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शहरों के बाद भारत के गांवों में बढ़ता वायु प्रदूषण, वाहन और शहरीकरण सबसे अधिक जिम्मेदार

  • देश के ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले कस्बे वायु प्रदूषण के मामले में देश के सबसे प्रदूषित स्थानों में शामिल हो रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी हालिया आंकड़ों में बिहार के कुछ छोटे शहर देश में सबसे प्रदूषित पाए गए हैं।
  • वायु प्रदूषण पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर के एक शोध में ग्रामीण इलाकों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (No2) की बढ़ती मात्रा का पता लगा है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि वायु प्रदूषण का असर लोगों के स्वास्थ्य पर दिख रहा है। ग्रामीण इलाके के लोगों में सांस संबंधी बीमारियां देखने को मिल रही हैं।

बिहार के ऐतिहासिक शहर सासाराम के बीच से गुजरती ग्रैंड ट्रंक रोड का नजारा इस साल के 23 अप्रैल को भी आम दिनों जैसा ही था। एशिया के सबसे लम्बे और पुराने हाइवे पर धुआं उगलते वाहन और बीच-बीच में धूल उड़ाती रेत से लदी ट्रॉलियां। इस बहुत ही आम दिखने वाले नजारे की कीमत इस शहर को देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल होकर चुकाना पड़ रहा है। इस दिन सासाराम का एयर क्वालिटी इंडेक्स 302 था जो इसे देश का सबसे प्रदूषित शहर बनाता है।

सासाराम, सूरी साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह सूरी का जन्म स्थान भी है। माना जाता है कि शेर शाह सूरी ने ही ग्रैंड ट्रंक रोड की नींव रखी थी।

आमतौर पर सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली जैसे महानगर या आगरा, कानपुर और फरीदाबाद जैसे औद्योगिक शहरों की जिक्र होता है। लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा जारी एयर क्वालिटी इंडेक्स के हालिया आंकड़े कुछ अलग कहानी बता रहे हैं।

बिहार के सासाराम में स्थित शेरशाह सूरी का मकबरा। तस्वीर: शैलेष श्रीवास्तव/मोंगाबे।

केवल सासाराम ही नहीं, बीते कुछ महीनों से बिहार के दूसरे ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले कस्बे देश में प्रदूषित स्थानों की सूची में शीर्ष पर हैं। इस सूची में मोतिहारी, दरभंगा, सिवान जैसे कस्बों का नाम शामिल है।

ग्रामीण इलाकों में बढ़ते प्रदूषण पर बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अशोक कुमार घोष ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि बिहार के ग्रामीण इलाकों में प्रदूषण की एक बड़ी वजह धूलकण हैं।

“बिहार के छोटे-छोटे कस्बों में भी वायु प्रदूषण को मापा जा रहा है। हाल ही में हमने इससे संबंधित उपकरण लगाए हैं। प्रदूषण सिर्फ शहरों की समस्या नहीं, बल्कि गांवों में भी एक प्रमुख समस्या है,” घोष ने प्रदूषण के बढ़े हुए आंकड़ों पर कहा।

बिहार ही नहीं, देश के अन्य हिस्सों में भी ग्रामीण इलाकों में शहरों की तरह ही वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-खड़गपुर के वैज्ञानिकों के एक हालिया शोध यही बात सामने आई है। इस शोध का शीर्षक है ग्रामीण भारत में वायु गुणवत्ता के रुझान: उपग्रह माप का उपयोग करके NO2 प्रदूषण का विश्लेषण (Air quality trends in rural India: analysis of NO2 pollution using satellite measurements)। शोधकर्ताओं ने उपग्रहों की मदद से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) मापन का उपयोग कर ग्रामीण भारत में बढ़ते वायुमंडलीय प्रदूषण का पता लगाया है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि वायु प्रदूषण आम तौर पर केवल शहरी घटनाक्रम नहीं है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी पर्यावरण को प्रभावित कर सकता है। प्रदूषण का स्तर जानने के लिए वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट की मदद ली और NO2 का मापन कर वायु प्रदूषण की सीमा का आकलन करने के लिए ग्रामीण वायु गुणवत्ता का विश्लेषण किया।

बिहार के सासाराम जिले में गुजरते ट्रक। तस्वीर: शैलेष श्रीवास्तव/मोंगाबे।

शोध को आईआईटी खड़गपुर के समुद्र, नदी, वायुमंडल और भूमि विज्ञान केंद्र (CORAL) के प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टीपुरथ और शोधार्थी मानसी पाठक की एक टीम ने किया है। अध्ययन में शामिल क्षेत्रों में भारत-गंगा के मैदान, मध्य भारत, उत्तर-पश्चिम भारत, प्रायद्वीपीय भारत, पहाड़ी क्षेत्र और उत्तर-पूर्वी भारत शामिल हैं।

वायु प्रदूषण की चपेट में कैसे आ रहे ग्रामीण इलाके

प्रो. कुट्टीपुरथ ने मोंगाबे-हिन्दी के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि देश के ग्रामीण इलाकों में वायु प्रदूषण का मुख्य स्रोत सड़क परिवहन है। परिवहन का हिस्सा कुल प्रदूषण में 45 प्रतिशत है। इसके अलावा, जिन इलाकों में बिजली बनती है वहां 40 फीसदी प्रदूषण ताप ऊर्जा संयंत्रों से आता है। वायु प्रदूषण में खेती की भागीदारी 14 प्रतिशत है।

देश में सबसे प्रदूषित इलाके के सवाल पर प्रो. कुट्टीपुरथ कहते हैं, “जनसांख्यिकी के मामले में भारत एक विविध देश होने के नाते ग्रामीण वायु प्रदूषण में भी काफी विविधता दिखती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा तय सीमा के अनुसार, गंगा के मैदानी इलाके और पूर्वी और मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों में प्रदूषण का उच्च स्तर दिखता है। दूसरी ओर, प्रायद्वीपीय और उत्तर पश्चिमी भारत में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड प्रदूषण अपेक्षाकृत कम है।”

घोष बताते हैं, “ग्रामीण इलाकों में एक्यूआई का बड़ा हिस्सा पीएम 2.5 और पीएम 10 का होता है, जो कि दरअसल धूलकण हैं। यहां नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा सीमित है।” वह आगे कहते हैं, “बिहार में मुख्य रूप से खेती होती है। यहां कि मिट्टी एलूवियल सॉइल या जलोढ़ मिट्टी है जो गंगा के मैदानी इलाके में पाई जाती है। जरा सी हवा चलने पर मिट्टी उड़कर हवा में मिल जाती है। बिहार में आसपास के औद्योगिक शहरों से प्रदूषित हवा भी बहकर आती है।”

पटना में गंगा नदी में होता रेत खनन। गंगा के मैदानी इलाके में पाई जाने वाली एलूवियल सॉइल या जलोढ़ मिट्टी भी वायु का एक कारण है। तस्वीर: शैलेष श्रीवास्तव/मोंगाबे।

शोधकर्ताओं ने मौसम में बदलाव के साथ वायु प्रदूषण के स्वरूप को बदलते हुए देखा है। कुट्टीपुरथ इसे समझाते हुए कहते हैं कि ग्रामीण भारत में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की सघनता कम तापमान और कम हवा की गति के कारण सर्दियों में उच्चतम स्तर पर देखी गई है। सबसे कम नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की सघनता मानसून के दौरान देखी जाती है। हालांकि प्रदूषण के हॉटस्पॉट क्षेत्र दिल्ली, सिंगरौली, दुर्गापुर और कोरबा में मॉनसून में भी प्रदूषण देखा जा सकता है।

कम प्रदूषण वाले मौसम के बारे में कुट्टीपुरथ ने कहा कि मानसून से पहले अधिक गर्मी और वायुमंडल में चलने वाली हवा वायु प्रदूषण को कम करती है। सर्दियों से लेकर मानसून के मौसम तक, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की सघनता कम हो जाती है और फिर मानसून के बाद फिर से बढ़ जाती है। इसके अलावा पराली जलाने से भी प्रदूषण पर असर होता है।

आईआईटी, खड़गपुर के शोध की प्रमुख लेखिका, मानसी पाठक कहती हैं,”हम आमतौर पर सोचते हैं कि वायुमंडलीय प्रदूषण केवल शहरों में मौजूद है या यह सिर्फ एक शहरी खतरा है। ग्रामीण क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता मानकों की अक्सर उपेक्षा की जाती है। हालांकि, हमारा विश्लेषण सुझाव देता है कि अब समय आ गया है कि हम अपना ध्यान ग्रामीण क्षेत्रों पर केंद्रित करें और ग्रामीण भारत के प्रदूषण स्तर और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों की जांच करें।”

स्वास्थ्य पर दिख रहा प्रदूषण का असर

पटना स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में सर्दी के बाद मरीजों की संख्या में भारी इजाफा होता है। यह कहना है विभाग के प्रमुख डॉ. मनीष शंकर का। मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हुए उन्होंने कहा, “एक समय था जब रोजाना 25 मरीजों का ओपीडी में आना होता था, लेकिन यह संख्या अब 50-60 के करीब पहुंच रही है।”

इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं, “सांस संबंधी रोग की कई वजह हो सकती है, जिनमें वायु प्रदूषण भी एक प्रमुख वजह है। सर्दी के बाद मरीजों की संख्या में इजाफा होता है, इसी मौसम में प्रदूषण बढ़ने की खबरें भी आती हैं।”

डॉ. शंकर जिस तरफ इशारा कर रहे हैं, उसकी पुष्टि सरकारी आंकड़ों में भी दिखती है। बिहार में बीते कुछ वर्षों में एक्यूट रेस्पेरेटरी डिजीज के मरीजों की संख्या बढ़ती दिख रही है।

बिहार सरकार की संस्था बिहार स्टेट हेल्थ सोसायटी ने वर्ष 2019 में एक आंकड़ा प्रकाशित किया था, जो बिहार में तीव्र श्वसन बीमारी (ARI) के बढ़ते हुए मामलों को लेकर था। इस बीमारी के मरीज वर्ष 2009 में 2 लाख से बढ़कर 2018 में लगभग 11 लाख हो गए।

दुनियाभर में वायु प्रदूषण को मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा माना जाता है। वर्ष 2017 में वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मृत्यु और लाइफ एक्सपेक्टेंसी को लेकर एक गहन शोध हुआ। लैंसेट प्लैनेट हेल्थ में प्रकाशित इस शोध में राज्यवार प्रदूषण की वजह से होने वाली मृत्यु का आकलन किया गया। इस शोध के नतीजे बताते हैं कि देश में प्रत्येक वर्ष 2017 में 12,40,530 लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण की वजह से हुई। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 96,967 लोगों की मृत्यु की वजह वायु प्रदूषण बना। देश में वायु प्रदूषण की वजह से सबसे अधिक मृत्यु उत्तर प्रदेश (2,60,028 लोग) में हुई।

एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) द्वारा जारी देश भर में एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस (एआरआई) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2023 के दौरान देश में तीव्र श्वसन रोग/इन्फ्लुएंजा जैसे रोग (एआरआई/आईएलआई) के कुल 3,97,814 मामले सामने आए थे, जो फरवरी, 2023 में बढ़कर 436,523 हो गए। मार्च, 2023 के पहले 9 दिनों में यह आंकड़ा 133,412 है।

वायु प्रदूषण का असर बच्चों पर भी हो रहा है। भारत में, हर साल पांच साल से कम उम्र के लगभग 4,00,000 बच्चे एआरआई से संबंधित बीमारियों से मर जाते हैं। अधिक वायु प्रदूषण में लंबे समय तक रहने से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग निमोनिया और जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है।

प्रदूषण रोकने की कोशिशें

राष्ट्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जनवरी, 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की शुरुआत की। इसका उद्देश्य 24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 131 शहरों वायु गुणवत्ता में सुधार करना है। कार्यक्रम में 2025-26 तक पार्टिकुलेट मैटर 10 (पीएम 10) को 40% तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है।

सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि मशीनों और उपकरणों पर 50% सब्सिडी और किसानों को कृषि उपकरण किराए पर उपलब्ध कराने के लिए केंद्र स्थापित करने पर 80% सब्सिडी का प्रावधान किया है।


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ग्रामीण प्रदूषण को कम करने का एक उपाय सुझाते हुए कुट्टीपुरथ कहते हैं, “प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारत स्टेज मानदंडों (वाहन उत्सर्जन को सीमित करने के लिए) को बिजली संयंत्रों में भी लागू करने की जरूरत है। नए प्राकृतिक गैस-आधारित बिजली संयंत्र लगाकर या पुराने संयंत्रों में फिल्टर लगाकर उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।”

बिहार के शहरों में प्रदूषण कम करने के प्रयासों को लेकर घोष बताते हैं कि बिहार में राज्य स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण के कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं, जो शहरों के अलावा गांवों पर भी केंद्रित रहेंगे। इन प्रयासों में ईंट भट्ठों पर निगरानी, अधिक धुआं फैलाने वाली गाड़ियों पर कार्रवाई, निर्माण गतिविधियों से धूल उड़ने से रोकने, कचरा जलाने से रोकने जैसे उपाय शामिल हैं। अगर इन उपायों को जमीनी स्तर पर लागू किया गया तो सासाराम जैसे कई शहरों में प्रदूषण की समस्या दूर हो सकती है।

 

बैनर तस्वीर: बिहार के एक गांव में कारखाने से निकलता धुआं। भारत के ग्रामीण इलाकों में हाल ही के एक शोध में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा का पता लगा है। तस्वीर- शैलेष श्रीवास्तव/मोंगाबे।

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