- आईआईटी दिल्ली की एक स्टडी में पता चला है कि दिल्ली की सड़कों पर कार से चलने वालों की तुलना में साइकिल चलाने वालों को 40 प्रतिशत ज्यादा खतरा होता है।
- जापान की क्युशु यूनिवर्सिटी की एक दूसरी स्टडी में सामने आया कि साइकिल चलाने से पर्यावरण और स्वास्थ्य से जुड़े संयुक्त फायदे हो सकते हैं। इस स्टडी में यह भी सामने आया कि अगर दिल्ली में बिना-मोटर वाली गाड़ियों वाले युग की तरफ कदम बढ़ाया जाए तो 121.5 किलो टन कार्बन डाई ऑक्साइड और 138.9 टन पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 के उत्सर्जन को टाला जा सकता है।
- साइकिल चलाना परिवाहन का एक स्वच्छ माध्यम है। साइकलिंग करने वालों का मानना है कि सरकार को इसमें इंसेंटिव देने चाहिए और साइकलिस्टों के लिए बेहतर नीतियां बनाई जाएं।
नवंबर 2022 में 50 साल के एक बुजुर्ग साइकिल चलाते हुए दिल्ली के महिपालपुर फ्लाईओवर को पार कर रहे थे, पीछे से आई एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी। ये साइकलिस्ट कारोबारी शुभेन्दु बनर्जी थे और इस हादसे के वक्त उन्होंने हेल्मेट पहन रखा था। यह कोई पहला या इकलौता मामला नहीं था जब किसी गाड़ी ने साइकलिस्ट को टक्कर मारी हो। आंकड़े कहते हैं कि 2017 से 2021 के बीच दिल्ली में 249 साइकलिस्टों की जान गई है।
दिल्ली के ज्यादातर साइकलिस्टों के लिए साइकलिंग करना सिर्फ शौक या फिटनेस का तरीका भर नहीं है। इसमें कम खर्च होने की वजह से आने-जाने के लिए भी बहुत सारे लोग साइकिल ही पसंद करते हैं। सुनील मंडल ऐसे ही एक शख्स हैं। सुनील दक्षिणी दिल्ली के लाजपत नगर की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर का काम करते हैं। तुगलकाबाद इलाके में रहने वाले सुनील हर दिन 8 किलोमीटर साइकिल चलाकर अपने ऑफिस पहुंचते हैं। तुगलकाबाद से लाजपत नगर जाने के लिए वह गुरु रविदास मार्ग से होते हुए जाते हैं। इस रास्ते पर आपको साइकिल चलाने वाले कई लोग मिल जाएंगे। सुनील मंडल ने पिछले हफ्ते रविवार को अपने दफ्तर जाते समय मोंगाबे इंडिया से बातचीत में बताया, “अगर मैं बस से जाऊं तो हर महीने 3,000 रुपये खर्च होंगे। इतने पैसे मेरी सैलरी के 30 प्रतिशत के बराबर हैं। मैं सड़क पर साइकिल चलाने के खतरे को जानता हूं। कई बार मुझे चोट भी लगी है। मैंने कई भीषण हादसे भी देखे हैं लेकिन मेरे पास कोई दूसरा चारा नहीं है।”
आईआईटी-दिल्ली ने दिल्ली में साइकिल चलाने वालों के लिए खतरों पर स्टडी के लिए राजधानी की 72 जगहों का चयन किया। तुगलकाबाद इलाका भी इन 72 जगहों में शामिल था। इसके अलावा, गुरु रविदास मार्ग, मथुरा रोड, आउटर रिंग रोड, लोधी रोडी और महात्मा गांधी रोड के बारे में भी स्टडी की गई। स्टडी में सामने आया कि दिल्ली की इन सड़कों पर साइकिल चलाने वालों को कार चलाने वालों की तुलना में 40 गुना ज्यादा और बाइक चलाने वालों की तुलना में दो गुना ज्यादा खतरा होता है।
इस स्टडी में इन सड़कों पर सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच चलने वाली गाड़ियों के प्रकार और उनकी संख्या का विश्लेषण किया गया। इसके जरिए कोशिश यह जानने की थी कि अलग-अलग समय पर कार, बाइक और साइकिल सवार औसतन कितनी दूरी तय करते हैं और सड़कों पर उनकी संख्या कितनी होती है। स्टडी के मुताबिक, दिल्ली में साइकिल चलाने वाले लोग हर साल 2.5 बिलियन किलोमीटर, कार चलाने वाले 48.8 बिलियन किलोमीटर और बाइक चलाने वाले 41.39 बिलियन किलोमीटर की दूरी तय करते हैं।
इस स्टडी में साइकिल, बाइक और कार चलाने वाले लोगों के लिए फैटलिटी रिस्क (किसी भी व्यक्ति के सड़क हादसे में जान गंवाने की प्रायिकता) का आकलन किया गया। प्रति बिलियन किलोमीटर के हिसाब से यह देखा गया कि सबसे ज्यादा खतरा साइकिल चलाने वालों को था। प्रति बिलियन किलोमीटर के हिसाब से साइकिल सवारों के लिए फैटलिटी रिस्क 20.8, बाइक वालों के लिए 9.5 और कार वालों के लिए 0.53 था। दुनिया के बड़े शहरों से तुलना करें तो ये आंकड़े काफी उलट थे। लंदन में साइकिल वालों के लिए फैटलिटी रिस्क सिर्फ 9 है जबकि बाइक के लिए 28.7 और कार चलाने वालों के लिए 12.3 है।
स्टडी के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली की सड़कों पर 2017 से 2019 के बीच हर साल 52 साइकिल सवारों की जान गई। इसी दौरान बाइक चलाने वाले 541 लोगों और कार सवार 52.6 लोगों की जान गई। इन आंकड़ों के हिसाब फैटलिटी रिस्क की गणना की गई और इस संख्या में गाड़ियों के हर प्रकार के लिए एनुअल पर्सन किलोमीटर्स ट्रैवेल्ड से भाग दिया गया।
यह स्टडी करने वाले आईआईटी दिल्ली के ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च एंड इंजरी प्रिवेंशन सेंटर (TRIP सेंटर) के असिस्टेंट प्रोफेसर राहुल गोयल ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि साइकलिंग के हिसाब से शहरों की प्लानिंग करने में सबसे बड़ी समस्या यह है कि डेटा की भारी कमी है। साइकिल चलाने वालों की सुविधाओं के लिए बनाई जाने वाली योजनाएं ज्यादातर अस्थायी चीजों पर आधारित होती हैं न कि पर्याप्त डेटा पर।
राहुल गोयल आगे बताते हैं, “दिल्ली में मथुरा रोड और अन्य इंडस्ट्रियल इलाकों में काम पर जाने के लिए हजारों लोग साइकिल चलाकर जाते हैं। आप देखेंगे कि इन इलाकों में मौजूद साइकलिंग ट्रैक ज्यादा ठीक नहीं हैं। अगर हम यह समझना चाहें कि हमें किस तरह की नई खोज की जरूरत है या फिर सुरक्षा बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए या हमारे प्रयासों की सफलता कितनी रही तो हमें डेटा की जरूरत है। चाहे नीति बनाने की बात हो या फिर सरकार की ओर से सुझाए गए हल का परिणाम क्या रहा यह जानना हो, हमें हर चीज के लिए डेटा की जरूरत है।”
वह आगे बताते हैं कि दुनिया में साइकिल फ्रेंडली शहरों और देशों में डेटा इकट्ठा करने के लिए सड़कों पर ऑटोमैटिक सेंसर लगाए जाते हैं, सीसीटीवी फुटेज का इस्तेमाल किया जाता है और मैनुअल काउंटिंग भी की जाती है। इसकी मदद से किसी सड़क के किसी हिस्से पर चलने वाली साइकिलों की संख्या गिनने और उनकी तय की गई दूरी मापी जाती है।
राहुल गोयल आगे कहते हैं, “अलग-अलग राज्यों में साइकलिंग ट्रैक के लिए अलग-अलग डिजाइन बनाए गए हैं। अगर हम यह भी जानना चाहें कि किस तरह के ट्रैक की मांग ज्यादा है और किनकी मांग कम है, तो हमें इसके लिए भी डेटा की जरूरत है।”
प्रदूषण से भरी दिल्ली में क्यों है साइकलिंग की जरूरत
भारत में खासकर दिल्ली में वायु प्रदूषण की बढ़ती मात्रा को देखते हुए अनुमान लगाया जाता है कि साइकिल का इस्तेमाल करने से कार्बन उत्सर्जन और पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 को कम करने में मदद मिल सकती है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण का प्राथमिक कारण गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण है जो कि इंसान की सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। कई स्टडी में सामने आया है कि अगर गाड़ियों से निकलने वाले PM 2.5 से होने वाले संपर्क को कम किया जा सके तो दिल्ली में वायु प्रदूषण से होने वाले जानलेवा खतरे को काफी कम किया जा सकता है। जापान की क्युशु यूनिवर्सिटी की स्टडी में सामने आए डेटा के मुताबिक, पिछले तीन दशकों में दिल्ली के अंदर प्रदूषण चार गुना बढ़ गया है। वहीं, दिल्ली में गाड़ियों की संख्या में 28 गुना इजाफा हुआ है। दिल्ली में होने वाले कुल वायु प्रदूषण का 25 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ ट्रांसपोर्ट सेक्टर से आता है।
निशात तसनीम टूस्टी के साथ इस स्टडी को लिखने वाले तवूस भट और हूमन फरजानेह बताते हैं कि साइकिल का इस्तेमाल करने से न सिर्फ पर्यावरण को लाभ होगा बल्कि सेहत के लिहाज से भी यह फायदेमंद है। तवूस भट ने मोंगाबे इंडिया से कहा, “हमने एक ऐसा अध्ययन किया जिसमें यह समझने की कोशिश की गई कि अगर दिल्ली में मोटर से चलने वाली गाड़ियों की जगह में नॉन-मोटराइज्ड गाड़ियों और साइकिल का इस्तेमाल किया जाए तो इसका पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ेगा। हमने दिलशाद गार्डन, झिलमिल, अशोक नगर, नंद नगरी और सीमा पुरी जैसे इलाकों में भी जमीनी सर्वे किए।”
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इस स्टडी में दिल्ली के 11 जिलों में किए गए जमीनी सर्वे और अन्य मौजूद डेटा के विश्लेषण को शामिल किया गया। इसके जरिए, नॉन-मोटराइज्ड गाड़ियों और साइकिल के इस्तेमाल और पैदल चलने की वजह से हवा की बेहतर गुणवत्ता और जनता की सेहत पर इसका असर जानने की कोशिश की गई। स्टडी में दावा किया गया कि बिना मोटर वाली गाड़ियों का इस्तेमाल करने पर और साइकिल चलाने और पैदल चलने पर दिल्ली में हर साल 1,21,500 टन कार्बन उत्सर्जन और 138.9 टन PM 2.5 को कम किया जा सकता है। यह भी कहा गया कि PM2.5 से संपर्क को कम करके और शारीरिक गतिविधि को बढ़ाकर दिल्ली में 17,529 मौतों को कम किया जा सकता है और 4,870 मिलियन डॉलर बचाए जा सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली की 55 प्रतिशत जनता किसी न किसी बड़ी सड़क के 500 मीटर के दायरे में ही रहती है। इसकी वजह से वह गाड़ियों से निकलने वाले हानिकारक प्रदूषण के संपर्क में आती है। दिल्ली के नॉर्थ ईस्ट और सेंट्रल जिलों में आम लोग सड़कों के ज्यादा पास में रहते हैं। इन इलाकों में अगर मोटरगाड़ियों की बजाय साइकिल का इस्तेमाल किया जाए तो लोगों की सेहत पर अच्छा असर पड़ सकता है।
मौजूदा डेटा के मुताबिक, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति 2015 से नवंबर 2021 के बीच देश की राजधानी में हवा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए 4.7 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। इसके अलावा दिल्ली ने इलेक्ट्रिक बसें खरीदकर शहर की हवा बेहतर करने के लिए 600 मिलियन डॉलर खर्च करने की योजना बनाई है।
दिल्ली महिला आयोग के साथ काम करने वाले दलीप सिंह सबरवाल जमकर साइकिल चलाते हैं और साइकिल से ही दफ्तर आते हैं। वह सोशल मीडिया पर भी दिल्ली में साइकिल चलाने वालों के लिए जमकर बातें कहते हैं। मोंगाबे इंडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि पिछले साल ही उन्होंने दिल्ली की सड़कों पर 6 भीषण एक्सीडेंट देखे हैं। उनका मानना है कि अगर सरकार ट्रांसपोर्ट के सबसे स्वच्छ माध्यम को बढ़ावा देना चाहते हैं तो उसमें इंसेंटिव योजनाएं लानी चाहिए और कार वालों के बजाय साइकिल वालों के लिए बेहतर नीतियां बनानी चाहिए।
वह आगे बताते हैं, “कई जगहों पर सड़कों पर साइकिल ट्रैक ही नहीं हैं। कई जगहों पर जहां साइकिल ट्रैक हैं भी वहां भी लोगों ने उन पर कब्जा कर रखा है। मॉल और दफ्तरों में साइकिल की पार्किंग के लिए जगह नहीं है। हैरान करने वाली बात है कि प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों के लिए पार्किंग है, जगह है और मूलभूत ढांचा भी है लेकिन साइकिल चलाने वालों को अपने पर छोड़ दिया गया है कि वे खुद ही जूझें।”
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बैनर तस्वीर: साइकलिंग के खराब मूलभूत ढांचे और मोटरगाड़ियों के हिसाब से डिजाइन किए गए शहर दिल्ली में साइकलिंग की संभावनाओं को बेहतर बनाने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा हैं। तस्वीर- राहुल गोयल