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साझा जलमार्गों के बेहतर प्रबंधन से होगा भारत और बांग्लादेश को आर्थिक फायदा

शुष्क मौसम के दौरान उथली हो जाने वाली बांग्लादेश के जाफलोंग में स्थित गोयैन नदी गाद व तलछट को नीचे की ओर बहा ले जाती है। फोटो- डेविड स्टेनली वाया फ़्लिकर 

शुष्क मौसम के दौरान उथली हो जाने वाली बांग्लादेश के जाफलोंग में स्थित गोयैन नदी गाद व तलछट को नीचे की ओर बहा ले जाती है। फोटो- डेविड स्टेनली वाया फ़्लिकर 

  • भारत और बांग्लादेश ने माल ढ़ुलाई के लिए जलमार्गों के इस्तेमाल को लेकर 1972 में एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें 11 विभिन्न मार्गों की पहचान की गई थी। मौजूदा समय में इनमें से सिर्फ तीन मार्ग नियमित तौर पर इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
  • क्योंकि, ज्यादातर मार्ग गाद से भरे हैं और बड़े जहाजों की नौगम्यता बनाए रखने के लिए यहां पर्याप्त गहराई नहीं है।
  • विश्व बैंक के 2016 के एक अध्ययन से पता चला है कि जलमार्गों के जरिए माल ढुलाई की लागत रेलवे और सड़कों के बेहतर ट्रांसपोर्ट की तुलना में सस्ती बैठती है।

भारत और बांग्लादेश के बीच के नदी मार्ग दोनों देशों के लिए आर्थिक और भौगोलिक स्तर पर काफी मायने रखते हैं। हालांकि पर्यावरण प्रबंधन से जुड़े मसलों ने इनमें से अधिकांश मार्गों को बेकार कर दिया है।

भारत और बांग्लादेश ने 1972 में माल वाहन के लिए जलमार्गों का इस्तेमाल करने के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि संधि में जिन 11 मार्गों के इस्तेमाल की बात कही गई थी, मौजूदा समय में इनमें से सिर्फ तीन मार्गों पर ही नियमित तौर पर माल ढुलाई की जा रही है।  बाकी के ज्यादातर मार्ग गाद से भरे हैं और बड़े जहाजों की नौगम्यता बनाए रखने के लिए यहां पर्याप्त गहराई नहीं है। इनमें से कुछ मार्ग तो कभी-कभार इस्तेमाल में आ जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जहां साल में एक बार भी कोई गतिविधि नहीं हुई है।

अगर इन सभी जलमार्गों का नियमित रूप से इस्तेमाल किया जाए तो बांग्लादेश को इससे काफी आर्थिक लाभ मिल सकता है।

संभावित रूप से इन मार्गों पर भारतीय जहाजों को उनकी यात्रा के दौरान कई तरह की सेवाएं दी जा सकती है। इससे न सिर्फ सेवा उद्योग में उछाल आएगा बल्कि रसद व्यवसायों का विस्तार भी तेजी से होगा। वैसे भी बांग्लादेश लंबे समय से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। उसके इन प्रयासों को 1972 के प्रोटोकॉल से काफी सुविधा मिल सकती है।

अगर भारत की बात करें तो उसके लिए भी जलमार्गों का भू-रणनीतिक महत्व काफी ज्यादा है।

भौगोलिक रूप से बांग्लादेश की वजह से भारत की मुख्य भूमि अपने पूर्वोत्तर राज्यों से अलग-थलग बनी हुई है। पूर्वोत्तर राज्य एक छोटी सी पगडंडी यानी सिलीगुड़ी गलियारे के जरिए भारत के साथ जुड़े हुए हैं। दरअसल प्रोटोकॉल में भारत की मुख्य दिलचस्पी, जलमार्गों का इस्तेमाल करके अपने पूर्वोत्तर को मुख्य भीतरी इलाकों से कुशलतापूर्वक जोड़ने में है।

लेकिन खराब नौगम्यता इस रास्ते में एक बड़ी अड़चन है।

बांग्लादेश अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण (BIWTA) के अनुसार, मानसून के दौरान बांग्लादेश के सिर्फ 5,995 किमी (3,725 मील) जलमार्गों पर यांत्रिक पोत अपना रास्ता बना पाते हैं। शुष्क मौसम में तो उनका यह सफर घटकर सिर्फ 3,865 किमी (2,400 मील) तक रह जाता है। यह  देश के सभी जलमार्गों के 24,000 किमी (2,400 मील) का सिर्फ एक हिस्सा है। BIWTA ने देश की नदी प्रणाली में 2,300 किमी (1,429 मील) जलमार्ग जोड़ने के लिए हाल के कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर साफ-सफाई और खुदाई के कार्य को अंजाम दिया है।

जलमार्ग दोनों देशों के लिए परिवहन का सबसे किफायती साधन भी है।

साल 2016 के विश्व बैंक के एक अध्ययन से पता चला है कि जलमार्ग के जरिए एक टन सामान ले जाने पर एक किलोमीटर की लागत बांग्लादेशी टका (BDT) में 0.99 (INR 0.79) पड़ती है, जबकि रेलवे से माल ढुलाई का खर्च BDT 2.74 (INR 2.19) बैठता है। और सड़क मार्ग से यह लागत 4.50 बांग्लादेश टका (INR 3.60) होती है।

प्रोटोकॉल में पहचाने गए मार्ग

  • घोड़ाशाल, बांग्लादेश से बंदेल, पश्चिम बंगाल
  • मोंगला, बांग्लादेश से हल्दिया, पश्चिम बंगाल
  • मोंगला, बांग्लादेश, वाया नारायणगंज से करीमगंज, असम
  • सिराजगंज, बांग्लादेश से पांडु, असम तक
  • आशुगंज, बांग्लादेश से सिलघाट, असम तक
  • चिलमारी, बांग्लादेश से धुबरी, असम
  • राजशाही, बांग्लादेश से धुलियन, पश्चिम बंगाल
  • सुल्तानगंज, बांग्लादेश से मैया, पश्चिम बंगाल
  • चिलमारी, बांग्लादेश से कोलाघाट, असम
  • दाउदकंडी, बांग्लादेश से सोनमुरा, पश्चिम बंगाल
  • बहादुराबाद, बांग्लादेश से जोगीघोपा, असम तक

साझा जलमार्गों के बेहतर प्रबंधन से होगा भारत और बांग्लादेश को आर्थिक फायदा

खराब नौगम्यता

प्रोटोकॉल में पहचाने गए अधिकांश मार्गों में बड़ी मात्रा में तलछट होती है। यह ऊपर से नीचे की ओर बहकर आने वाली गाद है जो मालवाहक जहाजों की नौगम्यता को कम करती है। इसके अलावा, इनमें से कुछ मार्ग बड़े जहाजों को चलाने के लिए उपयुक्त भी नहीं हैं।

पर्यावरण और भौगोलिक सूचना सेवा केंद्र (सीईजीआईएस) में नदी, डेल्टा और तटीय आकृति विज्ञान के वरिष्ठ सलाहकार ममिनुल हक सरकार ने कहा, “स्वाभाविक रूप से ऑपरेटर छोटे जहाजों को चलाने में दिलचस्पी नहीं रखते हैं क्योंकि यहां फायदा मिलने की गारंटी कम ही होती है।”

दोनों देशों के बीच सबसे अधिक इस्तेमाल में आने वाले मार्ग मोंगला-हल्दिया, चिलमारी-धुबरी और नारायणगंज-करीमगंज हैं।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 में कोलकाता, पश्चिम बंगाल, पांडु, असम के बीच मोनल्गा-हल्दिया मार्ग से सिर्फ 12 और अगले वित्तीय वर्ष में सिर्फ तीन कार्गो यात्राएं की गईं थीं।

बांग्लादेश के चिलमारी से लेकर असम के धुबरी तक की पोत यात्राओं की संख्या 2020-21 में 28 थी, जो अगले साल 49 तक पहुंच गई।

साल 2020-21 में नारायणगंज, बांग्लादेश से करीमगंज, असम के बीच सिर्फ एक कार्गो यात्रा की गई थी।  लेकिन अगले साल यह आकंड़ा 15 तक पहुंच गया। 

राजशाही-धुलियान जैसे कुछ मार्गों पर शुष्क मौसम में यात्रा कर पाना संभव नहीं होता हैं क्योंकि इस दौरान नदी में पर्याप्त पानी नहीं होता है। पिछले दो वित्तीय वर्षों के दौरान इस मार्ग का एक बार भी इस्तेमाल नहीं किया गया है।

बांग्लादेश की एक नदी। तस्वीर- मशरिक फ़ैयाज़/फ्लिकर
बांग्लादेश की एक नदी। तस्वीर– मशरिक फ़ैयाज़/फ्लिकर

बांग्लादेश में सूरमा-कुशियारा नदी के जरिए कोलकाता से असम का एक अन्य महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग मौजूदा समय में सक्रिय नहीं है।

जल विज्ञान विशेषज्ञ और बांग्लादेश के बीआरएसी यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति ऐनुन निशात ने कहा, “भारत सरकार के सहयोग से इन मार्गों पर माल की ढुलाई किए जाने को लेकर काम चल रहा है। माना जा रहा है कि जलमार्ग उनके समय और कार्गो ले जाने के खर्च को कम कर देगा।”

क्या ड्रेजिंग ही एकमात्र समाधान है?

बांग्लादेश एक सक्रिय डेल्टा है जो हिमालयी क्षेत्र से नीचे आने वाली नदियों द्वारा लाई गई तलछट से बना है। बांग्लादेश और भारत में कम से कम ऐसी 54 आम नदियां हैं जो दोनों पड़ोसी मुल्कों से होते हुए बहती हैं। यहां रहने वाले आम लोगों की आजीविका का प्रमुख स्रोत कृषि, नेविगेशन और अंतर्देशीय मत्स्य पालन काफी हद तक इन नदियों के पानी पर निर्भर करता है। ये समुद्र से आने वाली लवणता को रोकने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

ये नदियां और जल निकाय हर साल रेत, मिट्टी और गाद सहित लगभग 2.4 बिलियन टन तलछट अपने साथ बहाकर ले आती हैं।

बांग्लादेश सरकार ने हाल ही में नदियों की साफ-सफाई के लिए एक चीनी कंपनी को 71 मिलियन डॉलर का अनुबंध दिया है। यह बांग्लादेश से मुख्य भूमि भारत और पूर्वोत्तर राज्यों के बीच परिवहन मार्गों को बढ़ावा देने के लिए विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित परियोजना का हिस्सा है।

बांग्लादेश अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण के एक सदस्य मतिउर रहमान ने अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाने पर मीडिया को बताया, “मार्गों के ड्रेजिंग (गाद निकालने) से आशुगंज नदी बंदरगाह का इस्तेमाल बढ़ जाएगा और साथ ही भारत के सात पूर्वोत्तर राज्यों के साथ बांग्लादेश की कनेक्टिविटी भी बढ़ जाएगी। यह त्रिपुरा में अगरतला से 50 किमी (31 मील) दूर है। इससे बांग्लादेश और भारत के बीच व्यापार और लोगों के बीच संपर्क बढ़ेगा।” 

रहमान ने कहा, “ढाका-चटगांव-आशुगंज नदी मार्ग की ड्रेजिंग के पूरा होने से जहाजों को ढाका के पनगांव अंतर्देशीय कंटेनर टर्मिनल तक आने में मदद मिलेगी, जिससे व्यापार और कारोबार की गति तेज होगी।”

निशात ने सुझाव दिया कि बड़े स्तर पर नदियों की साफ-सफाई करने के अलावा, नदियों को उचित प्रबंधन मसलन मार्गों के रखरखाव और तटबंध संरक्षण की जरूरत है। वरना थोड़े समय बाद गाद इन मार्गों को बंद कर देगी।

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीर: शुष्क मौसम के दौरान उथली हो जाने वाली बांग्लादेश के जाफलोंग में स्थित गोयैन नदी गाद व तलछट को नीचे की ओर बहा ले जाती है। तस्वीर– डेविड स्टेनली/फ़्लिकर 

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