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उत्तराखंडः धंसती जमीन और अस्थायी पुनर्वास के बीच फंसे जोशीमठ के लोग

जोशीमठ के बाजार में चहलकदमी करता एक आदमी। फोटो: मनीष कुमार/मोंगाबे।

जोशीमठ के बाजार में चहलकदमी करता एक आदमी। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे।

  • जनवरी की शुरुआत में जोशीमठ में तेजी से धंसती जमीन के बाद सैकड़ों लोगों को उनके घरों से बाहर निकाला गया था। इससे वहां तत्काल दीर्घकालिक पुनर्वास योजना ज़रूरत और बढ़ गई है।
  • स्थायी पुनर्वास योजना के तय होने तक राज्य सरकार ने कुछ अस्थायी आश्रयों की योजना बनाई है।
  • जोशीमठ के निवासियों की मांग है कि उन्हें भी नीति बनाने की प्रक्रिया में शामिल किया जाए।

फौज से रिटायर होने के बाद अब्बल सिंह (65) ने जोशीमठ में अपने सपनों का घर बनाया। कस्बे की पहाड़ी ढलानों पर बने इस तीन मंजिला घर में उन्होंने लगभग 80 लाख रुपए की जमा पूँजी लगा दी। 

बुढ़ापे में अपनी आमदनी की पुख्ता व्यवस्था करने के लिए उन्होंने घर की दो मंजिलों पर हॉलिडे होम के रूप में किराए पर देने की योजना बनाई थी, लेकिन जोशीमठ में तेजी से घरों में आ रही दरारों ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।

जोशीमठ में इस साल जनवरी की शुरुआत में तेजी से जमीन धंसने की घटनाएं हुईं। इसके बाद, 9 जनवरी तक लगभग 700 घरों में बड़ी दरारें पड़ गई थीं। कई परिवारों को अपना घर खाली करना पड़ा था।

तब से, सिंह के घर में दरारें बढ़ गई हैं। स्थानीय प्राधिकरण ने इसे रहने के लिए असुरक्षित घोषित कर दियाउनके घर पर बनाए गए क्रॉस के निशान से इसका संकेत मिलता है। 17 जनवरी को भारी मन से सिंह ने जोशीमठ से लगभग 15 किलोमीटर दूर हेलंग जाने का फैसला कियावो वहां किराए के घर में रहेंगे। जब वह मिनी ट्रक पर अपना फर्नीचर लाद रहे थे, तो कई लोग ढांढस बंधाने के लिए उनके घर के बाहर जमा हो गए।

उन्होंने मोंगाबे-इंडिया से कहा, “मुझे नहीं पता कि मैं कभी इस जगह पर दोबारा लौट पाऊंगा।” उन्होंने कहा कि उन्हें हाल ही में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से फोन आया था। सिंह ने बताया, “फोन पर उस व्यक्ति ने मुझसे पूछा था कि क्या मैं एकमुश्त समझौता राशि लेने के लिए तैयार हूं या किसी अन्य जगह पर स्थायी पुनर्वास का इंतजार करना चाहूंगा।सिंह ने कहा, मैं उलझन में हूं, क्योंकि अधिकारी ने एकमुश्त समझौते में मिलने वाली रकम का खुलासा नहीं किया। दूसरी ओर, यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार हमें स्थायी जगह देने में कितना समय लेगी।” 

जोशीमठ में अब्बल सिंह जैसे कई लोग हैं। इस शहर को हिमालय का प्रवेश द्वारकहा जाता है। लेकिन यहां का भविष्य अब अनिश्चित है, क्योंकि जोशीमठ में धीरे-धीरे धसान जारी है। यह शहर उत्तराखंड के चमोली जिले के सबसे बड़े बाजारों, बैंकों, अस्पतालों और होटलों में से एक है। यह धार्मिक तीर्थयात्रा और रोमांचक पर्यटन के लिए आकर्षण का केंद्र है। आसपास के इलाकों की ग्रामीण आबादी भी जोशीमठ की सुविधाओं पर निर्भर है।

सरकार द्वारा घर असुरक्षित घोषित करने के बाद अब्बल सिंह का परिवार अपना सामान बांधकर जोशीमठ से बाहर जाते हुए। तस्वीर- मनीष कुमार / मोंगाबे
सरकार द्वारा घर असुरक्षित घोषित करने के बाद अब्बल सिंह का परिवार अपना सामान बांधकर जोशीमठ से बाहर जाते हुए। तस्वीर- मनीष कुमार / मोंगाबे

जनवरी के पहले सप्ताह में घरों से निकाले गए लोगों में कई लोग फिलहाल अस्थायी घरों में रह रहे हैं। ये लोग सरकार की दीर्घकालिक पुनर्वास योजना की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

चमोली जिला प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक, 15 फरवरी तक जोशीमठ के नौ ब्लॉक में 868 घरों/इमारतों में दरारें आई। वहीं 181 इमारतों को असुरक्षित चिन्हित किया गया है। जोशीमठ में अब कुल 243 परिवार विस्थापित हो गए हैं। ये परिवार राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। इनमें से कई अपने रिश्तेदारों के घर चले गए हैं। या फिर शहर के बाहर किराए का घर लेकर रहने को मजबूर हैं। कई परिवार नियमित रूप से विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं और तेजी से राहत की मांग कर रहे हैं।

सिंह की तरह, जोशीमठ के कई निवासियों को स्थायी समाधान पर उनकी राय लेने के लिए सरकार से फोन आए हैं। जोशीमठ के परेशान नागरिकों को आपदा प्रबंधन विभाग बार-बार फोन कर रहा है और पुनर्वास पर उनकी राय पूछ रहा है। वे एकमुश्त राशि (स्थायी समाधान के बजाय) की पेशकश पर राजी होने के लिए ज्यादा दबाव डाल रहे हैं। साल 2007 की राष्ट्रीय पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीति, पुनर्वास के मुद्दों पर गौर करने और जल्द से जल्द पुनर्वास के लिए एक समिति के तुरंत गठन की बात कहती है। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य अतुल सती ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “ऐसा लगता है कि सरकार की ओर से देरी हो रही है।” उन्होंने कहा कि नीति की धारा 5 विशेष रूप से पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए एक प्रशासक या आयुक्त नियुक्त करने के बारे में बात करती है जो नुकसान का आकलन करने और पुनर्वास योजना बनाने के लिए तेजी से काम करेगा।

अंतरिम राहत से समाधान तक

उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने 12 जनवरी को अंतरिम राहत पैकेज की घोषणा की थी। इसके अनुसार, जोशीमठ से दूसरी जगह बसाए जा रहे रहे लोग हर महीने पांच हजार रुपए का भत्ता मिलेगा। ये भत्ता तब मिलेगा जब वे किराये के आवास में रहने का विकल्प चुनते हैं। अगर वे चाहें तो 44 मौजूदा राहत शिविरों में भी रह सकते हैं। तब उन्हें भोजन और दूसरे खर्चों के लिए प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के हिसाब से 450 रुपये मिलेंगे। वहीं विस्थापित परिवार को 1.5 लाख की अंतरिम राहत का प्रावधान भी किया गया है।

जोशीमठ के रहने वाले 57 साल के मुकेश कुमार उन लोगों में हैं, जिन्होंने राहत शिविर में शरण ली है। वह अपने परिवार के 13 सदस्यों के साथ माणिक पैलेस होटल में रह रहे हैं। जब मोंगाबे-इंडिया ने उनसे बातचीत की तो वह राहत शिविर में आने वाली चुनौतियों से बहुत निराश थे। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता कि हमें कब तक इन अस्थायी व्यवस्थाओं में रहना पड़ेगा।

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) के सचिव रंजीत सिन्हा ने पुष्टि की कि राज्य सरकार ने जोशीमठ से विस्थापित निवासियों के लिए चार जगहों- कोटी फार्म (औली के पास), जोशीमठ में बागवानी विभाग की भूमि, ढाक गांव और पीपलकोटी में घर देने की योजना बनाई है। सिन्हा ने कहा, ये जगहें अस्थायी व्यवस्था हैं। यहां विस्थापित आबादी अंतिम राहत पैकेज और नीति बनने तक रह सकती है। यह स्थिति के अंतिम आकलन और निवासियों के बीच आम सहमति के बाद किया जाएगा। विशेष रूप से जोशीमठ के लिए एक नई पुनर्वास नीति भी तैयार किए जाने की संभावना है।”

सिन्हा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “यह अस्थायी व्यवस्था है। स्थायी बंदोबस्त के लिए सरकार पैकेज की घोषणा करेगी। जो लोग स्थायी बंदोबस्त राशि चाहते हैं और पैसा लेना चाहते हैं, उन्हें मिलेगा। स्थायी पुनर्वास चाहने वालों को मकान मिलेगा। स्थायी बंदोबस्त के लिए, हम अभी भी ज्यादा जमीन तलाश रहे हैं।

हालांकि, कुमार यह जानकर बहुत नाराज़ हुए कि सरकार की योजना में एक और ट्रांजिट पॉइंट शामिल है। उन्होंने कहा, “हम कोई ट्रांजिट होम नहीं चाहते हैं। हम स्थायी पुनर्वास चाहते हैं।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के अतुल सती ने कहा कि सरकार उचित पुनर्वास को लेकर कोई तत्परता नहीं दिखा रही है। सरकार अपने पुराने वादों को भी पूरा करने में विफल रही है। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया से कहा कि जिस तरह से पुनर्वास की प्रक्रिया चल रही है, जोशीमठ के निवासियों को स्थायी आश्रय मिलने में एक दशक से ज्यादा का समय लग सकता है। 

कोटि फार्म, उन स्थानों में से एक है जिसे स्थानीय लोगों ने स्थायी पुनर्वास के लिए चिन्हित किया है। मनीष कुमार / मोंगाबे
कोटि फार्म, उन स्थानों में से एक है जिसे स्थानीय लोगों ने स्थायी पुनर्वास के लिए चिन्हित किया है। तस्वीर- मनीष कुमार / मोंगाबे

तो जोशीमठ के लिए किस तरह का स्थायी पुनर्वास सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है? इस सवाल पर सती ने कहा, “हमने अपने सुझाव सरकारी अधिकारियों के साथ साझा किए थे कि वे जोशीमठ हमारे स्थायी पुनर्वास के लिए चार जगहों का इस्तेमाल कर सकते हैं – जोशीमठ में कोटी खेत, औली, बागवानी विभाग की भूमि और पास की वन भूमि। उस मोर्चे पर कोई प्रगति नहीं हुई है। फिलहाल, अधिकांश योजनाएं अब अस्थायी हैं। हमने यह भी सुझाव दिया था कि पुनर्वास पर एक विशेष समिति बनाई जानी चाहिए जिसमें स्थानीय लोगों का भी प्रतिनिधित्व हो।

स्थानीय लोग ऊपर बताई गई जगहों को पसंद करते हैं क्योंकि इनकी खासियतें जोशीमठ से मिलती-जुलती हैं। ज्यादातर पर्यटक जोशीमठ या तो बद्रीनाथ या औली जाने के लिए आते हैं। औली, जोशीमठ से लगभग 11 किमी ऊपर है। इसलिए हर दिन कई टैक्सी और पर्यटक औली जाते हैं। औली जाने के इच्छुक कई पर्यटक सस्ते आवास के चलते जोशीमठ में रुकते हैं। जोशीमठ के बहुत से लोगों की जमीनें औली में हैं या वहां उनके रिश्तेदार हैं। इन इलाकों से यहां के लोग पहले से परिचित हैं। इसलिए स्थानीय लोगों ने जोशीमठ के पास दो साइटों और औली के पास दो साइटों के लिए कहा है ताकि स्थितियां एक जैसी रहें।

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन के अनुसार, जोशीमठ के अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन करने और उपाय सुझाने के लिए आठ विशेषज्ञ समितियों का गठन किया गया है। इनमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की (भू-तकनीकी अध्ययन करने के लिए), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (एनआईएच), रुड़की (हाइड्रोलॉजिकल सर्वे), भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (पुनर्वास भूमि का आकलन), वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इकोलॉजी (जियोलॉजिकल सर्वे) और राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (उप-सतह भौतिक मानचित्रण)।

जोशीमठ में एक क्षतिग्रस्त घर। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे
जोशीमठ में एक क्षतिग्रस्त घर। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

केंद्रीय भूजल बोर्ड को भूजल का आकलन करने का जिम्मा दिया गया है। भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान उपग्रह तस्वीरों के साथ जमीन के मूवमेंट की निगरानी करेगा। क्षति और जोखिम का आकलन करने के साथ-साथ केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान नोडल कमेटी की भूमिका निभा रहा है। उन्हें अपनी अंतरिम और अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए खास समय सीमा दी गई है। ये पैनल शायद मार्च के आखिर तक अपनी रिपोर्ट दे देंगे।

हालांकि, उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के शीर्ष अधिकारियों ने स्वीकार किया कि इस बात का कोई आकलन नहीं हुआ है कि जोशीमठ के कितने लोगों को स्थायी पुनर्वास की जरूरत है। जबकि इस काम के लिए जमीन की पहचान की जानी बाकी है। प्राधिकरण के सचिव सिन्हा ने दावा किया कि इस मुद्दे पर कोई भी फैसला लेने में समय लगेगा। यह काम सभी विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही किया जा सकता है।


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सिन्हा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया,अभी तक स्थायी पुनर्वास पर कोई फैसला नहीं हुआ है। हम अभी भी नुकसान और प्रभावित लोगों की संख्या का आकलन कर रहे हैं, जिन्हें स्थायी पुनर्वास की जरूरत हो सकती है। हम जल्दबाजी में इस तरह के फैसले नहीं कर सकते। सभी विशेषज्ञ पैनल से रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद, जनता के साथ व्यापक विचार-विमर्श करेंगे। हर तरह का आकलन किया जाएगा और उसके बाद राहत पैकेज की घोषणा की जाएगी। जोशीमठ के लिए विशेष राहत पैकेज की घोषणा की जाएगी।

तब तक ये लोग अस्थायी शिविरों या घरों में रहेंगे। उन्होंने आश्वासन दिया कि ये आश्रय गृह आवास, पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करेंगे।

 

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बैनर तस्वीर: जोशीमठ के बाजार में चहलकदमी करता एक आदमी। फोटो: मनीष कुमार/मोंगाबे।

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