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गुस्सैल बिल्ली, ‘मनुल’, की दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत पर हुई पुष्टि

मनुल को दुनिया की सबसे चिड़चिड़ी या गुस्सैल बिल्ली बताया जाता है। तस्वीर- क्रिस गॉडफ्रे

मनुल को दुनिया की सबसे चिड़चिड़ी या गुस्सैल बिल्ली बताया जाता है। तस्वीर- क्रिस गॉडफ्रे

  • दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत पर एक घरेलू बिल्ली के आकार की जंगली बिल्ली ‘मनुल’ की उपस्थिति की पुष्टि की गई है। साल 2019 में इस इलाके से प्राप्त किए गए स्कैट (बिल्ली के मल) के नमूनों से यह पुष्टि हुई है।
  • डीएनए परीक्षण के द्वारा पहली बार इस बिल्ली की उपस्थिति नेपाल के पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में औपचारिक रूप से दर्ज की गई है।
  • मानुल पहले भारत में पश्चिमी हिमालय में, 80 के दशक के अंत में और फिर 2000 के दशक की शुरुआत में देखी गई थी। फिर, सितंबर 2007 में, भारतीय वन्यजीव संस्थान के संरक्षणवादी प्रणव चंचानी ने सिक्किम में पूर्वी हिमालय में इन बिल्लियों में से एक की तस्वीर ली।
  • संरक्षणवादियों का कहना है कि नवीनतम खोज इस प्रजाति के संरक्षण, खासकर इसके भोजन (शिकार) की सुरक्षा, में मदद कर सकती है।

डेविड एटनबरो ने एक बार बहुत कम दिखने वाली मनुल को दुनिया की सबसे चिड़चिड़ी या गुस्सैल बिल्ली बताया था। फर्ज करें कि आप एक गुस्सैल बिल्ली हैं, तो आप शायद लोगों से दूर रहना चाहेंगे। और ऐसे में, एकांत के लिए दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ से बेहतर जगह और क्या हो सकती है?

यह इलाका घरेलू बिल्ली के आकार की इस मनुल या पलास बिल्ली (ओटोकोलोबस मनुल ) का सबसे नया ज्ञात अड्डा है। इसकी सीमा पहले से ही हिमालय के अन्य हिस्सों; पूर्व में साइबेरिया और पश्चिम में ईरानी पठार तक फैली होने के लिए जानी जाती है।

वह स्थान जहां से पलास की बिल्ली का मल एकत्र किया गया था। तस्वीर © एंटोन सेमोन / नेशनल ज्योग्राफिक। यह तस्वीर मोंगाबे के क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के अंतर्गत नहीं आती है और पुनर्प्रकाशन के लिए उपलब्ध नहीं है।
वह स्थान जहां से पलास की बिल्ली का मल एकत्र किया गया था। तस्वीर © एंटोन सेमोन / नेशनल ज्योग्राफिक। यह तस्वीर मोंगाबे के क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के अंतर्गत नहीं आती है और पुनर्प्रकाशन के लिए उपलब्ध नहीं है।

कैटन्यूज़ नामक पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अंतर्गत सागरमाथा (जिसे माउंट एवरेस्ट के नाम से भी जाना जाता है) के आसपास के क्षेत्र में स्कैट के नमूनों का विश्लेषण किया गया था। इसके अनुसार इस क्षेत्र में कम से कम दो बिल्लियों के रहने का प्रमाण मिला, जो यहां कई साल से आने वाले पर्यटकों और पर्वतारोहियों द्वारा भी नहीं देखी गईं थीं। 

“जब हमें मल मिला, तो हमें नहीं पता था कि यह किस जानवर का है। हमने बस नमूने एकत्र किए और इसे अपनी प्रयोगशाला में ले आये,” 2019 नेशनल ज्योग्राफिक और रोलेक्स परपेचुअल प्लैनेट एवरेस्ट अभियान के तहत अध्ययन का नेतृत्व करने वाली ट्रेसी सीमोन ने मोंगाबे को बताया।

सीमोन की टीम, जिसने चार सप्ताह से अधिक समय तक पहाड़ के दक्षिणी किनारे पर खुंबू घाटी में काम किया, का प्राथमिक उद्देश्य स्कैट एकत्र करना नहीं था। यह टीम असल में पर्यावरणीय डीएनए, या ईडीएनए – जीवित जीवों द्वारा छोड़ी गई आनुवंशिक सामग्री की मात्रा – का विश्लेषण करने के लिए पानी के नमूने एकत्र कर रही थी जो क्षेत्र में प्रचलित विभिन्न प्रजातियों की पहचान करने के लिए सुराग प्रदान करेगी। “लेकिन चूंकि स्कैट का दिखना हमारे लिए एक अवसर था, इसलिए हमने नमूने लेने का फैसला किया,” उन्होंने कहा।

नेपाल की लिमी घाटी में एक पलास बिल्ली परिवार की फोटो कैमरा ट्रैप आई। तस्वीर- हिमालयन वूल्व्स प्रोजेक्ट

जब वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी के सीमोन और उनकी टीम ने स्कैट में पाए गए डीएनए की तुलना ज्ञात प्रजातियों के डेटाबेस से की, तो उन्होंने पाया कि यह मल मनुल का है। हालांकि, यह दिलचस्प है कि घाटी में पानी से लिए गए ईडीएनए के नमूने में बिल्ली के निशान नहीं पाए गए। सीमोन ने कहा कि ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि ईडीएनए के नमूने क्षणिक होते हैं और पर्यावरण में मौजूद सभी प्रजातियों को हमेशा कैप्चर नहीं करते हैं।

वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्राधिकरण (IUCN), पूरी हिमालय श्रृंखला को मनुल के इलाके या रेंज में शामिल करता है। लेकिन बिल्लियों को हिमालय में बहुत ही कम देखा गया है, और नेपाल के पूर्वी हिमालय, जिसमें सागरमाथा क्षेत्र शामिल है, में पहले कभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है।

मनुल पहले पश्चिमी हिमालय में, भारत में, 80 के दशक के अंत में और फिर 2000 के दशक की शुरुआत में दर्ज किए गए थे। फिर, सितंबर 2007 में, भारतीय वन्यजीव संस्थान के संरक्षणवादी प्रणव चंचानी ने पूर्वी नेपाल की सीमा से लगे भारतीय राज्य सिक्किम में पूर्वी हिमालय में इन बिल्लियों में से एक की तस्वीर ली।

नेपाल की सीमा के पास बिल्ली की उपस्थिति ने शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया, लेकिन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा स्थापित किये गए कैमरा ट्रैप के व्यापक नेटवर्क ने भी इस छोटी बिल्ली की कोई तस्वीर नहीं खींची। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ नेपाल ने 2011 में कंचनजंगा – दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा पर्वत, जो भारत और नेपाल को फैलाता है – में हिम तेंदुओं की निगरानी के लिए कैमरा ट्रैप का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित किया था।  

नेपाल में मनुल की मौजूदगी की पुष्टि 2012 में एनजीओ स्नो लेपर्ड कंजरवेंसी के बिक्रम श्रेष्ठ के नेतृत्व वाली एक टीम ने की थी। पश्चिमी हिमालय के अन्नपूर्णा क्षेत्र में कैमरा ट्रैप ने बिल्ली की छवियों को कैद कियाबाद में, पश्चिमी हिमालय में हुम्ला और डोल्पा में अधिक छवियां दर्ज की गईं। उसी वर्ष नेपाल के पूर्व में भूटान में कैमरा ट्रैप छवियों ने इसकी उपस्थिति की पुष्टि की।

तो इस समय तक, मनुल सागरमाथा के पूर्व में सिक्किम में, और सागरमाथा के पश्चिम में अन्नपूर्णा में दिखाई दे चुकी थी। शोधकर्ताओं के लिए, इसका दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत के पास दिखाई देना बस कुछ ही समय की बात रही होगी।

एवरेस्ट के क्षेत्र में पलास बिल्ली का मल पाया गया। तस्वीर- © ट्रेसी सेमोन/नेशनल ज्योग्राफिक। यह छवि मोंगाबे के क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के अंतर्गत नहीं आती है और पुनर्प्रकाशन के लिए उपलब्ध नहीं है।
एवरेस्ट के क्षेत्र में पलास बिल्ली का मल पाया गया। तस्वीर- © ट्रेसी सेमोन/नेशनल ज्योग्राफिक। यह छवि मोंगाबे के क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के अंतर्गत नहीं आती है और पुनर्प्रकाशन के लिए उपलब्ध नहीं है।

साल 2019 में 5,110 और 5,190 मीटर (16,765 और 17,028 फीट) की ऊंचाई पर एकत्र किए गए स्कैट के नमूने एकमात्र सबूत हैं कि बिल्लियां कभी वहां थीं, लेकिन उनका कोई फोटो नहीं है।

संरक्षणवादी रिनज़िन फुनजोक लामा ने कहा, “एवरेस्ट क्षेत्र में पलास बिल्ली की वर्तमान पुष्टि बहुत ही रोमांचक खबर है क्योंकि इस प्रजाति की वितरण सीमा नेपाल में बढ़ रही है।” “यह, यह भी दर्शाता है कि नेपाल में अन्य क्षेत्रों में जानवरों की उपस्थिति-अनुपस्थिति सर्वेक्षण करने के लिए जेनेटिक्स जैसे दूसरे तरीके प्रभावी हो सकते हैं।”

साल 2012 में नेपाल में इस जानवर की पहली कैमरा-ट्रैप छवि का दस्तावेजीकरण करने वाले अध्ययन का नेतृत्व करने वाले श्रेष्ठ ने कहा कि वह पूरी तरह से हैरान नहीं हैं कि कैमरा-ट्रैपिंग के अन्य प्रयासों से मनुल का सबूत नहीं मिला है। “हमारे पास हिमालय में पलास बिल्ली की तलाश करने वाले लोग कभी नहीं थे,” उन्होंने कहा। “हमारे पास अब तक की सभी छवियां हिम तेंदुए जैसी अन्य प्रजातियों की तलाश करते समय पकड़ी गई थीं। एक विशिष्ट हिम तेंदुआ शोधकर्ता उस क्षेत्र में नहीं जाएगा जहां पलास बिल्ली का मल पाया गया था क्योंकि यह हिम तेंदुआ रेंज में नहीं आता है।”

अब जब नेपाल के पूर्वी हिमालय में बिल्ली की उपस्थिति की पुष्टि हो गई है, संरक्षणवादियों का कहना है कि आईयूसीएन द्वारा “कम से कम चिंता की प्रजाति” के रूप में इसके संरक्षण वर्गीकरण के बावजूद इसे बचाने के लिए कार्य करने का समय आ गया है। मनुल वर्किंग ग्रुप के एक सदस्य गंगाराम रेग्मी ने कहा कि बिल्ली का आहार उसकी रक्षा के लिए आवश्यक उपायों के बारे में सुराग प्रदान करता है।

स्कैट से, सीमोन और उनकी टीम को इस बात का सबूत मिला कि बिल्ली ने खरगोश जैसी पिका (ओचोटोना हिमालयाना) और पहाड़ी नेवला (मुस्टेला अल्टिका) को खाती है।

रेग्मी ने कहा, “हमने देखा है कि किसान पिका को जहर देते हैं क्योंकि वे जानवरों की चराई को बाधित करते हैं।” “इसके अलावा, घास के मैदानों, जो बिल्ली के लिए संभावित निवास स्थान हैं, में अत्यधिक चराई एक मुद्दा है जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है। हमें पहले स्थानीय समुदायों को शामिल करने वाली प्रजातियों के लिए एक संरक्षण कार्य योजना तैयार करने की आवश्यकता है।”

 

यह खबर पहले Mongabay.com पर प्रकाशित हुई है।

 

बैनर तस्वीरः मनुल को दुनिया की सबसे चिड़चिड़ी या गुस्सैल बिल्ली बताया जाता है। तस्वीर- क्रिस गॉडफ्रे

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