस) को भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किए 59 साल हो चुके हैं लेकिन इसकी सुरक्षा के लिए कोई गंभीरता नहीं दिखती है। यद्यपि मोर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित है और धारा 51 (1-ए) के अंतर्गत मोर की हत्या के जुर्म में सात साल तक की सजा हो सकती है, फिर भी भारतीय मोर खतरे में है। इसके लिए मोर के सुंदर पंख और उनसे बनी वस्तुओं को घरेलू व्यापार के लिए मिली छूट जिम्मेदार है। धारा 43 (3)ए व 44(1) में दी गयी यह छूट इस आधार पर दी गई थी कि इस्तेमाल किए गए पंख प्राकृतिक रूप से गिरे होने चाहिए। एक अक्टूबर 1999 से विदेश व्यापार नीति के तहत मोर के पंखों या उनसे बनी कलाकृतियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 

भारतीय मोर के लिए प्रमुख खतरे हैं- पंख और मांस के लिए अवैध शिकार, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की खपत के कारण मृत्यु, किसानों द्वारा फसलों को नुकसान को रोकने के लिए जहर और पारंपरिक दवाओं के लिए विभिन्न भागों का प्रयोग।  

भारतीय मोर की दयनीय स्थिति का सत्य आम आदमी की जानकारी से कहीं ज्यादा डरावना है। यदि हम  केवल एक दशक के ऑनलाइन उपलब्ध प्रेस रिपोर्ट को देखें तो हमारे राष्ट्रीय पक्षी की हत्या और अवैध शिकार के चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं। 

दस वर्षों (2012-22) की अवधि में, भारत के 11 राज्यों से मीडिया द्वारा मोरों के अवैध शिकार और जहर देकर मारने के 35 से अधिक मामलों को कवर किया गया है। अधिकतर घटनाएं राजस्थान से रिपोर्ट की जा रही हैं। हर साल मोर के अवैध शिकार और जहर खिलाने के बारे में कई मामले सामने आते हैं और रिपोर्ट किए गए मामलों की तुलना में रिपोर्ट नहीं किए गए मामले अधिक हैं। राजस्थान के ढाबों में भी मोर का मांस परोसने का चलन बढ़ रहा है और बेंगलुरु, तमिलनाडु, तेलंगाना और मध्य प्रदेश से भी मामले सामने आए हैं। 

मोर एक चंचल पक्षी है जो तनाव और भय से ग्रस्त होने पर घबरा जाते हैं, जिसका अर्थ है कि थोड़ी सी भी शारीरिक चोट के कारण उन्हें घबराहट से दौरे पड़ सकते हैं और उनकी मृत्यु हो सकती है। तस्वीर- अखिलेश कुमार
मोर एक चंचल पक्षी है जो तनाव और भय से ग्रस्त होने पर घबरा जाते हैं, जिसका अर्थ है कि थोड़ी सी भी शारीरिक चोट के कारण उन्हें घबराहट से दौरे पड़ सकते हैं और उनकी मृत्यु हो सकती है। तस्वीर- अखिलेश कुमार

मोर एक चंचल पक्षी है जो तनाव और भय से ग्रस्त होने पर घबरा जाते हैं, जिसका अर्थ है कि थोड़ी सी भी शारीरिक चोट के कारण उन्हें घबराहट से दौरे पड़ सकते हैं और उनकी मृत्यु हो सकती है। इसलिए जब शिकारी जीवित मोर की पूंछ से ज़बरदस्ती व हिंसक रूप से पंख तोड़ने की कोशिश करते हैं, तो मोर को असहनीय दर्द होता है और सदमे से तुरंत उसकी मौत हो जाती है। स्वाभाविक रूप से, एक मोर एक वर्ष में लगभग 100-150 पंख गिराता है, इसलिए यह समझा जाता है कि पंखों की बढ़ती और न रुकने वाली मांग को स्वाभाविक रूप से इकट्ठा करके पूरा नहीं किया जा सकता है। इसलिए बाजार में आने वाले पंख निःसंदेह राष्ट्रीय पक्षियों को मार कर ही आ रहे हैं। 

यह निर्धारित करना कि एक पंख मोर द्वारा प्राकृतिक रूप से गिराया गया है या तोड़ा गया है संभव है। इसके लिए पंख के निचले हिस्से की जांच की जाती है। अपराध छुपाने के लिए शिकारियों ने पंखों को नीचे से काटकर बेचना शुरू कर दिया, और इस तरह पंख के स्रोत की पहचान करना असंभव बना दिया।

मोर पंख की सुंदरता सभी को आकर्षित करती है और इसी कारण कई लोग इसे अपने पास रखना चाहते हैं।  मोर महिमा, अनुग्रह, आनंद, वैभव, प्रेम और गौरव का प्रतीक है। लोगों का विश्वास है कि घर में पंख रखने से सकारात्मक ऊर्जा आती है क्योंकि मोर विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों से भी जुड़े हैं। विभिन्न धर्मों, लोक कथाओं और पौराणिक कथाओं में मोर की इस भूमिका के दो पहलू हैं – इनमें से एक ने पारंपरिक रूप से उनको सुरक्षा प्रदान की और संरक्षित किया जबकि दूसरा पहलू उनकी हत्या का कारण बन गया। 

सोलह सितंबर 2014 को केरल के कोच्चि हवाई अड्डे पर सिंगापुर जाने वाले एक यात्री से सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा 29.8 किलोग्राम मोर पंख जब्त किए गए। चेन्नई के रहने वाले व्यक्ति ने चेक-इन बैगेज में तौलिये के अंदर पंख छिपाए थे। 

केवल वर्ष 2020 में, दिल्ली के सीलमपुर स्थित निर्यातक अयाज अहमद के स्वामित्व वाली गैलेक्सी राइडर नाम की एक फर्म द्वारा लगभग 5.5 करोड़ मोर के पंखों की चीन में तस्करी की गई थी। करीब 2,565 किलोग्राम की खेप की कीमत 5.25 करोड़ रुपये थी और इसे 77 पैकेजों में पैक किया गया था (चित्र 3)। सीबीआई के अनुसार सितंबर 2020 और फरवरी 2021 के बीच, 26 शिपिंग बिलों के माध्यम से मोर पंख की विभिन्न खेपों को अहमद की कंपनी द्वारा चीन भेजा गया था। 

ट्रैफिक (वन्यजीव व्यापार नियंत्रण नेटवर्क) द्वारा दो वर्षों में 20 राज्यों से एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चला है कि राजस्थान के गोदामों में लगभग 25.71 करोड़ मोर पंख, गुजरात में 3 करोड़ और तमिलनाडु में 2 लाख मोर पंख पाए गए। आगरा और राजस्थान से तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल की मोर पंख की मांग पूरी की जाती हैं, जबकि ओडिशा ऐसे पंखों का सबसे बड़ा खरीदार है। 

भारतीय मोर की कम होती संख्या  

लगभग 30 साल पहले, 1991 में, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा मोरों की गणना की गई जिसमें स्वतंत्रता के समय उनकी संख्या की तुलना में 50% गिरावट का पता चला था। इसका मुख्य कारण अवैध शिकार था।

मोरों की सही जनसंख्या का पता लगाने के लिए देश में इस पक्षी की गणना के कोई प्रभावी कदम नहीं उठाये गए हैं। हालांकि, राजस्थान ने इस दिशा में प्रयास किए जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। 

राजस्थान ने सर्वप्रथम मोर की गणना दिसंबर 2017 में शुरू की। गणना के अनुसार कुल 3,43,869 मोर में से 1,26,015 मोर, 1,55,281 मोरनी और 62,573 युवा पक्षी पश्चिमी राजस्थान में हैं, जिसमें जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, पाली, सिरोही और जालोर जिले शामिल हैं। दूसरी गणना जून 2018 में हुई थी। राज्य में मोरों की उपस्थिति की सही स्थिति की जानकारी के लिए यह गणना की गई थी ताकि उनकी रक्षा के लिए यथा उचित आवश्यक प्रयास किए जा सकें।

2013-2018 के दौरान मोर के अवैध शिकार और व्यापार के रिपोर्ट किए गए मामले। स्रोत- स्वतंत्र शोधकर्ता उत्तरा मेंदीरत्ता और पूजा यशवंत पवार
2013-2018 के दौरान मोर के अवैध शिकार और व्यापार के रिपोर्ट किए गए मामले। स्रोत– स्वतंत्र शोधकर्ता उत्तरा मेंदीरत्ता और पूजा यशवंत पवार

राष्ट्रीय पक्षी के प्रति बढ़ते खतरों के कारण, उनकी स्थिति जानने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), देहरादून, सूचना संग्रह शुरू किया गया। भारतीय वन्यजीव संस्थान ने संरक्षित क्षेत्रों में भारतीय मोर की संख्या निर्धारित करने के लिए 2004 में सर्वेक्षण शुरू किया। मोर वाली रेंज के राज्यों के सभी संरक्षित क्षेत्रों के 448 प्रबंधकों को उनसे संबंधित मुख्य वन्यजीव वार्डन के माध्यम से प्रश्नावली भेजी गई थी। इसके अतिरिक्त, साल 2006 में, डब्ल्यू आई आई ने संरक्षित नेटवर्क या वन भूमि क्षेत्रों (राजस्व भूमि, कृषि भूमि और निजी भूमि) के बाहर भी भारतीय मोर की वर्तमान स्थिति का निर्धारण करने के लिए एक नेटवर्किंग दृष्टिकोण के माध्यम से एक अन्य प्रश्नावली सर्वेक्षण शुरू किया। यह माना जाता था कि भारतीय मोरों की संख्या का एक बड़ा प्रतिशत ऐसे क्षेत्रों में होता है जो वन या वन्यजीव विभागों के अंतर्गत नहीं आते हैं। 

यह प्रश्नावली 1,720 सिविल सोसाइटी सदस्यों को भेजी गई जिसमें से केवल 108 (6%) ने ही उत्तर दिया था। वहीं 448 संरक्षित क्षेत्रों में से केवल 193 ने और 519 जिलों में से लगभग 345 ने राष्ट्रीय पक्षी की उपस्थिति दिखाई।

स्वतंत्र शोधकर्ता उत्तरा मेंदीरत्ता और पूजा यशवंत पवार ने भारत में पांच साल 2013-2018 की अवधि में ऑनलाइन मीडिया रिपोर्टों की एक व्यवस्थित समीक्षा की और मोर के अवैध व्यापार के कम से कम 46 उदाहरण दर्ज किए। 

इनमें अनुमानित 400 मोरों के अवैध शिकार के 32 मामले और 370 किलोग्राम से अधिक के पंखों की बरामदगी के 14 मामले शामिल हैं। इन पंखों की बरामदगी 12 राज्यों और चार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों से की गयी थी जो स्पष्ट रूप से बड़े पैमाने पर संगठित व्यापार को दर्शाता है। 

इन दोनों शोधकर्ताओं ने कहा, “इन परिणामों को केवल व्यापार के एक बहुत छोटे अनुमान के रूप में माना जाना चाहिए, क्योंकि अधिकारियों को भी अवैध व्यापार का केवल एक अंश (शायद लगभग 10%) ही पता ही चल पता है, और मीडिया में इससे भी कम प्रतिशत रिपोर्ट किया जाता है।

संगठनों, संरक्षणवादियों के प्रयासों को अनसुना करते अधिकारी 

सात मई 2014 को जारी एक निर्देश में, वन्यजीवों के लिए वन महानिरीक्षक (आईजीएफ) एस. के खंडूरी ने कहा, “मोरों की मृत्यु के किसी भी मामले की जांच की जानी चाहिए और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के अनुसूची I प्रजाति होने के नाते प्राथमिकता से समाधान होना चाहिए। अवैध शिकार को देखते हुए, पर्याप्त और उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता है।”

खंडूरी ने कहा कि हालांकि धार्मिक, सांस्कृतिक और जीवन निर्वाह की जरूरतों के लिए विभिन्न समुदायों द्वारा पंख एकत्र किए जा सकते हैं, लेकिन किसी को भी शिकार पर प्रतिबंध से छूट नहीं दी गई है। उन्होंने कहा कि जंगलों के भीतर या बाहर मोर के पंख जबरदस्ती निकालना एक अपराध है। पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों से मोर पंख के अवैध व्यापार की जांच करने और डीलरों के स्टॉक में समय-समय पर जांच करने और पंखों के संग्रह का स्रोत जानने के लिए फोरेंसिक जांच और कार्रवाई करने को कहा।

मंत्रालय चाहता था कि निम्न नियमों का पालन किया जाए:

  1. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची I प्रजाति होने के नाते मोर की मृत्यु के सभी मामलों की जांच की जाए और प्राथमिकता के आधार पर समाधान किया जाए।
  2. मोर के पंख और उनसे बनी वस्तुओं के हस्तांतरण, परिवहन और व्यापार पर केवल वन्यजीव अधिनियम के भीतर ही छूट हो।
  3. हालांकि, धार्मिक, सांस्कृतिक और निर्वाह आवश्यकताओं के लिए समुदायों द्वारा पंख एकत्र कर के रखे जा सकते हैं, पर किसी भी कारण से मोर का शिकार पूरी तरह से प्रतिबंधित है।

पूर्व पर्यावरण मंत्री मेनका गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान वन्यजीव अधिनियम में संशोधन लाकर मोर पंखों की बिक्री को रोकने की एक असफल कोशिश की थी। साल 2013 में या कोशिश फिर की गई लेकिन राजनीतिक मुद्दों के कारण वह भी विफल रही।

अवैध व्यापार को रोकने के लिए कई याचिकाएं और अभियान भी शुरू किए गए। आशुतोष ज़ादे ने 2019 में डॉ. हर्षवर्धन (पर्यावरण मंत्री, भारत सरकार) से एक याचिका के माध्यम से अपील की: मोरों को विलुप्त होने से बचाओ। मोर पंख की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए 2020 में वाइल्ड वर्ल्ड कंजर्वेशन ट्रस्ट नामक एक गैर सरकारी संगठन के वन्यजीव संरक्षक और प्रकृतिवादी राजेश कुमार द्वारा मोरों के लिए एक और याचिका शुरू की गई।

मार्च 2015 में, ब्यूटी विदाउट क्रुएल्टी नामक एक संगठन ने प्रधानमंत्री, साथ ही पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री को लिखा, जिसमें कहा गया था कि सरकार को मोर पंखों के व्यापार पर तत्काल प्रतिबंध लगाने और संरक्षण पर गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए। जिस प्रकार वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ और सूची के अन्य जीवों को संरक्षण प्राप्त है उस ही तरह राष्ट्रीय पक्षी मोर को भी संरक्षण प्राप्त हो। 

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दिल्ली की एक कंपनी और उसके निदेशक पर कथित रूप से मोर के पंखों की तस्करी चीन स्थित एक संस्था को करने का मामला दर्ज किया है। तस्वीर- दिल्ली सीमा शुल्क
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दिल्ली की एक कंपनी और उसके निदेशक पर कथित रूप से मोर के पंखों की तस्करी चीन स्थित एक संस्था को करने का मामला दर्ज किया है। तस्वीर- दिल्ली सीमा शुल्क

दरअसल, 2016 तक चेन्नई से हवाई यात्रियों द्वारा अपने निजी सामान के हिस्से के रूप में मोर पंखों को बिना रोक-टोक के देश से बाहर ले जाया जा रहा था। ब्यूटी विदाउट क्रुएल्टी ने मंत्रालय के सचिव का ध्यान आकर्षित किया और अनुरोध किया कि निषिद्ध वन्यजीव उत्पादों को सूचीबद्ध करने वाले अधिकारियों को एक परिपत्र भेजा जाए। वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो से एक सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई, जिसमें उनके दक्षिणी क्षेत्र के कार्यालय को “विशेष रूप से अपने अधिकार क्षेत्र में हवाई अड्डों पर आयोजित संवेदीकरण कार्यक्रम में इस इनपुट को लेने के लिए” निर्देशित किया गया था।

साल 2016 में, भारतीय जैव विविधता संरक्षण संस्थान, झाँसी ने पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिख कर निवेदन किया कि हर साल 15 जुलाई को ‘विश्व मयूर संरक्षण दिवस’ के रूप में घोषित कर के राष्ट्रीय पक्षी को संरक्षण प्रदान करने की पहल करें। लेकिन मंत्रालय ने यह कहते हुए इंकार कर दिया गया था कि इस प्रकार ‘विशेष दिन’ घोषित करना उनके शासनादेश में नहीं आता। 

राष्ट्रीय पक्षी को बचाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

भारतीय जैव विविधता संरक्षण सोसाइटी हर साल 15 नवंबर को भारत के राष्ट्रीय पक्षी को विश्व मयूर दिवस (World Peacock Day) के रूप में समर्पित करने का विचार लेकर आई है। हम हर साल 15 नवंबर को विश्व मयूर दिवस मनाकर अपने राष्ट्रीय पक्षी को एक दिन समर्पित करें जैसे हम राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाते हैं। 

यह हमें अपने राष्ट्रीय पक्षी के महत्व के बारे में सोचने पर मजबूर करेगा। यह मोरों के जीवन में आने वाली कठिनाइयों के बारे में जागरूकता पैदा करेगा। इससे उनकी सुरक्षा के लिए नीतियों का निर्माण होगा। इस दिन के उपलक्ष्य में सरकार और संगठनों का ध्यान संरक्षण परियोजनाओं, जागरूकता अभियानों और उचित वैज्ञानिक सर्वेक्षण की ओर आकर्षित होगा।

मोर पंखों के अवैध व्यापार पर रोक लगाने के लिए कानून का सख्ती से पालन जरूरी है। शिकारियों और अवैध विक्रेताओं को बिना किसी कानूनी दंड के नहीं छोड़ा जाना चाहिए। अधिकारियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 57 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि यह माना जा सकता है कि व्यक्ति यदि बड़ी मात्रा में मोर पंख उत्पादों का व्यापार कर रहा है तो अवैध तरीके से ही कर रहा है।


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मोर के अवैध शिकार व अन्य क्रूरता को रोकने के लिए वन विभाग और पुलिस के साथ ही स्थानीय लोगों और स्थानीय गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी भी जरूरी है। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश के नीमच जिले के मनासा ब्लॉक के बसनिया गाँव में मानव आबादी से अधिक मोर हैं। स्थानीय कंजर और बांछड़ा जनजातियों द्वारा राष्ट्रीय पक्षी को अवैध शिकार से बचाने के लिए ग्रामीणों द्वारा 2012 में आंदोलन शुरू किया गया था। उन्होंने संकल्प लिया कि स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर गृहिणियों व खेतों में काम करने वाले पुरुष सभी राष्ट्रीय पक्षी का संरक्षण के लिए जिम्मेदार होंगे। अब इस गांव के लोग अपनी फसलों के नुकसान को सहन करते हैं और राष्ट्रीय पक्षी की रक्षा करना नहीं भूलते हैं।

किसानों को मोर के पारिस्थितिक महत्व के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। मोर के कारण फसल के नुकसान के मामलों में कुछ मुआवजा दिया जा सकता है। राष्ट्रीय पक्षी या किसी भी अन्य पक्षी को जहर देकर मारना किसानों की समस्या का समाधान नहीं है।

धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधि महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्हें किसी भी रूप में मोर पंख का उपयोग करने वाले अनुष्ठानों में बदलाव लाने के लिए आगे आना चाहिए। उन्हें अपने भक्तों को मोर पंख भेंट करने के लिए हतोत्साहित करना चाहिए।

किसी भी पक्षी की अच्छी संख्या यह सुनिश्चित नहीं करती है कि वे भविष्य में भी सुरक्षित रहेंगे क्योंकि हमने भारत में सबसे अधिक संख्या में पाए जाने वाले गिद्धों को विलुप्ति की और जाते देखा है, हमने देखा है कि कैसे हमारे घरों में रहने वाली नन्ही गोरैया अचानक से कम होने लगी। 

कृपया मोरों की रक्षा करें वरना एक दिन हम एक दूसरे से यही पूछेंगे, “जंगल में मोर नाचा किसने देखा”?

 

बैनर तस्वीरः मोर महिमा, अनुग्रह, आनंद, वैभव, प्रेम और गौरव का प्रतीक है। लोगों का विश्वास है कि घर में पंख रखने से सकारात्मक ऊर्जा आती है क्योंकि मोर विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों से भी जुड़े हैं। तस्वीर- सोनिका कुशवाहा

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