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बाघों की बढ़ती आबादी को संभालने में कितने सक्षम हैं भारत के जंगल

भारत में अब अतिरिक्त 1,000-1,200 बाघों को ही रखा जा सकता है, न कि 10,000 बाघों को, जो एक सदी पहले हुआ करते थे। संख्या में बढ़ोतरी के बदले बाघों की आबादी में टिकाऊपन जरूरी है। तस्वीर- कंदुकुरु नागार्जुन/फ़्लिकर 

भारत में अब अतिरिक्त 1,000-1,200 बाघों को ही रखा जा सकता है, न कि 10,000 बाघों को, जो एक सदी पहले हुआ करते थे। संख्या में बढ़ोतरी के बदले बाघों की आबादी में टिकाऊपन जरूरी है। तस्वीर- कंदुकुरु नागार्जुन/फ़्लिकर 

  • ताजा गणना के मुताबिक भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 3,167 हो गई है।
  • जानकारों का मानना है कि भारत में बाघों की आबादी सैचुरेशन यानी अपने चरम वाली स्थिति में पहुंच गई है। इसलिए उनके टिकाऊ विकास और मानव-बाघ संघर्ष पर चर्चा तेज हो गई है।
  • जनगणना से पता चलता है कि आवासों के खत्म होने और उनके बंटने से बाघों की आबादी के बीच के संपर्क को नुकसान पहुंच रहा है।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि पर्यटन और अन्य गतिविधियों का पहला फ़ायदा स्थानीय समुदाय को मिलना चाहिए।

पांच दशक पहले की बात है, देश में बाघों की पहली गिनती के नतीजों ने सरकार के लिए खतरे की घंटी बजा दी थी। बाघों की आबादी घटकर 1,827 पर आ गई थी। यह संख्या 20वीं सदी के शुरू में अनुमानित 20,000-40,000 से काफी कम थी। इसी खतरे को भांपते हुए 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ शुरू किया गया। यह कार्यक्रम आज भी भारत में बाघों को बचाने की सबसे बड़ी मुहिम है। 

अब, प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे हो चुके हैं। जंगली बाघों की संख्या अनुमानित 3,167 पर पहुंच गई है। ताजा आंकड़ों से इसकी पुष्टि होती है।

ताजा गिनती के नतीजे

जनगणना रिपोर्ट-बाघों की स्थिति 2022 (Status of Tigers 2022)- 9 अप्रैल को जारी की गई। इसमें शामिल आंकड़े चरणबद्ध तरीके से जुटाए गए हैं। भारत के वन क्षेत्र के 40 हजार वर्ग किलोमीटर में यह सर्वे किया गया। इसमें वन विभाग के कर्मचारियों, कैमरा ट्रेपिंग और रिमोट सेंसिंग की मदद से लैंडस्केप लेवल का डेटा जनरेट करके और सेकेंडरी डेटा सोर्स का इस्तेमाल करके आंकड़े जुटाए गए हैं। ताजा सर्वे, पिछले सालों में किए गए सर्वे के मुकाबले सबसे बड़ा है।

सर्वे के मुताबिक देश में 3,167 बाघ होने का अनुमान है। इसमें देश भर में 32,588 जगहों पर लगाए गए कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल करके 3,080 व्यक्तिगत बाघों की तस्वीर खींची गई।

देश में बाघ कहां-कहां हैं, इस बारे में विस्तार से जानकारी आने वाले दिनों में जारी की जाएगी। 

साल 2006 के बाद से बाघों की आबादी दोगुनी हो गई है। इसके बावजूद, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बाघों की आबादी भारत में सैचुरेशन वाली स्थिति में पहुंच गई है और बाघ संरक्षण को टिकाऊ विकास के नजरिए से देखा जाना चाहिए। तस्वीर- केशव995/विकिमीडिया कॉमन्स
साल 2006 के बाद से बाघों की आबादी दोगुनी हो गई है। इसके बावजूद, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बाघों की आबादी भारत में सैचुरेशन वाली स्थिति में पहुंच गई है और बाघ संरक्षण को टिकाऊ विकास के नजरिए से देखा जाना चाहिए। तस्वीर– केशव995/विकिमीडिया कॉमन्स

भारत के विशाल भौगोलिक विस्तार को देखते हुए सर्वेक्षण के लिएबाघों के आवासों को पाँच प्रमुख लैंडस्केप में बांटा गया था।

शिवालिक और गंगा के बाढ़ वाले मैदानी लैंडस्केप में, कैमरों पर दर्ज बाघों की संख्या 2018 में 646 से बढ़कर 2022 में 804 हो गई। मध्य भारत के हाइलैंड और पूर्वी घाट लैंडस्केप में, 2018 में 1,033 के मुकाबले 1,161 बाघ पाए गए। सुंदरबन वाले लैंडस्केप में, बाघों की आबादी 2022 में 100 तक पहुंच गई। साल 2018 में यह तादाद 88 थी। आखिरी सर्वेक्षण 2018 में किया गया था।

दो लैंडस्केप ऐसे भी हैं, जहां बाघों की संख्या घटी है। पश्चिमी घाट लैंडस्केप में, बाघों की संख्या 2018 में 981 के मुकाबले 2022 में घटकर 824 पर आ गई। पूर्वोत्तर की पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र के मैदानी इलाकों में भी बाघों की संख्या में कमी आई है। यहां 2018 में 219 की तुलना में ताजा सर्वेक्षण में 194 बाघ देखे गए।

प्रोजेक्ट टाइगर का सफर और बाघों की अनुमानित संख्या

जानकार प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बाघों के संरक्षण को दो व्यापक चरणों में बांट कर देखते हैं। पहला चरण 1970 के दशक में शुरू हुआ जब वन्यजीवों और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए। इससे बाघ अभयारण्यों का निर्माण हुआ और बाघों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए गए। पगमार्क यानी पंजे के निशानों की सहायता से बाघों की गिनती की गई।

संरक्षण जीवविज्ञानी फैयाज खुदसर ने मोंगाबे-इंडिया को बताया,तब वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी थी। जंगल के भीतर काम करने वाले वन कर्मचारी भी उतने सक्षम नहीं थे। हमारा दृष्टिकोण भी सीमित था क्योंकि संरक्षण गतिविधियां खास तरह के बाघ अभयारण्य तक ही सीमित थीं। कुछ जगहों पर पर्यटन भी अनियंत्रित, अनियमित था।” 

राजस्थान के सरिस्का अभयारण्य में एक तालाब। प्रोजेक्ट टाइगर के तहत वन्यजीवों और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए। इससे बाघ अभयारण्यों का निर्माण हुआ और बाघों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए गए। तस्वीर- कोरी थिस/विकिमीडिया कॉमन्स 
राजस्थान के सरिस्का अभयारण्य में एक तालाब। प्रोजेक्ट टाइगर के तहत वन्यजीवों और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए। इससे बाघ अभयारण्यों का निर्माण हुआ और बाघों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए गए। तस्वीर– कोरी थिस/विकिमीडिया कॉमन्स

साल 2005 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा तहकीकात के बाद सरकार ने लैंडस्केप-स्तरीय दृष्टिकोण अपनाया। इसी जांच में पता चला कि अवैध शिकार के चलते सरिस्का टाइगर रिजर्व से बाघों की आबादी खत्म हो गई।

खुदसर ने कहा, सरिस्का में बने हालात के बाद ही बाघ टास्क फोर्स का गठन हुआ। बाद में, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) का गठन किया गया। यह दूसरे चरण की शुरुआत थी। “इसके बाद, लैंडस्केप दृष्टिकोण अपनाया गया था। इसने अखिल भारतीय बाघ जनसंख्या अनुमान के नियमितीकरण को जन्म दिया। हमने बाघों की संख्या का पता लगाने के लिए कैमरा ट्रैप भी शुरू किया। यहां तक कि रेडियोटेलीमेट्री को भी इस्तेमाल में लाया गया। ये कुछ उन्नत तरीके अपनाए गए हैं क्योंकि हम अपने दृष्टिकोण को व्यापक करते हुए लैंडस्केप वाली स्थिति में आ गए हैं।

मौजूदा हालात

साल 2006 में वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमला करते हुए पहली बार बाघों की आबादी का अनुमान लगाया गया। इससे पता चला कि भारत में बाघों की आबादी खतरनाक स्तर तक गिर गई है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि जंगल में सिर्फ 1,411 बाघ बचे हैं। प्रभावी रणनीतियों, अग्रिम पंक्ति के वन कर्मचारियों की क्षमता निर्माण और तकनीकी और डिजिटल एप्लिकेशन के इस्तेमाल ने सालों से बाघों की संख्या को बढ़ाने में मदद की है।

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में बाघों की आबादी अब सैचुरेशन के करीब पहुंच गई है – इसका मतलब है कि बाघों के कुछ आवास या संरक्षित क्षेत्र चरम क्षमता तक पहुंच गए हैं। यानी इन जगहों पर फिलहाल जितने बाघ हैं, उतने ही यहां रह सकते हैं।

ग्लोबल टाइगर फोरम के महासचिव राजेश गोपाल ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि भारत में अब अतिरिक्त 1,000-1,200 बाघों को ही रखा जा सकता है। न कि 10,000 बाघों को, जो एक सदी पहले हुआ करते थे। उन्होंने मानव-बाघ संघर्ष को कम करने के लिए स्थायी दृष्टिकोण अपनाने पर जोर देते हुए कहा,उच्च स्तर तक पहुँचने (जनसंख्या) की तुलना में स्थिरता ज्यादा जरूरी है। हम उन क्षेत्रों में अतिरिक्त बाघों को रख सकते हैं जहां अब बाघ नहीं हैं।” 

बंगाल टाइगर, ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान, भारत । तस्वीर- ग्रेगोइरे डुबोइस/फ़्लिकर
बंगाल टाइगर, ताडोबा राष्ट्रीय उद्यान, भारत । तस्वीर– ग्रेगोइरे डुबोइस/फ़्लिकर

गोपाल ने कहा कि स्रोत-सिंक की गतिशीलता को बनाए रखने के लिए समस्या मुक्त वन्यजीव गलियारे अहम हैं। स्रोतएक उच्च गुणवत्ता वाला आवास है जो बाघों की आबादी को बढ़ाने में मदद करता है। वहीं सिंकएक निम्न गुणवत्ता वाला आवास है जो आबादी बढ़ाने में सक्षम नहीं है।

उन्होंने कहा, “स्रोत और सिंक के बीच संबंध अहम है। स्थानीय लोग, विभिन्न सरकारी विभाग, औद्योगिक और व्यावसायिक समूह, साथ ही हाइडल, खनन, राजमार्ग परियोजनाओं में शामिल एजेंसियां हैं। हमें बाघों को बचाने में इन सभी को शामिल करने की जरूरत है।

साल 2022 में की गई बाघों की गिनती में वन्यजीवों के आवास से जुड़ी कई प्रमुख समस्याओं को सामने रखा गया था। इनमें अतिक्रमण, खनन और बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसी चीजें शामिल थी। यह भारत में बाघों के दीर्घकालिक अस्तित्व को पक्का करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण के एक हिस्से के रूप में बाघों के आवासों के विस्तार, जनसंख्या कनेक्टिविटी को संरक्षित करने की वकालत करता है।

बुनियादी ढांचे का विकास और बाघों की आबादी के बीच कनेक्टिविटी

संरक्षित क्षेत्रों के बाहर बाघों की बढ़ती आबादी के चलते मानव-बाघ संघर्ष बढ़ा है। बाघों के कई क्षेत्रों और वन्यजीव गलियारों में इनके आवास को नुकसान हुआ है। इनके आवास बंट गए हैं। इससे इंसान और बाघ के बीच टकराव की तीव्रता और इनकी संख्या बढ़ रही है। अतिक्रमण, शहरीकरण, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का विकास, खनन गतिविधियां इसके प्रमुख कारण हैं।

संरक्षणवादी प्रेरणा सिंह बिंद्रा ने बाघों की बढ़ती संख्या को “सराहनीय” कहा। हालांकि उन्होंने अहम आवासों के खत्म होने पर चिंता भी जताई। वो कहती हैं, “सबसे बड़ी चुनौती आवासों को बचाना है। बाघ संरक्षण में भारत की प्रतिबद्धता और उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। लेकिन, हम आवासों को खत्म और खंडित नहीं कर सकते – यहां तक कि सबसे पवित्र बाघ क्षेत्रों को भी। एक उदाहरण पन्ना टाइगर रिजर्व है, जिसका लगभग 90 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा, जिसमें मुख्य महत्वपूर्ण आवास भी शामिल है।

बाघों के कई क्षेत्रों और वन्यजीव गलियारों में इनके आवास को नुकसान हुआ है। इनके आवास बंट गए हैं। इससे इंसान और बाघ के बीच टकराव की तीव्रता और इनकी संख्या बढ़ रही है। तस्वीर- लिंडा डी वोल्डर/फ़्लिकर 
बाघों के कई क्षेत्रों और वन्यजीव गलियारों में इनके आवास को नुकसान हुआ है। इनके आवास बंट गए हैं। इससे इंसान और बाघ के बीच टकराव की तीव्रता और इनकी संख्या बढ़ रही है। तस्वीर– लिंडा डी वोल्डर/फ़्लिकर

योजना है। वहीं गोवा और उत्तर कन्नडा के प्रमुख बाघ आवासों में हाइवे और रेलवे के विस्तार की योजना है। बाघों के आवास और गलियारों को इस तरह खंडित करने से वे द्वीप (बन जाएंगे) और बाघों की आबादी अलग-थलग हो जाएगी। इससे उनके भविष्य से समझौता होगा क्योंकि इससे जीन प्रवाह का मामला बनने की संभावना है।

बिंद्रा ने कहा कि वन संरक्षण कानून में प्रस्तावित संशोधन और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) का कागजी शेर होना बाघ संरक्षण के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि वे वन्यजीव आवासों के लिए सुरक्षा उपायों को कमजोर करते हैं।

क्या शिकार अब भी समस्या है?

पिछले एक दशक में बाघों के अवैध शिकार की तीव्रता और इनकी संख्या में काफी कमी आई है। लेकिन भारत में कुछ बाघ क्षेत्र अब भी असुरक्षित हैं।

ताजा बाघ गणना पूर्वोत्तर, पश्चिमी घाट और सुंदरबन में बाघों के अवैध शिकार के खतरों पर रोशनी डालती है। वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया के निदेशक नितिन देसाई ने कहा कि संगठित नेटवर्क और अंतरराष्ट्रीय गिरोहों की तरफ से अवैध शिकार की गतिविधियों में काफी कमी आई है।

उन्होंने कहा, “प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा की गई कड़ी कार्रवाई के चलते 2013 के बाद से अवैध शिकार की गतिविधियों में भारी गिरावट आई है। मध्य भारत स्थित शिकारियों का नेटवर्क पूरी तरह खत्म हो गया है। वहीं एक दशक पहले की तुलना में उत्तर भारत से चल रहे नेटवर्क की तरफ से अवैध शिकार की गतिविधियों में 20 प्रतिशत तक कमी आई है।

हालांकि देसाई ने कहा कि बाघ छोटे जानवरों के लिए लगाए जाने वाले जाल में फंसकर मारे जाते हैं। उन्होंने कहा, कई जगहों पर छोटे जानवरों का शिकार अभी भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। कई बार बाघ ऐसे जाल में फंसकर मर जाते हैं। स्थानीय अवैध शिकार एक गंभीर मुद्दा है

स्थानीय समुदायों का साथ जरूरी

हालांकि आने वाले समय में मानव-बाघ संघर्ष में बढ़ोतरी हो सकती है विशेषज्ञ संरक्षण कार्यक्रम में स्थानीय, मूल निवासियों की सक्रिय भागीदारी का सुझाव देते हैं।

खुदसर ने कहा कि लोगों को यह समझाना होगा कि जैव विविधता के लिए बाघ क्यों जरूरी हैं। “जहां कहीं भी बाघों की व्यवहार्य आबादी होती है, घास के अद्भुत मैदान पाए जाते हैं। इसका मतलब बेहतर जल रिसाव है, जिससे फसल की उत्पादकता बेहतर होती है। हमें लोगों को जागरूक करने की जरूरत है कि बाघ का मतलब समृद्धि है।

संरक्षण और पर्यटन गतिविधियों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी स्पष्ट होती जा रही है। यह अनुमान लगाया गया है कि देश में बाघ अभयारण्य स्थानीय समुदायों के लिए सालाना 50 लाख से अधिक दिनों का रोजगार सृजित कर सकते हैं।

संरक्षण और पर्यटन गतिविधियों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी स्पष्ट होती जा रही है। यह अनुमान लगाया गया है कि देश में बाघ अभयारण्य स्थानीय समुदायों के लिए सालाना 50 लाख से अधिक दिनों का रोजगार सृजित कर सकते हैं। तस्वीर- डे.संदीप/विकिमीडिया कॉमन्स 
संरक्षण और पर्यटन गतिविधियों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी स्पष्ट होती जा रही है। यह अनुमान लगाया गया है कि देश में बाघ अभयारण्य स्थानीय समुदायों के लिए सालाना 50 लाख से अधिक दिनों का रोजगार सृजित कर सकते हैं। तस्वीर– डे.संदीप/विकिमीडिया कॉमन्स

लेकिन, स्थानीय समुदायों की भूमिका को छोटे-मोटे काम करने तक ही सीमित किए जाने को लेकर चिंताएं हैं।

बिंद्रा ने कहा, “स्थानीय समुदाय बाघों के साथ सह-अस्तित्व की भूमिका में हैं। वो संरक्षण (जिम्मेदारी) का भार उठाते हैं। उन्हें बाघ अभयारण्यों में और उसके आसपास पर्यटन और अन्य गतिविधियों का पहला लाभार्थी होना चाहिए। उन्हें अलग करना प्रतिकूल है, और उन्हें संरक्षण में भागीदार बनाया जाना चाहिए।


और पढ़ेंः [समीक्षा] बाघ के अतीत और वर्तमान की रोचक कहानियां बताती किताब ‘बाघ, विरासत और सरोकार’


खुदसर के विचार भी कुछ ऐसे ही हैं। उन्होंने कहा,हमें यह देखना चाहिए कि हम स्थानीय समुदायों के साथ किस तरह साझेदारी विकसित कर सकते हैं। अत्यधिक संवेदनशील बफर क्षेत्रों में खेती के काम को स्थानीय लोगों के साथ प्रबंधित किया जा सकता है। यह विश्वास के साथ-साथ जिम्मेदारी भी पैदा करेगा।

टिकाऊ भविष्य के लिए ठोस उपाय

हालांकि भारत में बाघों का शिकार करना अवैध है। विशेषज्ञों का कहना है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन्यजीवों को दूसरी जगह भेजना और गर्भनिरोधक के विकल्प हैं।

जाने-माने जीवविज्ञानी और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के पूर्व डीन वाईवी झाला ने कहा कि छत्तीसगढ़, झारखंड, असम, उड़ीसा और अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में ऐसे जंगलों में बाघ लाए जा सकते हैं जहां इनकी संख्या कम है या फिर कोई बाघ नहीं है। 

“हालांकि, इन क्षेत्रों में फिलहाल शिकार की कोई समस्या नहीं है। यह बुशमीट (bushmeat) के सेवन के चलते होता है। छत्तीसगढ़ के इंद्रावती, अचानकमार और झारखंड के पलामू जैसे कुछ क्षेत्रों में उग्रवाद और अवैध शिकार के कारण बाघों की आबादी कम है। इन क्षेत्रों के अधिक (अधिशेष) बाघों का स्थानांतरण किया जा सकता है, लेकिन पहले इन क्षेत्रों को बाघों के लायक बनाना होगा। हम 10 साल से इन समस्याओं से वाकिफ हैं लेकिन जिस तरह से प्रगति होनी चाहिए थी वह नहीं हुई।

भारत के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बंगाल टाइगर। तस्वीर- ग्रेगोइरे डुबोइस/फ़्लिकर 
भारत के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बंगाल टाइगर। तस्वीर- ग्रेगोइरे डुबोइस/फ़्लिकर

खुदसर ने कहा कि बाघ प्रबंधन के मुद्दे को भावनात्मक नहीं बल्कि वैज्ञानिक रूप से देखा जाना चाहिए। अगर कोई बाघ मानव बस्ती के करीब जा रहा है और लोगों को नुकसान पहुँचा रहा है, तो विशेषज्ञों द्वारा सुझाई गई वैज्ञानिक प्रक्रिया को जरूर अपनाया जाना चाहिए। कोई भावना नहीं होनी चाहिए। क्योंकि बाघ के कारण लोगों को परेशानी हो रही है। यह संरक्षण के सर्वोत्तम हित में है।”

झाला ने कहा कि बाघों के जन्म को नियंत्रित करने के लिए इम्यूनोकॉन्ट्रासेप्शन एक व्यवहार्य और सुरक्षित गर्भनिरोधक तरीका है। उन्होंने कहा, “आपको जानवर को पकड़ने की ज़रूरत नहीं है। आपको दूर रहकर डार्ट करना होगा। यह एक ऐसा तंत्र है जिसके द्वारा शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली ओवा पर हमला करती है और इसे शुक्राणु के लिए अभेद्य बनाती है। जानवर को कोई नुकसान नहीं होता है। इसका उपयोग अमेरिका और अफ्रीका में किया गया है। इस पर डब्ल्यूआईआई की एक परियोजना है। लेकिन कोई फंडिंग नहीं है

 

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बैनर तस्वीर: भारत में अब अतिरिक्त 1,000-1,200 बाघों को ही रखा जा सकता है, न कि 10,000 बाघों को, जो एक सदी पहले हुआ करते थे। संख्या में बढ़ोतरी के बदले बाघों की आबादी में टिकाऊपन जरूरी है। तस्वीरकंदुकुरु नागार्जुन/फ़्लिकर  

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