- भारत सरकार ने आम बजट में ‘ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’ के लिए 197 अरब रुपए आवंटित किए हैं। ग्रीन हाइड्रोजन, शिपिंग और ट्रकिंग जैसे लंबी दूरी के परिवहन में जीवाश्म ईंधन का विकल्प बन सकता है।
- ग्रीन हाइड्रोजन में वातावरण से, खासकर रिफाइनरियों, उर्वरक संयंत्रों और इस्पात संयंत्रों जैसे प्रमुख क्षेत्रों में, कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने या खत्म करने की क्षमता है।
- जानकारों का दावा है कि ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के तहत क्षेत्रवार आवंटन, घरेलू उत्पादन पर दायित्वों और संबंधित मुद्दों पर अभी भी स्पष्टता की कमी है।
एक फरवरी , 2023 को केंद्रीय बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन शुरू करने की बहुप्रतीक्षित घोषणा की। मिशन के तहत, सरकार की 2030 तक 5 मिलियन मेट्रिक टन (एमएमटी) ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की योजना है। ‘ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’ बजट में की गई उन घोषणाओं में से एक है जो देश को कार्बन मुक्त करने के रास्ते पर ले जाने पर केंद्रित हैं।
देश में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पहली बार बजटीय आवंटन करते हुए वित्त मंत्री ने इस सात साल के मिशन के लिए कुल 19,700 करोड़ रुपए आवंटित किए। इसके पहले साल यानी 2023-24 के लिए 297 करोड़ रुपए रखे गए हैं। इस मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2021 को की थी, इसके बाद पिछले साल फरवरी में इसके लिए नीति की घोषणा हुई और इस साल जनवरी में इस मिशन का फ्रेमवर्क बनाया गया।
चूँकि ग्रीन हाइड्रोजन पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम या खत्म कर देता है, इसलिए इसमें देश को कार्बन मुक्त करने की क्षमता है। ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन सिर्फ नवीन ऊर्जा का इस्तेमाल करके किया जाता है। इसे इलेक्ट्रोलाइज़र में पानी का विघटन करके बनाया जाता है। ग्रीन हाइड्रोजन स्टील मिलों में कोयले और ‘शिपिंग और ट्रकिंग’ जैसे लंबी दूरी के परिवहन में जीवाश्म ईंधन का विकल्प बन सकता है।
मिशन दस्तावेज के मुताबिक, फिलहाल भारत हर साल लगभग 5 एमएमटी हाइड्रोजन की खपत करता है। इस हाइड्रोजन का ज़्यादातर हिस्सा वर्तमान में जीवाश्म ईंधन से आता है। इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से पेट्रोलियम रिफाइनरियों और उर्वरकों के लिए अमोनिया के उत्पादन में किया जाता है।
रोडमैप के अनुसार, सरकार की योजना निवेशकों को उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन, अंतर-राज्य ट्रांसमिशन शुल्क में छूट और पायलट परियोजनाओं को मदद देने जैसे प्रोत्साहन देने की है।
मिशन में 2022-23 से 2029-30 तक का वर्षवार रोडमैप भी बनाया गया है। इसके तहत दो चरणों में काम को गति दी जाएगी। पहले चरण (2022-23 से 2025-26) में मानक तय करने, शुरुआती मांग बनाने, पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन जारी करने की योजना है। दूसरे चरण (2026-27 से 2029-30) में, ग्रीन हाइड्रोजन के व्यावसायीकरण को बढ़ाने और इसका इस्तेमाल शिपिंग, परिवहन जैसे अन्य क्षेत्रों में ले जाने की योजना है। यह योजना इस धारणा पर आधारित है कि 2025-26 तक ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की कीमतें किफायती हो जाएंगी।
कई देशों में ग्रीन हाइड्रोजन पर काम
ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में कई देश फिलहाल एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा में हैं। यह सभी देश इस क्षेत्र में रोडमैप तैयार कर रहे हैं और ग्रीन हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी पर सबसे आगे रहने के लिए प्रोत्साहन की पेशकश कर रहे हैं।
इस क्षेत्र से जुड़े जानकारों ने कहा कि अभी यह देखना बाकी है कि भारत में ग्रीन हाइड्रोजन का उद्योग किस तरह फंडिंग का इस्तेमाल करता है और इसे कितनी तेजी से जमीन पर उतारा जाता है। बजट का इस्तेमाल और इसकी गति इस नई तकनीक पर भारत के वैश्विक नेतृत्व को प्रभावित करने वाले जरूरी कारक होंगे।
पब्लिक पॉलिसी थिंक टैंक, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) के फेलो हेमंत माल्या ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “अब तक बजट से इसके कुल आवंटन और मिशन के सभी लक्ष्य के अलावा बहुत स्पष्टता नहीं है। यह देखना अहम है कि बजट का इस्तेमाल किस तरह किया जाता है। इससे यह भी तय होगा कि हम कितनी तेजी से देश में तकनीक का इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं। अभी, यह सभी देशों के लिए समान अवसर के स्तर पर है क्योंकि यह नई तकनीक है। लेकिन यह तेजी से आगे बढ़ने वाला उद्योग है और हमने पिछले छह महीनों में कई तरह की घोषणाएं देखी हैं। इसलिए, अगर हम घरेलू आपूर्ति श्रृंखला बाजार पर जल्दी कब्जा कर सकते हैं, तो यह हमें एक अतिरिक्त लाभ दे सकता है।”
माल्या ने यह भी कहा कि जब ग्रीन हाइड्रोजन और इसके डेरिवेटिव जैसे ग्रीन अमोनिया और ग्रीन मेथनॉल की बात आती है, तो ओमान, ऑस्ट्रेलिया और कुछ अन्य देशों ने इन टेक्नोलॉजी के लिए बाजार पर कब्जा करने में अहम प्रगति की है। उन्होंने कहा कि भारत अपने बड़े भूभाग और कम नवीन ऊर्जा लागत के साथ ग्रीन हाइड्रोजन बाजार पर कब्जा करने की अच्छी क्षमता रखता है।
फिलहाल भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का 40 प्रतिशत आयात करता है। इसके लिए हर साल लगभग 9000 करोड़ डॉलर खर्च करता है। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से घरेलू स्तर पर ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करके यूरिया, उर्वरक और अमोनिया के आयात पर निर्भरता कम होने की उम्मीद है। ग्रीन अमोनिया को नाइट्रोजन के साथ ग्रीन हाइड्रोजन के संयोजन से तैयार किया जाता है और फिर ऊर्जा को स्टोर करने और उर्वरक बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
नीति आयोग की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 43 देश हैं जिनके पास हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों पर रणनीतियां और रोडमैप हैं। ग्रीन हाइड्रोजन के लिए अधिकांश रिसर्च और विकास, वित्त पोषण यूरोप, अमेरिका, जापान और चीन में हुआ है।
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के एसोसिएट प्रोफेसर ईश्वरन नरसिम्हन ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि दुनिया भर में जो देश सबसे कम दरों पर ग्रीन हाइड्रोजन मुहैया करा सकते हैं, वही बाजार पर हावी रहेंगे।
उन्होंने कहा कि मौजूदा बजट और नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन में किसी डेवलपर को कितनी सब्सिडी मिलेगी, इसका उल्लेख नहीं किया गया है। वहीं अमेरिका ने पहले ही देश में उत्पादित ग्रीन हाइड्रोजन पर प्रति किलोग्राम 3 डॉलर तक की सब्सिडी देने की घोषणा की है।
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नरसिम्हन ने कहा, “बजट घोषणाओं से निवेशकों को एक सकारात्मक संदेश जाने की संभावना है। देश को रिफाइनरियों, प्राकृतिक गैस और अन्य उद्योगों के मौजूदा बुनियादी ढांचे का अतिरिक्त लाभ भी है जो हाइड्रोजन की खरीद करते हैं। इनमें ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल शुरू किया जा सकता है। लेकिन चुनौतियां भी हैं। भारत की मौजूदा इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण क्षमता न के बराबर है। इस क्षमता को बनाने के लिए निवेश इस क्षेत्र में दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धा के लिए अहम है।”
उत्पादन की ज्यादा लागत
फिलहाल, ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन बढ़ाने के आसपास मुख्य चिंता उत्पादन की ज्यादा लागत और उन्नत, कुशल इलेक्ट्रोलाइज़र पर निर्भरता है। हालांकि, सरकार को भरोसा है कि जल्द ही इसे लागत प्रभावी बना लिया जाएगा। मिशन दस्तावेज़ में दावा किया गया, “हाल के रुझानों और विश्लेषण से संकेत मिलता है कि टेक्नोलॉजी में प्रगति, नवीन ऊर्जा और इलेक्ट्रोलाइज़र की लागत में कमी और कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा आक्रामक राष्ट्रीय रणनीतियों द्वारा संचालित हरित हाइड्रोजन के जल्द ही सभी उद्योगों के लिए लागत-प्रतिस्पर्धी बनने की संभावना है।”
इस्तेमाल हो रही तकनीक के आधार पर वर्तमान में इलेक्ट्रोलिसिस से ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत 4.10 डॉलर से 7 डॉलर प्रति किलोग्राम के बीच है। हालांकि, अनुमानों के अनुसार भारत में लागत साल 2030 तक घटकर 1.7 डॉलर/किलोग्राम से 2.4 डॉलर/किग्रा तक आ जाएगी। इससे इलेक्ट्रोलाइजर लागत और नवीन ऊर्जा के उत्पादन की लागत में अपेक्षित कमी होगी।
विशेषज्ञों का दावा है कि बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का विस्तार और टेक्नोलॉजी में सुधार के साथ, ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत में कमी आने की संभावना है। इसके अलावा, टैक्स में अन्य कटौती/छूट जैसे इलेक्ट्रोलाइजर के आयात पर शुल्क, जीएसटी और ट्रांजिशन और वितरण लागत से भी उद्योग को मदद मिलेगी। हालांकि, मौजूदा बजट में शुल्कों और जीएसटी पर कुछ नहीं कहा गया है। ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्र के लिए उत्पादन से जुड़ी सब्सिडी (पीएलआई) का भी कोई विवरण नहीं है।
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के लिए शुरुआती मांग पैदा करने के तरीकों में से एक स्वच्छ ईंधन खरीदने का जिम्मा सरकारी संस्थाओं पर देने का है। इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) के एनर्जी फाइनेंस विशेषज्ञ शांतनु श्रीवास्तव ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि बजट में सॉवरेन ग्रीन फंड से ग्रीन हाइड्रोजन सेक्टर के लिए और ज्यादा आवंटन किया जा सकता था। “वर्तमान में बजट दस्तावेज़ सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) या तेल विपणन कंपनियों के दायित्वों के बारे में बात नहीं करता है। अभी के लिए सिर्फ 297 करोड़ रुपए ही ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के लिए आवंटित किए गए हैं। मिशन रोडमैप में रिसर्च और विकास में मदद करने और 2023-24 में ग्रीन उर्वरक क्षेत्र को बढ़ावा देने की बात है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के लिए ऊर्जा संक्रमण के लिए 35,000 करोड़ रुपये का अलग से आवंटन किया गया है। हम उम्मीद करते हैं कि आवंटन पर ज़्यादा स्पष्टता होगी और मंत्रालय से इन फंडों का उपयोग किया जाएगा,” उन्होंने बताया।
घरेलू वितरण और राज्य की भूमिकाएं
स्वच्छ ऊर्जा थिंक टैंक ओएमआई फाउंडेशन की फरवरी 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, पांच भारतीय राज्यों – उत्तर प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, तमिलनाडु और केरल – के पास ग्रीन हाइड्रोजन के लिए नीति/प्रोत्साहन है। गुजरात जल्द ही ऐसा ही कुछ लॉन्च करने के लिए तैयार है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने अपनी अक्षय ऊर्जा नीतियों के तहत ग्रीन हाइड्रोजन के लिए प्रोत्साहन को शामिल किया है।
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक वसुधा फाउंडेशन के वरिष्ठ प्रबंधक जयदीप सारस्वत ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि जिन राज्यों में उर्वरक संयंत्रों, रिफाइनरियों और नीतिगत समर्थन की संख्या ज्यादा है, उनके द्वारा अल्प से मध्यम अवधि में ग्रीन हाइड्रोजन के लिए घरेलू बाजार का दोहन करने की ज्यादा संभावना है।
सारस्वत ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “जिन राज्यों के पास जरूरी बुनियादी ढांचा, नीतिगत समर्थन और मांग है, उनके घरेलू ग्रीन हाइड्रोजन बाज़ार में फलने-फूलने की संभावना है। जिन राज्यों में रिफाइनरियां हैं, उन्होंने पहले ही प्राकृतिक गैस पाइपलाइनें बिछा ली हैं। शहरों में भी गैस वितरण पाइपलाइन हैं। इस तरह के मौजूदा बुनियादी ढांचे पर कब्जा करने और जरूरत पड़ने पर इसमें बदलाव करने की जरूरत है ताकि टेक्नोलॉजी का जल्द से जल्द इस्तेमाल पक्का किया जा सके। गुजरात, उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे कई राज्यों को रिफाइनरियों, उर्वरक संयंत्रों और यहां तक कि कुछ बंदरगाहों की मौजूदगी के चलते फायदा होने की संभावना है, जिनका इस्तेमाल आसान परिवहन और बड़े पैमाने पर भंडारण के लिए किया जा सकता है।“
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बैनर तस्वीर: मालवाहक जहाज का हवाई दृश्य। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के दूसरे चरण (2026-27 से 2029-30) में, भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन के व्यावसायीकरण को बढ़ाने और इसका इस्तेमाल शिपिंग और परिवहन जैसे क्षेत्रों तक बढ़ाने की योजना बनाई है। तस्वीर: टॉम फ्रिस्क/पेक्सल्स।