[वीडियो] बुनियादी ढांचे के नीचे दम तोड़ती कश्मीर के करेवा की उपजाऊ जमीन

तेजी से हो रहे शहरीकरण और अवैध खनन के चलते करेवा पर संकट मंडरा रहा है। करेवा मिट्टी अब राजमार्गों या रेलवे पटरियों के जाल के नीचे दबी है। वहीं करेवा साइटों को व्यावसायिक आवासीय क्षेत्रों में बदला जा रहा है। तस्वीर- शाज़ सैयद/मोंगाबे

इश्फाक अहमद ने चिंता जाहिर करते हुए कहा, “केसर के शहर पंपोर में लोगों ने अपनी बढ़ती जरूरतों के चलते केसर के खेतों को व्यावसायिक क्षेत्रों में बदलना शुरू कर दिया है। और यह इस (केसर) व्यवसाय पर काफी असर डालेगा।” 

कश्मीर पीर पंजाल रेंज और हिमालयन रेंज के बीच बसा हुआ है। कश्मीर की बनावट ऐसी है कि आसपास कठोर चट्टानें ज्यादा हैं। सो वहां खनन करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में करेवा खनन के लिए एक आसान लक्ष्य बन जाता है।


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मुजफ्फर भट्ट ने बताया, “इधर बडगाम जिले में ईंट भट्टों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है। यह सीधे करेवाओं को प्रभावित करता है क्योंकि ईंट बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मिट्टी वहीं से आती है,” उनका कहना है कि 1990 के दशक में कश्मीर में काजीगुंड बारामूला रेलवे परियोजना शुरू होने के बाद से करेवा टूटने लगे थे। काजीगुंड से बारामूला तक एलिवेटेड रेलवे ट्रैक बनाने के लिए जिस सामग्री का इस्तेमाल किया गया है, उसमें करेवा से निकाली गई मिट्टी का 90 फीसदी हिस्सा है।

बडगाम के स्थानीय लोगों का मानना है कि रात के समय ट्रकों की बढ़ती आवाजाही ने हवा की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित किया है। एक स्थानीय समुदाय के सदस्य ने कहा, “हमारे बच्चे रात के समय भी नहीं पढ़ सकते हैं। मिट्टी से लदे ये ट्रक न सिर्फ यहां की आबो-हवा खराब कर रहे हैं बल्कि असहनीय शोर भी पैदा करते हैं।” वह आगे कहते हैं, “खनन का ज्यादातर काम रात के अंधेरे में किया जाता है। वे ज्यादा से ज्यादा मिट्टी खोदना चाहते हैं। हर ड्राइवर जल्दी में रहता है। उन्होंने हमारे क्षेत्र में तबाही मचाई हुई है। पौधों की पत्तियों पर भी धूल ही दिखाई देती है।” 

शाह के अनुसार करेवा का नुकसान वैज्ञानिक समुदाय का सीधा नुकसान है। “पश्चिमी हवाएं हमारे मौसम पर हावी हैं। करेवाओं का अध्ययन करके हम यूरोप की भविष्य की जलवायु परिस्थितियों का भी अनुमान लगा सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से करेवा को बर्बाद करने से हमारा डेटा भी नष्ट हो रहा है।”

करेवा विभिन्न मिट्टी और तलछट जैसे रेत, मिट्टी, गाद, शेल, मिट्टी, लिग्नाइट और लोएस के जलोढ़ निक्षेप हैं। तस्वीर- शाज़ सैयद/मोंगाबे 
करेवा विभिन्न मिट्टी और तलछट जैसे रेत, मिट्टी, गाद, शेल, मिट्टी, लिग्नाइट और लोएस के जलोढ़ निक्षेप हैं। तस्वीर- शाज़ सैयद/मोंगाबे

भट्ट सुझाव देते हैं, ” खनन की बढ़ती गतिविधियां करेवा के लिए बड़ा खतरा है। करेवाओं से निकाली गई ज्यादातर मिट्टी राजमार्गों के निर्माण में इस्तेमाल में लाई जाती है। इसमें निर्माणाधीन सेमी रिंग रोड भी शामिल है। सरकार को विकल्पों की तलाश करनी चाहिए।” उन्होंने कहा, “करेवा मिट्टी के बजाय सरकार बाढ़ लाने वाली नदियों की गाद का इस्तेमाल कर सकती है। इससे नदियों का प्रवाह भी बढ़ जाएगा।”

 

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बैनर तस्वीर: पोषक तत्वों से भरपूर करेवा केसर व बादाम की खेती के लिए के लिए अहम है। तस्वीर- शाज़ सैयद/मोंगाबे 

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