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[वीडियो] उत्तराखंड: जोशीमठ संकट के चार महीने बाद किस हाल में हैं प्रभावित लोग

जोशीमठ आपदा से प्रभावित सुनैना सकलानी का मकान। राहत शिविर में हो रही परेशानियों की वजह से उन्होंने इसी मकान में वापस रहने का फैसला किया है। तस्वीर- सत्यम कुमार

जोशीमठ आपदा से प्रभावित सुनैना सकलानी का मकान। राहत शिविर में हो रही परेशानियों की वजह से उन्होंने इसी मकान में वापस रहने का फैसला किया है। तस्वीर- सत्यम कुमार

  • जोशीमठ आपदा में प्रभावित परिवारों के सामने रोजग़ार एक बड़ी समस्या है जिसके चलते कई लोग दरारों वाले घरों में वापस जाने को मजबूर हैं।
  • जोशीमठ आपदा की जाँच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किये जाने से जोशीमठ की जनता और जोशीमठ आने वाले यात्रियों में भय का माहौल बना है।
  • आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के लिए जोशीमठ से 12 किलोमीटर दूर ढाक में प्री फेब्रिकेटेड घर तैयार हो रहे हैं। कई परिवार जो खेती या व्यापार पर निर्भर हैं वो घर से दूर ढाक नहीं जाना चाहते।

“हमें अपने खेतों और पशुओं की देखभाल के लिए दिन में कई बार अपने राहत शिविर से अपने घर आना पड़ता था और अब तो शिविर में खाना भी नहीं मिल रहा इसलिए अब हम दिनभर अपने घर में ही रहते हैं,” जोशीमठ के वार्ड क्रमांक 07 (सुनील गांव) की रहने वाली सुनैना सकलानी कहती हैं। 

उत्तराखंड के चमोली जिले में बसे जोशीमठ शहर में इस साल जनवरी में कई घरों में बड़ी-बड़ी दरारें देखी गईं। इसके बाद प्रशासन ने कई घरों को रहने के लिए असुरक्षित घोषित किया और कई परिवारों को राहत शिविरों में भेज दिया। उनमें से एक परिवार सुनैना का भी था। 

जनवरी में आई इन दरारों की वजह से सैकड़ों भवन लगभग गिरने की कगार पर पहुंच गए। 8 मई 2023 को प्रकाशित जोशीमठ आपदा बुलेटिन के अनुसार फ़िलहाल कुल 868 भवनों में दरारें हैं, इससे सबसे अधिक प्रभावित मकान रविग्राम वार्ड में (161) और सबसे कम लोअर बाजार (38) में हैं। इसके अतरिक्त कुल 181 भवन असुरक्षित ज़ोन में हैं जिनकी सबसे अधिक संख्या सिंघधार वार्ड में (98) में है। इन मकानों से विस्थापित 96 परिवारों के कुल 378 सदस्य राहत शिविरों में रह रहे हैं, वहीं 200 परिवारों के कुल 617 सदस्य या तो अपने रिश्तेदारों के यहाँ या फिर किराये के मकानों में रह रहे हैं। 

चारधाम यात्रा और बढ़ती परेशानियां

जोशीमठ प्राकृतिक और धार्मिक दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण है उससे भी ज़्यादा यह आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। शहर से सटे इलाकों और गांव के लोग रोजग़ार के लिए किसी न किसी रूप से इससे जुड़े हैं। टूरिस्ट गाइड, पुजारी, फूल और प्रसाद बेचने वाले, रेस्टोरेंट और होटल जैसे तमाम ऐसे रोज़गार हैं जिनसे जुड़े लोग जोशीमठ में रहते हैं। 

पिछले महीने से उत्तराखंड की प्रसिद्ध चारधाम यात्रा शुरू हुई जिसमें प्रदेश के चार प्रमुख तीर्थों – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री – के दर्शन के लिए पूरे देश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। ऐसे में बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार माने जाने वाले जोशीमठ का महत्त्व और बढ़ जाता है।  

जनवरी में जमीन धंसने के कारण आयी दरारों के बाद प्रशासन ने कई लोगों के लिए राहत शिविरों की व्यवस्था की। ये शिविर स्कूलों, गेस्ट हाउस और होटलों में बनाये गए, जहां लोगों को अस्थाई रूप से शरण दी गयी। 

जोशीमठ आपदा प्रभावितो के लिए ढाक में निर्माणाधीन प्री फेब्रिकेटेड हट। तस्वीर- सत्यम कुमार/मोंगाबे
जोशीमठ आपदा प्रभावितो के लिए ढाक में निर्माणाधीन प्री फेब्रिकेटेड हट। तस्वीर- सत्यम कुमार/मोंगाबे

जोशीमठ आपदा को चार महीने से अधिक का समय हो चुका है लेकिन प्रभावित परिवारों के विस्थापन के लिए अभी तक मात्र 15 प्री फैब्रिकेटेड हट ही बन पाए हैं। दूसरी ओर यात्रा शुरू होने के बाद होटल मालिकों द्वारा लोगों पर उनके होटल खाली करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। 

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के अतुल सती का कहना है, “5 जनवरी को सरकार और हमारे बीच समझौता हुआ कि जब तक प्रभावित परिवारों के स्थाई विस्थापन की कोई व्यवस्था नहीं होती तब तक इन परिवारों के रहने की व्यवस्था प्री फेब्रिकेटेड हट में की जाए लेकिन लगभग चार महीने हो चुके हैं ये हट अभी तक तैयार नहीं हुई हैं।”

उनका कहना है कि पहले होटल मलिकों की ओर से होटलों को खाली कराया जा रहा था लेकिन अब शिविरों में रहने कि तिथि को 31 मई 2023 तक बढ़ा दिया गया है। हालाँकि, इस नई मोहलत के बीत जाने के बाद लोग क्या करेंगे इसके बारे में किसी को पता नहीं। इसके साथ ही दूसरे कई कारण हैं जिनकी वजह से लोग इन होटलों को छोड़ने पर मजबूर हैं। 

“फरवरी माह का अंत आते-आते होटल में मिलने वाले खाने को बंद कर दिया गया अब यदि हमें खाना खाना होता तो हमको नगरपालिका के भवन जाना पड़ता लेकिन नगर पालिका का भवन हमारे होटल और घर दोनों से लगभग 12 किमी दूर है,” सुनैना बताती हैं।  

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वार्ड 04 सिंगधार की रहने वाली शशि देवी बताती हैं, “मेरे पति को मधुमेह की बीमारी है इसलिए हमें उनके खानपान का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। लेकिन, जिस होटल में हमारे रहने की व्यवस्था की गयी थी वहां सभी को एक जैसा खाना ही दिया जाता था, जिसके चलते मेरे पति की तबियत बार-बार ख़राब हो जाती थी।” 

राहत शिविरों में लगातार घटती सुविधा के चलते अपने भोजन और तमाम घरेलू सुविधाओं से वंचित लोग अपने आपदाग्रस्त घरों की ओर रुख कर रहे हैं। 

“इसके अतिरिक्त और भी बहुत सी ज़रूरतें जैसे समय समय पर पीने के लिए गरम पानी, चाय और हाथ की सेक के लिए गरम पानी आदि ऐसी सुविधाएँ हैं जो केवल घर में ही संभव थी। इसलिए हमने तय किया कि अब हम राहत शिविर में नहीं बल्कि अपने घर में रहेंगे ताकि मेरे पति की देखभाल सही प्रकार से हो सके,” उन्होंने कहा।  

असुरक्षित घरों में वापस जाते लोग

जोशीमठ के प्रभावित परिवारों को शुरुआत में अस्थायी राहत शिविरों में रखा गया और इन शिविरों में रहने की अंतिम तिथि 31 मार्च 2023 थी। जब इस समय सीमा तक भी प्रभावित परिवारों के विस्थापन का कोई स्थाई समाधान नहीं निकल पाया तो इस समय सीमा को पहले 30 अप्रैल तक बढ़ाया गया और फिर इसे 31 मई 2023 तक बढ़ा दिया गया।  

लोगों का कहना है कि शिविरों में रहने की अवधि को तो प्रशासन ने बढ़ा दिया है लेकिन समय के साथ इन शिविरों में मिलने वाली सुविधाओं में कमी की जा रही है। इसके आलावा पिछले चार महीनों से इन सभी लोगों के निजी जीवन जैसे रोज़गार, व्यापार, खेती और पढाई सभी रुक गए हैं। इन सभी कारणों के चलते बहुत से परिवार अब उनके दरार वाले असुरक्षित घोषित किये गए घरों में वापस लौट रहे हैं।  

सुनैना सकलानी की गौशाला। गायों की देखभाग के लिए उनको रोजाना सुबह-शाम राहत कैंप से घर आना पड़ता था। तस्वीर- सत्यम कुमार/मोंगाबे
सुनैना सकलानी की गौशाला। गायों की देखभाग के लिए उनको रोजाना सुबह-शाम राहत शिविर से घर आना पड़ता था। तस्वीर- सत्यम कुमार/मोंगाबे

“हमें नजदीक के एक होटल में दो कमरे दिए गए, सुबह के लिए नाश्ता, दोपहर और शाम का खाना भी होटल में ही मिलता था लेकिन हमारा परिवार एक किसान परिवार है और हमारे पास 15 गाय हैं, जिनकी देखभाल के लिए हमें प्रतिदिन सुबह अपने घर जाना होता था। दिन के समय हमारा अधिकांश समय हमारे घर में गाय और खेतों की देखभाल में ही बीतता था,” सुनैना बताती हैं। 

सुनैना आगे कहती हैं, “कुछ समय के लिए तो ठीक था लेकिन हमे यहाँ चार महीने से अधिक समय हो चुका है, अभी तक हमें नहीं बताया जा रहा है कि हमारे घर का क्या होगा? हमको कितने समय तक ऐसे ही रहना होगा? इसलिए हमारे परिवार ने तय किया है कि अब हम अपने इसी घर में ही रहेंगे और जो होगा देखा जायेगा।” 

जोशीमठ के रहने वाले देव कुन्याल जोशीमठ के राजीव गांधी अभिनव आवसीय विद्यालय में पढ़ते हैं और विद्यालय के कंपाउंड में ही रहते हैं। देव का परिवार वार्ड 01 गांधीनगर में रहता है। जोशीमठ में दरारों और विस्थापन का सिलसिला शुरू होने के समय देव अपनी 10 वीं कक्षा की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे और यह समय उनके लिए काफी तनावपूर्ण रहा। 


और पढ़ेंः उत्तराखंडः धंसती जमीन और अस्थायी पुनर्वास के बीच फंसे जोशीमठ के लोग


“”जब हमारे घर में दरार आयी और हमें अपना घर छोड़ना पड़ा तब मैं अपनी हाई स्कूल की परीक्षा की तैयारी कर रहा था लेकिन जोशीमठ में जो हुआ उसके चलते मैं अपनी पढाई को सही प्रकार से नहीं कर पाया हालांकि मैंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की लेकिन अपने घर को खोने का डर हमेशा लगा रहता था जिस कारण एक मनोवैज्ञानिक दवाव मेरे ऊपर था जिससे बार बार मेरा ध्यान अपनी पढ़ाई से हटकर हमारे घर से जुडी यादों में लग जाता था,” देव बताते हैं। 

चूंकि देव का विद्यालय केवल 10वीं कक्षा तक ही है, आगे की पढाई के लिए अब उन्हें यह विद्यालय भी छोड़ना पड़ेगा और यहां की आवासीय सुविधा भी। जोशीमठ में और भी विद्यालय हैं जो 12वीं कक्षा तक हैं लेकिन देव का घर रहने लायक नहीं बचा है। अभी तक उनके परिवार के रहने की कोई स्थाई व्यवस्था भी नहीं हुई है, इसके चलते देव अपनी पढाई से जुड़ा इतना महत्वपूर्ण निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।

“यदि मैं जोशीमठ के किसी स्कूल में एडमिशन लेता हूँ और हमारे परिवार को कहीं और शिफ्ट होना पड़ता है तब मेरी पढाई पर इसका बुरा असर होग।  यदि किसी दूसरे शहर में एडमिशन लेता हूँ तो खर्चा बहुत ज्यादा होगा और जोशीमठ आपदा के कारण हमारे परिवार की आय के इकलौते स्रोत हमारी परचून की दुकान पर भी बिक्री नहीं है,” देव आगे कहते हैं। 

“हमारे घर में बहुत दरारें हैं लेकिन एक कमरा ऐसा है जो थोड़ा सही है इसलिए अब हम राहत शिविर छोड़ अपने घर में रहते है लेकिन जब बारिश होती है तो हमे डर लगता है। लेकिन कब तक इन राहत शिविरों में ठोकरें खाते रहेंगे? इस तरह दर-दर ठोकरें खाने से तो अच्छा है कि अपने घर में रहें और यदि कोई हादसा भी होता तो अपने घर के साथ ही चले जाये,” शशि देवी कहती हैं।   

रोज़गार की समस्या और ढाक से दूरी

प्रशासन द्वारा प्रभावित परिवारों के लिए रहने की अस्थाई व्यवस्था जोशीमठ -तपोवन रोड पर स्थित ढाक में की जा रही है। इस व्यवस्था के अंतर्गत ढाक में प्री फैब्रिकेटेड मकान बनाये जाने थे। ढाक की जोशीमठ से दूरी करीब 12 किलोमीटर है, ऐसे में कई परिवार जो खेती या व्यापार पर निर्भर हैं वो ढाक नहीं जाना चाहते। 

राज्य सरकार का ग्रामीण कार्य विभाग (RWD) ने राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (NTPC) और हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (HCC) को प्रभावित परिवारों के लिए कुल 4,000 प्री फेब्रिकेटेड घर बनाने करने के लिए अधिकृत किया है।

“सुनील गाँव में हमारी लगभग पांच नाली से भी अधिक जमीन है जिसमें 100 से भी अधिक सेब के पेड़ हैं।  हम अपनी जमीन में आलू, मटर और गोभी भी लगाते हैं। इन सभी फसलों को जंगली जानवर बहुत नुकसान पहुंचाते हैं जिसके लिए हर रोज हमें खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। सीधे शब्दों में कहें तो हमारा सारा रोजगार यहीं पर है। यदि हम ढाक चले जाते हैं तो हम अपने खेतों की देखभाल कैसे कर पाएंगे?” सुनैना पूछती हैं। 

जोशीमठ के तकरीबन 700 सौ मकानों में दरारें आ रही हैं। यहां के मकान तेजी से धंस रहे हैं। तस्वीर- सत्यम कुमार
जोशीमठ आपदा बुलेटिन के अनुसार फ़िलहाल कुल 868 भवनों में दरारें हैं, इससे सबसे अधिक प्रभावित मकान रविग्राम वार्ड में (161) और सबसे कम लोअर बाजार (38) में हैं। तस्वीर- सत्यम कुमार/मोंगाबे

गाँधीनगर वार्ड की रहने वाली वीणा देवी अपने घर के नजदीक ही चाय और परचून की दुकान चलाती हैं जो कि उनके परिवार की आय का मुख्य जरिया है। “चूंकि, हमारी यह दुकान बद्रीनाथ रोड पर है और हमारी दुकान के ठीक सामने जोशीमठ डिग्री कॉलेज है, इसलिए हमारी इस दुकान पर सालभर बिक्री होती है। हमारे मकान में दरार है और हमें अपना घर खाली करना पड़ा है। फ़िलहाल हम काली कमली धर्मशाला में रहते हैं लेकिन जैसा कि बताया जा रहा है कि हमें बसाने के लिए ढाक में घर तैयार किये जा रहे हैं, हमें वहां छत तो मिल जायेगी लेकिन हमारा रोजगार हमसे छिन जायेगा तब हम अपने परिवार की गुजर बसर कैसे करेंगे? साथ ही मेरे दो बेटे और दो बेटियां हैं जो अभी स्कूल और कॉलेज में पढ़ते हैं, ढाक में स्कूल कॉलेज भी नहीं है यदि हम वहां जाते हैं तब हमारे बच्चों की पढाई का क्या होगा?” वीणा पूछती हैं। 

असुरक्षा का भाव और यात्रियों की कम संख्या 

जोशीमठ की भू-धंसाव की खबर देश और विदेश के लगभग सभी बड़े मीडिया संस्थानों में कवर की गयी। जोशीमठ के व्यापारियों का मानना है कि इन ख़बरों की वजह से पर्यटक यहां आने से अब डरने लगे हैं। 

व्यापार मंडल अध्यक्ष (जोशीमठ) नैन सिंह भंडारी कहते हैं, “इस साल की शुरुआत में जोशीमठ के कुछ मकानों में दरार आई, परन्तु इस का मतलब यह नहीं कि सम्पूर्ण जोशीमठ को इससे खतरा है। लेकिन जो खबर टीवी चैनलों द्वारा दिखाई गई उसको देखकर सर्दियों में पर्यटक नहीं आये, अब बद्रीनाथ यात्रा भी शुरू हो चुकी है लेकिन जोशीमठ के होटलों में अभी भी बुकिंग बहुत कम है जबकि पिछले साल एक महीने पहले से ही अगले दो महीने तक की बुकिंग होटलों में हो गयी थी।” 

“यदि पर्यटक जोशीमठ में आता है तब वह किसी होटल में ठहरेगा, खाना खायेगा, चाय पियेगा, घूमेगा और कुछ खरीदारी करेगा। टैक्सी वाले, सब्जी वाले, दूधवाले और तमाम तरह के अन्य व्यापारियों की आमदनी पर्यटकों की संख्या पर ही निर्भर करती है। यदि जोशीमठ में पर्यटक ही नहीं आएंगे तो इसका सीधा असर जोशीमठ की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा,” नैन सिंह आगे कहते हैं।

जोशीमठ के बाजार में चहलकदमी करता एक आदमी। फोटो: मनीष कुमार/मोंगाबे।
जोशीमठ के बाजार में चहलकदमी करता एक आदमी। तस्वीर- मनीष कुमार/मोंगाबे।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष सिमिति के प्रवक्ता कमल रतूड़ी बताते हैं, “जोशीमठ की जनता आज भी आशंका के माहौल में है, जोशीमठ में घटित कोई भी छोटी घटना भय का माहौल बना देती है। ये सब इसलिए है क्योंकि लोगों के पास जानकारी नहीं है।” 

प्रशासन के द्वारा जोशीमठ के भू-धंसाव पर देश की आठ संस्थाओं द्वारा एक अध्ययन करवाया गया था जिसकी रिपोर्ट नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) को बहुत पहले सौंप दी गयी थी। 

रतूड़ी का ये भी मानना है कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किए जाने की वजह से यात्रियों में संशय रहता है। 

“इसके कारण जोशीमठ की जनता और यहाँ आने वाले यात्रियों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है और लोग डरे हुए हैं। यदि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया जाये तो लोगों के अन्दर जोशीमठ को लेकर जो भय है वह दूर होगा और जोशीमठ से रोजगार पा रहे सभी प्रकार के लोग उस रिपोर्ट के अनुसार अपने को व्यवस्थित कर पाएंगे,” वह कहते हैं।

मोंगाबे-हिंदी ने जोशीमठ में विस्थापित परिवारों के लिए किये जाने वाले स्थाई इंतेज़ाम और होटलों को यात्रा के सीज़न में हो रहे नुकसान के बारे में जानने के लिए उप जिलाधिकारी और जिलाधिकारी चमोली से से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन दोनों अधिकारियों से संपर्क नहीं हो सका।

 

बैनर तस्वीरः जोशीमठ आपदा से प्रभावित सुनैना सकलानी का मकान। राहत शिविर में हो रही परेशानियों की वजह से उन्होंने इसी मकान में वापस रहने का फैसला किया है। तस्वीर- सत्यम कुमार/मोंगाबे

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