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कीटनाशक बनाने वाली कंपनी पर किसानों ने लगाया फसलें खराब करने का आरोप, कार्रवाई की मांग

  • भारत दुनिया के सबसे बड़े एग्रोकेमिकल उत्पादक देशों में से एक है। इसे एग्रोकेमिकल के निर्यात आधारित आदर्श उत्पादक के रूप में देखा जा रहा है।
  • ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जिनमें एग्रोकेमिकल से फैलने वाले प्रदूषण की वजह से हवा, मिट्टी, पानी और लोगों की सेहत पर बुरा असर देखा गया है।
  • फसलों पर जरूरत से ज्यादा कीटनाशकों का छिड़काव करने से ये मिट्टी और जमीन के नीचे के पानी में मिल जाते हैं और उन्हें प्रदूषित करते हैं। मिट्टी और गाद में जमे कीटनाशक धीरे-धीरे अपना रास्ता जलाशयों की ओर बना लेते हैं और जलीय पर्यावरण और वहां के जीवन पर भी बुरा असर डालते हैं।
  • मई 2020 में भारत सरकार ने एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया था जिसके तहत 20 तरह के कीटनाशकों के उत्पादन और इस्तेमाल पर रोक लगाई जानी थी। यह आदेश अभी भी ड्राफ्ट के रूप में ही पड़ा है और लागू नहीं हो सका है।

सलीम पटेल, 43, गुजरात के भरूच जिले के वागरा तालुका के त्रालसा गांव में कपास की खेती करते हैं। वह पिछले 16 साल से ज्यादा समय से कपास उगा रहे हैं। उनके पास 22 एकड़ जमीन है जिसमें से आधे से ज्यादा पर कपास की ही खेती होती है। नर्मदा नदी की तलहटी के निचले मैदानों में मौजूद इन खेतों की सिंचाई नहरों से होती है और भरूच की काली उपजाऊ मिट्टी कपास की खेती के लिए आदर्श मानी जाती है।

लगभग दो साल पहले 12 और 15 जुलाई 2021 के बीच, कपास की बुवाई करने के लगभग 55 दिनों के बाद सलीम पटेल ने ध्यान दिया कि कुछ तो गड़बड़ हो रही है। वह मोंगाबे इंडिया से बातचीत में बताते हैं, “कपास के पौधों की पत्तियां ठीक से नहीं बढ़ रही थीं। ऊपर से कपास के पौधों में खराबी आ रही थी। पत्तियां मुड़ जा रही थीं और कटोरे के जैसा आकार बन जा रहा था। मैंने इंतजार किया लेकिन 40-45 दिन बाद भी कोई सुधार देखने को नहीं मिला। फिर पौधे बढ़ने भी बंद हो गए। मुझे पूरी फसल जुतवा देनी पड़ी।”

उसी साल फसलों का नुकसान झेलने वाले एक और किसान मनोज पटेल त्रासला गांव में अपने खेतों की ओर हाथ का इशारा करते हुए बताते हैं, “आमतौर पर पत्तियां पान की तरह होती हैं लेकिन तब सारी पत्तियां खराब होने लगीं। वे अंदर की ओर मुड़ जातीं, ऐंठ जातीं और लंबी होकर सूख जातीं और गिर जातीं।”

जिला प्रशासन ने माना कि इन दोनों किसानों की तरह ही भरूच जिले के पांचों तालुकों- वागरा, अमोध, भरूच, जमबुसार और करजन के 280 गावों के 18 हजार से ज्यादा किसानों की फसलें साल 2021 में खराब हो गईं। लगभग हजार एकड़ कपास की फसल पूरी तरह से खराब और बर्बाद हो गई। गुजरात के किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाली 50 साल पुरानी गैर-लाभकारी संस्था खेड़ुत समाज के भरूच जिले के अध्यक्ष और किसान महेंद्र सिंह करमाड़िया कहते हैं, “ज्यादातर किसानों की 100 प्रतिशत फसलें खराब हो गईं। उस सीजन में हमने करोड़ों रुपये गंवा दिए। सिर्फ कपास की फसल ही खराब नहीं हुई। अरहर की फसलों पर भी बुरा असर हुआ और आसपास लगे नीम और बादाम के पेड़ भी खराब होकर सूखने लगे थे।”

वागरा तालुका के कोठी गांव में कपास की खेती करने वाले 27 वर्षीय किसान अकील कलेक्टर कहते हैं, “ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने हमारी फसलों को जोरदार चपत लगाई हो और उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया हो।”

उसी साल 16 दिसंबर 2021 को दक्षिण गुजरात में खेती और मछली पालन से पर्यावरण के मुद्दों पर काम करने वाली गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर ब्रैकिश वाटर रिसर्च और खेड़ुत समाज ने गुजरात हाई कोर्ट में राज्य की नौ संस्थाओं के खिलाफ जनहित याचिका दायर की। इन संस्थाओं में गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी), जीपीसीबी के वरिष्ठ अधिकारी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और एक निजी एग्रोकेमिकल बनाने वाली कंपनी मेघमणि ऑर्गैनिक्स लिमिटेड शामिल थी। यह याचिका मोंगाबे इंडिया ने भी देखी जिसमें कहा गया है कि गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्राइवेट कंपनी को बचा रहा है। याचिका में कहा गया है, “बोर्ड ने प्रदूषण को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है। इसके एवज में प्राइवेट कंपनी ने बोर्ड को प्रीमियम चुकाया है और अपना उत्पादन और भी ज्यादा बढ़ा लिया है।”

याचिका में कहा गया है कि वैसे तो जीपीसीबी ने बीते समय में प्रदूषण फैलाने वाली इस कंपनी को कई कारण बताओ नोटिस भेजे हैं लेकिन प्रदूषण अभी भी हो रहा है और फसलों पर असर पड़ रहा है। इसका सबसे बुरा असर साल 2021 में देखा गया जब फसलें बड़े स्तर पर बर्बाद हो गईं। याचिका में मांग की गई है कि इस मामले में हाई कोर्ट हस्तक्षेप करे ताकि प्रदूषण को रोका जा सके और भरूच के हजारों किसानों की आजीविका बचाई जा सके।

याचिका दायर किए हुए दो साल हो चुके हैं लेकिन केस अभी भी चल रहा है। याचिकाकर्ता अपने नुकसान के लिए मुआवजा और गलत करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं। किसानों को अपने मुआवजे का इंतजार है। साथ ही, वे चाहतें है कि उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि अब इस तरह की हरकत दोबारा नहीं की जाएगी। वैसे तो जिस यूनिट के प्रदूषण की वजह से यह घटना हुई थी उसे बंद कर दिया गया है लेकिन किसानों को प्रशासन पर भरोसा नहीं है कि यह यूनिट बंद ही रहेगी।

किसानों का कहना है कि 2021 के हादसे के बाद से उनकी फसलें खराब नहीं हुए हैं और अब उत्पादन भी सामान्य स्तर पर लौट आया है। उनका मानना है कि अगस्त 2021 में जब जीपीसीबी ने कंपनी की इस यूनिट को कारण बताओ नोटिस भेजा और इसे बंद किया गया तब जाकर सुधार हुआ है।

हालांकि, जीपीसीबी के ट्रैक रिकॉर्ड और मेघमणि कंपनी (यहां कंपनी दिखाती है कि 2,4 D+ का उत्पादन बढ़ाने के लिए वह उसी इलाके में नया प्लांट लगा रही है) की सालाना रिपोर्ट को देखते हुए किसानों को भरोसा नहीं है कि यह यूनिट ज्यादा समय तक बंद रहेगी।

नर्मदा नदी की तलहटी के निचले मैदानों में मौजूद इन खेतों की सिंचाई नहरों से होती है और भरूच की काली उपजाऊ मिट्टी कपास की खेती के लिए आदर्श मानी जाती है। कनम बेल्ट से लगभग 50 किलोमीटर दूर पड़ने वाला जीआईडीसी का दहेज़ पेट्रोलियम, केमिकल्स एंड पेट्रोकेमिकल्स इनवेस्टमेंट रीजन कई उद्योगों का घर माना जाता है।

खराब हो गई विकास की रफ्तार

ऐसी कई घटनाएं हुईं जो 2021 में जनहित याचिका की वजह बनीं। उसी साल जुलाई महीने में जब किसानों ने अपनी कपास की फसल खराब होने की शिकायत जिला प्रशासन से की तो भरूच के जिला अधिकारी और जिला कृषि अधिकारी ने एक विशेषज्ञों की एक कमेटी बुलाई ताकि यह समझा जा सके कि फसलें क्यों खराब हो रही हैं। सत्रह सदस्यों वाली इस कमेटी में नवसारी कृषि विश्वविद्यालय के कॉटन रिसर्च सेंटर से जुड़े कृषि वैज्ञानिक, गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इंजीनियर और जिला प्रशासन के लोग शामिल थे। इस टीम ने प्रभावित इलाकों का दौरा किया और 22 जुलाई 2021 को अपनी रिपोर्ट दी। मोंगाबे-इंडिया ने भी यह रिपोर्ट देखी। इस रिपोर्ट के एक हिस्से में अवलोकन तो दूसरे में विचार हैं। इस रिपोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि फसलों को किसी कीड़े, बैक्टीरिया या वायरस की वजह से नुकसान नहीं पहुंचा है। कुछ खास इलाकों में ही कपास की फसलों में गड़बड़ी देखी गई, उस क्षेत्र की सभी फसलों में नहीं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि वैसे तो ज्यादा नुकसान कपास की फसलों को ही हुआ है लेकिन अरहर और भिंडी के अलावा बादाम, नीम, धतूरा और खिजड़ो के पेड़ भी सूख गए या उनको नुकसान पहुंचा। ज्वार की फसलों में कोई नुकसान नहीं देखा गया। साल 2012 से 2020 के बीच वागरा तालुका के औद्योगिक क्षेत्र के आसपास की फसलों में इसी तरह के नुकसान के पैटर्न को देखते हुए रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि हवा में मौजूद फीनॉक्सी के तत्व फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि इसके लिए जीपीसीबी समय-समय पर हवा की गुणवत्ता मापे और फीनॉक्सी की मात्रा की जांच करे। जीपीसीबी के प्रतिनिधि ने इस सुझाव वाली रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं किए।

रिपोर्ट में सुझाव दिए गए थे कि विस्तृत तकनीकी अध्ययन किया जाए ताकि यह पता लगाया जा सके कि दहेज की औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले ये प्रदूषक कितनी दूरी तक की फसलों पर असर डाल सकते हैं। इसके अलावा, यह भी अध्ययन किया जाए कि फसलों पर इसका कितना असर पड़ रहा है।

भरूच में अगस्त 2021 की फील्ड विजिट के दौरान अपनी खराब हुई कपास की फसल दिखाता एक किसान। तस्वीर: एमएसएच शेख/बीडब्ल्यूआरसी-सूरत।

लगभग एक महीने तक एक्सपर्ट कमेटी की जांच पड़ताल के बाद वागरा तालुका सीट से विधायक अरुण सिंह अजीत सिंह राणा ने गुजरात के मुख्यमंत्री को एक चिट्ठी लिखी कि उनकी विधानसभा में दहेज की कंपनियों से होने वाले प्रदूषण की वजह से किसानों की फसलें खराब हो रही हैं और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्होंने अपनी चिट्ठी में यह भी लिखा कि बार-बार अनुरोध किए जाने के बावजूद जीपीसीबी इसके बारे में कुछ नहीं कर रहा है।

दस अगस्त को नवसारी कृषि विश्वविद्यालय की फूड क्वालिटी लैब ने अलग-अलग क्षेत्रों में प्रभावित हुई कपास, अरहर, मटर और भिंडी की फसलों का एक विश्लेषण जारी किया। इसके मुताबिक, सभी फसलों में अनुमति से ज्यादा मात्रा में एक केमिकल 2,4-D पाया गया। उदाहरण के लिए, इसकी तय सीमा 0.001mg प्रति किलो है जबकि कलंदरा गांव में कपास की फसलों में 2,4-D केमिकल की मात्रा 0.219mg प्रति किलोग्राम पाया गया।

प्रभावित क्षेत्र से गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (GIDC) का दहेज पेट्रोलियम, केमिकल्स एंड पेट्रोकेमिकल्स इन्वेस्टमेंट रीजन 50 किलोमीटर दूर है। इस इलाके में ज्यादातर कंपनियां ऐसी हैं जो कीटनाशक, केमिकल, दवाएं, धातुएं, डाई और रंग और सभी प्रकार के पेट्रोकेमिकल बनाती हैं। पास ही दहेज बंदरगाह है जो खंभात की खाड़ी में मौजूद है और मल्टी-कार्गो बंदरगाह है। यह देश के सबसे बड़े लिक्विड कार्गो टर्मिनल्स में से एक है। हाइवे पर अक्सर लिक्विड और गैस अवस्था में केमिकल ले जाने वाले टैंकरों की लाइनें दिखाई देती हैं। इस इलाके में हवा हमेशा भारी होती है और केमिकल की तीखी बदबू से भरी होती है। यहां कुछ इलाकों में तो हरियाली होती है और कुछ इलाकों में पेड़ पौधे और झाड़ियां सूख गए होते हैं।

क्या है 2,4-D?

2,4-D या 2,4 डाईक्लोरोफीनोक्साइकेटिक एसिड एक तरह का खरपतवार नाशक और पौधों की बढ़ोतरी करने वाला केमिकल है। इसके फॉर्मूले में एस्टर, एसिड और सॉल्ट शामिल हैं जिनके रासायनिक गुण, पर्यावरणीय व्यवहार और जहरीलापन अलग-अलग होते हैं। यह खरपतवार नाशकों की फीनोक्सी फैमिली का हिस्सा है। इसका इस्तेमाल धरती पर और पानी के वातावरण में किया जाता है। यह पौधों के विकास में सहायक होता है और ऑक्सिन जैसा काम करता है और पौधों में ग्रोथ हार्मोन की तरह बर्ताव करता है। ऑक्सिन जहां पौधों के विकास को रेगुलेट करता है, 2,4-D पौधों की कोशिकाओं में ज्यादा मात्रा में बना रहता है और कम ज्यादा नहीं होता है। इसका नतीजा यह होता है कि कोशिकाओं की बढ़ोतरी बहुत तेजी से होता है। इस तेज गति के कारण उनका ट्रांसपोर्ट सिस्टम बंद हो जाता है और पौधे जल्दी मर जाते हैं। इसे पत्तियों पर तरल अवस्था में छिड़का जाता है।

कुछ स्टडी में दिखाया गया है कि 2,4-D एक तरह का कार्सिनोजेन है और इंसानों में इंडोक्राइन सिस्टम पर बुरा असर डालता है। 14 मई 2020 को भारत सरकार ने एक ड्राफ्ट आदेश जारी किया जिसमें कुल 27 कीटनाशकों को बनाने, उसका आयात करने, बेचने, कहीं भेजने या उसके डिस्ट्रिब्यूशन पर रोक लगा दी गई। इसमें, 2,4-D का नाम भी शामिल था। हालांकि, आज तक यह आदेश ड्राफ्ट नोटिफिकेशन ही है और 2,4-D का इस्तेमाल जारी है।

भारत में कीटनाशकों का डेटा बताता है कि पिछले पांच सालों में 2,4-D का उत्पादन और निर्यात बढ़ गया है। साल 2017-18 में 24,212 मीट्रिक टन कीटनाशकों का निर्यात किया गया जिसकी CIF (कॉस्ट, इंश्योरेंस फ्रेट) वैल्यू 36,847 लाख रुपये थी। साल 2021-22 में इसमें जोरदार बढ़ोतरी हुई और निर्यात किए गए कीटनाशकों की मात्रा 33,070 मेट्रिक टन हो गई और CIF वैल्यू 80,574 लाख रुपये पहुंच गई। वहीं 2017-18 में उत्पादन 25,830 मीट्रिक टन था और 2021-22 में उत्पादन बढ़कर 39,996 मीट्रिक टन हो गया।

कई अध्ययनों में सामने आया है कि 2,4-D ड्रिफ्ट इफेक्ट के जरिए द्विबीजपत्री (Dicotyledon) फसलों पर काफी गंभीर असर हो सकता है। जब 2,4-D केमिकल का छिड़काव किया जाता है तो उसके अणु धूल के कणों से मिल जाते हैं और हवा की दिशा में हवा के साथ ही फैल जाते हैं और फसलों पर चिपककर उनकी बढ़ोतरी को प्रभावित करते हैं। लुइजियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के एग्रीकल्चर सेंटर ने कपास के पौधों को 2,4-D से पहुंची चोट का साल 1948 में अध्ययन किया था। इसमें सामने आया कि दूसरी फसलों पर छिड़के गए केमिकल कपास पर फैल जाते हैं और उसकी खेती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। नुकसान कितना होगा यह कपास के पौधों की वृद्धि की अवस्था पर निर्भर करता है। इसमें ज्यादा और गंभीर नुकसान उस वक्त होता है जब कपास में फूल आने वाले होते हैं। इन पौधों की पत्तियां अंदर की ओर मुड़ जाती हैं, सूख जाती हैं और फिर पीली पड़कर मर जाती हैं। साल 2019 में ICAR के सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉटन रिसर्च के रीजनल स्टेशन कोयंबटूर ने एक हालिया स्टडी में दिखाया कि एस्टर वाले 2,4-D के वाष्पीकरण की वजह से इसकी बूंदें भी इधर से उधर जाती हैं। ज्यादा तापमान, मिट्टी में ज्यादा नमी और तापमान में बदलाव की वजह से ये बूंदें खूब इधर-उधर होती हैं और काफी दूर से ही कपास की फसलों को प्रभावित करती हैं। यह स्टडी यह भी बताती है कि फसल को कितना नुकसान होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कपास के पौधों पर 2,4-D का असर किस अवस्था में हुआ। फूल खिलने से ठीक पहले अगर किसी पौधे पर केमिकल का असर पड़ता है तो फलों के आने में देरी होती है और उसके पकने के लिए कम समय मिलता है और उत्पादन घट जाता है। ज्यादा नुकसान तभी होता है जब फूल आने से पहले ही कपास के पौधों पर 2,4-D का असर हो जाता है। भरूच में ज्यादातर फसलों पर फूल आने से पहले ही इसका असर हो गया था।

अच्छे सीजन में कपास का प्रति एकड़ उत्पादन 10 से 12 क्विंटल का होता है। साल 2021 में भरूच के किसान बड़ी मुश्किल से प्रति एकड़ 3 से 4 क्विंटल कपास ही पैदा कर पाए। कई किसानों के लिए तो उत्पादन बिल्कुल हुआ ही नहीं। करमाड़िया ने मोंगाबे इंडिया से बातचीत में कहा, “भारत दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। भारत में गुजरात सबसे बड़ा कपास उत्पाद राज्य है। गुजरात में भी इस क्षेत्र में काली मिट्टी भरपूर मात्रा में पाई जाती है और इस कनम बेल्ट को कपास उत्पादन के लिए सबसे बेहतर माना जाता है और हमें ही सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है।”

इस हादसे से प्रभावित हुए एक और किसान रफीक पटेल कहते हैं, “मैं पिछले 20 सालों से कपास का किसान रहा हूं लेकिन मैंने अपनी पूरी जिंदगी में इतने बड़े स्तर पर नुकसान नहीं देखा।”

दक्षिण गुजरात में किसानों और मछुआरों के लिए काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर ब्रैकिश वाटर रिसर्च के एमएसएच शेख कहते हैं, “हम कई सालों से 2,4-D के प्रभाव देख रहे हैं लेकिन यह छोटे इलाकों में था।”

13 अगस्त 2021 को भरूच के जिला कलेक्टर ने जिला पंचायत के सदस्यों, जिला प्रशासन, कृषि विभाग, नवसारी यूनिवर्सिटी और जीपीसीबी के वैज्ञानिकों की एक मीटिंग बुलाई थी। याचिका में इस मीटिंग के मिनट्स का भी जिक्र किया गया है, जिसके मुताबिक मीटिंग में चर्चा हुई कि 2015-16 और 2017 में वागरा में फसलों को इसी तरह का नुकसान हुआ था। जीपीसीबी ने अपनी छानबीन के बाद जून 2016 में एक रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था, “M/S मेघमणि ऑर्गैनिक्स लिमिटेड (यूनिट-3) के 2-4 D प्लांट के स्पिन फ्लैश ड्रायर्स से निकलने वाले प्रदूषण की मात्रा 104 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था जो कि जीपीसीबी की ओर से तय मानक 20 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से काफी ज्यादा है।”

याचिका के मुताबिक, अगस्त 2021 में जीपीसीबी ने मेघमणि प्लांट का निरीक्षण किया और कंपनी को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया। इसी बीच किसानों ने विरोध प्रदर्शनों का आयोजन शुरू कर दिया। इस मामले में करमाड़िया मोंगाबे-इंडिया से कहते हैं, “सितंबर से अक्टूबर 2021 तक हमने भरूच के जिला अधिकारी के दफ्तर के सामने प्रदर्शन किए। हमने उस समय के मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की। हम अपने नुकसान के लिए मुआवजा और यह भरोसा चाहते थे कि ऐसा दोबारा नहीं होगा।”

जॉइंट कमेटी के निशाने पर

मेघमणि ऑर्गैनिक्स लिमिटेड, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए केमिकल (रंग और डाई, एग्रोकेमिकल और दवाएं, केमिकल फॉर्मुलेशन और अन्य चीजें) बनाने वाली कंपनियों के समूह मेघमणि ग्रुप का हिस्सा है। भरूच जिले के जीआईडीसी, दहेज में मौजूद इसकी एग्रोकेमिकल यूनिट देश में 2,4-D की सबसे बड़ी उत्पादक इकाइयों में से एक है। नवंबर 2022 में इस कंपनी ने ऐलान किया था कि जीआईडीसी दहेज इलाके में एक और प्लांट लगाएगा ताकि 2,4-D की उत्पादन की क्षमता में 10 हजार मीट्रिक टन की बढ़ोतरी की जा सके और सालाना उत्पादन को 21,600 मीट्रिक टन तक पहुंचाया जा सके। साथ ही, यह भी कहा गया कि इस नई यूनिट से कंपनी का टर्नओवर 200 करोड़ रुपये का होगा। (कीटनाशकों के बारे में मौजूदा डेटा के मुताबिक, देश में 2,4-D के उत्पादन के कुल हिस्से का लगभग 55 प्रतिशत)।

जून 2016 में जीपीसीबी ने मेघमणि ऑर्गैनिक लिमिटेड को बंद करने का आदेश जारी किया था। बोर्ड ने कहा था कि कंपनी से फीनोक्सी एसिड के उत्सर्जन की मात्रा (104 mg/NM क्यूबिक मीटर) सही नहीं है और यह तय मानकों (20 mg/NM) से काफी ज्यादा है। हालांकि, याचिका में कहा गया कि कंपनी ने 2,4-D का उत्पादन बंद नहीं किया। याचिका में ऐसा कहने का तर्क यह है कि लगभग चार महीने बाद जीपीसीबी ने एक निरीक्षण किया और पाया कि ये इकाइयां चालू थीं।


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खेड़ुत समाज और सेंटर फॉर ब्रैकिश वाटर रिसर्च की साल 2021 की याचिका के मुताबिक, भरूच जीपीसीबी के यूनिट हेड ने 16 अक्टूबर 2021 को जिले के कलेक्टर को एक चिट्ठी लिखी। इस चिट्ठी में उन्होंने लिखा कि फसलों को होने वाली गड़बड़ी प्रदूषण की वजह से नहीं बल्कि कम बारिश और खुद किसानों के ही 2,4-D के छिड़काव की वजह से हो रहा है।

सेंटर फॉर ब्रैकिश वाटर रिसर्च के शेख मोंगोबे इंडिया से कहते हैं, “जीपीसीबी ने प्राइवेट कंपनियों से हाथ मिला रखा है। कई बार कारण बताओ नोटिस जारी किए जाने के बावजूद, यह कंपनी अभी भी कैसे काम कर रही है और कुछ हुआ कैसे नहीं? अगर सचमुच कोई नियम है तो उनका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है? किसानों की सेहत और उनकी आजीविका खतरे में है। यह भारत का केमिकल स्टेट बन गया है और यह घटना किसानों के लिए भोपाल गैस त्रासदी से कम नहीं थी। हम जहरीले केमिकल खाना, पीना या उसमें सांस नहीं लेना चाहते हैं। हम तब तक शांत नहीं होंगे जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जातीं।”

भरूच जिले के वागरा तालुके के प्रभावित गांव त्रासला में अपने खेतों में खराब हुई कपास की फसलों के सामने खड़े किसान। तस्वीर: सुप्रिया वोहरा/मोंगाबे।

हाल ही में मई 2022 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और जीपीसीबी की एक संयुक्त कमेटी ने जीआईडीसी द्वारा संचालित दहेज जीआईडीसी में ‘रेड कैटगरी’ की कंपनियों के ड्रेनेज नेटवर्क में बहने वाले गंदे पानी की निरीक्षण किया और इस पर एक रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट फरवरी 2022 में आए एनजीटी के आदेश के बाद तैयार की गई थी। आर्यावर्त फाउंडेशन बनाम हेमानी इंडस्ट्रीज केस में एनजीटी ने सीपीसीबी और जीपीसीबी को आदेश दिया था कि वह निरीक्षण करे और प्रदूषण फैलानी वाली कंपनियों की जिम्मेदारी तय करे। इन कंपनियों में मेघमणि ऑर्गैनिक्स लिमिटेड का नाम भी था। इस रिपोर्ट में कहा गया कि यहां के डिस्चार्ज में नाइट्रेट, सल्फाइड, नाइट्रोजन, बीओडी, टीएसएस और फीनोलिक तत्वों की मात्रा तय मानकों से ज्यादा है। इसके अलावा, खुली जमीन पर रखे गए ड्रम से फीनोल बेस्ड केमिकल या गंदा पानी लीक होने या बहने से जमीन और जमीन के नीच का पानी दूषित होने का खतरा है।

संयुक्त समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जीपीसीबी ने निरीक्षण में नुकसान का आकलन किया और कंपनी को निर्देश दिया कि वह पर्यावरण को नुकसान के मुआवजे (EDC) के रूप में 88,33,46,029 रुपये चुकाए।

जहां यह याचिका कोर्ट में ही चल रही है, वहीं मेघमणि ऑर्गैनिक लिमिटेड ने नवंबर 2022 में एक बड़ी और वैश्विक एग्रोकेमिकल कंपनी के साथ 100 मिलियन डॉलर का सप्लाई एग्रीमेंट किया है। इस समझौते के तहत पांच साल के लिए कुछ खास एग्रोकेमिकल उत्पादों की सप्लाई की जानी है। इसके अलावा, कंपनी ने अपनी 2021-22 की सालाना रिपोर्ट में यह भी ऐलान किया है कि वह 350 करोड़ रुपये की लागत से दहेज में एक और मल्टी परपज प्लांट लगाना है और इससे उसकी आय में 600 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होगी।

इस पूरे मामले पर मेघमणि ऑर्गैनिक्स और जीपीसीपी का पक्ष जानने के लिए जनवरी के आखिर में एक ईमेल भेजी गई थी। अभी तक उस पर कोई जवाब नहीं मिला है।

 

बैनर तस्वीर: सितंबर 2021 में भरूच के जिला कलेक्टर के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन करते किसान।
तस्वीर: खेड़ुत समाज।

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