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प्लांट जेनेटिक पर अंतरराष्ट्रीय संधि में किसानों के अधिकारों पर बनी आम सहमति

प्याज की फसल की कटाई करते किसान। जीबी-9 ने ‘फसल विविधता के संरक्षक’ के रूप में किसानों की भूमिका को मान्यता देते हुए एक प्रस्ताव का अंतिम रूप दिया। तस्वीर- मीना631/विकिमीडिया कॉमन्स।

प्याज की फसल की कटाई करते किसान। जीबी-9 ने ‘फसल विविधता के संरक्षक’ के रूप में किसानों की भूमिका को मान्यता देते हुए एक प्रस्ताव का अंतिम रूप दिया। तस्वीर- मीना631/विकिमीडिया कॉमन्स।

  • प्लांट जेनेटिक रिसोर्से फॉर फ़ूड एंड एग्रीकल्चर पर अंतरराष्ट्रीय संधि के गवर्निंग बॉडी के नौवें सत्र की मेजबानी (होस्टिंग) भारत ने की।
  • सत्र में किसानों के अधिकारों, डिजिटल सिक्वेंस इनफोर्मेशन तक किसानों की पहुँच और लाभ साझा करने जैसे विभिन्न मसलों पर चर्चा हुई।
  • एक कदम आगे बढ़ते हुए जीबी-9 (गवर्निग बॉडी का नौवा सत्र) की किसानों के अधिकारों संबंधी दस्तावेज पर सहमति बनी। हालांकि इसे कानूनी रूप से लागू करने पर सहमति नहीं बनी। यह सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक था। इसे उपाध्यक्षों द्वारा सुझाए गए विकल्पों पर सहमति के साथ पारित किया गया।
  • जीबी-9 ने संधि के सचिवालय से उनके बहु-वर्षीय कार्यक्रम में किसानों के अधिकार पर डीएसआई (डिजिटल सिक्वेंस इनफोर्मेशन) के संभावित प्रभाव को शामिल करने की अपील की।

खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों (प्लांट जेनेटिक रिसोर्से फॉर फ़ूड एंड एग्रीकल्चर) पर हुई अंतरराष्ट्रीय संधि में खाद्य और कृषि में पौधों के आनुवंशिक संसाधनों पर किसानों के अधिकार के बारे में चर्चा की गई। संधि के तहत शामिल की गई फसलों की सूची और लाभ-साझाकरण को बढ़ाने पर भी चर्चा हुई।

बैठक में किसानों के अधिकारों पर डिजिटल सिक्वेंस इनफार्मेशन (डीएसआई) के संभावित प्रभाव की जांच पर जोर दिया गया। यह चर्चा जैव विविधता पर हुए महत्वपूर्ण 15वें सम्मेलन (COP15) से कुछ महीने पहले हुई। जिसमें डीएसआई पर विचार-विमर्श हुआ, जो शोध में उपयोग किए जाने वाले आनुवंशिक (जेनेटिक) संसाधनों से प्राप्त डेटा से सम्बंधित है। भारत ने संधि में डीएसआई की चर्चाओं को कॉप15 (COP15) की चर्चाओं से स्वतंत्र रूप से करने की मांग की।

उन्नीस से 24 सितंबर, 2022 तक भारत ने इस सत्र की मेजबानी की। गवर्निंग बॉडी (GB-9) के नौवे सत्र की थीम ‘फसल की विविधता के संरक्षकों का उत्सव’ थी जो कि एक समावेशी (इन्क्लूसिव) वैश्विक जैव विविधता की दिशा में संधि और जैविक विविधता पर कन्वेंशन (सम्मेलन) के बीच बेहतर संबंधों की पहचान करने पर केन्द्रित थी।

आईटीपीजीआरऍफ़ए, जिसे अंतर्राष्ट्रीय बीज संधि या पादप संधि के रूप में भी जाना जाता है, खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, उपयोग और प्रबंधन के लिए सदस्य देशों के बीच एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। संधि यह सुनिश्चित करती है कि नई किस्म की फसलों को विकसित करने के लिए किसानों और पादप प्रजनकों (प्लांट ब्रीडर्स) की पहुँच आवश्यक कच्चे आनुवंशिक सामग्री तक आसानी हो। इसमें उच्च पैदावार वाली और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल किस्में शामिल हैं। इस संधि पर 2001 के दौरान मैड्रिड में हस्ताक्षर किए गए, और 29 जून, 2004 को इसे लागू किया गया। वर्तमान में, संधि पर हस्ताक्षर करने वाले 149 पक्ष (देश और अंतर-सरकारी संगठन) हैं, जो संधि की शर्तों का पालन करने के लिए सहमत हैं।

भारत के पाटनचेरु में सक्रिय जीनबैंक (ICRISAT)। संधि सुनिश्चित करती है कि फसल की नई किस्मों को विकसित करने के लिए आवश्यक कच्चे आनुवंशिक सामग्री तक किसानों और पौधों के प्रजनकों (प्लांट ब्रीडर्स) की सहज पहुंच हो। तस्वीर- सीजीआईएआर जीनबैंक प्लेटफॉर्म/विकिमीडिया कॉमन्स 
भारत के पाटनचेरु में सक्रिय जीनबैंक (ICRISAT)। संधि सुनिश्चित करती है कि फसल की नई किस्मों को विकसित करने के लिए आवश्यक कच्चे आनुवंशिक सामग्री तक किसानों और पौधों के प्रजनकों (प्लांट ब्रीडर्स) की सहज पहुंच हो। तस्वीर– सीजीआईएआर जीनबैंक प्लेटफॉर्म/विकिमीडिया कॉमन्स

जीबी-9 ने ‘फसल विविधता के संरक्षक’ के रूप में किसानों की भूमिका को मान्यता देते हुए प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया। भारत सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि रिजाल्यूशन (प्रस्ताव) में ‘किसान और महिलाओं की भूमिका को फसल विविधता की निरंतर उपलब्धता के संरक्षक के रूप में मान्यता दी गई है।’ हालांकि, इन किसानों के अधिकारों को इसे लागू करने के लिए कानूनी उपाय क्या होंगे, इस पर कोई आम सहमति नहीं बनी है।

सत्र ने एक ‘संपर्क समूह’ की भी स्थापना की गई। यह समूह इस विषय पर संधि की बहुपक्षीय कार्य को फिर शुरू करने की प्रक्रिया पर चर्चा को फिर से शुरू करने के लिए एक मसौदा का मार्गदर्शन करेगा। जीबी-8 के दौरान इन चर्चाओं में कोई प्रगति नहीं हुई थी।

पहुंच और लाभ-साझाकरण तंत्र के तहत दुनिया की 64 प्रमुख फसलें शामिल हैं। ये फसलें पौधों से प्राप्त भोजन का लगभग 80% हिस्सा हैं। अंतर्राष्ट्रीय संधि में जो भी देश शामिल होते हैं, वे बहुपक्षीय प्रणाली (एमएलएस) के माध्यम से अपने सार्वजनिक जीन बैंकों में रखे फसलों के बारे में, अपनी आनुवंशिक विविधता और इससे संबंधित जानकारी सभी सदस्यों को उपलब्ध कराने के लिए सहमत होते हैं।

जीबी-9 ने किसानों के अधिकारों संबंधी दस्तावेज़ पर सहमति व्यक्त की। संधि के अनुच्छेद 9 में इसे फुटनोट के साथ निर्धारित किया गया है। आर्टिकल 9 किसानों के अधिकारों के बारे में है। इसमें यह माना गया है कि राष्ट्रीय सरकारें किसानों के अधिकारों के लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि सरकारों पर खाद्य और कृषि के लिए आनुवंशिक संसाधनों को उपलब्ध कराने का दायित्व है।

संधि के तहत किसानों के अधिकारों संबंधी तकनीकी विशेषज्ञ समूह (एएचटीईजी-एफआर) के उपाअध्यक्षों में से एक कृषि विशेषज्ञ आरसी अग्रवाल कहते हैं, आर्टिकल 9 पूरी संधि की आधार-शिला है। किसानों के अधिकारों को साकार करने के लिए किए गए राष्ट्रीय उपायों की एक सूची तैयार करना आवश्यक है।

हालांकि, कमीटी किसानों के अधिकारों के लिए कानूनी प्रावधानों से सम्बंधित आर्टिकल 9 पर आम सहमति बनाने में असफल रही। यह प्रावधान आर्टिकल 9 के तहत 11 श्रेणीयों में से 10वीं श्रेणी के अंतर्गत आता है। आम सहमति के प्रयास में, समिति के उपाध्यक्षों ने श्रेणी 10 के तहत अपने विकल्पों का प्रस्ताव रखा। उसके बाद गवर्निंग बॉडी ने विकल्प के दस्तावेज़ को एक फुटनोट के साथ स्वीकार कर लिया। 

एएचटीईजी-एफआर के एक अन्य उपाध्यक्ष स्वानहिल्ड-इसाबेल बट्टा टोरहेम ने कहा कि यह संधि बीजों पर किसानों के अधिकार की मान्यता को कानूनी रूप से बाध्य करने वाला एक मात्र अंतरराष्ट्रीय साधन है। “लोगों को उम्मीद है कि आईटीपीजीआरएफए के माध्यम से इन अधिकारों को महसूस किया जाएगा और किसान और स्थानीय समुदाय फसल विविधता के संरक्षक बने रहेंगे।” नॉर्वे की कृषि और खाद्य मंत्रालय में वन और प्राकृतिक संसाधन की एक वरिष्ठ नीति सलाहकार, बट्टा तोरहेम ने कहा, “विकल्प दस्तावेज़ किसानों को उनके अधिकारों का एहसास कराके उन्हें समृद्धि का रास्ता दिखाता है।” वह विकसित देशों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं।

भारत के कर्नाटक रज्य में बागवानी। तस्वीर- एशियाई विकास बैंक/विकिमीडिया कॉमन्स।
भारत के कर्नाटक रज्य में बागवानी। तस्वीर– एशियाई विकास बैंक/विकिमीडिया कॉमन्स।

अनुच्छेद 9 की श्रेणी 10 पर कोई आम सहमति नहीं बन पाने के बारे पूछे जाने पर अग्रवाल ने कहा, “भारत में लगभग 80% किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है। विकासशील देश आम तौर पर किसानों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे कानूनी उपायों का समर्थन करते हैं। विकसित देशों में ऐसा नहीं है, वहां खेती का तरीका अलग है। वहां बड़े पैमाने पर खेती होती है। क्योंकि वे नहीं चाहते कि कोई किसान बीज बचाने में लगे और बार-बार उसका उपयोग करें या अपने साथियों के साथ साझा करें, इसलिए विकसित देश प्रजनकों (ब्रीडर्स) के अधिकारों के बारे में अधिक बात करते हैं। जबकि अल्प विकसित और विकासशील देश प्रजनकों और किसानों दोनों के अधिकारों की बात करते हैं, क्योंकि इन देशों के किसानों को कानूनी समर्थन की आवश्यकता है।”

यह गौरतलब है कि भारत के लगभग 70% ग्रामीण परिवार अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। इसमें से 82% छोटे और सीमांत किसान हैं।

किसानों के अधिकारों मानवाधिकार बनाने की वकालत 

किसानों के अधिकारों के समर्थन में अपना मजबूत पक्ष रखने के लिए, संधि से जुड़ी कई पार्टियों (देश व् संगठन) ने किसानों के अधिकारों को मानव अधिकारों के तौर पर वैश्विक मान्यता देने की वकालत की।

नॉर्वे के बट्टा टोरहेम ने भी मोंगाबे-इंडिया के साथ इसे साझा किया। जब उनसे किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “विभिन्न विचार और प्राथमिकताएं हैं जिनके लिए किसानों के अधिकारों को लागू करने के लिए कानूनी उपाय उचित और आवश्यक हैं। ख़ास तौर से खेत में सहेजे गए बीज को बचाने, उपयोग करने, लेन-देन और बेचने के अधिकारों का, इसके अलावा, शासी निकाय (गवर्निंग बॉडी) के इस सत्र में मानवाधिकारों की प्रासंगिकता अत्यधिक बहस का विषय बन गया है। ऐसा लगता है कि यह एक ऐसा विषय है जिस पर भविष्य में और बहस की आवश्यकता होगी।” (इसमें यह भी शामिल होना चाहिए कि बौद्धिक संपदा अधिकारों को किसानों के अधिकारों के साथ किस हद तक संतुलित किया जा सकता है, या किस हद तक बौद्धिक संपदा अधिकार किसानों के अधिकारों के लिए एक समस्या हैं)।

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के एक किसान, तन्मय जोशी, जो एएचटीईजी कमिटी का भी हिस्सा हैं, उन्होंने ‘मानवाधिकार’ के सन्दर्भ में कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया जाए, बहुतों ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल ही में किसानों के अधिकारों को मानवाधिकारों के रूप में स्वीकार किए जाने का जिक्र किया।

हालांकि समिति आर्टिकल 9 की श्रेणी 10 पर आम सहमति बनाने में असफल रही, इसके बावजूद तन्मय जोशी इसे एक सकारात्मक प्रगति मानते हैं। उन्होंने कहा कि पांच साल से काम कर रही 35 सदस्यीय समिति भी किसानों के अधिकारों के कानूनी पहलू पर मडरा रहे काले बादल को साफ करने में असफल रही है। गंभीरता से लेते हुए इसके कानूनी पहलुओं को स्पष्ट करना गवर्निंग बॉडी के लिए अहम मसला है। अब लोग इसकी मांग करेंगे।

फोटो कैप्शन: टिकरी बॉर्डर पर किसानों का धरना। तस्वीर- रणदीप मडोक/विकिमीडिया कॉमन्स।
फोटो कैप्शन: टिकरी बॉर्डर पर किसानों का धरना। तस्वीर– रणदीप मडोक/विकिमीडिया कॉमन्स।

जब बट्टा टोरहेम से पूछा गया कि क्या वह निकट भविष्य में संघर्ष का कोई संभावित समाधान देखती हैं? इसके जवाब में उन्होंने ने कहा, “1980 के दशक में चर्चा के दौरान पादप-प्रजनकों (प्लांट ब्रीडर्स) के अधिकारों के लिए हुआ संघर्ष, किसानों के अधिकारों की मांग को आगे बढ़ाने का बहुत बड़ा कारण है।  मुझे नहीं लगता कि आसानी से यह समस्या हल हो जाएगी। लेकिन शायद एक सतत प्रक्रिया बेहतर समझ में योगदान देगी। इसके तहत वैश्विक संगोष्ठी में चर्चा शामिल है। यूपीओवी कन्वेंशन के 1991 अधिनियम के तहत प्लांट ब्रीडर के अधिकारों को बड़े सख्त लहजे से आगे बढ़ाया गया। उन्होंने भारतीय कानून को पादप प्लांट ब्रीडर्स के अधिकारों और किसानों के अधिकारों का एक अच्छा संयोजन बताया। उनके अनुसार, यह दर्शाता है कि एक वैकल्पिक नजरिया हो सकता है।”

बीस सितंबर को जीबी-9 के दौरान भारत ने किसानों के अधिकारों पर एक वैश्विक संगोष्ठी की मेजबानी करने की पेशकश की। इस संगोष्ठी का उद्देश्य अनुभव साझा करना और किसानों के अधिकारों पर भविष्य के कार्यों पर चर्चा करना है। यह विभिन्न देशों में किसानों के अधिकारों के कार्यान्वयन के आकलन के लिए भी काम करेगा।

डिजिटल सिक्वेंस इन्फॉर्मेशन और किसानों के अधिकार

जीबी-9 ने अपने एजेंडा में डिजिटल सिक्वेंस इन्फोर्मेशन (डीएसआई) को भी शामिल किया है और संधि के सचिवालय से इसे अपने बहु-वर्षीय कार्यक्रम में शामिल करने की अपील की है। गवर्निंग बॉडी (जीबी) किसानों के अधिकारों पर डिजिटल सिक्वेंस इन्फोर्मेशन के संभावित प्रभाव का पता लगाना चाहता है। कनाडा में दिसंबर 2022 के में होने वाले जैविक विविधता पर कन्वेंशन (COP15) के 15 वें सम्मेलन में शामिल देशों व संगठनों के लिए डीएसआई से अंतरराष्ट्रीय लाभ साझा करना ‘मेक ऑर ब्रेक इश्यू‘ है। इसे दशक का सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय डील में से एक माना जा रहा है।

हाल के दिनों में, डीएसआई ने कई वैश्विक निकायों का ध्यान आकर्षित किया है। सीबीडी (कन्वेशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी) के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन और समुद्र के कानून पर कन्वेंशन, ने डीएसआई से जुड़े अवसरों और चुनौतियों का जिक्र किया। संधि से जुड़े देश व संगठन किसानों के अधिकारों पर डीएसआई के संभावित प्रभाव और और लाभ साझाकारण को समझने के लिए चर्चा  को आगे ले जाने के लिए सहमत हुए। 


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जर्मप्लाज्म एक्सचेंज एंड पॉलिसी यूनिट, आईसीएआर के नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (पीजीआर) के प्रधान वैज्ञानिक प्रतिभा ब्राह्मी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हालांकि जीबी-9 ने के एक प्रस्ताव में कहा गया है कि हमें संयुक्त राष्ट्र सीबीडी की दिसंबर की बैठक के परिणाम को देखना चाहिए, हम पीजीआर के वैज्ञानिक व कार्यकर्ता के रूप में महसूस करते हैं कि संधि के तहत चर्चा कहीं अधिक प्रगति पर है। हम संधि के तहत केवल पीजीआर की बात कर रहे हैं। ऐसे जींस और जीन निर्मित किए जाते हैं, जिनका उपयोग नई किस्मों को विकसित करने के लिए किया जाता है। इस तरह संधि का दायरा सीबीडी से छोटा है। चूंकि यह डेटाबेस (जेनरिक सिक्वेंश) सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, कोई भी इसका उपयोग कर सकता है। हमें लगता है कि संधि के तहत किसानों के अधिकारों से सम्बंधित डीएसआई के निहितार्थ पर अलग से चर्चा की जानी चाहिए।”  

संधि का उद्देश्य किसानों के अधिकारों पर डिजिटल सिक्वेंस इन्फोर्मेशन (डीएसआई) के संभावित प्रभाव का पता लगाना है। तस्वीर- अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान/विकिमीडिया कॉमन्स ।
संधि का उद्देश्य किसानों के अधिकारों पर डिजिटल सिक्वेंस इन्फोर्मेशन (डीएसआई) के संभावित प्रभाव का पता लगाना है। तस्वीर– अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान/विकिमीडिया कॉमन्स ।

ब्राह्मी ने कहा, “हम स्पष्ट हैं कि डीएसआई या जेनरिक सिक्वेंश डेटा का उपयोग करके विकसित किस्मों से होने वाले लाभ को संधि के माध्यम से बेनिफिट शेयरिंग फंड से साझा करना चाहिए।”

तन्मय जोशी का कहना है कि डीएसआई से जुड़ा लाभ-साझाकरण जीबी-9 की चर्चा का एक अहम विषय था। कई देश इस बात को लेकर चिंतित थे कि क्या डीएसआई का उपयोग करके बीज कंपनियों को बीजों पर पेटेंट मिल रहा है। उदाहरण के लिए, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन समूह  की ओर से अर्जेंटीना और पूरब का प्रतिनिधित्व कर रहे लेबनान ने डीएसई के रूप में आनुवंशिक संसाधनों (जेनेटिक रिसोर्स) से लाभ साझा करने का मुद्दा उठाया।

डीएसआई का उपयोग करने वाली कंपनियां स्टेंडर्ड मटेरियल ट्रांसफर एग्रीमेंट (मानक सामग्री हस्तांतरण समझौते) पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य नहीं हैं। यह बहुपक्षीय प्रणाली से पादप आनुवंशिक सामग्री का आकलन करने वालों के लिए एक समझौता है।

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के किसान नेता युद्धवीर सिंह ने भी बातचीत के दौरान अपना विचार रखा और डीएसआई का मुद्दा उठाया। मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हम ऐसा तंत्र (मेकेनिज्म) चाहते हैं जो यह सुनिश्चित करें कि डीएसआई का उपयोग करने वाली कंपनियां भी लाभ साझा करने के लिए सामने आएं। एक बार जब वे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वर्चुअल डेटा प्राप्त कर लेते हैं, तो उन्हें भौतिक डेटा की आवश्यकता नहीं होती है और वे  नई तकनीकों, ख़ास तौर से डीएसआई जो बिना किसी नियम के बहुपक्षीय प्रणाली के तहत बीजों तक पहुंचने में सक्षम हैं, का उपयोग करके आसानी से पेटेंट ले सकते हैं। बीकेयू ला वाया कैम्पेसिना या अंतरराष्ट्रीय किसान आंदोलन का भी हिस्सा है, जो किसान संगठनों का एक समूह है।

जर्मप्लाज्म तक पहुँच और लाभ-साझा करने के बीच संतुलन की आवश्यकता

साल 2019 में रोम में आयोजित प्लांट ट्रीटी पर गवर्निंग बॉडी का आठवां सत्र फसलों की सूची के विस्तार, और लाभ साझा करने व उस तक पहुँच के लिए बहुपक्षीय प्रणाली को लेकर हुए ‘गतिरोध’ के साथ समाप्त हुआ था। लेकिन दिल्ली में हाल ही में जीबी-9 वार्ता में सभी पक्ष इन मुद्दों पर बातचीत जारी रखने के लिए सहमत हुए।

ब्राह्मी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “स्विस सरकार द्वारा 2017 में सभी पीजीआरएफए (खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधन) को संधि के अनेक्चर1 के तहत वर्तमान में उपलब्ध 64 खाद्य फसलों को सूची में शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया था। यह महसूस किया गया कि इन पीजीआरएफए के उपयोग के बाद संधि में जो लाभ साझा करना है, वह प्राप्त नहीं हुआ है। संधि के लाभ-साझाकरण फंड के हिस्से में लाभ नहीं आने के कई कारण हैं।

संधि के काम करने का तरीका यह है कि लाभ सीधे उन देशों को नहीं जाता है जहां से इन संसाधनों का उपयोग किया जाता है, जैसा कि द्विपक्षीय समझौतों के मामले में होता है। संधि के एमएलएस के तहत, यह एक ट्रस्ट फंड (लाभ-साझाकरण फंड) में जाता है और क्षमता निर्माण, संरक्षण और टिकाऊ प्रोजेक्ट सहित विभिन्न देशों में गतिविधियों का समर्थन करने के लिए उपयोग किया जाता है।

ब्राह्मी ने कहा, “मूल रूप से प्लांट ब्रीडिंग एक लंबी प्रक्रिया है। जब भी संधि से कोई सामग्री प्राप्त होती है, और उसके बाद एक नई किस्म के प्रजनन की एक लंबी प्रक्रिया होती है, तो इसका व्यवसायीकरण किया जाता है, और हमेशा एक प्रश्न चिह्न होता है कि क्या नई किस्म लाभदायक होगी या नहीं। इसलिए, व्यवसायिक लाभ होने के बाद ही, लाभों को ट्रीटी ट्रस्ट फंड के साथ साझा किया जाता है। लेकिन ऐसी प्रौद्योगिकियां उपलब्ध हैं जो अधिक उन्नत हैं और कम अवधि में बेहतर किस्में बनाने में मदद करती हैं, खासकर विकसित देशों में जहां निजी क्षेत्र का बीज के क्षेत्र में प्रमुख योगदान है। इसलिए, निजी क्षेत्र अधिक लाभ के लिए व्यावसायिक महत्व की फसलों में रुचि रखता है। इसलिए बहुपक्षीय प्रणाली से जर्मप्लाज्म तक पहुंच और लाभ-साझा करने के बीच संतुलन होना चाहिए।”

 

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बैनर तस्वीर: प्याज की फसल की कटाई करते किसान। जीबी-9 ने ‘फसल विविधता के संरक्षक’ के रूप में किसानों की भूमिका को मान्यता देते हुए एक प्रस्ताव का अंतिम रूप दिया। तस्वीर– मीना631/विकिमीडिया कॉमन्स।

 

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