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[वीडियो] सुंदरबनः तटीय कटाव और मवेशियों की वजह से मुश्किल में मैंग्रोव के नए पौधे

बल्ली द्वीप पर मृत मैंग्रोव के बगल में लगाए गए नए मैंग्रोव। विशेषज्ञों का कहना है कि उन क्षेत्रों में जहां लहर का वेग अधिक है, और कटाव तेज है, वहां मैंग्रोव तब तक नहीं बचेंगे जब तक कि मैंग्रोव को लहरों से सुरक्षित नहीं किया जाता। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

बल्ली द्वीप पर मृत मैंग्रोव के बगल में लगाए गए नए मैंग्रोव। विशेषज्ञों का कहना है कि उन क्षेत्रों में जहां लहर का वेग अधिक है, और कटाव तेज है, वहां मैंग्रोव तब तक नहीं बचेंगे जब तक कि मैंग्रोव को लहरों से सुरक्षित नहीं किया जाता। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

  • पश्चिम बंगाल वन-विभाग द्वारा 2020-2022 के दौरान किए गए वृक्षारोपण कार्यक्रम के तहत लगाए अधिकतर मैंग्रोव बह गए हैं।
  • 2021 में प्रकाशित एक्सपर्ट कमिटी की एक रिपोर्ट से ज्ञात हुआ कि ‘कटाव प्रभावित क्षेत्रों में मैंग्रोव नहीं टिक सकते, क्योंकि ऐसे इलाकों में सदाबहार पौधे अंकुरित नहीं हो सकते और न तट के कटाव वाले हिस्सों में जमीन पर पकड़ बना सकते हैं।
  • स्थानीय रहवासियों और वैज्ञानिकों के अनुसार, कटाव प्रभावित क्षेत्रों में लगाए गए मैंग्रोव को लहरों से बचाने के लिए खारेपन में होने वाली घासों की परत का होना जरुरी है।

भारत के सुंदरबन में स्थित एक द्वीप पखिरालय घाट के पश्चिम में 700 से 800 मीटर हिस्से में मैंग्रोव (समुद्री तट पर उगने वाला पौधा या झाड़ी) को लगाना, 2020 के प्लान्टेशन प्रोजेक्ट का हिस्सा था। ये मैंग्रोव इस साल मार्च में कथित तौर पर गोमोर नदी के बहाव से  बह गए। इसके ठीक बगल में 1,200 से 1,300 मीटर की दूरी पर, उसी योजना का एक और हिस्सा बहाव की लहरों से बच गया, लेकिन मवेशियों के चरने से नहीं बच सका।

अधिकारियों के कहने पर मवेशियों को दूर रखने के लिए मैंग्रोव का नायलॉन के जाल से घेराव किया गया था। हालाँकि, मोंगाबे-इंडिया को यहाँ के दौरे पर इसके बहुत कम निशान मिले। लगाए गए मैंग्रोव के पौधे दो से तीन फीट तक ऊंचे थे, हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि ये मैंग्रोव अभी भी उतने ही बड़े हैं जितने पौधरोपण के वक्त थे।  

पाखिरालाय फेरी घाट के पास लगाए गए मैन्ग्रोवे को नदी के बहाव ने साफ़ कर दिया। ये वृक्षारोपण सरकारी पहल के तहत किया गया था। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।
पाखिरालाय फेरी घाट के पास लगाए गए मैंग्रोव को नदी के बहाव ने साफ़ कर दिया। ये वृक्षारोपण सरकारी पहल के तहत किया गया था। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

स्थानीय निवासी जोगेश मंडल ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “अगर मवेशियों के चराने पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया और नाइलोन के जालों के नए बैरिकेड्स नहीं लगाए गए तो कई पौधे जो अब तक बचे हुए हैं वो भी कुछ साल में नहीं दिखेंगे।”

बंगाल की खाड़ी के डेल्टा में भारतीय सुंदरबन के गोसाबा द्वीप पर स्थित रंगबेलिया पंचायत क्षेत्र के 10 हेक्टेयर जमीन में दो जगह पर पौध-रोपण हुआ है। भारतीय सुंदरबन का सदाबहार क्षेत्र पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिण-24-परगना जिले में फैला हुआ है।

पश्चिम बंगाल में भारतीय सुंदरबन। इस साल मौसुनी द्वीप पर मृत मैंग्रोव के बगल में नए मंग्रोव लगाए गए। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।
पश्चिम बंगाल में भारतीय सुंदरबन। इस साल मौसुनी द्वीप पर मृत मैंग्रोव के बगल में नए मंग्रोव लगाए गए। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा वर्ष 2020 के दौरान वृक्षारोपण के तहत दक्षिण 24-परगना जिले के 2,500 हेक्टेयर में पांच करोड़ मैंग्रोव प्रोपेग्यूल (सदाबहार-पौधे) लगाने का लक्ष्य रखा गया था। चूंकि सरकार का एजेंडा प्रति हेक्टेयर 20,000 पौध या बीज लगाना था, इसलिए 2020 में इस 10-हेक्टेयर भू-भाग में कुल दो लाख पौधे लगाए गए होंगे। वहां रहने वाले लोगों का अनुमान है कि अब जीवित मैंग्रोव की संख्या 30,000 से अधिक नहीं होगी।

स्टेट ऑफ फॉरेस्ट इन इंडिया रिपोर्ट (2021) के अनुसार, यह इलाका साऊथ 24 परगना जिले के 2,083.82 वर्ग किमी में फैला हुआ है। यह भारत के कुल सदाबहार क्षेत्र का 41.74% हिस्सा है और यह बंगाल टाइगर का घर भी है।

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साल 2020 में आए चक्रवात ‘अम्फान’ से सुंदरबन के सदाबहार वनक्षेत्र का भारी नुकसान हुआ। इस नुकसान को देखते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत पांच करोड़ मैंग्रोव लागाने के साथ बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान की घोषणा की। 

एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इस अभियान के तहत दक्षिण-24 परगना जिले में, प्रतिदिन 3.2 लाख व्यक्तियों को काम मिला। कुल लाभार्थियों को 6.52 करोड़ रुपये दिए गए। 2,500 हेक्टेयर में से 1,725 ​​हेक्टेयर वन-रहित क्षेत्र था। यह इलाका 60 ग्राम पंचायतों में फैला हुआ है, उनमें एक ग्राम पंचायत रंगबेलिया है।

रंगबेलिया पंचायत के उप प्रमुख देबप्रसाद सरकार ने कहा, “यह सच है कि नदी ने वृक्षारोपण के एक हिस्से को बहा दिया है, लेकिन पास के दुसरे हिस्से में मैंग्रोव का विकास संतोषजनक है।”

इस घटना से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कटाव प्रभावित इलाके में लगाए गए मैंग्रोव को मवेशियों से बचाने के लिए बाड़ लगाने और उचित रखरखाव के बिना नहीं बचाए जा सकता। नदियों के किनारे के कम ढलान वाले क्षेत्र जहां  ज्वार आता है, वह स्थान मैंग्रोव लगाने के लिए आदर्श जगह हो सकता है।

इस संवाददाता ने गोसाबा ब्लॉक में बाली द्वीप के पाथर प्रतिमा ब्लॉक में स्थित जी-प्लॉट और बसंती ब्लॉक में झारखली का दौरा किया और इस बात का खुलासा किया कि ये जगह बिलकुल इसी पैटर्न के क्षेत्र हैं।

पाथर प्रतिमा द्वीप पर सरदार नगर के पास लगाया गया मैंग्रोव। यह पौध-रोपण पांच हेक्टेयर में है। यहाँ 2021 के दौरान किए गए वृक्षारोपण में पश्चिम बंगाल सरकार की लागत लगभग 3,85,000 रूपए थी। हालांकि, स्थानीय निवासियों ने पाया कि फिलहाल केवल कुछ पौध ही बचे हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।
पाथर प्रतिमा द्वीप पर सरदार नगर के पास लगाया गया मैंग्रोव। यह पौध-रोपण पांच हेक्टेयर में है। यहाँ 2021 के दौरान किए गए वृक्षारोपण में पश्चिम बंगाल सरकार की लागत लगभग 3,85,000 रूपए थी। हालांकि, स्थानीय निवासियों ने पाया कि फिलहाल केवल कुछ पौध ही बचे हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

तेजी से लुप्त हो रहे भारतीय मैंग्रोव

भारत में वनों की स्थिति पर वर्षों की रिपोर्ट से यह पता चलता है कि 1987 से 2021 के बीच, सुंदरबन का सदाबहार इलाका 2,076 वर्ग किमी से 2,155 वर्ग कि.मी के बीच था। हालांकि, 2007 और 2021 के बीच 15 वर्षों में, सुंदरबन का बहुत घना सदाबहार क्षेत्र 1038 वर्ग किमी से कम होकर 994 वर्ग किमी हो गया। जबकि मध्यम घने आवरण (70-40% की मंडलीय घनत्व) को अधिक नुकसान हुआ है, यह 881 वर्ग किमी से घट कर 692 वर्ग किमी हो गया है। इसके विपरीत, खुला वन-आवरण 233 वर्ग किमी से बढ़ कर से 428 वर्ग किमी हो गया है। 

वैज्ञानिक बड़े पैमाने पर खुले वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी का श्रेय वनीकरण के पहल को देते हैं। दिसंबर 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार 2000 से 2020 के बीच कटाव के कारण रिजर्व फॉरेस्ट (सुंदरबन टाइगर रिजर्व) क्षेत्र के भीतर लगभग 110 वर्ग किमी. सदाबहार वन कम हो गया है। इसके साथ ही सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व (एसबीआर) के बसे हुए हिस्से में वृक्षारोपण और पुनर्जनन (रिजनरेशन) के माध्यम से 81 वर्ग किमी सदाबहार क्षेत्र बढ़ा है।

हाल के दशकों में, समुद्र और चक्रवाती तूफान की लहरों के अतिक्रमण के खिलाफ, इनकी चपेट में आने वाले मिट्टी के तटबंधों पर ढाल बनाने के लिए मैंग्रोव पर सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं और गैर-सरकारी संगठनों ने काफी उत्साह दिखाया है। इस तरह की पहल को अक्सर अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से फंडिंग के माध्यम से सहयोग किया जाता है।

हालांकि, आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि पश्चिम बंगाल के खुले सदाबहार क्षेत्र में 2003 से 2013 के बीच 71 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है।, लेकिन 2013 और 2021 के बीच इसमें केवल 17 वर्ग किमी की बढ़ोतरी हुई है। 

गोसाबा द्वीप के पाखिराले में गोमोर नदी की सीमा पर बना एक तटबंध। इस तटबंध का निर्माण पश्चिम बंगाल सरकार ने किया है। हालांकि, सुंदरबन के निवासियों का मानना ​​है कि यदि क्षेत्र में मैन्ग्रोव नहीं लगाए गए, तो चक्रवात आने पर तटबंध घुल जाएगा। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।
गोसाबा द्वीप के पाखिराले में गोमोर नदी की सीमा पर बना एक तटबंध। इस तटबंध का निर्माण पश्चिम बंगाल सरकार ने किया है। हालांकि, सुंदरबन के निवासियों का मानना ​​है कि यदि क्षेत्र में मैंग्रोव नहीं लगाए गए, तो चक्रवात आने पर तटबंध घुल जाएगा। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

वृक्षारोपण का परीक्षण और गलती

साल 2004 की एशियाई सूनामी के बाद समुद्र तट को चक्रवातों, तूफानों की लहरों और कटाव से बचाने के लिए मैंग्रोव का लगाना दुनिया भर में एक लोकप्रिय हो गया। सुंदरबन क्षेत्र में, ख़ास तौर से 2009 में चक्रवात ‘अइला’ आने के बाद इसे लोकप्रियता मिली। तब से दुनिया भर के तटीय क्षेत्रों में लाखों मैंग्रोव लगाए गए। जिसमें सुंदरबन भी शामिल है। जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कार्बन-पृथक्करण क्षमता के लिए इन्हें व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है।

वेटलैंड्स इंटरनेशनल और द नेचर कंजरवेंसी द्वारा प्रकाशित 2014 के एक दस्तावेज में इस बात पर जोर दिया गया है कि मौजूदा सदाबहार वन हवा और लहरों के प्रभाव को कम करके कटाव को कम कर सकते हैं। इसमें यह भी कहा गया है, “तलछट को संतुलित करने और जल-विज्ञान से सम्बंधित मसलों के लिए कटाव वाले इलाकों में अधिक से अधिक मैंग्रोव लगाने आवश्यकता हो सकती है।” 

भले ही मैंग्रोव चक्रवात और तूफान के प्रभाव को कम करने में योगदान दे सकते हैं लेकिन हाल के वर्षों में कई अध्ययनों में कटाव को रोकने में मैंग्रोव की खराब भूमिका के बारे में बताया गया है। साल 2019 के एक शोध-पत्र में गुजरात के संदर्भ में कहा गया है, “परिणाम बताते हैं कि मैंग्रोव लगाने से कटाव कम नहीं हुआ है।”

सुंदरबन के संदर्भ में मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए, कलकत्ता विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर सुनन्दो बंदोपाध्याय ने कहा, “सुंदरबन के सदाबहार द्वीपों की तुलना में मानव-आबादी वाले द्वीपों की संख्या का तेजी कम होने का प्रमाण, कटाव रोकने में मैंग्रोव की भूमिका के बारे में भ्रम को स्पष्ट करता है।” 

गोसाबा द्वीप के पास सदाबहार वन। सुंदरबन में फैले घने सदाबहार क्षेत्र 2007 और 2021 के बीच 15 सालों में 1038 वर्ग किमी से कम होकर 994 वर्ग किमी रह गया है यानी 70 प्रतिशत से ज्यादा कम हो गया है। तस्वीर-  सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।
गोसाबा द्वीप के पास सदाबहार वन। सुंदरबन में फैले घने सदाबहार क्षेत्र 2007 और 2021 के बीच 15 सालों में 1038 वर्ग किमी से कम होकर 994 वर्ग किमी रह गया है यानी 70 प्रतिशत से ज्यादा कम हो गया है। तस्वीर-  सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

जादवपुर यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओशनोग्राफिक (समुद्र विज्ञान) स्टडीज के प्रोफेसर सुगत हाजरा का कहना है कि जिन क्षेत्रों में लहरों का वेग अधिक है, और कटाव तेज है, उन क्षेत्रों में लगाया गया मैंग्रोव तब तक नहीं बचेगा जब तक कि लहरों से पौधों की रक्षा नहीं की जाती। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “मैंग्रोव उन इलाकों में अच्छी तरह से विकसित हो रहे हैं, जहां लहरों का वेग कम है। लेकिन तेज वेग वाली लहरों की तरफ बिना किसी सुरक्षा की एक परत के उन्हें बचाना मुश्किल है। यह सुरक्षा परत एक मिट्टी का तटबंध हो सकता है जिसके पीछे वृक्षारोपण की योजना बनाई जा सकती है। हमें लगाए गए मैंग्रोव को लहरों से टकराने के पहले उनकों बढ़ने का मौक़ा देना पड़ेगा।” 

हाजरा ने कहा कि बेहतर सफलता दर के लिए सही जगह और सही समय पर पौध-रोपण बेहद अहम है। सितंबर के बाद पौध-रोपण की सफलता दर बेहतर हो सकती है, क्योंकि लहर की गति कम हो जाती है, जबकि अधिक कटाव वाले इलाकों के लिए कुछ अलग तरीके अपनाने की आवश्यकता है।’

पश्चिम बंगाल राज्य के पर्यावरण विभाग द्वारा गठित एक विशेषज्ञ कमिटी की जुलाई 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है, “तट के कटाव वाले क्षेत्र में पौधे न तो अंकुरित हो सकते हैं और न जमीन पर पकड़ बना सकते हैं। ये संरक्षित रूप में या कम ढाल वाले तटीय क्षेत्र में लग सकते हैं।”  

यह रिपोर्ट इस बात पर सहमत है कि “लहरों का वेग गहरे किनारों की तरफ अधिक होता है। इस क्षेत्र में मैंग्रोव नहीं होते हैं, जो कम से कम उठाते तरंगों की गतिज ऊर्जा को कुछ हद तक अवशोषित कर सकते थे।” दूसरे शब्दों में, वे चक्रवाती तूफान के प्रभाव को कम करने में प्रभावी हैं, लेकिन कटाव को रोकने में नहीं।

मोंगाबे इंडिया को दौरे से पता चला कि बंगाल की खाड़ी के पास वाले द्वीपों में से एक जी-प्लॉट के दक्षिण-पूर्वी तट के पर लगाए गए ज्यादातर मैंग्रोव क्षरण (कटाव) की वजह से बह गए हैं। हालांकि, ग्राम पंचायत के सहयोग से गैर सरकारी संगठनों द्वारा शुरू किए गए बुरोबुरिर टेट का एक किलोमीटर लंबा वृक्षारोपण काफी हद तक बच गया है।

सुंदरबन में सभी महिला समूहों, ‘सृजनी’ और ‘सबुज साथी’ ने 2017-2018 में, जी-प्लॉट ग्राम पंचायत में गोवर्धनपुर और बुरोबुरीर टाट मौजों की सीमा पर एक नहर के किनारे मडफ्लैट पर लगभग 40,000 पौधे लगाए। समूह की संयोजक बुलारानी दास के अनुसार, ‘20,000 से अधिक (पौधे) बच गए हैं।

सुंदरबन में सभी महिला समूहों, ‘सृजनी’ और ‘सबुज साथी’ ने एक मडफ्लैट पर लगभग 40,000 पौधे लगाए। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।
सुंदरबन में सभी महिला समूहों, ‘सृजनी’ और ‘सबुज साथी’ ने एक मडफ्लैट पर लगभग 40,000 पौधे लगाए। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

गोवर्धनपुर संसद या स्थानीय इलाके के प्रतिनिधि के तौर पर जी-प्लॉट ग्राम पंचायत के सदस्य बिमल दास ने बताया, ‘इस जमीन में वृक्षारोपण सफल रहा है क्योंकि यह एक कीचड़ वाली जगह है। हालाँकि, गोबिंदपुर के दक्षिण-पूर्व में कटाव प्रभावित क्षेत्र ‘छाता’ में मैंग्रोव लगाने का हर प्रयास निरर्थक साबित हुआ।’ 

‘सृजनी’ और ‘सबुज साथी’ के प्रोजेक्ट-कोऑर्डिनेटरों में से एक, बुलारानी दास। उनका कहना है कि महिला समूहों द्वारा लगाए गए 40,000 में से 20,000 सदाबहार पौधे बच गए हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।
‘सृजनी’ और ‘सबुज साथी’ के प्रोजेक्ट-कोऑर्डिनेटरों में से एक, बुलारानी दास। उनका कहना है कि महिला समूहों द्वारा लगाए गए 40,000 में से 20,000 सदाबहार पौधे बच गए हैं। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

इसी तरह के रुझान ‘बाली द्वीप’ के दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी हिस्सों में देखे गए। जहां कई हिस्सों के साथ-साथ दक्षिण पश्चिम में श्रीपतिनगर, पश्चिमी में श्रीधरनगर और दक्षिण में के.प्लॉट में लगाए गए पौधों के केवल अवशेष देखे जा सकते हैं।

वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के प्रमुख क्षेत्र अधिकारी और बाली द्वीप निवासी अनिल मिस्त्री के अनुसार, मैंग्रोव के जीवित रहने की अधिकतम दर के लिए सही समय और सही स्थान की पहचान करना महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि जब चंद्रमा के पूर्ण होने पर (पूर्णिमा) ज्वार आने के बाद, चंद्र-चक्र के सातवें से दसवें दिन तक पानी पीछे हटता है, उसके बाद समुद्र के किनारे पर अधिक कीचड़ दिखता है। 

हालांकि कम उछाल वाले ज्वार के पीछे हटने के बाद खाली हुई जगह पौध-रोपण के लिए उपयोगी नहीं है। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “कम उछाल वाले ज्वार के दौरान, प्लांटिंग एजेंसियां ​​​​अक्सर पानी के खिंचाव का उपयोग करती हैं, यह विचार किए बिना कि इसका कुछ हिस्सा हर चंद्र-चक्र में ज्वार के दौरान कई दिनों तक लगातार पानी के नीचे रहेगा, जिसकी वजह से इसमें लगाए गए पौधे मर जाएंगे।” 

एक बंगाली लोक गायक और पुरालेखपाल (archivist) सौरव मोनी, जो मूल रूप से बांग्लादेश की सीमा से लगे सुंदरबन के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित माधबकटी गाँव में रहते हैं, उन्होंने 2020 में चक्रवात ‘अम्फान’ के कारण आई बाढ़ के बाद अपने गाँव में और उसके आसपास वृक्षारोपण अभियान का नेतृत्व किया। उन्होंने पाया कि सबसे बड़ी चुनौती रखरखाव की थी।

सूखे हुए मैंग्रोव की लकड़ी इकट्ठा करके जंगल से लौटती एक महिला। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/ मोंगाबे द्वारा फोटो।
सूखे हुए मैंग्रोव की लकड़ी इकट्ठा करके जंगल से लौटती एक महिला। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/ मोंगाबे द्वारा फोटो।

मोनी ने कहा, “लहरें बार-बार लगाए गए बाड़ को गिराती रहती हैं। मैंग्रोव को बचाने के लिए बैरिकेड्स की दो से तीन साल तक बार-बार मरम्मत करनी पड़ेगी या बदलना पडेगा। अक्सर पौधे लगाने की तुलना में उनके देखरेख के लिए अधिक अधिक वित्तीय सहायता की जरुरत होगी।” 

मौसुनी द्वीप पर, एक इंटरनेट कैफे के मालिक, मिर्जा साहब बेग ने दिखाया कि कैसे वृक्षारोपण के लिए आइडियल जगहों में बदलाव हो रहा है, कुछ जगहों पर गाद और मिट्टी की जगह रेत ले रही है, जबकि कुछ जगहों पर रेत की जगह गाद ने ले लिया है। 

और डेल्टा नदी चिनाई का बंगाल की खाड़ी से मिलाने (संगम) के स्थान पर पांच से 10 साल पहले किए गए पौध-रोपण अभियान के परिणाम साफ़ तौर पर दिख रहे हैं। जबकि उस जगह के पास पिछले साल लगाए गए पौधे रेत के जमाव के नीचे दब गए।

झारखली द्वीप के विद्यासागर कॉलोनी नंबर 3 में, महिलाओं के नेतृत्व वाले समूह सबुज बहिनी की सदस्य तुंपा दकुआ ने ज्वार आने वाले माध्यम ढलान की जगह पर जोर देते हुए कहा, “लगता है कि पिछले कुछ सालों में लहरें अधिक तेज हो गई हैं, लगाए गए मैंग्रोव अक्सर बह जाते हैं,  लेकिन ज्वार आने वाला क्षेत्र का फैलाव और ढलान मध्यम हो तो पौधे के जीवित रहने की दर अधिक होती है।” प्रजाघेरी गांव में, उसी समूह की एक अन्य स्वयंसेवक ने कहा कि जीवित रहने की दर औसतन 30% रही थी।     

संवाददाता ने पाया कि अधिकांश साइटों पर निगरानी की कोई नियमित व्यवस्था नहीं है। कुछ गैर सरकारी संगठन देख-रेख करने के लिए एक या दो लोगों को नियुक्त करते हैं। सरकार द्वारा शुरू किए गए वृक्षारोपण के तहत मैंग्रोव लगाने के बाद पूरी जगह की बाउंड्री को नेट से ढक दिया जाता है, लेकिन साइट का दौरा केवल तीन से छह महीने में एक बार किया जाता है। वेटलैंड्स इंटरनेशनल एंड द नेचर कंजरवेंसी की 2014 की रिपोर्ट में यह जिक्र किया गया है कि कटाव वाले क्षेत्रो में व्यक्तिगत तौर पर पौधों की रक्षा करने की बात कही जाती है लेकिन यहां ऐसा होता नहीं दिखा।

मैंग्रोव की बचाव के लिए घास

पश्चिम बंगाल के राज्य विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान की सहायक प्रोफेसर कृष्णा रे के अनुसार, जिन जगहों पर स्थानीय घास की किस्में उगती हैं वह वृक्षारोपण के लिए आदर्श जगह होता है। कटाव प्रभावित क्षेत्र में पौध-रोपण के लिए ऐसी जगह बेहतर है। केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग से मिले अनुदान से उन्होंने 2014 और 2018 के बीच पथरप्रतिमा ब्लॉक के रामगंगा ग्राम पंचायत क्षेत्र में तीन हेक्टेयर जमींन पर एक पायलट प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया था।

उन्होंने कहा, “हमारे अनुभव से पता चलता है कि यदि मैंग्रोव लगाने से पहले खारेपन में उगने वाली स्थानीय घास को उगाया जा सके, तो वह घास वहां मिट्टी को स्थिर करने में मदद करती है और पानी के बहाव में तैरने वाले मैंग्रोव के लिए एक जाल का काम करती है।”

उन्होंने कहा कि हाल ही में जो वन लगाए गए, उनमें अधिक प्रजातियां हैं और वे अधिक संख्या में बढ़ी हैं। इस सफलता का श्रेय घास को दिया गया, जिन्होंने मैंग्रोव को फंसाए रखा। उन्होंने स्थानीय रूप से पाई जाने वाली चार प्रकार की घास के बारे में बताया, जो ज्वारीय क्षेत्र में उगती हैं, पोर्टेरेसिया कोरक्टाटा, मायरियोस्टैच्या वाइटियाना, पासपालम वेजाइनाटम और स्पोरोबोलस वर्जिनिकस। ये घास खारे पानी में उगती हैं और पानी के बहाव से मैंग्रोव को बचाने में प्रभावी हो सकती हैं। 

दुर्बचोटी में मैंग्रोव की बचाव के लिए खारे पानी लगाई गई घास। तस्वीर- सहाना घोष / मोंगाबे।
दुर्बचोटी में मैंग्रोव की बचाव के लिए खारे पानी लगाई गई घास। तस्वीर- सहाना घोष / मोंगाबे।

हालांकि रे मानती हैं कि पौध-रोपण के दौरान अधिक प्रयास की आवश्यकता है। घास और पौधे कुछ सालों तक बार-बार लगाने होंगे। उन्होंने ने कहा, “2014 से 2018 के बीच, काफी प्रयासों की आवश्यकता थी, लेकिन 2018 से, जंगल अपने आप बढ़ रहा है।”

देखना होगा कि सरकार इस तरीके को अपनाती है या नहीं। इस बीच, इस साल मई में, राज्य के वन विभाग ने घोषणा की कि 2021-22 के दौरान जिले में एक और 12.5 करोड़ सदाबहार व अन्य प्रजातियां लगाई गईं थी।

 

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बैनर तस्वीर: बल्ली द्वीप पर मृत मैंग्रोव के बगल में लगाए गए नए मैंग्रोव। विशेषज्ञों का कहना है कि उन क्षेत्रों में जहां लहर का वेग अधिक है, और कटाव तेज है, वहां मैंग्रोव तब तक नहीं बचेंगे जब तक कि मैंग्रोव को लहरों से सुरक्षित नहीं किया जाता। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

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