- मिस्र में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप27 का दूसरा सप्ताह चल रहा है। बैठक में क्लाइमेट फाइनेंस के मुद्दे पर सहमति बनती है कि नहीं इस बात से इस बैठक की प्रगति को मापा जाएगा। हालांकि, अब तक जो संकेत मिले हैं वह उत्साहजनक नहीं हैं।
- लॉस एंड डैमेज का मुद्दा पहली बार आधिकारिक एजेंडे में शामिल होना कॉप27 के लिए शुरुआती सफलता है। लेकिन इस बात की संभावना कम ही है कि अमीर देश इस मामले में कोई कदम उठाएंगे।
- वैश्विक तापमान वृद्धि को रोकने के लिए भारत ने कोयले के अलावा दूसरे जीवाश्म ईंधन के उपयोग को तेजी से कम करने का आह्वान किया है।
मिस्र के शर्म-अल-शेख में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन – कॉप27 बीते एक सप्ताह से चल रहा है। बैठक की शुरुआत लॉस एंड डैमेज के मुद्दे के आधिकारिक एजेंडे में शामिल होने के उत्साह के हुई, लेकिन एक सप्ताह के भीतर यह उत्साह शांत हो रहा है। अब चिंताएं बढ़ रही हैं कि शिखर सम्मेलन से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा। इन चिंताओं की वजह है विश्व के अमीर देशों का जलवायु पूंजी के मामले में पैर पीछे लेना। विकासशील देश चाहते हैं कि सिर्फ दावों और वादों के बजाए जमीन पर कुछ ठोस कदम उठाए जाएं।
लाल सागर तट पर स्थित शहर शर्म-अल-शेख में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज यानी कॉप27 में दुनियाभर से 50 हजार से अधिक प्रतिभागी उपस्थित हैं। इस सम्मेलन को पिछले 28 वर्षों से किया जा रहा है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि लॉस एंड डैमेज का मुद्दा बैठक में आधिकारिक रूप से शामिल है।
इसके अलावा, दो सप्ताह के पहले सम्मेलन का एक अन्य मुख्य आकर्षण अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के द्वारा 11 नवंबर को की गई घोषणा थी। संयुक्त राज्य अमेरिका ने मिस्र के साथ एकजुटता दिखाने के लिए महाद्वीप के देशों के लिए $150 मिलियन जलवायु अनुकूलन (क्लाइमेट एडेप्टेशन) कोष की घोषणा की। जिसे “अफ्रीका कॉप” कहा जा रहा है।
हमेशा की तरह हाल के वर्षों में, जलवायु वार्ता पैसे या पूंजी आ टिकी है। जलवायु वित्त पर प्रगति की कमी कॉप की जलवायु कार्रवाई में किसी भी तरह की बढ़त बनाने की क्षमता पर सवाल उठा सकती है। इसके अलावा उन लक्ष्यों को निर्धारित करना जो अंततः अमीर से गरीब देशों के वित्तीय प्रवाह पर निर्भर हैं।
इस बात का इशारा अमेरिका ने कर दिया है। जलवायु पर अमेरिकी राष्ट्रपति के दूत जॉन केरी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के लिए गरीब देशों को मुआवजा देने के महत्वपूर्ण मुद्दे पर बातचीत अमीर देशों द्वारा ओपन-एंडेड देनदारियों पर हस्ताक्षर करने के साथ समाप्त नहीं होगी। कॉप27 में एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने जोर देकर कहा, “ऐसा नहीं हो रहा है।” केरी ने कहा, हालांकि, अमेरिका लॉस एंड डैमेज (नुकसान और क्षति) पर कुछ काम करने की कोशिश में है।
सिविल सोसायटी संगठनों ने कहा कि यह रुख पर्याप्त नहीं है। उन्होंने ग्लोबल साउथ के देशों के रुख को दोहराया। गैर सरकारी संस्थाओं के समूह ‘क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क’ के एड्डी पेरेज़ ने कहा, “कमजोर देश कॉप27 में एजेंडा तय कर रहे हैं। और लॉस एंड डैमेज पर बहुत सारी उम्मीदें हैं।”
फ्राइडे फॉर फ्यूचर इंडिया की दिशा रवि ने जोर देकर कहा, “हमें लॉस एंड डैमेज के लिए पैसों की आवश्यकता है।” दिशा रवि की संस्था पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग द्वारा शुरू किए गए जलवायु अभियान का एक हिस्सा है, जिन्होंने कॉप27 का बहिष्कार किया है। रवि ने कहा, “अब तक कोई ठोस मामला सामने नहीं आया है।”
पेरेज़ ने बताया, “नुकसान और क्षति पर अमेरिका मुख्य अवरोधक रहा है। हमें उन्हें अपने विचार बदलने के लिए मजबूर करना होगा।”
कॉप27 के परिणाम
लॉस एंड डैमेज के अलावा, जलवायु परिवर्तन के अन्य पहलुओं जैसे कि एडेप्टेशन और मिटिगेशन, पर बातचीत ने शिखर सम्मेलन के पहले सप्ताह में गति प्राप्त की। हालांकि, दुनिया भर के राजनयिक इस प्रगति पर चुप्पी साधे हुए हैं। एडेप्टेशन का अर्थ जलवायु परिवर्तन के नुकसानों को झेलने की क्षमता विकसित करने से है और मिटिगेशन का मतलब जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को रोकना या कम करना है।
कॉप27 की शुरुआत पैसा जुटाने और वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के उद्देश्य से हुई। अब तक कुछ अमीर देशों ने क्लाइमेट फाइनेंस (जलवायु वित्त) की प्रगति पर चर्चा से बचने की कोशिश की है। दूसरी ओर, विकासशील देश परिभाषाओं को व्यापक और अपरिभाषित रखने के खिलाफ हैं, क्योंकि भविष्य में इसे बचाव के रास्ते के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
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वार्ता का दूसरा सप्ताह सोमवार, 14 नवंबर को शुरू हुआ। दूसरे सप्ताह में सबकी नजर मंत्रिस्तरीय सत्रों की ओर चली गई जो कॉप27 के परिणाम को निर्धारित करेगा। कॉप27 के अंत में सर्वसम्मति के लिए प्रस्तुत किए जाने वाले मसौदे की घोषणा को तैयार करने का काम शुरू हो गया है।
इस कॉप को एक्शन या कार्यान्वयन कॉप के रूप में प्रचारित किया गया, जहां चर्चाओं से अधिक जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए हुए प्रयासों की बात होगी। यहां मिस्र के राष्ट्रपति कुछ वास्तविक प्रगति दिखाने के लिए उत्सुक होंगे। यहां एक मजबूत मिटिगेशन कार्यक्रम पर चर्चा हो रही है जो उत्सर्जन में कटौती के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) पर चर्चा करने के लिए ढांचा प्रदान करेगा। एनडीसी के तहत सभी देश अपने देश में जलवायु परिवर्तन पर चल रही कार्रवाई को जाहिर करते हैं।
मिटिगेशन योजना अगले साल वैश्विक स्टॉकटेक का भी नेतृत्व करेगी, जो आधिकारिक तौर पर एनडीसी पर हुई प्रगति को देखेगा। योजना का लक्ष्य 2030 तक उत्सर्जन में 50% की कटौती करना है। संयुक्त राष्ट्र विज्ञान निकाय, जलवायु परिवर्तन के लिए इंटर गवर्नमेंट पैनल का कहना है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 50% की कटौती आवश्यक है।
क्लाइमेट फाइनेंस के महत्वपूर्ण, दीर्घकालिक लक्ष्य पर बहुत कम प्रगति हुई है। दूसरे सप्ताह में होने वाली चर्चा से तय होगा कि इस पर कोई प्रगति होगी या नहीं।
भारत ने स्पष्ट किया अपना एजेंडा
भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पहले सप्ताह के अंत में अपनी अपेक्षाएं स्पष्ट कर दी हैं। सरकार के वार्ताकारों ने खेद व्यक्त किया कि ऊर्जा उपयोग, आय और उत्सर्जन में भारी असमानताओं के साथ अभी भी दुनिया में असमानता है।
भारत ने एक बयान में कहा, “दुनिया को यह मानना होगा कि वैश्विक कार्बन बजट तेजी से कम हो रहा है और बचे हुए बजट को समान रूप से बांटा जाना चाहिए। भारत ने जोर देकर कहा कि जलवायु आपातकाल से संबंधित मामलों में समानता के सिद्धांतों को लागू करने में बड़ा अंतर है।”
भारत पेरिस समझौते के तहत साझा किए गए अलग-अलग जिम्मेदारियों और जलवायु प्रतिबद्धताओं की राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित प्रकृति के बुनियादी सिद्धांतों को बनाए रखने के अपने लंबे समय से चले आ रहे रुख पर भी कायम है।
भारत ने यह भी कहा कि कॉप27 के दौरान सभी जीवाश्म ईंधनों को धीरे-धीरे कम करने के दीर्घकालिक लक्ष्य को तय किया जाना चाहिए।
इसे भारत द्वारा एक कूटनीतिक हमले के रूप में देखा जा रहा है, जिस पर अक्सर अपनी बिजली की मांग को पूरा करने के लिए अत्यधिक कोयले का उपयोग करने का आरोप लगाया जाता रहा है।
पिछले साल ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन – कॉप26 में, भारत और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच कोयले की चरणबद्ध समाप्ति पर गतिरोध था। विकसित दुनिया ‘फेज आउट’ शब्द को शामिल करना चाहती थी, जिस पर भारत ने जोर देकर कहा था कि यह स्वीकार्य नहीं है, विकल्प के रूप में ‘फेज डाउन’ शब्द को आगे रखा। अंतत: भारत को कामयाबी मिली और कॉप26 में कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने का आह्वान किया गया।
ऊर्जा बदलाव को मिली गति
सोमवार 14 नवंबर को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चार प्रमुख उत्सर्जक – चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और यूरोपीय संघ – जलवायु परिवर्तन को रोकने पर अपनी प्रगति को कम कर रहे हैं। एनर्जी एंड क्लाइमेट इंटेलिजेंस यूनिट की रिपोर्ट में कहा गया है कि वास्तविक दुनिया के साक्ष्य कम से कम तीन का सुझाव देते हैं जिसमें कई देश उत्सर्जन में तेजी से कटौती करेंगे। इन देशों में भारत भी शामिल है।
गैर-लाभकारी संगठन गैरेथ रेडमंड-किंग ने एक बयान में कहा, “जिस गति से बदलाव तेजी से बढ़ रहा है वह उल्लेखनीय है। ये बदलाव वैश्विक अर्थव्यवस्था में बिजली उत्पादन क्षेत्र में हो रहा है। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि सही नीति और बाजार के ढांचे किस गति से बदलाव ला रहे हैं। कुछ वर्ष पहले इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी।”
भारत ने भी अपनी आधिकारिक विज्ञप्ति में वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन को गति देने का आग्रह किया। सभी देशों को यह स्वीकार करने के लिए कहा कि सभी जीवाश्म ईंधन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में योगदान करते हैं।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से सौर, का रोल-आउट भारत में तेजी से बढ़ रहा है और इस दशक के अंत तक देश के बिजली क्षेत्र को बदल देगा। रिपोर्ट में बताया गया है कि पवन और सौर ऊर्जा की वजह से कोयले का उत्पादन जरूर गिरेगा।
भारत अपने ऊर्जा परिवर्तन को वित्तपोषित करने के लिए निजी पूंजी का एक स्थिर प्रवाह भी देख रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दशक में अडानी समूह के पूंजी निवेश का 70% हरित परिवर्तन की ओर प्रवाहित होगा। बाजार पूंजीकरण के लिहाज से भारत की सबसे मूल्यवान कंपनियों में से एक रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अकेले गुजरात में $80 अरब डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है। भारत और जर्मनी के बीच साझेदारी समझौते में $10.5 बिलियन तक का समर्थन है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ये रुझान, हरित परिवहन और पर्यावरण के अनुकूल आवास में प्रयासों के साथ-साथ भारत को अपने 2070 के शुद्ध शून्य (नेट जीरो) उत्सर्जन लक्ष्य की ओर ले जाते हुए दिखते हैं।
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बैनर तस्वीर: क्लाइमेट फाइनेंस का कार्यान्वयन कॉप27 चर्चाओं की सफलता को निर्धारित करेगा। हालांकि, संकेत उत्साहजनक नहीं हैं। तस्वीर– UNFCCC/किआरा वर्थ/फ़्लिकर