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जोशीमठ संकटः 46 सालों से बनती आ रही कमेटियां, क्या इस बार नहीं होगी सुझावों की अनदेखी

जोशीमठ में दरारों की वजह से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। शहर में अब तक 849 मकानों में दरारें देखी गईं। शहर के 838 लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

जोशीमठ में दरारों की वजह से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। शहर में अब तक 849 मकानों में दरारें देखी गईं। शहर के 838 लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

  • जनवरी 2023 की शुरुआत उत्तराखंड के शहर जोशीमठ के दरकने से हुई। बीते 14 महीने से शहर के मकानों में दरारें देखी जा रही थीं, लेकिन जनवरी की शुरुआत में इसकी रफ्तार बढ़ गई।
  • शहर में अब तक 849 मकानों में दरारें देखी गईं। शहर के 838 लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है।
  • राज्य और केंद्र सरकार ने स्थिति का जायजा लेने के लिए त्वरित स्टडी का एक पैनल बनाया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक त्वरित रिपोर्ट में घरों में आ रही दरारों का कारण सीवेज लाइन और प्राकृतिक जल की निकासी के उचित प्रबंध न होना बताया गया है।
  • जोशीमठ पर 46 वर्ष पहले मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट आई थी जिसमें कमोबेश यही बातें सामने आईं थी। हालांकि, जानकार मानते हैं कि इस रिपोर्ट में दिए गए सुझावों की अनदेखी की गई जिसकी वजह से जोशीमठ संकट के मुहाने पर खड़ा है।

जैसे ही उत्तराखंड के जोशीमठ से मकानों में दरारों की ख़बरों की शुरुआत हुई, वैसे ही राज्य और केंद्र सरकारें हरकत में आयीं और आनन-फानन में जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव पर एक त्वरित स्टडी के लिए एक पैनल बना दिया। पैनल को चार दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट फाइल करके राज्य सरकार को सौंपने के आदेश दिए गए। ख़बरों के अनुसार पैनल ने अपनी रिपोर्ट में जोशीमठ के घरों में आ रही दरारों का कारण सीवेज लाइन और प्राकृतिक जल की निकासी के उचित प्रबंध न होना बताया। ठीक यही बात करीब 46 साल पहले जोशीमठ पर बनाई गई एक रिपोर्ट में भी कही गयी थी, जिस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। 

चमोली जिले में समुद्र तल से 1,875 मीटर की ऊंचाई पर बसा जोशीमठ भूगर्भीय रूप से बहुत ही नाजुक है और भूकंप की दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील ज़ोन 5 में आता है। ऐसे में यहां प्राकृतिक घटनाएं और आपदाएं कोई नई बात नहीं है। हर प्राकृतिक घटना के साथ प्रशासन या सरकार द्वारा समिति बनाई जाती हैं और रिपोर्ट बनवाई जाती हैं लेकिन उनके द्वारा दिए गए सुझावों पर कोई ख़ास अमल नहीं होता है। 

रिपोर्ट और सुझावों के पहाड़ 

साल 1976 में जोशीमठ के कुछ इलाकों में भू-धंसाव हुआ जिसकी वजह से कुछ मकानों में दरारें आयीं और इस स्थिति का अध्ययन करने के लिए गढ़वाल मंडल के तत्कालीन कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। 

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “नालियों की समुचित व्यवस्था न होने से भी भूस्खलन होता है। मौजूदा सोख गढ्ढों की वजह से मिटटी और चट्टानों के बीच दरारें बनती हैं जो पानी के रिसाव और मिटटी के कटाव का कारण बनता है।”

साल 1976 से लेकर 2023 तक के 46 सालों में जोशीमठ और इसके आसपास के इलाकों पर कई शोध किये गए जिसमें साल 2006 में आयी स्वप्नमिता चौधरी की रिपोर्ट, साल 2012 की उत्तराखंड सरकार की डिजास्टर मैनेजमेंट रिपोर्ट, साल 2013 की त्रासदी के बाद रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में बनाई गयी हाई पावर कमिटी की रिपोर्ट, साल 2022 में आयी पियूष रौतेला की रिपोर्ट और उसके ठीक दो महीने पहले आयी एस पी सती, शुभम शर्मा और नविन जुयाल की रिपोर्ट ख़ास हैं। 

इसके अलावा भी समय-समय पर स्वतंत्र शोधकर्ताओं और संस्थानों द्वारा अपने स्तर पर इस क्षेत्र में शोध किये गए हैं। 

दरारों की वजह से आम लोग अपना घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों का रुख कर रहे हैं। शहर में अब तक 849 मकानों में दरारें देखी गईं। शहर के 838 लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे
दरारों की वजह से आम लोग अपना घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों का रुख कर रहे हैं। शहर में अब तक 849 मकानों में दरारें देखी गईं। शहर के 838 लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

इन सभी रिपोर्ट में सबसे पुरानी 1976 की मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट, 2006 की वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन स्टडीज की शोधकर्ता स्वप्नमिता चौधरी की रिपोर्ट और 2022 में आयी दो अलग अलग रिपोर्ट में जोशीमठ के भू-धंसाव के कारणों और सुझावों में भी बहुत समानताये हैं। 

इस बारे में बात करते हुए जोशीमठ में काम करने वाली संस्था गंगा आवाह्न से जुड़ी मल्लिका भनोट कहती हैं, “आपदाओं को लोग बहुत जल्दी भूल जाते हैं। जब भी कोई आपदा आती है तो सरकार एक के बाद एक कमिटी बनाने लगती है। लेकिन जब कोई कमिटी ईमानदारी से कोई रिपोर्ट लेकर आती है तो सरकार उस पर काम नहीं करती है।” 

इन सभी कमिटी और रिपोर्ट के बारे में वह बताती हैं कि सरकार और प्रशासन यह चाहते हैं कि ऐसी रिपोर्ट उनकी परियोजनाओं में बाधा न बनें और अगर ऐसा होता है तो सरकार उस कमिटी की रिपोर्ट को ख़ारिज करने के लिए एक और कमिटी बना देती है। 

जोशीमठ संकट के पीछे इलाके में चल रहे निर्माण कार्यों को भी वजह माना जा रहा है। तस्वीर- शैलेष श्रीवास्तव/मोंगाबे
जोशीमठ संकट के पीछे इलाके में चल रहे निर्माण कार्यों को भी वजह माना जा रहा है। तस्वीर- शैलेष श्रीवास्तव/मोंगाबे

“इन सभी रिपोर्टों में से सबसे चौंकाने वाली रिपोर्ट रवि चोपड़ा कमिटी की रिपोर्ट थी जो पूरी तरह से और सर्वसम्मति से पर्यावरण मंत्रालय द्वारा स्वीकार की गई थी। उन्होंने (मंत्रालय ने) दिसंबर 2014 में एक हलफनामा पेश किया (सुप्रीम कोर्ट में), जिसमें रवि चोपड़ा की रिपोर्ट में पनबिजली परियोजनाओं के बारे में कही गई हर बात को दोहराया गया था। वे (मंत्रालय) वास्तव में एक कदम आगे बढ़ गए और यह कहते हुए टिप्पणी की कि जलविद्युत परियोजनाओं ने 2013 की आपदा के प्रभाव को बढ़ाने में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई है। बाद में जब न्यायाधीश ने बताया कि जलविद्युत परियोजनाएँ कितनी विनाशकारी हैं, तो उन्होंने इस समिति के ऊपर दो और समितियाँ बना दी,” मल्लिका ने 2013 में उत्तराखंड में आयी विनाशकारी बाढ़ के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई हाई पावर कमिटी के बारे में बात करते हुए बताया। 

जोशीमठ से जुडी इन सभी रिपोर्ट में पानी के रिसाव को इस स्थिति के पीछे सबसे बड़ा कारण बताया गया है। इसके अलावा मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट में और भी कई कारणों, जैसे निर्माण कार्य और पेड़ों की कटाई, का भी ज़िक्र किया गया था। 

मिश्रा कमिटी ने जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव के लिए पेड़ों की कटाई को जिम्मेदार बताते हुए कहा था, “पेड़ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बारिश के लिए यांत्रिक बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं, जल संरक्षण क्षमता में वृद्धि करते हैं और ढीले मलबे के ढेर को जकड कर रखते हैं। चराई और चराई की घटनाओं में वृद्धि (पेड़ों की) कटाई के समान है। जोशीमठ क्षेत्र में प्राकृतिक वन आवरण को कई एजेंसियों द्वारा निर्दयतापूर्वक नष्ट कर दिया गया है। चट्टानी ढलान नंगे और पेड़-रहित है। वृक्षों के अभाव में मृदा अपरदन और भूस्खलन होता है। डिटैचिंग बोल्डर को पकड़ने के लिए कुछ भी नहीं है। भूस्खलन और फिसलन जिसके परिणाम हैं।”

पेड़ों की कटाई को लेकर दिए गए इस सुझाव पर कितना ध्यान दिया गया इसका हिसाब इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 30 सालों में उत्तराखंड में 50,000 हेक्टेयर, मुंबई शहर से थोड़ा कम, से अधिक वन क्षेत्र की भूमि को दूसरी परियोजनाओं के लिए हस्तांतरित किया गया है। यानि कि, इतने बड़े क्षेत्रफल में पेड़ों की कटाई हुई है।  

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) के आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तराखंड में 58,684 हेक्टेयर वन क्षेत्र को 1991 और 2021 के बीच गैर-वन उपयोग—मुख्य रूप से सड़क निर्माण, बिजली उत्पादन और इसके ट्रांसमिशन—के लिए परिवर्तित (डायवर्ट) किया गया था। इनमें से चमोली जिला, जिसमे जोशीमठ स्थित है, टिहरी गढ़वाल के बाद सबसे ज़्यादा वन क्षेत्र को परिवर्तित करने वाला जिला है। 

उत्तराखंड में बढ़ती प्राकृतिक घटनाओं के पीछे पेड़ों की कटाई को बड़ा कारण माना जाता है। पिछले 30 सालों में प्रदेश ने एक बहुत बड़ा वन क्षेत्र खोया है। चट्टानी ढलान नंगे और पेड़-रहित है। तस्वीर- शैलेश श्रीवास्तव/मोंगाबे
उत्तराखंड में बढ़ती प्राकृतिक घटनाओं के पीछे पेड़ों की कटाई को बड़ा कारण माना जाता है। पिछले 30 सालों में प्रदेश ने एक बहुत बड़ा वन क्षेत्र खोया है। चट्टानी ढलान नंगे और पेड़-रहित है। तस्वीर- शैलेष श्रीवास्तव/मोंगाबे

“ये सिर्फ एक अध्ययन की बात नहीं है, बहुत से अध्ययन हुए लेकिन उनका कोई लाभ जनता को नहीं मिला। किसी भी अध्ययन को ज़मीन पर लागू करने की बजाये उनकी उपेक्षा की गई, और इसका नतीजा उत्तराखंड और जोशीमठ की जनता भुगत रही है,” जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के अतुल सती कहते हैं। 

“साल 2013 के सुझावों को दरकिनार करते हुए टनल में विस्फोट किये गए, बड़े-बड़े सरकारी गेस्ट हाउस बने, प्राइवेट प्लेयर्स को मंजूरी दी गयी। उन सभी सुझावों के बाद भी ऋषि गंगा और तपोवन परियोजनाएं चलती रहीं और 12 जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी गयी,” उन्होंने बताया। 

सती जोशीमठ की स्थिति पर किये जा रहे शोधों और प्रशासन की पारदर्शिता के बारे में बात करते हुए कहते हैं, “अभी जोशीमठ में सारे लोग और संस्थान हैं, और रिसर्च कर रहे हैं। लेकिन, क्या ये रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएँगी?

आप इसरो की रिपोर्ट छुपा दे रहे हैं, सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं। जोशीमठ में रिसने वाले पानी पर रिपोर्ट आ चुकी है लेकिन प्रशासन उसे जनता के साथ साझा नहीं कर रहा है। अगर आप लोगों को ये रिपोर्ट नहीं बताएँगे तो लोग अपनी सुरक्षा के इंतेज़ाम कैसे करेंगे?”

न्यायालयों की भूमिका 

जोशीमठ में बढ़ रही दरारों के सन्दर्भ में स्थानीय संस्थाओं और लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय सम्बंधित घटना से जुड़े मामले की पहले से सुनवाई कर रहा है और याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय में जाना चाहिए। 

“सैद्धांतिक रूप से, हमें उच्च न्यायालय को इससे निपटने की अनुमति देनी चाहिए। उच्च न्यायालय में कई तरह के मुद्दे हैं, हम आपको उच्च न्यायालय जाने की स्वतंत्रता देंगे,” उच्चतम न्यायालय ने कहा।

साल 2021 की चमोली बाढ़ के दौरान बचाव कार्य में लगी एजेन्सिया। तस्वीर: इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस
साल 2021 की चमोली बाढ़ के दौरान बचाव कार्य में लगी एजेन्सिया। तस्वीर: इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस

साल 2021 में चमोली में आयी बाढ़, जिसमें करीब 200 लोगों की जान गयी और तपोवन बिजली परियोजना को बहुत नुक्सान हुआ, के बाद चमोली में रहने वाले पांच लोगों ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में तपोवन-विष्णुगाड़ और ऋषि गंगा परियोजनाओं को दी गयी पर्यावरण मंजूरी रद्द करने और स्थानीय लोगों को मुआवजा देने की याचिका दायर की। 


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न्यायालय ने इस जनहित याचिका को न सिर्फ ख़ारिज कर दिया बल्कि पाँचों याचिकाकर्ताओं पर दस-दस हज़ार रूपए का जुर्माना भी लगाया। “यह याचिका अत्यधिक प्रेरित याचिका प्रतीत होती है जो किसी अज्ञात व्यक्ति या संस्था के इशारे पर दायर की गई है। अज्ञात व्यक्ति या संस्था केवल याचिकाकर्ताओं को एक मोर्चे के रूप में इस्तेमाल कर रही है। इसलिए, याचिकाकर्ता एक अज्ञात कठपुतली कलाकार के हाथों की कठपुतली मात्र हैं,” न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए कहा। 

न्यायालयों में जोशीमठ के सन्दर्भ में चल रहे मामलों और उन पर अदालतों के रुख पर पाँचों याचिकाकर्ताओं में से एक अतुल सती कहते हैं, “पहली बात तो कोर्ट अपनी ही बनाई हुई कमिटियों की सिफारिशों को नहीं मान रही है। और फिर अगर कोई उनके संज्ञान में ये बात ला भी रहा है तभी वो इस पर कोई कदम नहीं उठाते।” 

“एक तरफ नैनीताल हाईकोर्ट ने नदी को इंसानी दर्जा देने की बात की है, कि जैसे मानव अधिकार हैं वैसे ही नदी के भी अधिकार हैं। और दूसरी तरफ ये हाल है कि जब कोई नदी और उसके अधिकारों की बात को लेकर आ रहा है तो उसकी सुनवाई नहीं होती और उल्टा जो इस बात को उठा रहा है उस पर आप जुर्माना लगा दे रहे हैं,” सती कहते हैं। 

जोशीमठ के लोग अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे
जोशीमठ के लोग अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण कहते हैं कि इस मामले में अदालतों को पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता और यह नहीं कहा जा सकता कि अदालतें कुछ नहीं कर रही हैं। साल 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद उच्चतम न्यायालय ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया था और कमिटी बनाई थी, वह बताते हैं। 

इसके साथ ही वह यह भी कहते हैं कि 2021 के चमोली मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय का रुख सही नहीं था। 

“सरकार और पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह किया है जो बहुत स्पष्ट है। अब, अदालतों ने भी इस मामले में न केवल अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा बल्कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पूरी तरह निराधार आरोप लगाए। याचिका को ‘प्रेरित’ कहना बिल्कुल बेतुका था,” प्रशांत भूषण ने बताया।

 

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बैनर तस्वीरः जोशीमठ में दरारों की वजह से आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। शहर में अब तक 849 मकानों में दरारें देखी गईं। शहर के 838 लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया गया है। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

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