- नेपाल के जंगलों में आमतौर पर ऑर्किड की 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से एक दुर्लभ पीला बैंगनी फूल भी है, जिसे देखने के लिए अप्रैल के महीने में लोग हजारों की संख्या में आते हैं।
- ऑर्किड दुनिया में सबसे विविध और करिश्माई पौधों के समूहों में से हैं, जिनका इस्तेमाल आयुर्वेदिक और चीनी दवाओं में किया जाता है। बड़े पैमाने पर अवैध और अस्थिर व्यापार के चलते आर्किड के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
- काठमांडू में स्थित एनजीओ ग्रीनहुड नेपाल के पास एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसमें नेपाल से होने वाले ऑर्किड के अवैध और अस्थिर व्यापार को रोकने के प्रयासों में सरकारी एजेंसियों के लिए महत्वपूर्ण कदमों की रूपरेखा तैयार की गई है।
काठमांडू – नेपाली नव वर्ष के पहले दिन (अप्रैल के दूसरे सप्ताह के आसपास) एक खास फूल की झलक पाने के लिए भारत और नेपाल से हजारों लोग पूर्वी नेपाल के सिराहा बाग की तरफ खिंचे चले आते हैं।
बगीचे में लगे पेड़ों पर खिले हल्के बैंगनी रंग के ये फूल नीचे की तरफ एक माला की तरह लटके नजर आएंगे, जिन्हें स्थानीय भाषा में सलहेश फूलबाड़ी के नाम से जाना जाता है। लोक कथाओं के अनुसार, पुराने समय में एक स्थानीय महान नायक सलहेश की प्रेमिका को जीते जी कभी उनका प्यार नहीं मिल पाया था। इसलिए साल में एक बार वह सलहेश से मिलने के लिए इस बगीचे में सुंदर फूल बनकर आती है। वनस्पति विज्ञानियों ने फूल की पहचान एक आर्किड प्रजाति (डेंड्रोबियम एफिलम) के रूप में की है जो नेपाल से दक्षिणी चीन और प्रायद्वीपीय मलेशिया में पाई जाती है।
भले ही सिराहा में ऑर्किड प्रजातियां हर साल अप्रैल के महीने में नेपाल और भारत के कुछ हिस्सों में सुर्खियां बटोरती हों, लेकिन रंग-बिरंगे और सुगंध बिखेरते इस विविध फूलों वाले पौधों के परिवार (ऑर्किड्स) की अन्य प्रजातियों की अक्सर उपेक्षा की जाती है। नेपाल से इन फूलों का व्यापार करना गैर-कानूनी है, मगर व्यापारियों को इसकी परवाह नहीं है। वो सरकार को चकमा देते हुए धड़ल्ले से आर्किड के अवैध व्यापार में लगे हुए हैं।
ग्लोबल ट्रेड प्रोग्राम, इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ऑर्किड स्पेशलिस्ट ग्रुप के सह-अध्यक्ष जैकब फेल्प्स कहते हैं, “ऑर्किड पृथ्वी पर सभी पौधों के समूहों में सबसे रोमांचक, विविध, अद्वितीय और करिश्माई हैं।” उन्होंने आगे कहा, “वे पौधों की दुनिया के बाघ हैं। लेकिन हैरानी की बात ये हैं कि हम उनके बारे में बहुत ही कम जानते हैं।”
वैज्ञानिक अनुमान बताते हैं कि दुनिया भर में ऑर्किड की लगभग 30,000 प्रजातियां हैं, जिनमें से लगभग 500 नेपाल के जंगलों और खेतों में पाई जाती हैं। अधिकांश आर्किड पौधों को उगने के लिए मिट्टी की नहीं बल्कि पेड़ों की टहनियों की जरूरत होती है। इसलिए ये पेड़ों पर लटकती माला की तरह नजर आते हैं।
फेल्प्स ने कहा, “हम नेपाल और अन्य जगहों से मिली जानकारी के आधार पर कह सकते हैं कि ऑर्किड प्रजातियों की संख्या खतरनाक दर से घट रही है।”
काठमांडू स्थित एनजीओ ग्रीनहुड नेपाल देश में औषधीय ऑर्किड के अवैध व्यापार और सतत उपयोग पर केंद्रित एक परियोजना का नेतृत्व कर रहा है। उसके द्वारा तैयार की गई एक पॉलिसी ब्रीफ (नीति संक्षेप) के मुताबिक, चूंकि ऑर्किड का इस्तेमाल आयुर्वेद के साथ-साथ पारंपरिक चीनी चिकित्सा में किया जाता है, इसलिए इन पौधों की निरंतर कटाई की जाती रही है और देश -विदेश में इनका व्यापार किया जाता है। इनकी संख्या में गिरावट के लिए ये दोनों कारण जिम्मेदार हैं।
नेपाल में पाई जाने वाली आर्किड प्रजातियों में से एक पैफियोपिडिलम (Paphiopedilum venustum) को IUCN ने “लुप्तप्राय” के रूप में सूचीबद्ध किया हुआ है। इसके साथ ही इन्हें वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों (CITES) के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन के परिशिष्ट-1 के तहत भी सूचीबद्ध किया गया है। सिर्फ असाधारण परिस्थितियों में इनके व्यापार की अनुमति दी जा सकती है। इसके अलावा लगभग अन्य सभी प्रजातियां परिशिष्ट 2 के तहत सूचीबद्ध हैं। इसका अर्थ है कि उनके व्यापार को नियंत्रित किया जाना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपयोग उनके अस्तित्व के अनुकूल है। लेकिन नेपाल ने सीआईटीईएस प्रावधानों के बावजूद अभी तक अपनी राष्ट्रीय प्रजाति प्रबंधन योजना तैयार नहीं की है।
वनस्पति विज्ञानी कमल माडेन कहते हैं, “आर्किड व्यापार के साथ समस्या की जड़ में यह है कि सिर्फ व्यापारी ही इन पौधों का सही मूल्य जानते हैं। न तो सरकारी अधिकारी, न स्थानीय लोग और यहां तक कि वनस्पतिविद भी इस मामले में अनाड़ी हैं।” वह आगे कहते हैं, “पड़ोसी देश चीन की पारंपरिक दवा बाजार की जानकारी रखने वाले व्यापारियों को पता है कि आर्किड की हर प्रजाति के एक तने, जड़, फूल या बल्ब की कितनी कीमत है और वो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इन्हें बेचकर कितना पैसा कमा सकते हैं।“
उन्होंने कहा, उनमें से ज्यादातर स्थायी संग्रह की परवाह नहीं करते हैं, जब तक वे इससे पैसा कमा सकते हैं, कमा रहे हैं। व्यापारी अक्सर जंगलों से ऑर्किड इकट्ठा करने के लिए आस-पास के गांवों के लोगों को काम पर लगाते हैं। इसके बदले में वो उन्हें बाजार मूल्य का एक हिस्सा बतौर मेहनताना देते हैं। मादेन कहते हैं, ग्रामीणों को मिलने वाला पैसा कई बार उनकी एक साल की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि ऑर्किड इकट्ठा करने वाले ये लोग “विनाशकारी तरीकों” का इस्तेमाल करते हैं। फूलों के कंदों को पाने की मशक्कत में वह पूरे पौधे तक को खोद डालते हैं।
मैडेन ने कहा, “यह काफी चिंताजनक है क्योंकि ऑर्किड के प्रजनन के लिए एक विशेष तंत्र है। इन्हें अन्य पौधों की तरह इसके बीजों से नहीं उगाया जा सकता। वैसे, ऑर्किड की फली में हजारों बीज होते हैं, लेकिन वे अपने आप अंकुरित नहीं हो सकते क्योंकि उनके अंदर अंकुरण अवधि के दौरान जरूरी भोजन नहीं होता है। अंकुरण के दौरान बीजों को भोजन प्रदान करने के लिए विशेष कवक प्रजातियों की आवश्यकता होती है, इसलिए वे आसानी से फैलते नहीं हैं।
अवैध व्यापार और औषधीय ऑर्किड के निरंतर इस्तेमाल को लेकर चलाए जा रहे प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाले रेशु बश्याल बताते हैं, व्यापारी आर्किड के अलग-अलग हिस्सों जैसे पाउडर, सूखे पंखुड़ियां और यहां तक कि कंदों तक का भी निर्यात करते हैं। लेकिन वे सीमा शुल्क अधिकारियों को अपने कार्गो की सामग्री का पूरी तरह से खुलासा नहीं करते हैं। अंधेरे में रखकर इन फूलों का अवैध व्यापार किया जाता है।
और पढ़ेंः यह है नेपाल का पहला पक्षी अभयारण्य, भारतीय पर्यटकों के लिए नया आकर्षण
नेपाल की सरकार और चीनी सरकार से प्राप्त आर्किड व्यापार के आंकड़ों में विसंगतियों से भी इसकी पुष्टि होती है। प्रोजेक्ट बताता है कि चीनी सरकार के सूत्रों के मुताबिक 2008 और 2016 के बीच नेपाल से 36,187 किलोग्राम (79,779 पाउंड) ऑर्किड का आयात किया गया था।
बश्याल कहते हैं, “हमारे पास कई सबूत हैं जिनसे पता चलता है कि ऑर्किड का अन्य नामों के तहत व्यापार किया जाता रहा है। दूसरे पौधों के नाम से इन्हें बेचने में किसी तरह की कोई कानूनी दिक्कत नहीं आती है।” उदाहरण के लिए ऑर्किड प्लियोन प्रेकोक्स को “पानी आमला” बताते हुए जंगलो से तोड़ा जाता और इसी नाम से इनका व्यापार भी किया जाता है। “पानी आमला” एक सामान्य फर्न प्रजाति है जिसे हिमालयी आंवले के रूप में जाना जाता है। इसे तोड़ने या व्यापार करने पर किसी भी तरह की कोई रोक-टोक नहीं है।
अवैध व्यापार में इस्तेमाल होने वाली इन सभी चालों के बावजूद कई बार अधिकारी आर्किड के हिस्सों को जब्त कर लेते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, जब्त की गई मात्रा कई बार हैरान कर देने वाली होती है। उदाहरण के लिए, अधिकारियों ने पश्चिमी नेपाल में गोरखा से लगभग 75 किलोग्राम (165 पौंड) सूखे डैक्टाइलोरिजा हटगिरिया को जब्त किया था। इसका अनुमानित बाजार मूल्य 166,280 डॉलर (एनपीआर 22.07 मिलियन) था।
बश्याल का कहना है कि नेपाल में ऑर्किड के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय कदम उठाने के लिए यह सही समय है। बश्याल और उनकी टीम के सदस्य ने इस परियोजना पर तीन साल तक काम किया है। उन्होंने ऐसे छह प्रमुख कदमों की पहचान की है, जिस पर चलते हुए सरकार अवैध व्यापार को रोकने का काम कर सकती है।
अपनी इन सिफारिशों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के विभिन्न स्तरों के अधिकारियों को ऑर्किड फसल और व्यापार पर नेपाल के कानूनों के बारे में पता होना चाहिए। इसके साथ-साथ उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि देश में कुछ पौधे भी संरक्षित वन्य जीव की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा उन प्रमुख प्रजातियों की पहचान करें जिन्हें तुरंत संरक्षित करने की आवश्यकता है। बरामदगी की रिपोर्ट करें और व्यापारियों द्वारा जानबूझकर गलत पहचान एवं दस्तावेजों पर नजर रखें। और सबसे बड़ी बात प्रबंधन योजनाओं को तैयार करने और लागू करने में मदद करने के लिए ऑर्किड वैज्ञानिकों को इसमें शामिल करें।
वन विभाग के महानिदेशक देवेश मणि त्रिपाठी कहते हैं कि अवैध व्यापार और सतत उपयोग परियोजना के निष्कर्ष उनके विभाग के लिए आंखें खोलने वाले रहे हैं। उन्होंने कहा, “हालांकि हम तुरंत निर्धारित नीतियों को लागू करने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन निश्चित रूप से सिफारिशों पर ध्यान दिया जाएगा।”
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
बैनर तस्वीरः ऑर्किड प्लयोन प्रेकॉक्स का व्यापार एक सामान्य फर्न प्रजाति के नाम से किया जाता है। तस्वीर- कुमार पौडल