- धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में, गाय-बैल कुपोषण से जूझ रहे हैं। कैल्शियम की कमी तो गाय-बैलों में है ही, इनमें हिमोग्लोबिन की मात्रा भी कम है।
- देश के दूसरे हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में गाय-बैलों के लिए हरा चारा उगाने की परंपरा नहीं है और गाय-बैल भोजन के लिए धान का पैरा यानी पुआल पर निर्भर हैं, जिनसे पर्याप्त पोषण नहीं मिल रहा है।
- पैरा या पुआल को यूरिया से उपचारित करने पर उसकी पौष्टिकता बढ़ाई जा सकती है लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसका चलन नहीं है।
छत्तीसगढ़ के धमतरी के रहने वाले महेश चंद्राकर की गाय पिछले कई सप्ताह से बुखार से तप रही थी। उसका खाना-पीना कम हो गया था और वह बेहद कमज़ोर हो गई थी। दवाइयां असर नहीं कर रही थीं। स्थानीय पशु चिकित्सक ने ख़ून का नमूना लिया और शाम को रिपोर्ट आई कि गाय के खून में हिमोग्लोबिन की मात्रा काफी कम है।
महेश बताते हैं कि वे अपने गाय-बैलों को दिन में तीन बार खाने के लिए धान का पैरा यानी पुआल देते रहे हैं। गाय-बैल बरसों से इसी पैरा को खाते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में गाय-बैल लगातार कमज़ोर होते जा रहे हैं, वे बीमार पड़ रहे हैं, यहां तक कि वे बेहोश हो जा रहे हैं।
महेश चंद्राकर अकेले ऐसे किसान नहीं हैं, जो अपने गाय-बैलों को लेकर इस तरह की परेशानी से जूझ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में पशुधन विकास विभाग की राज्य स्तरीय रोग अन्वेषण प्रयोगशाला के डॉक्टर नलिन शर्मा का कहना है कि प्रयोगशाला में जितने में पशुओं के रक्त के नमूने लिए जाते हैं, उनमें से आधे से अधिक पशुओं में कुपोषण देखने को मिल रहा है और उनका हिमोग्लोबिन स्तर सामान्य से बेहद कम है।
डॉक्टर नलिन शर्मा ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “गौवंश की जो स्थानीय प्रजाति है, उसमें पोषण सबसे बड़ी समस्या है। लगभग आठ महीने तो गाय-बैलों को हरा चारा मिलता नहीं है। पोषण वाले चारा की न तो व्यवस्था है, और ना ही परंपरा। खेती-किसानी की तरफ युवा पीढ़ी के मोहभंग के कारण यह मुश्किल धीरे-धीरे और बढ़ती जा रही है।”
पोषण का सवाल
छत्तीसगढ़ में 2019 की बीसवीं पशु संगणना के अनुसार राज्य में 99.84 लाख गौवंशीय और 11.75 लाख भैंस वंशीय पशुधन है। लेकिन इन पशुओं की हालत ठीक नहीं है।
राज्य योजना आयोग की पशुपालन से संबंधित टॉस्क फोर्स की 2022 की एक रिपोर्ट कहती है कि राज्य के मवेशी अत्यंत कमज़ोर, अनुत्पादक, अल्प-उत्पादक व अलाभप्रद हैं। कोई उत्पादक या कार्यशील डिस्क्रिप्ट नस्ल की गौवंश छत्तीसगढ़ में नहीं है। यद्यपि कोसली नस्ल को मान्यता मिली है परंतु यह अल्पउत्पादक अकार्यशील नस्ल है। छत्तीसगढ़ में गायों की दुध उत्पादन क्षमता 1 से 1.5 लीटर प्रतिदिन है और औसतन गाय अपनी पूरी जीवन अवधि में तीन से चार बछड़े दे पाती है।
इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य के अधिकांश बड़े और छोटे पशुओं में कुपोषण है। प्रोटीन, मिनरल, विटामिन, ट्रेस एलीमेंट्रक हार्मोनल इत्यादी की कमी गौवंश में प्रमुखता से व्याप्त है। जिसके कारण उनकी वृद्धि दर, उत्पादकता और प्रजनन क्षमता प्रभावित है।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में पशुओं को एकमात्र आहार के तौर पर पुआल को खिलाने की परंपरा है। खेती का रकबा कम था और परती व जंगल का इलाका अधिक था तो गाय-बैलों के लिए हरे चारे की पूर्ति हो जाती थी। इसके अलावा गांव-गांव में चारागाह थे, जो पशुओं में पोषण की कमी को दूर करने में सफल रहते थे। लेकिन धीरे-धीरे अधिकांश गांवों में चारागाह ख़त्म होते चले गए। पशुपालकों द्वारा स्वयं की भूमि पर हरा चारा उत्पादन की न तो परंपरा थी और ना ही इस दिशा में कोई कोशिश हुई।
रायपुर के पशु चिकित्सक डॉक्टर सौरभ देवांगन बताते हैं कि 5 लीटर से कम दूध देने वाली गाय को हर दिन कम से कम 15 किलो हरा चारा, 5 किलो सूखा चारा और दो किलो रातिब मिश्रण यानी पशु आहार की ज़रुरत होती है। इस पशुआहार में मूल रुप से मक्का, ज्वार, दला हुआ गेहूं, गेहूं का तोकर, चूनी, खल्ली, खनिज मिश्रण और नमक होना चाहिए। लेकिन छत्तीसगढ़ में 80 फीसदी से अधिक किसान लघु और सीमांत श्रेणी के हैं, जो अब अपने पशुओं को मूलतः धान का पुआल ही खिलाते हैं।
पुआल मुख्य रूप से जुगाली करने वालों की शुष्क पदार्थ की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बल्क या फिलर के रूप में कार्य करता है। इस पुआल में प्रोटीन की मात्रा लगभग 3 से 5 फीसदी होती है। इसके अलावा इसमें 8 से 13 फ़ीसदी तक ऑक्जलेट की मात्रा होती है, जो शरीर के कैल्शियम से मिल कर कैल्शियम ऑक्जलेट बनाता है और शरीर से बाहर निकल जाता है। इसके कारण पशुओं में कैल्शियम की कमी हो जाती है। इसके कारण पशु कमज़ोर होते हैं और उनकी उत्पादकता भी प्रभावित होती है।
डॉक्टर सौरभ कहते हैं, “पुआल में 30 फीसदी फाइबर तो है लेकिन 8-14 फीसदी सिलिका भी है, जिसके कारण यह लगभग बेस्वाद होता है और पुआल को पचने में मुश्किल पैदा करता है। अब पशु के सामने आहार का कोई विकल्प नहीं होता तो इसे खाना उसकी मज़बूरी है। इसके अलावा धान की कटाई के समय कम धूप के कारण कई बार पुआल में फ्यूजेरियम जैसे फंगस का भी असर होता है और पशु के पेट में जाने से पशु कमज़ोर हो जाता है और दूध का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता है।”
यूरिया से उपचार
छत्तीसगढ़ में गायों के लिए सरकार की मदद से गांव स्तर पर गौठान बनाए जा रहे हैं। पिछले चार सालों में ऐसे 10 हज़ार से अधिक गौठानों का निर्माण किया जा चुका है, जिसमें चारागाह भी विकसित किए जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री और सरकार के प्रवक्ता रवींद्र चौबे मानते हैं कि पिछले कुछ सालों में पूरे देश में गायों की समस्या बढ़ी है और उनके लिए भोजन एक बड़ी समस्या बन कर उभरा है। दूध नहीं देने वाली गायों को बेकार मान कर उन्हें खुला सड़कों पर या खेतों में छोड़ देने की परंपरा ने स्थिति को और भयावह बनाया है।
रवींद्र चौबे कहते हैं, “छत्तीसगढ़ में हमने अपनी पुरानी गौठान की परंपरा को पुनर्जीवित करने का काम किया है। इसके कारण लोगों ने गाय पर ध्यान देना शुरु किया है। दो रुपये प्रति किलो में गोबर ख़रीदने की सरकार की योजना के कारण अब गायों को खुला छोड़ने की प्रवृत्ति पर भी रोक लगी है। चारागाह की ज़मीन अवैध कब्ज़े से मुक्त हुई है और पिछले चार सालों में राज्य के 5,874 गौठानों में चारागाह विकसित किए जा चुके हैं, जिसमें 2 लाख 30 हज़ार क्विंटल हरे चारे का उत्पादन किया गया है। लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे के सामान है।”
किसान नेता आनंद मिश्रा का कहना है कि गांवों में सीमांत किसानों के लिए संभव नहीं है कि वह गाय-बैल के लिए हरा चारा उगाएं। ऐसे में पैरा या पुआल खिलाना मज़बूरी है। लेकिन अगर पुआल को यूरिया से उपचारित कर के उसे चारे के रुप में उपयोग किया जाए तो यह बेहतर विकल्प हो सकता है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार एक क्विंटल पुआल को 6 इंच परत के रुप में फैला कर, 50 लीटर पानी में घोले हुए 4 किलो यूरिया का पानी इस पर छिड़का जाता है। इसके ऊपर फिर से एक क्विंटल पुआल को बिछा दिया जाता है और फिर उसी तरह 50 लीटर पानी में 4 किलो यूरिया के घोल को इस पर छिड़का जाता है। इस तरह एक के ऊपर एक, 8 से 10 क्विंटल पुआल के साथ यही प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।
पुआल के इस ढ़ेर को पॉलीथीन शीट से इस तरह ढ़क दिया जाता है कि इसकी गैस बाहर न निकले। इसे 20 दिनों तक इसी तरह छोड़ दिया जाता है। 20 दिनों बाद यह पुआल गाय-भैंस के खाने के लिए तैयार हो जाता है। इसे खिलाने से 10 मिनट पहले खुली हवा में छोड़ देना चाहिए, जिससे गैस निकल जाए।
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डॉक्टर सौरभ देवांगन कहते हैं कि यूरिया से उपचारित होने के दौरान उत्पन्न अमोनिया गैस से पुआल का ऑक्जलेट लगभग निष्क्रिय हो जाता है। इसके अलावा सिलिका का कसैलापन भी इस प्रक्रिया में नष्ट हो जाता है। पुआल में प्रोटीन की मात्रा 0 प्रतिशत से बढ़ कर 4 प्रतिशत हो जाती है और ऊर्जा की मात्रा 40 प्रतिशत से बढ़ कर 56 प्रतिशत तक हो जाती है। इसका उपयोग किया जाए तो एक बड़ा बदलाव आ सकता है। लेकिन अभी यह दूर की कौड़ी है।
किसान नेता आनंद मिश्रा कहते हैं कि पुआल को उपचारित करके उपयोग करने से उसकी पौष्टिकता भी बढ़ती है और पुआल में ऑक्जलेट की मात्रा भी कम हो जाती है, यह सब बरसों पुरानी तकनीक है। लेकिन संकट ये है कि किसानों में इसे ले कर भारी भ्रांति है और वे आज भी इसके लिए तैयार नहीं हैं।
मतलब ये कि अभी कम से कम आने वाले कुछ सालों तक, छत्तीसगढ़ के गौ-वंश को कुपोषण से मुक्ति नहीं मिलने वाली है।
बैनर तस्वीरः छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग की पशुपालन से संबंधित टॉस्क फोर्स की 2022 की एक रिपोर्ट कहती है कि राज्य के मवेशी अत्यंत कमज़ोर, अनुत्पादक, अल्प-उत्पादक व अलाभप्रद हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल