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देश में बढ़ रही नेट-ज़ीरो इमारतें लेकिन सरकारी नियमों की कमी से रफ्तार धीमी

बेंगलुरु का एक विहंगम दृश्य। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

बेंगलुरु का एक विहंगम दृश्य। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

  • पिछले कुछ सालों में देश में कई इमारतों ने नेट-ज़ीरो का तमगा हासिल किया है। इन इमारतों ने सिर्फ नवीन ऊर्जा के बल पर अपनी सालाना ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया है। साथ ही ऊर्जा दक्षता भी बढ़ाई है।
  • केंद्र सरकार के पास फिलहाल मॉडल बिल्डिंग उप-नियम, ऊर्जा संरक्षण बिल्डिंग कोड हैं। ये भवन डिजाइन में साफ-सुथरी ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देते हैं। लेकिन व्यापक मानदंडों की कमी है।
  • इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) ने 2018 में नेट-ज़ीरो इमारतों की खुद से रेटिंग शुरू की, जहां नवीन ऊर्जा के इस्तेमाल के अलावा ऊर्जा-कुशल भवन डिजाइन और जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम डिजाइनों को भी महत्व दिया गया।

कर्नाटक के उडुपी जिले के कुन्दापुरा में बदरिया जुमा 15,000 वर्ग फ़ीट में फैली मस्जिद है। मस्जिद की अन्य लोकप्रिय डिजाइनों के विपरीत इस धार्मिक इमारत का एक अलग रूप है। अंग्रेजी के अक्षर एल (L) के आकार की मस्जिद की इमारत के सबसे ऊपर पर एक पवन चक्की है। छत पर सौर पैनल लगे हैं। पिछले साल इसे इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) की तरफ से रेट किया गया था। यह देश में चुनी गई नेट-ज़ीरो ऊर्जा वाली इमारतों में से एक है।

मस्जिद बनाने वाले बेरी ग्रुप के संस्थापक सैयद मोहम्मद बेरी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “डिजाइन चरण से ही हमने इसमें ऊर्जा जरूरतों को कम करने का ध्यान रखना शुरू कर दिया था। हमने अपनी ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए जरूरी सभी उपाय किए।  जैसे इमारत में दिन के समय पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था। ऐसी भवन निर्माण सामग्री का इस्तेमाल, जो दीवारों और छतों के पर्याप्त इन्सुलेशन में मदद करे।” 

पूर्व में अनुमान था कि भवन की कुल ऊर्जा जरूरत लगभग 25 KwH (किलोवाट-घंटे) होगी। लेकिन बेरी ने कहा कि ऊर्जा कुशल उपायों को लागू करने से यह घटकर करीब एक-चौथाई यानी 7.5 KwH कर दिया गयाइस जररूत को अब सोलर छत (6 KwH) और पवन चक्की (1.5 KwH) से पूरा किया जाता है

नई दिल्ली के करीब मानेसर में डेसिकैंट रोटर्स इंटरनेशनल (Desiccant Rotors International) की मैन्युफेक्चरिंग प्लांट की इमारत है। यह भी नेट-ज़ीरो ऊर्जा निर्माण का एक उदाहरण है। फर्म की मैन्युफेक्चरिंग इकाई एयर कंडीशनिंग में इस्तमाल होने वाली हीट-रिकवरिंग यूनिट बनाती है। साल 2019 में बनी यह इमारत दो लाख वर्ग फ़ीट क्षेत्र में फैली हुई है। जल्द ही इस इमारत में भी नेट-ज़ीरो ऊर्जा भवनों की खासियतों को शामिल कर लिया गया।

फर्म के उपाध्यक्ष (बिक्री) राहुल एरोन ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हमारी कनेक्टेड लोड डिमांड 50 किलोवाट है। हमारे पास सोलर सिस्टम भी है जो इतनी ऊर्जा उत्पन्न कर लेता है। हमने इमारत को इस तरह से डिजाइन किया है कि दिन के समय बिजली की जरूरत कम हो जाती है। कई ऊर्जा कुशल उपायों को शामिल करके हमने इमारत के ऊर्जा लोड को कम कर दिया है।

देश में नेट-ज़ीरो फीचर वाली कई इमारतें हैं। इनमें पर्यावरण और वन मंत्रालय का मुख्यालय पर्यावरण भवन भी शामिल है। मानेसर में जैक्वार का मुख्यालय, हरियाणा में अक्षय ऊर्जा भवन, मुंबई में गोदरेज का प्लांट, ओडिशा का ग्रिड कॉर्पोरेशन भवन वगैरह शामिल हैं।

उडुपी जिले के कुन्दापुरा में नेट-ज़ीरो मस्जिद। इसमें ऊर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए सौर और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल होता है। तस्वीर- बेरी ग्रुप। 
उडुपी जिले के कुन्दापुरा में नेट-ज़ीरो मस्जिद। इसमें ऊर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए सौर और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल होता है। तस्वीर- बेरी ग्रुप।

हालांकि देश के आर्किटेक्ट और टिकाऊ (सस्टेनेबल) इमारतों से जुड़े जानकारों का दावा है कि सरकारी नियमों में “नेट-ज़ीरो इमारत” की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। उन्होंने कहा कि रियल एस्टेट की भाषा में नेट-ज़ीरो एनर्जी बिल्डिंग का मतलब ऐसी इमारतों से है जो उतनी ही मात्रा में गैर-जीवाश्म वाली ईंधन ऊर्जा (अक्षय ऊर्जा) का उत्पादन कर रही हैं, जितनी वे सालाना ग्रिड से खपत करती हैं। हालांकि निजी रेटिंग एजेंसियों के पास नेट-ज़ीरो इमारतों के लिए सख्त मानदंड हैं। इनमें ऊर्जा दक्षता डिजाइनों का भी ध्यान रखा जाता है।

टिकाऊ इमारतों में विशेषज्ञता रखने वाले आर्किटेक्ट ऋषभ जैन ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, भारत में सरकार की तरफ से नेट-ज़ीरो इमारतों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। नेट-ज़ीरो इमारतों की कई अवधारणाएं हैं। यह नेट-ज़ीरो कार्बन बिल्डिंग, नेट-ज़ीरो वॉटर बिल्डिंग और नेट-ज़ीरो वेस्ट बिल्डिंग हो सकती है। लेकिन आम तौर पर बिल्डिंग इकोसिस्टम में नेट-ज़ीरो का मतलब नेट-ज़ीरो एनर्जी बिल्डिंग से है। इस तरह की इमारत के लिए जरूरी ऊर्जा की कुल मात्रा की भरपाई ऊर्जा के नवीन स्रोतों से बनाई गई बिजली से की जाती है।

नेट-ज़ीरो ऊर्जा भवनों के लिए रेटिंग और मानदंड

फिलहाल देश में नेट-ज़ीरो इमारतों के लिए किसी भी तरह के सरकारी दिशा-निर्देश, बिल्डिंग कोड और विनियमों का घोर अभाव है। साल 2016 का मॉडल बिल्डिंग कोड सस्टेनेबल एंड ग्रीन बिल्डिंगकी अवधारणा से संबंधित है। यह कोड 100 वर्ग मीटर से ज्यादा के क्षेत्र में फैली इमारतों में सौर ऊर्जा, सौर वॉटर हीटर और अन्य ग्रीन बिल्डिंग मानदंडों जैसे वर्षा जल संचयन, ऊर्जा दक्षता वगैरह के लिए प्रावधान को जरूरी बनाता है। लेकिन यह नेट-ज़ीरो इमारतों के बारे में बात नहीं करता है।

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) की ओर से जारी ऊर्जा संरक्षण भवन कोड, 2017, 100 KwH से ज्यादा कनेक्टेड लोड वाली व्यावसायिक इमारतों में नवीन ऊर्जा के लिए कम से कम 25 प्रतिशत क्षेत्र को आरक्षित करने को जरूरी बनाता है। साथ ही पीक डिमांड का एक प्रतिशत नवीन ऊर्जा से पूरा करने को अनिवार्य बनाता है। यह इमारतों को डिजाइन करने में पेसिव (निष्क्रिय) डिजाइन रणनीति बनाने के बारे में भी बात करता है, जिससे ऐसी इमारतों की ऊर्जा दक्षता बढ़ सके।

ऊर्जा मंत्रालय ने दो साल पहले अपनी शून्य स्कीम के तहत नेट-ज़ीरो भवनों की रेटिंग भी शुरू की हैइस स्कीम के तहत बीईई नेट-जीरो भवनों के लिए सर्टिफिकेशन देता है। ऐसा सर्टिफिकेशन तब दिया जाता है, जब इमारतों की ऊर्जा जरूरतों को नवीन ऊर्जा से पूरा किया जाता है। अपनी कुल खपत के बराबर अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करने वाली इमारतों को शून्य (नेट-ज़ीरो) लेबल मिलता है। अगर वे अपनी कनेक्टेड लोड से अधिक नवीन ऊर्जा का उत्पादन करती हैं, तो उन्हें बीईई से शून्य प्लस रेटिंग मिलती है। नेट-ज़ीरो रेटिंग सर्टिफिकेशन देते समय नेट-ज़ीरो के लिए बीईई सर्टिफिकेशन के दस्तावेज ऊर्जा दक्षता के लिए मान्य नहीं होते हैं।

नेट-ज़ीरो इमारतों को रेट करने वाला बीईई ऐसी इमारतों को इस तरह परिभाषित करता है “… जो अपनी ऊर्जा जरूरतों जितनी बिजली नवीन स्रोतों से पूरा करता है। इसे आमतौर पर  एक साल के आधार पर मापा जाता है।” यह आईजीबीसी (IGBC) जैसी अन्य रेटिंग एजेंसियों के ऊर्जा दक्षता, भवन डिजाइन, थर्मल कम्फर्ट और आर्किटेक्ट से जुड़े मापदंडों को ध्यान में नहीं रखता है।

बीईई का दावा है कि उसके पास नेट ज़ीरो इमारतों पर विचार के अलग-अलग चरणों के तहत लगभग सौ रेटिंग सर्टिफिकेशन हैं। इस मसले पर ज्यादा जानकारी के लिए मोंगाबे-इंडिया ने बीईई को ई-मेल भेजा था लेकिन खबर लिखे जाने तक उनकी प्रतिक्रिया नहीं मिली है। 

नेट-ज़ीरो बिल्डिंग के लिए आईजीबीसी रेटिंग

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) का हिस्सा इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) ने 2018 में “नेट ज़ीरो” इमारतों की रेटिंग शुरू की। इसे पहले देश में ग्रीन बिल्डिंग को रेट करने के लिए जाना जाता थाआईजीबीसी रेटिंग उद्देश्य यानी इंटेंट उन्मुख है और इन्हें लागू करना या नहीं करना स्वैच्छिक है। यह नवीन ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, निष्क्रिय डिजाइन रणनीतियों और थर्मल कम्फर्ट (कमरे का तापमान इतना हो कि वो आरामदायक लगे) के इस्तेमाल के आधार पर नेट-ज़ीरो भवनों को रेट करता है। यह अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को महज एक-चौथाई वेटेज देता है और ऊर्जा-कुशल डिजाइनों और आर्किटेक्ट से जुड़े अन्य मापदंडों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करता है।

मानेसर में डीआरआई की नेट-ज़ीरो इमारत। तस्वीर- डीआरआई
मानेसर में डीआरआई की नेट-ज़ीरो इमारत। तस्वीर- डीआरआई

आशीष रखेजा आईजीबीसी की तकनीकी समिति के अध्यक्ष हैं। वह नेट ज़ीरो पर आईजीबीसी रेटिंग के लिए मानदंड बनाने में शामिल आर्किटेक्ट में एक थे। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि उन इमारतों को अच्छी रेटिंग देना तर्कहीन था, जो डिजाइनिंग या तकनीक के माध्यम से अपनी इमारत के ऊर्जा लोड को कम करने की दिशा में काम किए बिना अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।

रखेजा ने कहा कि 2018 और 2019 के बीच, आईजीबीसी को नेट-ज़ीरो रेटिंग के लिए सिर्फ नौ आवेदन प्राप्त हुए। लेकिन 2020 से 2022 के बीच ये संख्या बढ़कर सौ हो गई। ये आवेदन रेटिंग स्तर की जांच के अलग-अलग चरणों में हैं।

रखेजा ने कहा, “नेट-ज़ीरो इमारतों के अधिक टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने और बाजार को उस ओर बढ़ाने के लिए हमने जान-बूझकर ऊर्जा दक्षता को रेटिंग के हिस्से के रूप में शामिल किया। अगर आप ऊर्जा की बहुत ज्यादा जरूरत वाली गैर-कुशल इमारत बनाते हैं और नवीन ऊर्जा से इसकी पूर्ति करते हैं, तो इसका कोई मतलब नहीं है। सबसे अच्छा विकल्प भवन के सही प्रकार के डिजाइन को शामिल करके, इसके चारों ओर जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक ज़रूरी तत्वों को शामिल करके अपनी कुल ऊर्जा जरूरतों को कम करना है। हमने देखा है कि सही निर्णय और दृष्टिकोण के साथ किसी इमारत में ऊर्जा मांग को 10%-30% के बीच कम किया जा सकता है। इससे इमारतों को नवीन ऊर्जा में कम निवेश करने में भी मदद मिलेगी, ताकि वे नेट-ज़ीरो बन सकें।”

जिन जानकारों से मोंगाबे-इंडिया ने बात की, उन्होंने बताया कि नेट-ज़ीरो इमारतें अक्सर ग्रीन बिल्डिंग के कई तत्वों को आंशिक रूप से आत्मसात करने की कोशिश करती हैं। लेकिन दोनों अलग-अलग चीजें हैं। ग्रीन बिल्डिंग पानी, कचरे, निर्माण सामग्री, इको-फ्रेंडली और अक्षय ऊर्जा के उपयोग के टिकाऊ इस्तेमाल को ध्यान में रखती हैं। दूसरी ओर, नेट-ज़ीरो ऊर्जा भवन अपने मुख्य उद्देश्य के रूप में नवीन ऊर्जा के साथ पारंपरिक ऊर्जा को ऑफसेट करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। आईजीबीसी और अन्य रेटिंग एजेंसियां नेट-ज़ीरो भवनों को उनके ऑपरेशन के दौरान ज्यादा लागत प्रभावी और टिकाऊ बनाने के लिए ऊर्जा दक्षता उपायों को भी शामिल करती हैं।

हालांकि, न तो बीईई रेटिंग और न ही नेट-ज़ीरो इमारतों की आईजीबीसी रेटिंग इन इमारतों के निर्माण के समय उपयोग की जाने वाली ऊर्जा की जरूरतों को ध्यान में रखती है, जहां सीमेंट, मशीनों, परिवहन, बिजली आदि का इस्तेमाल होता है। इसे भवन में शामिल ऊर्जा (embodied energy) कहा जाता है।

अकादमिक जगत के विशेषज्ञों ने कहा कि जब इमारतों को नेट-ज़ीरो घोषित किया जाता है तो इसमें शामिल ऊर्जा भी गणना में शामिल होनी चाहिए। सीईपीटी विश्वविद्यालय, अहमदाबाद में बिल्डिंग एनर्जी परफॉर्मेंस के प्रोफेसर राजन रावल ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “उद्देश्य-आधारित ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग प्रोग्राम की मौजूदा परिपाटी उद्देश्य को पूरा नहीं करती हैं – वास्तव में, यह बड़े पैमाने पर ग्रीनवॉशिंग की ओर ले जाती है। किसी इमारत को इसके ऑपरेशन और इसमें खपत होने वाली ऊर्जा के लिए मापे गए प्रदर्शन के आधार पर ही नेट ज़ीरो बिल्डिंग कहा जाना चाहिए। विश्वविद्यालय 2016 से नेट ज़ीरो ऊर्जा भवन के रूप में भवन विज्ञान प्रयोगशाला भवन का संचालन कर रहा है।

रखेजा कहते हैं, “नवीन ऊर्जा का इस्तेमाल, परियोजना के निर्माण के चरण से जुड़े कार्बन को ऑफसेट करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, यह निर्माण में लगने वाली ऊर्जा का बहुत छोटा हिस्सा है। निर्माण चरण में, सबसे बड़ी चुनौती इसमें शामिल कार्बन होता है। किसी इमारत के पूरा होने के बाद, ऑपरेशन के दौरान पैदा होने वाले कार्बन पर नजर जाती है। यही वह समय है जब नेट-ज़ीरो भवन पर चर्चा होती हैं जिसमें ऑपरेशनल एनर्जी के लिए नवीन ऊर्जा का इस्तेमाल होता है।”

नेट-ज़ीरो बिल्डिंग सर्टिफिकेशन के फायदे

सास्वती चेतिया ग्रीनटेक नॉलेज सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड में आर्किटेक्ट और एसोसिएट डायरेक्टर हैं। उन्होंने कहा कि रियल एस्टेट क्षेत्र में सर्टिफिकेशन और रेटिंग अक्सर उपभोक्ताओं के साथ-साथ सरकार का भरोसा बढ़ाने में मदद करते हैं।

उन्होंने कहा, “आप ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग का उदाहरण लीजिए। इससे बाजार को बढ़ने में मदद मिली। इस तरह का सर्टिफिकेशन खरीदारों के भरोसे को बढ़ाता है। अगर वे स्थापित और परखे गए मापदंडों के अनुपालन से तैयार होते हैं। हालांकि, अभी तक हमारे पास नेट ज़ीरो इमारतों को प्रोत्साहन देने के लिए संस्थागत केंद्रीय नीति नहीं है। फिर भी  रेटिंग स्थानीय करों में छूट पाने में मदद करती है।  


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उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी इमारतों में नवीन ऊर्जा के लगातार इस्तेमाल से इनके ऑपरेशन में आने वाली कुल लागत को कम करने में मदद मिल सकती है। चेतिया ने कहा कि ऊंची इमारतों में भी जहां ऑन-साइट नवीन ऊर्जा स्रोतों को स्थापित करने के लिए जगह की कमी है, नेट-ज़ीरो स्टेटस प्राप्त करने के लिए ऑफ-साइट नवीन ऊर्जा सिस्टम को भी चलाया जा सकता है या उपभोक्ता ओपन एक्सेस के माध्यम से ग्रिड सप्लाई के लिए सिर्फ नवीन ऊर्जा का विकल्प चुन सकते हैं।

बीईई के अनुसार, भारत में कुल बिजली खपत का लगभग 30 प्रतिशत सिर्फ भवनों में खपत होता है। इसका यह भी दावा है कि यह उद्योगों के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाला क्षेत्र भी है। साथ ही समय के साथ देश में बिजली की मांग भी बढ़ रही है।

विशेषज्ञों का दावा है कि केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारों के समर्थन से अपने शैशव काल वाला यह उद्योग और अधिक विकास कर सकता है। मुंबई स्थित नेट-ज़ीरो बिल्डिंग कंसल्टेंट दीपा पारेख ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि अगर उद्योग में अधिक जागरूकता हो और नेट-ज़ीरो बिल्डिंग पर सरकार की ओर से प्रोत्साहन मिले तो इस अवधारणा को बाजार में और गति मिल सकती है।

उन्होंने कहा, आज, कई कॉरपोरेट घराने अपने नेट-ज़ीरो लक्ष्यों की घोषणा कर रहे हैं और यह पक्का कर रहे हैं कि नेट-ज़ीरो इमारतें उनकी रणनीतियों का हिस्सा हों। हालांकि नेट-ज़ीरो इमारतों का बाजार धीरे-धीरे बढ़ रहा है, यह अभी तक मेन्सट्रीम में नहीं आया है। इसे पूरी तरह से विकसित होने में समय लगेगा, लेकिन नेट ज़ीरो भवनों की अवधारणा व्यावहारिक तौर पर हासिल करने योग्य है।” 

नेट-जोरी इमारतें अपनी सालाना ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सौर या किसी अन्य नवीन ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करती हैं। तस्वीर- मनीष कुमार।
नेट-जोरी इमारतें अपनी सालाना ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सौर या किसी अन्य नवीन ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करती हैं। तस्वीर- मनीष कुमार।

उन्होंने यह भी कहा कि “एलईईडी ज़ीरो और आईजीबीसी नेट ज़ीरो जैसे ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग सिस्टम ऑपरेशन के दौरान उनके प्रदर्शन के आधार पर नेट ज़ीरो बिल्डिंग का मूल्यांकन करते हैं। अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियां अक्सर नेट ज़ीरो इक्वेशन प्राप्त करने के लिए सुर्खियां बटोरती हैं। हालांकि, बिल्डिंग क्षेत्र में टिकाऊ विकास के लिए, इमारतों के डिजाइन और निर्माण दोनों चरणों में ऊर्जा की मांग को कम करने पर ध्यान देना चाहिए।

इस बीच, कई देश नियमों के साथ निर्माण क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिए काम कर रहे हैं। डेनमार्क सरकार ने 1000 वर्ग मीटर से अधिक की सभी नई इमारतों के लिए 50 सालों के लिए लाइफ-साइकल का आकलन करने और उनके कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 12 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर प्रति वर्ष तक सीमित करना अनिवार्य कर दिया है। 

नेट-ज़ीरो इमारतों की रेटिंग में, इमारतों में शामिल उत्सर्जन और ऊर्जा की गणना नहीं की जाती है। लेकिन एक अन्य भारतीय भवन रेटिंग एजेंसी, एकीकृत आवास आकलन (जीआरआईएचए/गृह) के लिए ग्रीन रेटिंग की गणना की जाती है। इसे नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का समर्थन भी हासिल है। इसमें निर्माण के अलग-अलग चरणों को ध्यान में रखा जाता है। इसमें डिजाइन, खरीद और कार्यान्वयन की जांच शामिल है। गृह की रेटिंग में विभिन्न चरणों पर विचार करते हुए भवनों का लाइफटाइम मूल्यांकन भी किया जाता है।

 

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बैनर तस्वीर: बेंगलुरु का एक विहंगम दृश्य। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे

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