- एटालिन प्रोजेक्ट, केंद्रीय बिजली प्राधिकरण की ओर से स्वीकृत की गई अब तक सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना है। इसके लिए 1,165.66 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन की जरूरत है। साथ ही 2,78,038 पेड़ काटने होंगे।
- जैवविविधता को क्षति की आशंका की वजह से स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। परियोजना के खिलाफ बड़ी संख्या में फॉरेस्ट एडवायजरी कमेटी को आवेदन दिया गया था।
- फॉरेस्ट एडवायजरी कमेटी (एफएसी) ने इस योजना को दूसरे चरण या अंतिम वन मंजूरी देने से इनकार कर दिया। हालांकि, स्थानीय लोगों को आशंका है कि सरकार जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए कुछ समय लेने के बाद परियोजना को फिर से आगे बढ़ाने की कोशिश करेगी।
- अरुणाचल प्रदेश ने हाल ही में एक बड़े बांध के आसपास राष्ट्रीय उद्यान बनाने में असमर्थता जताई थी। इस बांध को इसी नदी घाटी में बनाने की अनुमति मिली है।
अरुणाचल प्रदेश के दिबांग नदी घाटी क्षेत्र में पनबिजली परियोजना को लेकर चिंतित पर्यावरणविदों और स्थानीय आबादी को बड़ी राहत मिली है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) की वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने एटालिन परियोजना के लिए चरण-2 या आखिरी चरण की वन मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। यह प्रोजेक्ट 3,097 मेगावाट का था।
इसके अलावा, एफएसी ने दिबांग घाटी में बन रही अन्य पनबिजली परियोजनाओं पर भी विचार-विमर्श करने का फैसला किया है।
पर्यावरण मंत्रालय ने इस साल फरवरी में औपचारिक रूप से एफएसी के फैसले की जानकारी राज्य सरकार को दी। इसमें संशोधित प्रस्ताव प्रस्तुत करने से पहले सिफारिशों के बारे में बताया गया है।
सिफारिशों में काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या का ठीक-ठाक अनुमान, अलग-अलग मौसम के हिसाब से आगे और अध्ययन, अन्य परियोजनाओं पर विचार करते हुए दिबांग घाटी पर प्रभाव का मूल्यांकन, नवीनतम तथ्यों और आंकड़ों पर विचार करते हुए संशोधित लागत और लाभ विश्लेषण शामिल हैं। सभी स्वीकृत परियोजनाओं पर स्थिति रिपोर्ट और अलग-अलग चिंताओं पर गौर करने और समग्रता में उनका जवाब देने के लिए एक उच्चस्तरीय अधिकार प्राप्त समिति के गठन की सिफारिश भी की गई है।
एटालिन प्रोजेक्ट, केंद्रीय बिजली प्राधिकरण की ओर से स्वीकृत की गई अब तक सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना है। इसके लिए 1,165.66 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन की जरूरत है। साथ ही 2,78,038 पेड़ काटने होंगे।
एफएसी ने 27 दिसंबर, 2022 को इस पर चर्चा के बाद कहा, “प्रस्ताव पर वर्तमान रूप में तुरंत विचार नहीं किया जा सकता है। बदलाव के साथ प्रस्ताव को आगे विचार के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।”
एफएसी ने इस बात की ओर इशारा किया कि परियोजना के खिलाफ बड़ी संख्या में आवेदन मिले थे। इनमें प्रोजेक्ट के खिलाफ चिंता जताई गई थी। एफएसी ने सलाह दी थी कि राज्य सरकार “इन चिंताओं को देखने और उनके समाधान के लिए उच्चस्तरीय अधिकार प्राप्त समिति का गठन कर सकती है।” इसने कहा कि लागत-लाभ विश्लेषण से जुड़े सवालों पर भी विचार करने की जरूरत है।
स्थानीय निवासियों और पर्यावरणविदों ने एफएसी के फैसले का स्वागत किया है। निचली दिबांग घाटी जिले में स्थानीय आदि समुदाय के पर्यावरण कार्यकर्ता भानु ताटक ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हमारे जैसे स्थानीय लोग दो साल से भी ज्यादा समय से एफएसी को प्रोजेक्ट के बारे में लिख रहे थे। एफएसी ने आखिरकार हमारी बातों को सुना। यह हमारे लिए सुखद आश्चर्य है। हम इसका स्वागत करते हैं। लेकिन हम आशंकित भी हैं कि सरकार जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए कुछ समय लेने के बाद परियोजना को फिर से आगे बढ़ाने की कोशिश करेगी।”
स्थानीय इडु मिश्मी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले ईटानगर के एडवोकेट इबो मिली ने सहमति जताई कि इस फैसले ने लोगों को संघर्ष के अगले दौर की तैयारी के लिए ज्यादा समय दिया है। मिली ने मोंगाबे-इंडिया से कहा, “हम फैसले से खुश हैं। “अब हमारे पास पहले की तुलना में ज्यादा लोगों से जुड़ाव और समर्थन का व्यापक नेटवर्क है। इससे हमें तकनीकी विवरणों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।”
दक्षिण एशिया नेटवर्क ऑफ डैम्स, रिवर एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के संयोजक और पर्यावरण कार्यकर्ता हिमांशु ठक्कर ने भी एफएसी के फैसले का स्वागत किया। ठक्कर ने कहा, ‘उन्होंने (एफएसी) ने जो फैसला लिया है, वह सही है। “विचार-विमर्श का मतलब है कि पर्यावरण मंजूरी सहित पूरी परियोजना की समीक्षा करने की जरूरत है। मुझे आशा है कि यह राज्य सरकार को वास्तविकता से रू-ब-रू कराएगा और उन्हें इस पर दोबारा विचार करने के लिए मजबूर करेगा।”
एटालिन प्रोजेक्ट शुरू से ही विवादास्पद रहा है। ऐसा इसलिए कि यह क्षेत्र पारिस्थितिकी और भूगर्भीय रूप से बहुत ही नाजुक माना जाता है। एफएसी ने पहले भी कई बार दूसरे चरण के प्रस्ताव पर चर्चा की थी। हालांकि तब कोई फैसला नहीं हो पाया था। उसने और ज्यादा आकलन का सुझाव दिया था।
फरवरी 2017 में प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए एफएसी ने बताया था कि “प्रस्तावित परियोजना हिमालयी क्षेत्र के सबसे समृद्ध जैव-भौगोलिक राज्य और दुनिया के सबसे बड़े जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक के भीतर है।”
तब एफएसी ने मौजूदा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन से जुड़े अध्ययन को “पूरी तरह से अपर्याप्त” करार देते हुए कहा था, “वास्तव में, इस क्षेत्र में देश के किसी भी अन्य हिस्से की तुलना में बहुत ज्यादा जैव विविधता है।”
27 दिसंबर, 2022 के विचार-विमर्श से पता चलता है कि एफएसी के सदस्य-अध्यक्ष संजय देशमुख की अध्यक्षता वाली एफएसी की उप-समिति ने अन्य बातों के अलावा यह सुझाव दिया था कि “भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की ओर से तैयार की गई वन्यजीव संरक्षण रिपोर्ट की समीक्षा की जा सकती है।
“परियोजना से प्रभावित होने वाले परिवारों के लिए आर्थिक और सामाजिक लाभ का दायरा बढ़ाने” और बांध के निचले हिस्से में रहने वालों को भी इसमें शामिल करने का सुझाव दिया गया था।
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दिसंबर 2022 में अपनी बैठक से पहले, एफएसी को दो चिट्ठियां प्राप्त हुई। एक छह दिसंबर को प्रोजेक्ट अफेक्टेड पीपल्स फोरम (पीएपीएफ) की तरफ से और दूसरी आठ दिसंबर को लोअर दिबांग घाटी जिले के स्थानीय इदु मिश्मी युवा लोगों से।
पहली चिट्ठी में दावा किया गया था कि परियोजना को उन लोगों से पूरा समर्थन मिल रहा है, जिनकी जमीन का अधिग्रहण होना है। इन लोगों ने परियोजना के काम में तेजी लाने को कहा है। दूसरी चिट्ठी में परियोजना के सभी मापदंडों को पूरा करने और रिपोर्ट को सार्वजनिक करने तक आगे नहीं बढ़ाने की अपील की गई थी।
पीएपीएफ के अध्यक्ष और परियोजना के लिए अधिग्रहित किए जाने वाले गांव एरोन के निवासी तस्कु तयु ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, एफएसी के दिसंबर के फैसले के बाद, जिसमें परियोजना के बारे में चिंताओं से जुड़े आवेदन मिलने का उल्लेख किया गया था, पीएपीएफ के सदस्यों ने एफएसी और अरुणाचल प्रदेश राज्य सरकार को दो पत्र लिखे। इसमें उन लोगों की आवाज़ को अनदेखा करने का आग्रह किया गया, जो “परियोजना से प्रभावित होने वाले परिवारों के हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे।”
पीएपीएफ के सदू मिहू ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “सरकार ने 2014 में हमारी जमीन का अधिग्रहण किया था, लेकिन हमें अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया है क्योंकि परियोजना को दूसरे चरण की मंजूरी नहीं मिली है। वे परियोजना को आगे बढ़ाने पर फैसला होने के बाद ही भुगतान करना चाहते हैं। लेकिन वे हमारी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं। हम अधिग्रहित जमीन का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। इसे बेचा नहीं जा सकता और हम नहीं जानते कि मुआवज़ा कब मिलने वाला है या मिलेगा भी कि नहीं। हम चाहते हैं कि सरकार या तो दूसरे चरण को तुरंत मंजूरी दे या परियोजना बंद करके जमीन वापस कर दे।
व्यापक असर
पर्यावरणविदों के लिए सबसे बड़ी बात यह थी कि एफएसी ने अपनी चर्चा को सिर्फ एटालिन परियोजना तक ही सीमित नहीं रखा। उसने पूरी दिबांग घाटी में लागू की जाने वाली और बन रही परियोजनाओं को भी इसमें शामिल कर लिया है।
दिबांग नदी घाटी में कुल मिलाकर 18 जलविद्युत परियोजनाओं की योजना बनाई गई है। इनकी कुल क्षमता 9,973 मेगावाट की है। इनमें दिबांग घाटी और निचली दिबांग घाटी के प्रशासनिक जिले शामिल हैं। एटालिन परियोजना को एक अन्य बड़ी परियोजना दिबांग बहुउद्देशीय परियोजना (डीएमपी) से लगभग सौ किलोमीटर उत्तर में बनाने की योजना है। डीएमपी से 2,880 मेगावाट बिजली मिलेगी। डीएमपी को 2020 में दूसरे चरण की वन मंजूरी मिल गई है। लेकिन यहां अब भी काम शुरू होना बाकी है क्योंकि पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड से अनुमोदन अभी भी नहीं मिला है।
एफएसी ने कहा कि उसने इस तथ्य पर ध्यान दिया है कि राज्य सरकार का “पहले की परियोजनाओं के लिए दी गई मंजूरी में एफएसी की ओर से तय शर्तों को लागू करने के बारे में रिकॉर्ड” खराब था। स्वीकृत परियोजनाओं के काम को शुरू करने और पूरा करने में देरी को ध्यान में रखते हुए, एफएसी ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार “सभी स्वीकृत परियोजनाओं की स्थिति की समीक्षा करें” – चरण- एक और चरण- दो की शर्तों के संबंध में शुरू होने, पूरा होने और अनुपालन के संबंध में- और एक स्थिति रिपोर्ट’ प्रस्तुत करे।
इसने कहा, “दिबांग घाटी में अन्य परियोजनाओं (जलविद्युत) पर विचार करते हुए इस हिसाब से प्रभाव का पता लगाने की जरूरत है।”
एफएसी बैठक के मिनट में स्पष्ट रूप से डीएमपी का उल्लेख नहीं है। लेकिन “अनुपालन के खराब रिकॉर्ड” के रूप में इसकी चर्चा अरुणाचल प्रदेश सरकार की हाल ही में जैव विविधता की सुरक्षा के लिए डीएमपी परियोजना क्षेत्र के आसपास एक राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने में असमर्थता को दिखाती है।
सितंबर 2014 में डीएमपी परियोजना को चरण-एक वन मंजूरी और मार्च 2020 में चरण-दो मंजूरी देते समय यह (राष्ट्रीय उद्यान घोषित करना) एफएसी की सिफारिश थी; लेकिन राज्य सरकार ने अगस्त 2022 में पर्यावरण मंत्रालय की ओर से बार-बार याद दिलाने के बाद कहा कि डीएमपी परियोजना के आसपास के जमीन मालिक अपनी जमीन को राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की अनुमति देने के लिए सहमत नहीं होंगे।
इसके बाद एफएसी ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार स्थानीय समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए स्थानीय लोगों से चर्चा के बाद संबंधित क्षेत्र को “वन्यजीव संरक्षण कानून, 1972 के तहत सामुदायिक रिजर्व या संरक्षण रिजर्व के रूप में” घोषित करने पर विचार कर सकती है। पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य को बार-बार रिमाइंडर दिए हैं। ताजा रिमाइंडर दो जनवरी को दिया गया है।
ताटक ने कहा कि क्षेत्र की पारिस्थितिकी और भूगर्भीय नाजुकता को देखते हुए, पूरी दिबांग नदी घाटी पर पड़ने वाले प्रभाव का और क्षमता का नया अध्ययन करना बहुत जरूरी था।
ताटक ने कहा, “एफएसी ने अब राष्ट्रीय उद्यान की जगह सामुदायिक रिजर्व या संरक्षण रिजर्व कर दिया है। चूंकि निर्माण का काम अभी शुरू होना बाकी है, इसलिए डीएमपी परियोजना को पूर्ण के रूप में नहीं माना जाना चाहिए और तय शर्तों को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। डीएमपी के संबंध में सद्बुद्धि आने में अभी भी समय है। इसकी मंजूरी रद्द की जानी चाहिए।”
प्रभाव के अध्ययन की जरूरत के उल्लेख पर टिप्पणी करते हुए ठक्कर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि एफएसी का मतलब एक नए प्रभाव और वहन क्षमता के अध्ययन से है। उन्होंने कहा, “मौजूदा अध्ययन बहुत ज्यादा अपर्याप्त और समस्याग्रस्त है।” उन्होंने कहा कि यही वह समय है जब अरुणाचल प्रदेश सरकार ने उत्तर भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखंड के तीर्थ शहर जोशीमठ में सामने आई आपदा से सबक सीखा।
ठक्कर ने कहा, “यह वही हिमालय है जिसका उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश दोनों हिस्सा हैं। वास्तव में, उत्तराखंड की तुलना में अरुणाचल भूकंपीय रूप से ज्यादा सक्रिय है। पूर्वी हिमालय वह जगह है जहां दुनिया की सबसे बड़ी भूमि आधारित भूकंपीय गतिविधियां होती हैं।”
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बैनर तस्वीर: दिबांग नदी। एटालिन परियोजना विवादास्पद रही है क्योंकि इसकी योजना जैव विविधता समृद्ध क्षेत्र में बनाई गई है। तस्वीर– अनु बोरा/विकिमीडिया कॉमन्स