- अपनी नई इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) नीति के मुताबिक, चंडीगढ़ अगले दो सालों में डीजल-पेट्रोल से चलने वाली 100 प्रतिशत बाइक और 50 प्रतिशत कारों का पंजीकरण खत्म करने जा रहा है ताकि इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा दिया जा सके।
- गाड़ियों के स्थानीय विक्रेता और सिविल सोसायटी के लोग इस नीति को अन्याय बता रहे हैं। उनका कहना है कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों का बाजार अभी शुरुआती दौर में ही है। अभी इसे अफोर्डबिलिटी, एक्सेसिबिलिटी और अडाप्टबिलिटी के टेस्ट पास करने हैं।
- एक्सपर्ट चाहते हैं कि सरकार कम दाम में इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने और चार्जिंग स्टेशन बनाने पर ज्यादा ध्यान दे न कि रजिस्ट्रेशन पर बैन लगाकर लोगों को इलेक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने के लिए दबाव डाले।
केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ ने 20 सितंबर 2022 को अपनी इलेक्ट्रिक वाहन नीति रिलीज़ की थी। इस नीति के ज़रिए चंडीगढ़ डीजल-पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों को कम करके इलेक्ट्रिक गाड़ियां बढ़ाना चाहता है। इसके लिए वह डीजल-पेट्रोल गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन पर प्रतिबंध लगाना चाहता है। इस नीति का समय अधिसूचना जारी होने से लेकर अगले पांच साल तक का है। नीति के हिसाब से यह लक्ष्य रखा गया है कि चंडीगढ़ में इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा दिया जाए और इन पांच सालों में रजिस्टर होने वाली कुल गाड़ियों में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत तक पहुंच जाए। चंडीगढ़ प्रशासक के सलाहकार धर्म पाल कहते हैं कि इस तरह के लक्ष्य वाली यह देश की पहली नीति है।
चंडीगढ़, देश के उन 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल है जिन्होंने इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री बढ़ाने के लिए अलग से नीति पेश की है। इससे पहले, केंद्र सकार ने साल 2015 में अपने फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिक एंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल इन इंडिया (FAME India) योजना का पहला चरण लॉन्च किया था।
इस नीति के मुताबिक, अब चंडीगढ़ में डीजल-पेट्रोल से चलने वाली तीन पहिया ऑटो और अन्य गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। यह फैसला तत्काल प्रभाव से लागू भी कर दिया गया है।
दो पहिया वाहनों के बारे में चंडीगढ़ का लक्ष्य है कि अगले दो सालों में जिन दोपहिया वाहनों का रजिस्ट्रेशन होगा उनमें 100 प्रतिशत इलेक्ट्रिक होंगे। साल 2022-23 में 35 प्रतिशत इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों का लक्ष्य रखा गया है। 2023-24 में इसे बढ़ाकर 70 प्रतिशत किया जाएगा और 2024-25 में इलेक्ट्रिक दो पहिया वाहनों की रजिस्ट्रेशन 100 प्रतिशत पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।
चार पहिया वाहनों की केटेगरी में इस नीति के हिसाब से लक्ष्य रखा गया है कि 2026-27 तक निजी कारों में से 50 प्रतिशत कार इलेक्ट्रिक होंगी। यानी नई खरीदी जाने वाली गाड़ियों में 50 प्रतिशत गाड़ियां इलेक्ट्रिक होंगी। शुरुआत 10 प्रतिशत EV से होगी और हर साल इसमें 10 प्रतिशत का इजाफा किया जाएगा। इस नीति में यह लक्ष्य भी रखा गया है कि नीति खत्म होने की अवधि यानी 2026-27 तक बसों और सामान ढोने वाली गाड़ियों को पूरी तरह से इलेक्ट्रिक में बदल दिया जाएगा।
कुल मिलाकर निजी गाड़ियों के बारे में इस नीति में तय किया गया है कि दो साल बाद डीजल-पेट्रोल से चलने वाले एक भी दोपहिया वाहन का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। इसके अलावा, अगले पांच सालों में साल दर साल करते हुए डीजल-पेट्रोल कारों की संख्या भी आधी कर दी जाएगी। इसके लिए, रजिस्ट्रेशन पर रोक लगाई जाएगी और उनकी जगह पर इलेक्ट्रिक कारों का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा। साल 2021-22 के आंकड़ों को देखें तो चंडीगढ़ में कुल 17,000 दोपहिया वाहन और 26,274 कारों की बिक्री हुई थी। चंडीगढ़ ने अपनी नीति के लिए गाड़ियों की गिनती करने के लिहाज से इसी साल को बेस इयर माना है।
इन बदलावों के जरिए कोशिश की जा रही है कि जीरो प्रदूषण वाली गाड़ियों की संख्या बढ़ाकर चंडीगढ़ को मॉडल EV सिटी बनाया जाए।
लक्ष्य बड़ा लेकिन EV की संख्या कम
दुनिया भर में ट्रांसपोर्ट और मोबिलिटी सेक्टर से होने वाला उत्सर्जन चिंता का विषय है। साल 2018 तक, कुल कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन का पांचवां हिस्सा सिर्फ़ ट्रांसपोर्ट सेक्टर से हो रहा था। इसमें से 75 प्रतिशत उत्सर्जन सड़क पर चलने वाली गाड़ियों से था। नॉन-EV गाड़ियों को सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक माना जाता है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों को इस समस्या का सबसे बड़ा हल माना जा रहा है।
चंडीगढ़ की EV नीति में कई प्रकार के उपाय हैं। उदाहरण के लिए, बैटरियों पर इंसेंटिव देना। साथ ही, यह भी कहा गया कि नीति की अवधि खत्म होने के साल तक 100 चार्जिंग स्टेशन बनाए जाएंगे। ये चार्जिंग स्टेशन इस तरह से बनाए जाएंगे कि हर पार्किंग में कम से कम एक चार्जिंग स्टेशन जरूर होगा।
इस नीति को लेकर जो सबसे बड़ा विवाद है वह यह है कि चंडीगढ़ इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या बढ़ाने की जल्दी में इंटरनल कंबशन (IC) वाली गाड़ियों यानी डीजल, पेट्रोल और सीएनजी से चलने वाली गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन को ही कम करना चाहता है। वहीं, अभी की बात करें तो डीजल-पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों की तुलना में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या बहुत कम है।
केंद्र सरकार के वाहन डैशबोर्ड पर उपलब्ध ट्रांसपोर्ट डेटा के मुताबिक, देश भर में 22 नवंबर 2022 तक कुल 8 लाख इलेक्ट्रिक गाड़ियां थीं। इसमें से चंडीगढ़ में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या सिर्फ़ 4048 थी। इसमें से, 2396 (59%) तो ई-रिक्शा और ई-ऑटो ही हैं और बाकी की ई-बाइक और ई-कार थीं।
यानी चंडीगढ़ में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की हिस्सेदारी सिर्फ़ 0.45 प्रतिशत है। यानी इतनी संख्या के आधार पर इसे डीजल-पेट्रोल वाली गाड़ियों का विकल्प नहीं माना जा सकता है जैसी कोशिश चंडीगढ़ अपनी EV नीति के जरिए करने की कोशिश कर रही है।
क्या यह नीति काम करेगी?
चंडीगढ़ की EV नीति के लिए 2021-22 को बेस इयर माना गया है। जुलाई 2022 में एक पत्रकार की ओर से दाखिल की गई RTI के जवाब के मुताबिक, चंडीगढ़ में साल 2021-22 में कुल 26,274 कारों का रजिस्ट्रेशन हुआ।
अगर हम मौजूदा समय में रजिस्टर हुई कारों की संख्या को बेस मानें तो EV नीति के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हर साल 10 प्रतिशत EV का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। यानी इस हिसाब से चंड़ीगढ़ को पहले साल में 2,600 ई-कार, दूसरे साल में 5,200 ई-कार, तीसरे साल में 7,800 ई कार, चौथे साल में 10,400 ई-कार और पांचवें साल में कुल 13,000 ई-कारों का रजिस्ट्रेशन करवाना होगा।
इसी तरह, चंडीगढ़ में 2021-22 में 17 हजार दोपहिया वाहनों का रजिस्ट्रेशन हुआ। इन आंकड़ों के मुताबिक, 2014-25 तक सभी 17,000 इलेक्ट्रॉनिक दो पहिया वाहन होने चाहिए।
इन आंकड़ों की तुलना में मौजूदा EV की संख्या बेहद मामूली है। वाहन डैशबोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में चंडीगढ़ में कुल 370 EV का रजिस्ट्रेशन हुआ। 2021 में 734 और 2022 में नवंबर महीने तक कुल 2278 इलेक्ट्रिक गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन करवाया करवाया गया।
मोंगाबे इंडिया से बातचीत में चंडीगढ़ ऑटोमोबाइल डीलर्स फेडरेशन के अध्यक्ष रंजीव दहूजा ने बताया, “ये लक्ष्य अतार्किक हैं और जब चंडीगढ़ और बाकी जगहों पर अभी EV गाड़ियों की शुरुआत ही हो रही है तो ऐसे लक्ष्य बना लेना समझ से परे है।”
वह आगे कहते हैं, “हमें चडीगढ़ की EV नीति से सिर्फ़ यही एक समस्या है कि इसमें इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या बढ़ाने के लिए IC गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन कम करने की बात कही जा रही है।”
उनका कहना है कि और किसी भी दूसरे राज्य ने यह मॉडल नहीं अपनाया है क्योंकि यह अभी प्रैक्टिकल नहीं है। रंजीव दहूजा कहते हैं, “EV का मार्केट बढ़ रहा है लेकिन इतना तेज नहीं कि यह अगले पांच सालों में डीजल-पेट्रोल की गाड़ियों की जगह पूरी तरह से ले लेगा।”
यह फेडरेशन चंडीगढ़ के सभी ऑटो डीलर्स का प्रतिनिधित्व करता है। इस संगठन ने चंडीगढ़ के प्रशासक को एक ज्ञापन सौंपा है और मांग की है कि इस नीति के उस हिस्से को वापस लिया जाए जो कि रजिस्ट्रेशन की संख्या कम करने की बात कहता है।
रंजीव दहूजा कहते हैं कि मौजूदा समय में सभी सेगमेंट की इलेक्ट्रिक गाड़ियों का उत्पादन काफी कम है। गाड़ियों के मॉडल भी काफी सीमित हैं। जो मॉडल मौजूद हैं उनकी डिलीवरी के लिए भी तीन-चार महीने का वेटिंग पीरियड मिल रहा है।
चंडीगढ़ में टाटा कारों के डीलर संजय दहूजा कहते हैं कि टाटा देश की पहली ऐसी EV कार ला रहा है जिसकी कीमत 10 लाख से कम होगी। उनका कहना है, “हमारा मानना है कि इससे इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मांग बढ़ेगी। हालांकि, इसके साथ ही गाड़ियों की डिलीवरी का वेटिंग पीरियड भी बढ़ जाएगा क्योंकि मौजूदा समय में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का उत्पादन उस स्तर का नहीं है जिस स्तर पर डीजल-पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियां बनाई जाती हैं।”
चंडीगढ़ के आम निवासियों के संगठन सेकेंड इनिंग असोसिएशन के अध्यक्ष आर के गर्ग ने मोंगाबे इंडिया से बातचीत में कहा, “चंडीगढ़ की EV नीति गाड़ियां खरीदने वाले लोगों इलेक्ट्रिक बाइक या इलेक्ट्रिक कार खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है।”
वह कहते हैं कि जब इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बात आती तो अभी भी लोगों के मन में इसकी सुरक्षा, हाइवे पर इसकी परफॉर्में और शहर में पर्याप्त चार्जिंग स्टेशन की संख्या को लेकर कई तरह के संदेह हैं।
गर्ग आगे कहते हैं, “EV की कीमत भी एक बहुत बड़ा फैक्टर है। सभी इलेक्ट्रिक गाड़ियां उसी मॉडल के डीजल-पेट्रोल वैरिएंट से काफी महंगी हैं। अगर ये गाड़ियां सस्ती और इस्तेमाल में आसान होंगी तो लोग अपने आप उन्हें खरीदेंगे और इसके लिए किसी नीति की भी जरूरत नहीं होगी।” उनकी मांग है कि प्रशासन अपने इस फैसले को वापस ले।
EV की बढ़ोतरी वाले राज्यों कहीं नहीं ठहरता चंडीगढ़
मंत्रालय के वाहन डैशबोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में अभी तक कुल 17 लाख इलेक्ट्रिक गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। इसमें से 4 लाख इलेक्ट्रिक गाड़ियां सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में हैं। यह संख्या यूपी में मौजूद कुल गाड़ियों की संख्या का सिर्फ़ 1 प्रतिशत है। दिल्ली में 1 लाख 80 हजार इलेक्ट्रिक गाड़ियां जो कि कुल गाड़ियों का 1.31 प्रतिशत है। वहीं, चंडीगढ़ में मौजूद कुल गाड़ियों में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की हिस्सेदारी सिर्फ़ 0.49 प्रतिशत है।
चंडीगढ़ के पर्यावरण विभाग के निदेश देबेंद्र दलाई से मोंगोबे इंडिया ने पूछा कि क्या डीजल-पेट्रोल गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाकर EV को बढ़ावा देना ठीक है जबकि EV की मांग उतनी ज्यादा नहीं है? इस बारे में देबेंद्र दलाई ने कहा, “हमें कैसे भी करके पर्यावरण संरक्षण के लिए एक लकीर खींचनी है।”
उन्होंने यह भी कहा कि लोगों ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन खरीदने शुरू कर दिए हैं। चार पहिया गाड़ियों को लेकर कुछ समस्या है लेकिन नए सस्ते मॉडल आने के साथ ही EV कारों का मार्केट बढ़ रहा है। देबेंद्र दलाई आगे कहते हैं, “इस नीति में तय किए गए लक्ष्य बिल्कुल हासिल किए जा सकते हैं। इसके बावजूद जैसे-जैसे समस्याएं आती रहेंगी हम उनका हल निकालते रहेंगे।”
हालांकि, इस मामले में विशेषज्ञों की अलग राय है। दिल्ली के काउंसिल ऑफ एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) के सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस के निदेशक गगन सिद्धू ने मोंगाबे इंडिया से कहा, “हमने देखा है कि जिन राज्यों में डीजल-पेट्रोल गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन पर इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है वहां EV की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।”
उन्होंने आगे कहा कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों की खरीद और बिक्री में कई चीजें अहम हैं. जैसे कि गाड़ी की कीमत, मॉडल में वेराइटी, गाड़ियों के लिए फाइनैंस, चलाने में आसानी और मॉडल का लुक काफी जरूरी होता है।
उनके मुताबिक, EV का मार्केट काफी अच्छा हो सकता है और पिछले कुछ सालों में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन की संख्या में अच्छा-खासा इजाफा भी हुआ है। वाहन डैशबोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में साल 2020-21 में कुल 1.3 लाख इलेक्ट्रिक गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हुआ। 2021-22 में इसमें 4 लाख गाड़ियों की बढ़ोतरी हुई। वित्त वर्ष 2021-22 के शुरुआती 9 महीनों में ही लगभग 5 लाख इलेक्ट्रिक गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हो चुका था।
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हालांकि, अभी भी कुल गाड़ियों की संख्या के मुकाबले इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या काफी कम है। उनका कहना है कि हमें सस्ते EV मॉडल बनाने की जरूरत है। सभी सेगमेंट में सस्ती गाड़ियां आने से मार्केट तेजी से बढ़ेगा। इसके अलावा, देश के हर हिस्से और हर कोने में सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन बनाने की जरूरत है।
गगन सिद्धू ने आगे कहा कि देश में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कुल संख्या में सबसे बड़ा हिस्सा यानी लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा ई-रिक्शा और इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों का है। समस्या सबसे बड़ी यह है कि कुल इलेक्ट्रिक गाड़ियों की संख्या में चार पहिया इलेक्ट्रिक गाड़ियों की हिस्सेदारी सिर्फ़ 3-4 प्रतिशत है।
केंद्रीय परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, FAME इंडिया योजना के पहले चरण में 1 जुलाई 2022 को देश भर में चार्जिंग स्टेशनों की संख्या 479 थी। इसमें से 94 चार्जिंग स्टेशन सिर्फ़ दिल्ली में थे। चंडीगढ़ में कुल 40 चार्जिंग स्टेशन बनाए गए हैं लेकिन इसमें से ज्यादातर अभी चालू नहीं हुए हैं।
दलाई ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि इन चार्जिंग स्टेशनों को चालू करने के लिए टेंडर की प्रकिया जारी है। जल्द ही ये काम करना शुरू कर देंगे।
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बैनर तस्वीर: इलेक्ट्रिक ऑटो रिक्शा की एक प्रतीकात्मक तस्वीर। दिल्ली के विनोद नगर मेट्रो स्टेशन के पास ऐसे बहुत से इलेक्ट्रिक रिक्शा देखने को मिल सकते हैं। तस्वीर-मनीष कुमार