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भारत में बढ़ती सौर ऊर्जा के बावजूद कोयला ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बना रहेगा

बिरला इंडस्ट्रियल एंड टेक्नोलॉजिकल म्यूजियम, कोलकाता में फोटो खिंचवाते कोयला खदान के श्रमिकों का भित्ति चित्र। तस्वीर- बिश्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स

बिरला इंडस्ट्रियल एंड टेक्नोलॉजिकल म्यूजियम, कोलकाता में फोटो खिंचवाते कोयला खदान के श्रमिकों का भित्ति चित्र। तस्वीर- बिश्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स

  • राष्ट्रीय विद्युत योजना के मसौदे (ड्राफ्ट) में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि आगामी 10 वर्षों के दौरान भारत में ऊर्जा परिवर्तन कैसे आकार लेने जा रहा है।
  • भारत अपनी मौजूदा ऊर्जा क्षमता में सौर और पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ने की योजना बना रहा है, लेकिन कोयला अभी भी देश के ऊर्जा श्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • मौजूदा क्षमता का कम उपयोग किया जाना, ताप विद्युत संयंत्रों (थर्मल पॉवर प्लांट्स), गैस और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए एक चुनौती है।

भारत के ऊर्जा स्रोतों में सौर ऊर्जा एक प्रमुख स्रोत के रूप में उभरेगा, लेकिन कोयला अभी भी देश के ऊर्जा क्षेत्र का मुख्य आधार बना रहेगा। आने वाले दशक में भारत में कम से कम 40% अधिक कोयले की खपत का अनुमान है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) द्वारा जारी राष्ट्रीय विद्युत योजना (एनईपी) के ड्राफ्ट में यह तथ्य देखा जा सकता है, जो भारत में हो रहे ऊर्जा संक्रमण की एक झलक देता है।

सीईए (सेन्ट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी) की रिपोर्ट का अनुमान है कि 2031-32 में घरेलू कोयले की आवश्यकता में 40% की वृद्धि होगी। साल 2021-22 में भारत की घरेलू कोयले की आवश्यकता 678 मिलियन टन थी। यह 2026-27 तक बढ़कर 831.5 मेट्रिक टन और 2031-32 तक 1018.2 मेट्रिक टन हो जाएगी।

वर्तमान में भारत में ऊर्जा क्षेत्र में कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता का 51.1% कोयले से मिलता है। देश की कुल 399.49 गीगा वाट (जीडब्ल्यू) स्थापित क्षमता में से, 236.10 गीगावाट थर्मल से मिलता है, 6.78 गीगावाट परमाणु से और 156.60 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त होता है। एनईपी (नेशनल इलेक्ट्रिसिटी पैनल) के मसौदे में कहा गया है कि 2031-32 तक अतिरिक्त कोयला आधारित ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता है, जो 17 गीगा वाट से लेकर लगभग 28 गीगा वाट तक हो सकती है। यह 25 गीगा वाट की निर्माणाधीन कोयला आधारित ऊर्जा क्षमता से अधिक है।

भारत में पश्चिम बंगाल के धनबाद में स्थित कोयले की खान। तस्वीर- नितिन किर्लोस्कर/फ़्लिकर 
भारत में पश्चिम बंगाल के धनबाद में स्थित कोयले की खान। तस्वीर– नितिन किर्लोस्कर/फ़्लिकर

भविष्य में थर्मल पावर प्लांट्स (टीपीपी) की भूमिका के बारे में बात करते हुए पुणे स्थित ऊर्जा पर थिंक टैंक ‘प्रयास’ के समन्वयक अशोक श्रीनिवास का कहना है कि कम प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) के बावजूद थर्मल पावर क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता हो सकती है। अक्षय ऊर्जा उपलब्ध नहीं होने पर अधिकतम मांग वाले घंटों में ऊर्जा क्षमता को अधिकतम किया जा सकता है। इस मांग को पूरा करने के लिए कुछ अतिरिक्त ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता हो सकती है। यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि आने वाले भविष्य में पर्याप्त कोयले की क्षमता समाप्त हो जाएगी।

दिलचस्प बात यह है कि 2017-22 के बीच कुल 22.7 गीगावाट के कोयला संयंत्र की सेवा समाप्त करने का निर्णय लिया गया था। इसमें से केवल 7.35 गीगावाट के कोयला संयंत्र की ही सेवा समाप्त की गई, जिसमें 4.5 गीगावाट के संयंत्र को काफी पुराना होने के कारण बंद किया गया। एक अनुमान के मुताबिक़ 2022-27 के बीच 4.6 गीगावाट के थर्मल पावर प्लांट की सेवा समाप्त हो जाएगी। साल 2027-32 के लिए ऐसा कोई अनुमान नहीं है।

चार अंतरराष्ट्रीय लेखा संगठनों में से एक के साथ काम करने वाले एक विशेषज्ञ का कहना है कि संयंत्र की सेवा समाप्त करने के लिए 22 गीगावाट निर्धारित किए गए थे, उनमें से 16 गीगावाट टीपीपी वे थे, जिनके पास फ़्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) स्थापित करने के लिए जगह नहीं थी। फ़्लू का मतलब होता है चिमनी; और किसी भी थर्मल पॉवर प्लांट की चिमनी से निकलने वाली गैस को फ़्लू गैस कहा जाता है। सल्फर डाइऑक्साइड (SOx) उत्सर्जन को नियंत्रित करना आवश्यक है। इनमें से अधिकांश थर्मल पावर प्लांट की सेवा समाप्त नहीं हुई है। अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक विशेषज्ञ ने बताया कि केंद्र सरकार एफजीडी (फ्यूल गैस डीसलफ्रैजेसन) लगाने की समय सीमा भी बढ़ा रही है। इसलिए किसी को भी कोयले को लेकर सरकार की मंशा से भ्रमित नहीं होना चाहिए। आज भी, सरकार सबसे कम 17 गीगावाट का थर्मल पावर प्लांट और अधिकतम 28 गीगावाट स्थापित करने की बात कर रही है। 

विद्युत अधिनियम, 2003 के अनुसार, सीईए को पांच साल में एक बार राष्ट्रीय विद्युत योजना तैयार करनी होती है। अब तक सीईए ने 2007, 2013 और 2018-2019 में तीन एनईपी (नेशनल इलेक्ट्रिसिटी पैनल) गठित किए हैं। सीईए दो खंडों में रिपोर्ट तैयार करता है, एक ऊर्जा उत्पादन से सम्बंधित होता है और दूसरा ऊर्जा संचरण के बारे में। वर्तमान मसौदा रिपोर्ट अगले पांच साल और 10 साल में ऊर्जा उत्पादन के अनुमानों के बारे में बात करती है। यह मसौदा पॉवर सेक्टर की महत्वाकांक्षी तस्वीर पेश करता है, और निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने का प्रयास करता है। 

रास्ते में ऊर्जा संक्रमण

आज़ादी के बाद से भारत ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए ऊर्जा-क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता रहा है। साल 1947 में, देश में केवल 1.36 गीगावाट की क्षमता थी। इसकी तुलना में मार्च 2022 में ऊर्जा उत्पादन के लिए देश की स्थापित क्षमता 399.49 गीगावाट थी। अब, भारत न केवल ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रहा है बल्कि अपनी ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए स्वच्छ ईंधन पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। अगले 10 सालों में देश अपनी मौजूदा क्षमता के दोगुने से अधिक ऊर्जा क्षमता बढ़ाने की योजना बना रहा है।

एनईपी के मसौदे के अनुसार, देश वर्ष 2031-32 के अंत तक 865.94 गीगावाट स्थापित क्षमता का लक्ष्य रखेगा, और इसमें से आधा गैस-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त किया जाएगा। यह ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक समुदाय के प्रति भारत की प्रतिबद्धता है।

इसे हासिल करने के लिए, भारत की योजना 2031-32 तक अपनी मौजूदा क्षमता में 35 गीगावाट कोयले से प्राप्त ऊर्जा जोड़ने की है। इसके विपरीत, उसी समय सीमा के दौरान अपने मौजूदा ऊर्जा क्षमता में 279.48 गीगावाट सौर ऊर्जा से और 93.6 गीगावाट पवन ऊर्जा से जोड़ने की है। मसौदा रिपोर्ट में कहा गया है, “नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (आरईएस) का योगदान वर्ष 2026-27 में देश की कुल ऊर्जा का लगभग 35.6% और 2031-32 तक 45.09% होगा।”

मध्य प्रदेश के सारनी में स्थित एक ताप विद्युत संयंत्र। तस्वीर- आशीष प्रजापति/विकिमीडिया कॉमन्स।
मध्य प्रदेश के सारनी में स्थित एक ताप विद्युत संयंत्र। तस्वीर– आशीष प्रजापति/विकिमीडिया कॉमन्स।

उपरोक्त विशेषज्ञ का कहना है कि यह बढ़ने वाली ऊर्जा क्षमता इस क्षेत्र को बदल देगी। उनके अनुसार, कोयला और गैस संयुक्त के रूप से अब तक ऊर्जा के प्रमुख स्रोत रहे हैं। अक्षय ऊर्जा कुल बिजली उत्पादन में केवल 10% का योगदान करती है। “अभी, यह कोई समस्या नहीं है। जब आप एक ऐसे ग्रिड की बात करेंगे जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा 45% होगी, तो यह एक समस्या बन जाएगी। आप एक विश्वसनीय स्रोत कोयला को कम कर रहे हैं और इसे एक परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत से बदल रहे हैं। ऐसे में ग्रिड प्रबंधन चिंता का विषय बन जाता है। इसलिए, देश को ऊर्जा उत्पादन के लिए विश्वसनीय संसाधनों की आवश्यकता है। यह हाइड्रो या स्टोरेज बैटरी हो सकती है। अगले पांच वर्षों के लिए हमारे पास पर्याप्त जलविद्युत है, जिससे इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। लेकिन 2026 के बाद केवल हाइड्रो ही उस विश्वसनीयता को कायम नहीं रख पाएगी। हमें बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (बीईएसएस) की जरूरत है। मसौदा रिपोर्ट में इस तथ्य का जिक्र किया गया है कि देश को 2031-32 तक 51 गीगावाट भंडारण क्षमता की आवश्यकता होगी।

हालांकि, इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ एक और मुद्दे का जिक्र किया गया है। भारत हर साल मुश्किल से 10 से 12 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ा रहा है। यह पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा, “अगर देश अपनी महत्वाकांक्षा के साथ गंभीर है, तो उसे हर साल 40 से 50 गीगावाट क्षमता जोड़ने की जरूरत है। इसके लिए बड़े निवेश की भी आवश्यकता है।”

एनईपी की मसौदा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2031-32 तक बीईएसएस के लिए कुल 3.4 ट्रिलियन रुपये और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए 12.52 ट्रिलियन रुपये के निवेश की आवश्यकता है।

हालांकि क्षमता वृद्धि देश की ऊर्जा महत्वाकांक्षा के शीर्ष पर बनी हुई है, मौजूदा क्षमता (टीपीपी, गैस और नवीकरणीय सहित) का उचित उपयोग एक चुनौती बनी हुई है।

पॉवर-प्लांट के ऊर्जा उत्पादन क्षमता को प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) का उपयोग करके मापा जाता है। यह पॉवर प्लान के अधिकतम ऊर्जा उत्पादन की तुलना में कुल उर्जा उत्पादन की मात्रा का माप है। यदि किसी बिजली संयंत्र का पीएलएफ अधिक है, तो वह कम लागत (बिजली की प्रति यूनिट) पर भी अधिक ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है।

सीईए का मसौदा एनईपी इस कड़वे तथ्य के बारे में बताता है। ड्राफ्ट में टीपीपी (थर्मल पॉवर प्लांट) के बारे में कहा गया है कि एक बार पॉवर स्टेशन चालू हो जाने के बाद, सबसे बड़ी चुनौती उच्च पीएलएफ पर स्टेशन को संचालित करना है। देश में कोयला आधारित बिजली स्टेशनों का पीएलएफ वर्षों से लगातार कम हो रहा है। पीएलएफ 2017-18 में 60.5%, 2018-19 में 60.9%, 2019-20 में 55.9%, 2020-21 में 54.6% और 2021-22 के दौरान 58.8% से भिन्न है।

इसी तरह, एनईपी का मसौदा गैस बुनियादी ढांचे के बारे में बात करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गैस पावर प्लांट लगभग 23% के कम पीएलएफ पर चल रहे हैं। ऐसा कम पीएलएफ, गैस पाइपलाइन के बुनियादी ढांचे की कमी के कारण नहीं है, बल्कि प्राकृतिक गैस के सस्ते स्रोतों की अनुपलब्धता के कारण है।

अधिकतम मांग और चुनौती को पूरा करने के संबंध में रिपोर्ट में कहा गया है कि लोड-कर्व के आकार के कारण पुनरुत्पादन पूरी तरह से अवशोषित नहीं हो पाता है। ऐसा तब होता है, जब दिन में पवन ऊर्जा का कैपिसिटी यूटीलाइजेशन फैक्टर  (सीयूएफ) 24.08% और सौर ऊर्जा का सीयूएफ 17.73% हो।

उपरोक्त विशेषज्ञ बताते हैं कि मांग और आपूर्ति बेमेल है। जिस समय पर बिजली की न्यूनतम मांग होती है, उस समय पर सौर और पवन अधिकतम ऊर्जा का उत्पादन कर रहे हैं। ऊर्जा की मांग का पैटर्न देखा जाए तो यह शाम और सुबह के समय अधिक होता है। लेकिन ऊर्जा उत्पादन दोपहर में अधिकतम होता है। इस उत्पन्न ऊर्जा को ग्रिड में संचित करना कठिन है। भविष्य में जब सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता बढ़ेगी, तो कुल बिजली उत्पादन को संचित करना और भी बड़ी चुनौती होगी।

राजस्थान में निर्माणाधीन सोलर पॉवर प्लांट। तस्वीर- आशीष प्रजापति 90/विकिमीडिया कॉमन्स द्वारा फोटो
राजस्थान में निर्माणाधीन सोलर पॉवर प्लांट। तस्वीर– आशीष प्रजापति 90/विकिमीडिया कॉमन्स द्वारा फोटो

टीपीपी और कम पीएलएफ की बात करें तो इन संयंत्रों का उपयोग कम से कम एक दशक से लगातार कम होता जा रहा है। साल 2009-10 में राष्ट्रीय पीएलएफ 77.5% था। अब 2021-22 में औसत पीएलएफ घटकर 58.87% हो गया है। एनईपी के मसौदे में और गिरावट का अनुमान है और इसके 2026-27 में 55% तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि, रिपोर्ट दावा करती है कि उसके बाद सुधार होगा और 2031-32 में ताप विद्युत संयंत्रों का पीएलएफ लगभग 62% होगा। लेकिन, इसमें सुधार कैसे होगा, इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

‘प्रयास’ के श्रीनिवास का कहना है कि टीपीपी (थर्मल पॉवर प्लांट) का पीएलएफ (प्लांट लोड फैक्टर) कम है, क्योंकि देश ने पिछले दशक के दौरान कोयला ऊर्जा क्षमता बढ़ाई है। यह बढ़ी हुए अपेक्षित मांग से कम उत्पादन है और यह उत्पादन में आरई की बढ़ती भूमिका के साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि इससे टीपीपी का उपयोग कम हुआ है, इसलिए पीएलएफ कम है।

साल 2021 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनर्जी प्रोडक्शन एंड मैनेजमेंट में प्रकाशित एक रिसर्च-पेपर में भी इस चिंता को जाहिर किया गया है। रिसर्च-पेपर के लेखक और एनटीपीसी क्षेत्रीय शिक्षण संस्थान के महाप्रबंधक व प्रमुख आलोक कुमार त्रिपाठी लिखते हैं कि ऐसा लगता है, कोयले की क्षमता का पूर्वानुमान, पहले से चली आ रही विरासत की सिस्टम के प्रति जुनून और नवीकरणीय ऊर्जा के तेजी से आगमन के बीच फंस गई है।

अपने शोध-पत्र में, वह थर्मल पॉवर सेक्टर की तीन योजनाओं में पीएलएफ के गिरने के पांच परिस्थितियों का जिक्र करते हैं। लेकिन, जब मोंगाबे-इंडिया ने उनसे संपर्क किया, तो आलोक कुमार त्रिपाठी ने कुछ अलग नजरिया साझा किया।


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उनका कहना है कि अब स्थिति बदल रही है। कई कारणों से पूरी दुनिया फिर से थर्मल पावर बढ़ाने पर विचार कर रही है। हाल के महीनों में जिस तरह से मांग बढ़ी है, अक्षय ऊर्जा उसकी बराबरी नहीं कर पा रहा है, यही वजह है कि थर्मल पावर पर फिर से ध्यान दिया जा रहा है। अब दुनिया भर के नीति निर्माता नए ताप विद्युत संयंत्र स्थापित करने पर विचार कर रहे हैं। कम पीएलएफ के बारे में, उनका कहना है कि जब उत्पादन में वृद्धि या गिरावट होती है, तो टीपीपी को नवीकरणीय ऊर्जा के साथ समायोजन करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि इस थोपी गई सहजता के कारण, ताप विद्युत संयंत्रों को नुकसान हो रहा है, उन्हें मुआवजा देने की जरूरत है।

कोयले की ओर नए सिरे से ध्यान देने के बारे में दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आने वाली अन्य रिपोर्टों में भी उनका यह विचार दिख रहा है, जो बढ़ती वैश्विक प्रवृत्ति की तरह दिख रहा है।

 

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बैनर तस्वीर: बिरला इंडस्ट्रियल एंड टेक्नोलॉजिकल म्यूजियम, कोलकाता में फोटो खिंचवाते कोयला खदान के श्रमिकों का भित्ति चित्र। तस्वीर– बिश्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स

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