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सुंदरबन: दूरदर्शी नीति के अभाव में ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण का गंवाया बेहतर अवसर

  • भारत के सुंदरबन में स्थित द्वीपों तक ग्रिड कनेक्टेड बिजली पहुँचने से पहले वहां सोलर यूनिट से बिजली ली जाती थी। यहाँ 2018 में ग्रिड से जुड़ी बिजली पहुँची। फिलहाल सोलर यूनिट की दो दर्जन संपत्तियां इन द्वीपों पर बेकार पड़ी हुई हैं।
  • साल 1996 से 2006 के बीच पश्चिम बंगाल अक्षय ऊर्जा विकास प्राधिकरण ने सुंदरबन में 872.5 किलोवाट की क्षमता वाले 17 सौर ऊर्जा संयंत्र (सोलर प्लांट) स्थापित किए और आगे भी इनकी संख्या बढ़ी। इनमें से अधिकतर सेट-अप अब सक्रिय नहीं हैं।
  • डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने भी पिछले दशक में सतजेलिया द्वीप पर पांच सोलर प्लांट स्थापित किये थे, इनमें से फिलहाल केवल एक ही सक्रिय है।
  • सोलर सेट-अप की असफलताओं के बावजूद देश के सबसे बड़े ऑफ-ग्रिड सोलर प्रोजेक्ट में से एक प्रोजेक्ट को सुंदरबन में घोरमारा द्वीप लाया जा रहा है। यह द्वीप सुंदरबन का एकमात्र ऐसा द्वीप रह गया है जहां ग्रिड से जुड़ी बिजली नहीं है।

सीमेंट ब्लॉक की लाइनें एक लावारिस कब्रिस्तान के पत्थर की तरह दिखती हैं। एक खेत से सटा पुराना टूटा-फूटा एक मंजिला घर किसी डरावनी फिल्म के सेट जैसा दिखता है। एक दशक से भी कम समय पहले ये सीमेंट ब्लॉक सौर पैनलों के लिए आधार का काम करते थे। ये 110 किलोवाट सोलर प्लांट का हिस्सा थे। साल 2003 में शुरू होने के बाद यह देश के सबसे बड़े ऑफ-ग्रिड पॉवर प्लांट्स में से एक था।

बंगाल की खाड़ी शुरू होने से पहले सुंदरबन के अंतिम द्वीपों में से एक जी-प्लॉट पर एक सुदूर गांव इंद्रपुर है। यहां, ग्रिड से जुड़ी बिजली 2018 के अंत तक पहुँची। इससे पहले यहाँ सोलर माइक्रोग्रिड थी, जिसे पश्चिम बंगाल अक्षय ऊर्जा विकास प्राधिकरण द्वारा वित्त पोषित (फंडेड) किया गया था और टाटा पावर द्वारा कार्यान्वित किया गया था। इसके स्थापित होने के एक दशक बाद भी यह सफलता के साथ चल रहा था। साल 1996 से 2006 के बीच पश्चिम बंगाल अक्षय ऊर्जा विकास प्राधिकरण ने सुंदरबन में ऐसे 17 सौर ऊर्जा माइक्रोग्रिड स्थापित किए

शुरुआत में, इंद्रपुर में सोलर माइक्रोग्रिड से 80 और 120 रूपए मासिक सदस्यता की दर से हर घर में दिन में पांच घंटे बिजली दी जाती थी। साल 2009 में चक्रवात ‘आइला’ से क्षतिग्रस्त होने के बाद इसकी क्षमता घटकर तीन घंटे प्रतिदिन रह गई। स्थानीय निवासियों के अनुसार 2013-14 तक पावर स्टेशन बंद हो गया था।

सोलर पावर स्टेशन के बंद होने के बाद अनिश्चितता का माहौल

नाम ना छापने की शर्त पर पश्चिम बंगाल अक्षय ऊर्जा विकास प्राधिकरण के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने बताया कि समस्या तब शुरू हुई जब कुछ लाभार्थियों ने मासिक बिलों का भुगतान करना बंद कर दिया। जबकि स्थानीय निवासियों का दावा है कि संयंत्र की क्षमता कम होने के कारण कुछ दुकानदारों ने डीजल जनरेटर का इस्तेमाल शुरू कर दिया।

भारत के सुंदरबन के अंतिम द्वीप पर स्थित सूदूर इंद्रपुर गांव में बने सीमेंट ब्लॉक्स, जो कभी सोलर माइक्रोग्रिड यूनिट के आधार थे। यह यूनिट 2003 में शुरू हुआ और 2013/14 से बंद हो गया। यह माइक्रोग्रिड यूनिट 2018 में ग्रिड कनेक्टेड बिजली आने से पहले घरों को बिजली दे रही थी। फोटो: सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे-इंडिया
भारत के सुंदरबन के अंतिम द्वीप पर स्थित सूदूर इंद्रपुर गांव में बने सीमेंट ब्लॉक्स, जो कभी सोलर माइक्रोग्रिड यूनिट के आधार थे। यह यूनिट 2003 में शुरू हुआ और 2013/14 से बंद हो गया। यह माइक्रोग्रिड यूनिट 2018 में ग्रिड कनेक्टेड बिजली आने से पहले घरों को बिजली दे रही थी। फोटो: सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे

एक स्थानीय किराने की दुकान पर अपनी बारी का इंतजार कर रहे एक स्थानीय निवासी और मछुआरा मणिभूषण बेरा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “शुरू में इस प्रोजेक्ट का मैनेंजमेंट एक निजी कंपनी कर रही थी, लेकिन बाद में प्रबंधन और रखरखाव स्थानीय समुदाय को सौंप दिया गया। उसके बाद से, कई मुसीबतें आईं और आखिरकार, प्लांट ने 2013-14 तक काम करना बंद कर दिया।”

मोंगाबे-इंडिया ने टाटा पावर से ईमेल के जरिए इंद्रपुर में सौर माइक्रोग्रिड के मैनेजमेंट और मौजूदा स्थिति के बारे जानकारी मांगी जिसका अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।

हालांकि इसके बंद होने की बिलकुल सही वजह स्पष्ट नहीं है। साल 2014 तक, 120 घर और 180 दुकानें इसका लाभ ले रहे थे, लेकिन वे अब डीजल व मिट्टी के तेल के साथ-साथ मौजूदा रूफटॉप सौर पैनलों का उपयोग कर रहे हैं। सोलर माइक्रोग्रिड प्रोजेक्ट और ग्रिड से जुड़ी बिजली आने के बहुत पहले से इंद्रपुर में रूफटॉप सोलर पहले से ही आम था। पैनल पश्चिम बंगाल अक्षय ऊर्जा विकास प्राधिकरण (डब्ल्यूबीआरईडीए) या ग्राम पंचायतों द्वारा रियायती दर पर वितरित किए गए थे और कुछ व्यक्तिगत तौर पर निवासियों द्वारा खरीदे गए थे।

सुंदरबन में, समुद्र की ओर जाने वाली चौड़ी और जंगली नदियों के बीच छोटे और बड़े द्वीपों वाले भू-भाग में 2018 में ग्रिड से जुड़ी बिजली आने के बाद अधिकांश हिस्सों में सौर ऊर्जा पर निर्भरता कम हो गई। लेकिन इससे सौर ऊर्जा का उपयोग बंद नहीं हुआ। स्थानीय निवासी अपने अनुभवों से इसके महत्व को जानते थे।

जब कोई चक्रवात आता है तो कई दिनों या हफ्तों तक बिजली नहीं आती है। साल 2019 में चक्रवात ‘बुलबुल’, 2020 में ‘अम्फान’ और 2021 में ‘यश’ जैसे चक्रवात आए हैं। यही कारण है कि आधे से अधिक घरों में अपने खुद के छत वाले सोलर पैनल हैं।

बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर एक और दूरस्थ द्वीप मौसुनी में बगडांगा गाँव के निवासी बसंत नस्कर ने कहा, “चक्रवात के बाद व्यक्तिगत सोलर पैनलों ने बहुत मदद की है। कोई भी घर जिसके पास सौरऊर्जा सेट-अप है, वह इसे छोड़ना नहीं चाहेगा।”

सुंदरबन में पश्चिम बंगाल अक्षय ऊर्जा विकास प्राधिकरण के दशकों प्रयास से 2001 में बगडांगा में 55 किलोवाट सोलर माइक्रोग्रिड और 2003 में कुछ किलोमीटर दूर बलियारा में 110 किलोवाट का प्लांट स्थापित किया गया था।

हालांकि, 2012-13 तक ये दोनों माइक्रोग्रिड बंद हो गए थे। इंद्रपुर की तरह, बागडांगा और बलियारा गांवों में भी लाभार्थी अपने रूफटॉप सोलर सेटअप के अलावा मिट्टी के तेल और डीजल जनरेटर पर फिर से लौट आए। फिर 2018 में ग्रिड से जुड़ी बिजली द्वीप पर पहुंची।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा स्थापित रजत जुबिली, गोसाबा ब्लॉक में एक निष्क्रिय माइक्रोग्रिड। जमीन की मालिक नमिता मंडल ने बेकार पड़ी अपनी संपत्ति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ग्रिड से जुड़ी बिजली आने के बाद यूनिट ने काम करना बंद कर दिया है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे-इंडिया
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा स्थापित रजत जुबिली, गोसाबा ब्लॉक में एक निष्क्रिय माइक्रोग्रिड। जमीन की मालिक नमिता मंडल ने बेकार पड़ी अपनी संपत्ति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ग्रिड से जुड़ी बिजली आने के बाद यूनिट ने काम करना बंद कर दिया है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे

साल 2022 में, सोलर पैनलों की लाइनें कुछ टूट गई हैं और कुछ बरकरार हैं। पुरानी टूटी इमारतें, जो कभी दो गाँवों का बिजली स्टेशन हुआ करती थीं, उनसे लगी ज़मीनों पर कब्जा कर लिया गया है। इमारतों पर अब उस व्यक्ति के परिवार का कब्जा है, जो उस समय इन बिजली स्टेशनों संचालक के रूप में काम करता था। बगडांगा में चंदन रुइदास का परिवार और बलियारा में तपन दास का परिवार है। परिवारों ने इमारत की खराब स्थिति के बावजूद परिसर को खाली करने से इनकार कर दिया। उन्होंने ने कहा कि उन्हें 2012 में अचानक भुगतान मिलना बंद हो गया।

तपन दास की पत्नी आरती ने कहा, “वे हमारा बकाया चुका दें, हम चले जाएंगे।” बागडांगा में रुइदास ने यही बात दुहराई।

गंवाया हुआ एक अवसर

इसमें कोई संदेह नहीं है कि ग्रिड से जुड़ी बिजली आने से स्थानीय लोगों को काफी मदद मिली है। लेकिन क्या इसे ऑफ-ग्रिड अक्षय ऊर्जा की सुविधाओं को छोड़ने की कीमत पर अपनाना पड़ा?
भारत के प्रसिद्ध सौर ऊर्जा विशेषज्ञों में से एक, एस.पी. गोन चौधरी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “लेकिन वास्तव में ऐसा ही हुआ, नतीजतन सुंदरबन में कार्बन फुटप्रिंट को कम करने का एक अवसर को गँवा दिया गया।”

एशडेन अवार्ड (यूके) और यूरोसोलर अवार्ड (जर्मनी) के अलावा कई अवार्डों से सम्मानित चौधरी, 2009 में सेवानिवृत्त (रिटायर्ड) होने तक डब्ल्यूबीआरईडीए का हिस्सा थे और उन्होंने सुंदरबन में सोलर माइक्रोग्रिड के लिए अहम भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने सलाहकार के रूप में डब्ल्यूबीआरईडीए को अपनी सेवा दी।

डब्ल्यूबीआरईडीए ने 1996 से 2006 तक 10 वर्षों की अवधि में सुंदरबन में 872.5 किलोवाट क्षमता के 17 सौर ऊर्जा संयंत्र (सोलर पॉवर प्लांट) स्थापित किए। इसके बाद इसकी संख्या और भी बढी। अकेले सागर द्वीप में 11 सोलर माइक्रोग्रिड थे, लेकिन आज उनमें से कोई भी काम नहीं कर रहा है। सागर द्वीप के विधायक बंकिम हाजरा, जो सुंदरबन के विकास मंत्री भी हैं, उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को इस बात की पुष्टि दी।


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सुंदरबन में सभी शुरू किए गए सोलर माइक्रोग्रिड कुल मिलाकर एक मेगावाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पन्न कर सकते थे, लेकिन एक अवसर हाथ से निकल गया।

जब माइक्रोग्रिड असफल हो गए तो व्यक्तिगत स्वामित्व वाले रूफटॉप सोलर सिस्टम निवासियों के बीच लोकप्रिय हुई और अभी भी लोकप्रिय बनी हुई हैं। डब्लूबीआरईडीए ने सुंदरबन क्षेत्र में 2,00,000 से अधिक सोलर फोटोवोल्टिक (PV) होम लाइटिंग सिस्टम या रूफटॉप सोलर पैनल स्थापित किए। लाभार्थियों को यूनिट की लागत का 15-18% वहन करना पड़ता था। विभिन्न द्वीपों के अधिकांश गांवों में लोग अभी भी इन यूनिट का रख रखाव करते हैं। उन्हें हर पांच-छह साल में बैटरी बदलनी पड़ती है। वहां रहने वाले परिवार आमतौर पर इस लागत को वहन करने से नहीं कतराते हैं। लेकिन यह लागत एक मुख्य वजह है जिसके कारण लोग सोलर माइक्रोग्रिड के बजाय रूफटॉप सोलर के प्रति अधिक रूचि दिखाते हैं। रूफटॉप सोलर सेटअप में, खरीद के समय लागत एक-चौथाई से कम होती है, और इसमें लगने वाली लागत चार-पांच साल के बाद बैटरी बदलने की होती है।

डब्लूबीआरईडीए के निदेशक गौतम मजूमदार ने टेक्स्ट मैसेज और ईमेल पर भेजे गए मोंगाबे-इंडिया के सवालों का जवाब में उपरोक्त बातें बताई।

सुंदरबन में बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर तेजी से बदल रहे घोरमारा द्वीप में घरों के ऊपर सोलर रूफटॉप्स। इस द्वीप में ग्रिड से जुड़ी बिजली नहीं है। यहाँ पर लोग पूरी तरह से छतों के सोलर पर निर्भर है। तस्वीर- सुभ्राजी सेन/मोंगाबे-इंडिया
सुंदरबन में बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर तेजी से बदल रहे घोरमारा द्वीप में घरों के ऊपर सोलर रूफटॉप्स। इस द्वीप में ग्रिड से जुड़ी बिजली नहीं है। यहाँ पर लोग पूरी तरह से छतों के सोलर पर निर्भर है। तस्वीर- सुभ्राजी सेन/मोंगाबे

सतजेलिया द्वीप पर लाहिरीपुर ग्राम पंचायत क्षेत्र का गाँव रजत जुबिली के निवासी सुजीत सरदार ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “ग्रिड से जुड़ी बिजली के साथ सौर ऊर्जा होने के कई फायदे हैं। सबसे पहले, यह (सुंदरबन) एक चक्रवात प्रभावित क्षेत्र है और हर अप्रैल-मई-जून में बिजली समस्या हमेशा रहती है। और दूसरा, यह (पारंपरिक/ग्रिड से) बिजली के बिल को कम रखने में मदद करता है। खपत जितनी कम होगी, रेट स्लैब उतना ही कम होगा। अब जबकि राज्य सरकार ने तीन महीने में 75 यूनिट बिजली की खपत मुफ्त कर दी है, ऐसे में सोलर पैनल से जुड़े कुछ परिवार पारंपरिक बिजली के लिए बिल्कुल भी भुगतान नहीं कर रहे हैं।

रजत जुबिली हाई स्कूल के एक शिक्षक बिपुल सरदार ने कहा कि ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लक्ष्यों को हासिल करने में भी योगदान दे सकता है। क्योंकि इससे पारंपरिक रूप से बनाने वाली बिजली की मांग कम हो जाती है। स्कूल में रूफटॉप सोलर-सिस्टम है जो बिजली कटौती के समय रोशनी, पंखे और कंप्यूटर चलाने में मदद करती है।

रजत जुबिली, गोसाबा ब्लॉक के निवासी सुजीत सरदार। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया द्वारा स्थापित एक सोलर माइक्रोग्रिड अभी भी सक्रिय है। उन्होंने बताया कि सोलर और ग्रिड से जुड़ी बिजली के मिश्रित उपयोग से बिजली का बिल कम हो जाता है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे
रजत जुबिली, गोसाबा ब्लॉक के निवासी सुजीत सरदार। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया द्वारा स्थापित एक सोलर माइक्रोग्रिड अभी भी सक्रिय है। उन्होंने बताया कि सोलर और ग्रिड से जुड़ी बिजली के मिश्रित उपयोग से बिजली का बिल कम हो जाता है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे

सतजेलिया द्वीप में, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड) ने 2011-12 से 2017 के बीच गांवों में चार सोलर डीसी माइक्रोग्रिड और एक सोलर एसी माइक्रोग्रिड लगाया। साल 2020 में, चक्रवात ‘अम्फान’ के दो सप्ताह बाद तक सुंदरबन का बड़ा हिस्सा अंधेरे में डूबा रहा। उस वक्त सतजेलिया द्वीप एक अपवाद था, क्योंकि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया द्वारा स्थापित माइक्रोग्रिड्स ने वहां के समुदायों की सेवा को जारी रखा। सुजीत सरदार, प्रोजेक्ट के लाभार्थियों में से एक हैं।

हालांकि, मोंगाबे-इंडिया ने जब वहां का दौरा किया तो पता चला कि मार्च 2022 तक रजत जुबिली गाँव में केवल सोलर एसी माइक्रोग्रिड काम कर रहा था, जबकि अन्य गांवों के चार सोलर डीसी माइक्रोग्रिड निष्क्रिय थे।

स्थानीय निवासियों ने बताया कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने अन्नपुर-जामेसपुर और पाथरपारा में नदी के किनारे 2017 में माइक्रोग्रिड बनाया था लेकिन दोनों माइक्रोग्रिड पिछले कुछ सालों से खराब पड़े हैं।

स्थानीय निवासियों ने आरोप लगाया कि अन्नपुर-जामेसपुर में, इन्स्टालिंग एजेंसी स्ट्रीट लैंप की बैटरी उठा ले गई है। पाथरपारा में जिस जमीन पर सोलर पैनल लगे हैं, उसके मालिक ने शिकायत की कि उनकी जमीन बेकार की गंदगी में फंस गई है।

उस जमीन के मालिक सुधांशु की पत्नी नमिता मंडल ने कहा, “हम इस जमीन पर सब्जियां उगा सकते थे। हम मधुमक्खियों का पालन कर सकते थे।” उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अपने इंस्टालेशन वापस ले ले और हमारी जमीन को खाली कर दे।”

उनको लगता है कि प्रोजेक्ट इसलिए असफल हो गया क्योंकि संयोग से द्वीप पर ग्रिड-कनेक्टेड बिजली आ गई है। मंडल ने कहा, “इस सोलर प्रोजेक्ट के काम शुरू करने के कुछ महीने बाद ही यहाँ बिजली आ गई, इसलिए, लाभार्थियों ने मासिक सदस्यता का भुगतान करना बंद कर दिया, और बाद में धीरे-धीरे बिजली की आपूर्ति बंद कर दी गई। यह एक कचरा और बेकार संपत्ति बन गई है।” अधिकांश पड़ोसियों के पास रूफटॉप सोलर सेट-अप हैं।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा स्थापित रजत जुबिली, गोसाबा ब्लॉक में एक निष्क्रिय माइक्रोग्रिड। जमीन की मालिक नमिता मंडल ने बेकार पड़ी अपनी संपत्ति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ग्रिड से जुड़ी बिजली आने के बाद यूनिट ने काम करना बंद कर दिया है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा स्थापित रजत जुबिली, गोसाबा ब्लॉक में एक निष्क्रिय माइक्रोग्रिड। जमीन की मालिक नमिता मंडल ने बेकार पड़ी अपनी संपत्ति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ग्रिड से जुड़ी बिजली आने के बाद यूनिट ने काम करना बंद कर दिया है। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे

बेहतर नीति का अभाव

एक सामाजिक मानवविज्ञानी और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ में सुंदरबन कार्यक्रम के निदेशक अनुराग दांडा के अनुसार, सही नीतियों की कमी के कारण सुंदरबन में माइक्रोग्रिड असफल हुई। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि इन संपत्तियों को सक्रिय रखने का एकमात्र तरीका उन्हें ग्रिड से जोड़ना है।

“जब लोगों ने बिजली का अनुभव नहीं किया था, तो उनके लिए सीमित मात्रा में बिजली पर्याप्त थी। ग्रिड के आने के बाद उनके लिए बिजली पाने की कोई सीमा नहीं थी। इसके बाद उन्हें सीमित आपूर्ति के लिए क्यों भुगतान करना चाहिए? ऐसी सभी संपत्तियां बेहतर नीति के अभाव में बेकार हो गईं। दांडा ने कहा, “नवीकरणीय बिजली उत्पादन यूनिट व्यक्तिगत घरों को बिजली की आपूर्ति करने के बजाय सीधे ग्रिड को बिजली दे सकती थी।”

गोन चौधरी ने भी यही बातें कही। वास्तव में, सुंदरबन के किसी भी द्वीप में ग्रिड से जुड़ी बिजली आने से काफी पहले, 2011 की शुरुआत में, गोन चौधरी ने बिजली की स्थिरता के लिए सभी ऑफ-ग्रिड पावर स्टेशनों को ग्रिड ऊर्जा से जोड़ने के पक्ष में अपनी बात रखी थी। सरकार ने 2010-11 से ग्रिड से जुड़े सोलर स्थापित करना शुरू किया था लेकिन केवल कोलकाता और उसके आसपास के सरकारी संस्थानों में। मौजूदा इंस्टीटयुशंस को ग्रिड से जोड़ने के लिए कोई पहल नहीं की गई थी।

गोन चौधरी ने मोंगाबे-इंडिया से कहा, “मुझे लगता है कि केवल बेहतर नीति की कमी के कारण चीजें काम नहीं कर रही हैं।”’ ग्रिड को उन गांवों में ले जाना सही निर्णय नहीं था। बेहतर होता अगर ग्रिड और सोलर को मिला दिया जाता, यानी ग्रिड को फीड करने वाला सोलर प्लांट बनाया जाता।”

सुंदरबन में गंगासागर द्वीप को बिजली की आपूर्ति करने वाली ग्रिड संरचना। ग्रिड से जुड़ी बिजली के आने से पहले, सुंदरबन के द्वीप सोलर माइक्रोग्रिड और सोलर रूफ्टॉप्स पर निर्भर थे। फिलहाल निष्क्रिय पड़े सोलर माइक्रोग्रिड पर विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्षेत्र ने अक्षय ऊर्जा के दोहन करने का एक अवसर गंवा दिया गया। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे
सुंदरबन में गंगासागर द्वीप को बिजली की आपूर्ति करने वाली ग्रिड संरचना। ग्रिड से जुड़ी बिजली के आने से पहले, सुंदरबन के द्वीप सोलर माइक्रोग्रिड और सोलर रूफ्टॉप्स पर निर्भर थे। फिलहाल निष्क्रिय पड़े सोलर माइक्रोग्रिड पर विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्षेत्र ने अक्षय ऊर्जा के दोहन करने का एक अवसर गंवा दिया गया। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे

दांडा और गोन चौधरी दोनों ने समुदाय के सदस्यों के बीच स्वामित्व की भावना विकसित करने के पहलू पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हजारों व्यक्तिगत स्वामित्व वाली रूफटॉप सोलर सिस्टम की उपस्थिति यह दर्शाती है कि सामुदायिक संपत्तियों के संबंध में स्वामित्व की समान भावना विकसित नहीं हुई थी।

यह बताते हुए कि रजत जुबिली में प्रोजेक्ट क्यों चल रहा है जबकि अन्य जगहों पर यह असफल रहा है, दांडा ने कहा, “यहां, दो साल के कार्यक्रम में, डेढ़ साल का निवेश स्थानीय समुदायों को प्रोजेक्ट में शामिल करने, उन्हें रखरखाव की बारीकियों को समझाने, इस पावर स्टेशन से उनका जुड़ाव बनाने में निवेश किया गया, वास्तव में इसे बनाने में आधा साल ही लगा था।”

गोन चौधरी ने बुनियादी ढांचे की रखरखाव की कमी पर भी बात की। “माइक्रोग्रिड सिस्टम 6-7 सालों तक सुचारू रूप से चलता है, उसके बाद बैटरी और कुछ अन्य हिस्सों को बदलने की जरुरत पड़ती है। लेकिन डब्ल्यूबीआरईडीए ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने सोचा, जब ग्रिड-कनेक्टेड बिजली आ गई है तो सोलर इंफ्रास्ट्रक्चर क्यों बनाए रखा जाए? इस तरह सुंदरबन ने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने का एक मौका गंवा दिया।”

आगे की राह

प्रोजेक्ट पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर के साथ काम कर रहे गोन चौधरी ने कहा, “ऐसे गंवाए हुए अवसरों के बावजूद सुंदरबन देश की सबसे बड़ी ऑफ-ग्रिड सोलर पावर (250 किलोवाट) का केंद्र बनाने जा रहा है। घोरमारा द्वीप, एकमात्र ऐसा द्वीप है जहां ग्रिड से जुड़ी बिजली का पहुंचना बाकी है। भारतीय संस्थान के साथ काम कर रहे गोन चौधरी ने कहा कि यह द्वीप लगभग 5,000 लोगों का घर है, यहाँ तक ग्रिड से जुड़ी बिजली ले जाने के लिए अच्छी-खासी राशि खर्च करनी पड़ेगी, इसलिए भारत सरकार ने सौर परियोजना की मंजूरी दे दी है।”

गोन चौधरी ने कहा, “यह सोलर प्लांट काम करेगा क्योंकि वहाँ कम से कम अगले 10 सालों तक, ग्रिड कनेक्टेड बिजली पहुँचने की संभावना नहीं है। जब तक आईआईटी-खड़गपुर के पास रखरखाव का चार्ज रहेगा यह बिजली संयंत्र ठीक से काम करेगा। उसके बाद सामुदायिक स्तर के कार्यक्रमों को सामने लाना होगा और आईईटी को प्रोजेक्ट जारी रखने के लिए सामुदायिक स्तर पर सिस्टम तैयार करना होगा।”

गोसाबा ब्लॉक के रजत जुबिली गाँव में अपनी जमीन पर एक निष्क्रिय सौर माइक्रोग्रिड के सामने नमिता मंडल। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे-इंडिया

गोसाबा ब्लॉक के रजत जुबिली गाँव में अपनी जमीन पर एक निष्क्रिय सौर माइक्रोग्रिड के सामने नमिता मंडल। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे

 

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बैनर तस्वीरः घोरमारा द्वीप पर एक महिला अपने घर के रास्ते पर सोलर ऊर्जा से चलने वाली निष्क्रिय स्ट्रीट लाइट के पास से गुजरती हुई। मई 2020 में चक्रवात ‘अम्फान’ से घर क्षतिग्रस्त हो गया था। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे-इंडिया

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