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[वीडियो] पुश्तैनी रोजगार को बचाने में उपयोगी बन रही सौर ऊर्जा, आगे बढ़ाने के लिए सरकारी मदद जरूरी

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में सौर ड्रायर इकाई में एक महिला। तस्वीर- रहेजा सोलर-पॉवरिंग लाइवलीहुड्स इंटरप्राइज

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में सौर ड्रायर इकाई में एक महिला। तस्वीर- रहेजा सोलर-पॉवरिंग लाइवलीहुड्स इंटरप्राइज

  • विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा समाधान भारत में कई पारंपरिक ग्रामीण कारोबार और आजीविका को आसान बनाने में मदद कर रहे हैं।
  • लाभार्थियों का कहना है कि इससे उन्हें अपने व्यापार में लगने वाली कड़ी मेहनत को कम करने और अपनी आमदनी बढ़ाने में मदद मिली है।
  • विशेषज्ञों का दावा है कि विकेन्द्रीकृत नवीन प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर अपनाने से गांवों से शहरों की तरफ पलायन रोकने और गांवों में रोजागार और आजीविका के ज्यादा विकल्प पैदा करने में मदद मिल सकती है।

आधा अक्टूबर करीब-करीब बीत चुका था। 44 साल के कुम्हार रघुराम कुलाल चाक पर मिट्टी का घड़ा बनाने में व्यस्त थे। किसी पारंगत कुम्हार की तरह उनकी उंगलियां तेजी से गीली मिट्टी को नया आकार दे रही थीं। लेकिन एक चीज ऐसी थी जो उनके सामने चल रहे चाक को पुराने चाक से अलग करती थी। उनका चाक सौर ऊर्जा से चल रहा था।

कुलाल का घर कर्नाटक के तटीय जिले कुंडापुर के अलूर गांव में है। उन्होंने तीन किलोवाट का सोलर पैनल लगाया है। इससे उनके काम में तेजी आई है। 

कोल्लुरु नदी के दाहिने तट पर बसा यह गांव पहले इस इलाके में मिट्टी के बर्तनों के लिए जाना जाता था। लेकिन गुजरते वक्त के साथ अधिकांश परिवारों ने आमदनी के बेहतर अवसरों के लिए यह पेशा छोड़ दिया। लेकिन कुलाल इस पारंपरिक पेशे के प्रति प्रतिबद्ध रहे। उन्हें अपने फैसले पर पछतावा नहीं है। चाक को ताकत देने वाले सोलर पैनल, बर्तन बनाने की गति को बढ़ाने में मदद करते हैं। उन्होंने चार लोगों को रोजगार भी दिया है।

तैयार बर्तनों और सजावटी सामानों के बीच बैठे कुलाल ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “पहले मैं हाथ से चलने वाले चाक पर हर दिन 20 बर्तन बनाता था। इससे हर दिन लगभग 600 रुपये की कमाई होती थी। साल 2016 से, मैंने अपने चाक और मड ब्लेंडर को ऑटोमैटिक तरीके से चलाने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल शुरू किया। अब मैं सौर ऊर्जा से चलने वाले चाक पर हर दिन 50-60 बर्तन बना सकता हूं। मेरी कमाई दोगुनी होकर 1,200 रुपए प्रति दिन हो गई है।“ 

उन्होंने कहा,इसी तरह, जब मैं हाथ से मिट्टी में पानी डालकर उसे सानता था, तो इसे उपयोग के लायक बनने में लगभग 6 घंटे लगते थे। अब इसमें बमुश्किल 30 मिनट का समय लगता है। इसके अलावा, सौर चाक पर बने बर्तनों और दूसरे सामानों की गुणवत्ता और सौर मिक्सर का इस्तेमाल बेहतर है। इससे मुझे ज्यादा ग्राहकों को आकर्षित करने में मदद मिली है।” 

कुलाल अपनी मशीनों को चलाने के लिए ग्रिड से आने वाली बिजली पर निर्भर नहीं है। उनका कहना है कि क्षेत्र में ग्रिड बिजली का समय तय नहीं है। इससे उन्हें भरोसेमंद समाधान नहीं मिलता है। उनका उदाहरण इस बात के कई उदाहरणों में से एक है कि किस तरह विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा ग्रामीण भारत में जीवन और आजीविका में मदद कर रही है।

रघुराम कुलाल सोलर से चलने वाले चाक का इस्तेमाल करते हैं। सौर ऊर्जा के उपयोग से उन्हें मुनाफा बढ़ाने और मेहनत कम करने में मदद मिली है। तस्वीर- प्रणव कुमार
रघुराम कुलाल सोलर से चलने वाले चाक का इस्तेमाल करते हैं। सौर ऊर्जा के उपयोग से उन्हें मुनाफा बढ़ाने और मेहनत कम करने में मदद मिली है। तस्वीर- प्रणव कुमार

विकेन्द्रीकृत सौर ऊर्जा के सकारात्मक असर का दूसरा उदाहरण आशा मनुगंधी हैं। वो 44 साल की उद्यमी हैं। मनुगंधी कर्नाटक में शिमोगा जिले के शिकारीपुरा शहर में रहती हैं। वो एक छोटी सी किराने की दुकान चलाती हैं। सिलाई का काम करती हैं और घर पर मकई की रोटियां भी बनाती है। इन्हें वो आस-पास के घरों और रेस्तरां में सप्लाई करती है।

लगभग तीन साल पहले उनका ये काम बहुत मुश्किल था। समय पर सप्लाई देने के लिए मनुगंधी को एक दिन में 20 रोटियां बनाने के लिए पूरी ताकत झोंकनी पड़ती थी। विकेंद्रीकृत नवीन ऊर्जा सेटअप की बदौलत अब वह कम मेहनत से एक दिन में 50 रोटियां बना लेती हैं। मनुगंधी के पास सौर ऊर्जा से चलने वाला रोटी मेकर है। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, रोटी को बेलने का काम मशीन से होता है। इससे समय की बहुत बचत होती है। अब मैं बेटियों और परिवार के साथ ज्यादा समय बिता सकती हूं। साथ ही घर के दूसरे काम भी कर सकती हूं।” 


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सफलता की ऐसी ही कहानी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के गोलापल्ली गांव के बी मनोगा नाइक की भी है। 40 सदस्यों वाले किसान उत्पादक संगठन के सदस्य नाइक अब अपनी खेती-बाड़ी से होने वाले मुनाफे को बढ़ाने के लिए सोलर ड्रायर का इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले वो बाजार में सिर्फ़ पके आम ही बेचते थे। इससे उन्हें हर किलो पर महज 10 से 12 रुपये के बीच मिल जाते थे। अब सोलर ड्रायर मशीन की मदद से वो डीहायडेट्रेड आम उत्पाद बनाते हैं। ये ज्यादा समय तक टिक सकते हैं। इनकी कीमत भी 250 से 380 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलती है। आमदनी में यह इजाफा सोलर ड्रायर से हुआ है जो एक बार में छह क्विंटल आम को प्रोसेस कर सकता है। मशीन में आम के प्रत्येक लोड में दो से तीन दिन लगते हैं।

देश के अलग-अलग हिस्सों से सफलता की ऐसी कई कहानियां बिखरी पड़ी हैं, जहां विकेन्द्रीकृत नवीन ऊर्जा (डीआरई/DRE) प्रौद्योगिकियों ने गांवों में स्थानीय समुदायों को अपनी आमदनी बढ़ाने और व्यापार में लगने वाली कड़ी मेहनत कम करने में मदद की है।

कर्नाटक के शिमोगा में आशा मनुगंधी रोटी बनाने और उसे पास के बाजार में बेचने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करती हैं। तस्वीर- प्रणव कुमार
कर्नाटक के शिमोगा में आशा मनुगंधी रोटी बनाने और उसे पास के बाजार में बेचने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करती हैं। तस्वीर- प्रणव कुमार

 

हालांकि, रिसर्च संगठन वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई/WRI) इंडिया के सीनियर प्रोग्राम एसोसिएट लैनविन कॉन्सेसाओ ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि बिजली का यह विकल्प (डीआरई) ऑपरेशन और इसके जीवन चक्र के संदर्भ में, आने वाले वक्त में ग्रामीण समुदायों के लिए सस्ता हो सकता है। 

कॉन्सेसाओ ने कहा, “डीआरई इन समस्याओं का भरोसेमंद समाधान है। यह ग्रिड की तुलना में ग्रामीण उद्यमों और समुदायों को विश्वसनीय और साफ-सुथरी बिजली देता है। इसे शुरुआती निवेश से अलग करके देखने की जरूरत है। शुरुआत में, यह डीजल या ग्रिड से चलने वाले विकल्पों की तुलना में महंगा है लेकिन अगर हम लंबे समय में ऑपरेशन वाले हिस्से को देखें, तो यह सस्ता हो सकता है। पूंजी के लिए वित्त ज्यादातर अनुदान और सब्सिडी के माध्यम से आता है, जिसने कम आय वाले समुदायों को इन समाधानों को खरीदने में मदद की है। गांवों में डीआरई का इस्तेमाल करने वालों की सफलता की कई कहानियां दूसरों को सौर ऊर्जा की तरफ बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं” 


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हालांकि, उन्होंने दावा किया कि इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सभी लोकप्रिय डीआरई प्रौद्योगिकियों के लिए ज्यादा समान नीतियों, मानकों और खासियतों की जरूरत है। उन्होंने कहा, “अगर आप सबसे लोकप्रिय डीआरई प्रौद्योगिकियों की तुलना करते हैं, तो सौर सिंचाई पंप व्यापक और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध विशिष्टताओं और मानकों वाली कुछ तकनीकों में से एक है। विभिन्न सौर पंपिंग योजनाओं के माध्यम से सरकार की ओर से इसे बढ़ावा दिए जाने से इसका विस्तार हो रहा है। हमें डीआरई के अन्य रूपों के लिए उन्हें समान रूप से लोकप्रिय बनाने और उनकी बाजार तक पहुंच बढ़ाने के लिए ज्यादा नीति-संचालित दिशा-निर्देशों और मानकीकरण की आवश्यकता है।

आगे की राह

नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई/MNRE) ने देश भर में डीआरई की पैठ बढ़ाने के लिए इस साल एक फ्रेमवर्क जारी किया है। इसमें सोलर ड्रायर, सोलर कोल्ड स्टोरेज और सोलर राइस मिलिंग जैसे संभावित डीआरई उत्पादों की सांकेतिक सूची के साथ-साथ कपड़ा, खेती और अन्य क्षेत्रों में इसके संभावित इस्तेमाल के बारे में बताया गया है। यह फ्रेमवर्क प्रौद्योगिकी के विस्तार को कारगर बनाने के लिए अलग-अलग मंत्रालयों की कई ऑफ-ग्रिड परियोजनाओं को एक साथ लाने के बारे में भी बात करता है।

इस नीति में ध्यान देने लायक कुछ क्षेत्रों को भी चिन्हित किया गया है जो डीआरई समाधानों की पैठ को बढ़ावा दे सकते हैं। इनमें वित्त पोषण, अपस्केलिंग, ग्रीन अर्थव्यवस्था से जुड़ी नौकरियों के लिए प्रशिक्षित कार्यबल बनाना, डीआरई परियोजनाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए विभिन्न विभागों के बीच समन्वय, रिसर्च और इनोवेशन के लिए वित्त पोषण आदि शामिल हैं।

सरकार ने कॉलेटरल-मुक्त कर्ज सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय संस्थानों के साथ साझेदारी करने की योजना बनाई है ऐसे कर्ज में सरकार आंशिक जोखिम को कवर करते हुए, प्राथमिकता क्षेत्र ऋण व्यवस्था के तहत डीआरआई को शामिल करने की दिशा में काम कर रही है। इसने देश में ग्रीन अर्थव्यवस्था से जुड़ी नौकरियों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कुशल कार्यबल बनाने के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) जैसे कई मौजूदा संस्थानों को शामिल करने का प्रस्ताव भी दिया है।

एमएनआरई फ्रेमवर्क में अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न लाभार्थियों की ऊर्जा जरूरतों के हिसाब से मांग का आकलन करने पर भी जोर है, ताकि उन्हें उनके अनुरूप डीआरई समाधान प्रदान किया जा सके। इसने विभिन्न संस्थानों के साथ इन्क्यूबेशन की मदद से पायलट इनोवेटिव परियोजनाओं के लिए तकनीकी सहायता का भी प्रस्ताव दिया है। मंत्रालय स्टार्ट-अप इंडिया, अटल इनोवेशन मिशन और ऐसी ही अन्य मौजूदा योजनाओं से धन प्राप्त करके क्षेत्र में अनुसंधान और इनोवेशन के लिए वित्तीय मदद देने की भी योजना बना रहा है। नए डीआरआई प्रोजेक्ट के लिए फ्रेमवर्क में एक समान मानक और परीक्षण प्रोटोकॉल बनाने पर भी जोर है।

डीआरआई पर नीति से जुड़े विशेषज्ञों का दावा है कि एमएनआरआई नीति पर जोर के साथ, इस तकनीक पर अधिक ध्यान देने से इस क्षेत्र में निवेश लाने में मदद मिल सकती है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवॉयरन्मेंट और वाटर (CEEW) में निदेशक (Powering Livelihoods) अभिषेक जैन ने कहा, “नवीनतम एमएनआरई नीति ढांचा क्षेत्र के विकास की दिशा में एक प्रमुख कदम है। इस तरह की नीतियों को अक्सर बजटीय आवंटन वाली योजनाओं और कार्यक्रमों से आगे बढ़ाया जाता है। डीआरई के लिए ऐसी योजनाएं ज्यादा निवेश ला सकती हैं और क्षेत्र की कई मौजूदा समस्याओं को दूर कर सकती हैं। यह अब गांवों में आजीविका मिशन, मुद्रा ऋण और इसी तरह की अन्य योजनाओं को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती हैं और डीआरआई समाधानों पर जोर दे सकती है 

कर्नाटक के अलूर में अपने सौर पैनल को साफ करते हुए कुम्हार रघुराम कुलाल। तस्वीर- प्रणव कुमार 
कर्नाटक के अलूर में अपने सौर पैनल को साफ करते हुए कुम्हार रघुराम कुलाल। तस्वीर- प्रणव कुमार

एमएनआरई फ्रेमवर्क डीआरई समाधानों में छिपी अनंत संभावनाओं की ओर भी देखता है। यह कहता है, “डीआरई-संचालित आजीविका समाधानों में विशेष रूप से गांवों में डीजल पर आजीविका की निर्भरता को कम करने और आखिरकार खत्म करने की क्षमता है और यह ग्रिड आपूर्ति का विकल्प बना सकता है।”

मोंगाबे-इंडिया ने जिन सौर डेवलपर से बात की, उन्होंने कहा कि गांवों में ज्यादा से ज्यादा डीआरई के आने से यहां से शहरों की तरफ पलायन को रोकने में मदद मिल सकती है।

आंध्र प्रदेश स्थित रहेजा सोलर के ऑपरेशन हेड परमीत सिंह वाधवा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “ग्रामीण क्षेत्रों में डीआरई की ज्यादा से ज्यादा पैठ से यहां प्रसंस्करण क्षेत्र की तरह रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने में मदद मिल सकती है, ताकि गांवों की शहरों पर निर्भरता कम हो सके। इससे ऐसे क्षेत्रों से पलायन रोकने में भी मदद मिल सकती है। इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए सरकार से ज्यादा मदद के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बदलने की संभावना है।”

 

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बैनर तस्वीर: आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में सौर ड्रायर इकाई में एक महिला। तस्वीर- रहेजा सोलर-पॉवरिंग लाइवलीहुड्स इंटरप्राइज 

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