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पिछले साल गर्मी और अब भारी बारिश, गेहूं की फसल पर फिर मौसम की मार

  • मार्च में हुई भारी बारिश से कई राज्यों में गेहूं की फसल को भारी नुकसान हुआ है। पिछले साल भीषण गर्मी ने गेहूं के उत्पादन को प्रभावित किया था।
  • केंद्र सरकार गेहूं की फसल को हुए नुकसान की समीक्षा कर रही है। घरेलू आपूर्ति को ध्यान में रखते हुए पिछले साल गेहूं के निर्यात पर लगाए प्रतिबंधित को हटाने से इनकार कर दिया है।
  • संयुक्त राष्ट्र के जलवायु निकाय द्वारा भविष्य में इस तरह की मौसम की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि की भविष्यवाणी के देखते हुए, किसानों के लिए एक मजबूत मुआवजे और कृषि अनुकूलन योजना की मांग बढ़ रही है।

इस साल मार्च में हुई भारी बारिश के चलते कई राज्यों में गेहूं की फसल को भारी नुकसान हुआ है। पिछले साल भीषण गर्मी के चलते गेहूं उत्पादन पर असर पड़ा था।

इस वजह से केंद्र सरकार भी नुकसान की समीक्षा कर रही है। घरेलू आपूर्ति में कमी की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने गेहूं का निर्यात फिर शुरू करने से इंकार कर दिया है। यह पाबंदी पिछले साल लगाई गई थी।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु संगठन ने कहा है कि भविष्य में इस तरह की चरम मौसमी घटनाएं बढ़ेंगी। उसने किसानों के लिए पर्याप्त मुआवजे और खेती से जुड़ी अनुकूलन योजना बनाने पर जोर दिया है।

देश में इस साल भी गेहूं की फसल को भारी नुकसान हुआ है। फसल की तैयारी से लिए अहम मार्च के महीने में बहुत ज्यादा बारिश ने फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया। मार्च में गेंहूं की फसल तैयार होने लगती है और अप्रैल में उसकी कटाई होती है।

दरअसल, पिछले साल मार्च में पारा सामान्य से बहुत अधिक था। साल 1901 से देश में तापमान का रिकॉर्ड रखने के बाद से पिछले साल मार्च में तापमान, अन्य साल में इसी महीने के तापमान से बहुत ज़्यादा था। इससे गेहूं की पैदावार पर असर पड़ा। पिछले साल अनुमानित उत्पादन से गेहूं लगभग 4.5 मिलियन टन कम हुआ था। भारत ने 2022 में 1113.20 लाख टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा था। लेकिन उत्पादन 1060.84 लाख टन से ज्यादा नहीं था।

वहीं इस साल यानी 2023 में, भारत ने 1120 लाख टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा था। यह पिछले साल की तुलना में पांच फीसदी ज्यादा है। इस साल देश भर में गेहूं का रकबा 340 लाख हेक्टेयर था। हालांकि इस आंकड़े में पिछले साल की तुलना में मामूली बढ़ोतरी हुई है।

लेकिन उपज तैयार होने के वक्त अत्यधिक बारिश के चलते कई गेहूं उत्पादक राज्यों में फसल को बड़ा झटका लगा।

उदाहरण के तौर पर पंजाब और हरियाणा को लेते हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 1 मार्च से 3 अप्रैल के बीच, इन दोनों राज्यों में अप्रत्याशित बारिश हुई। यहां हुई बारिश सामान्य से क्रमशः 205% और 220% ज्यादा थी। गेहूं उत्पादन के लिहाज से ये दोनों राज्य कितने अहम हैं, इसे इस आंकड़े से समझा जा सकता है। साल 2022 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए भारत सरकार की ओर से खरीदे गए कुल गेहूं का लगभग 74% हिस्सा इन दोनों राज्यों से मिला था।

पंजाब के कृषि विभाग के निदेशक गुरविंदर सिंह ने बेमौसम बारिश के असर के बारे में बात करते हुए मोंगाबे-इंडिया को बताया कि राज्य में 35 लाख हेक्टेयर गेहूं की फसल में से लगभग 40%, बारिश के चलते गिर गई। किसानों को शारीरिक मेहनत करके इनमें से उपज निकालनी होगी। उन्होंने कहा कि राज्य के लगभग 100,000 हेक्टेयर गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में फसल का नुकसान 70% से 100% के बीच है।

उन्होंने कहा कि 2021 में पंजाब में गेहूं का रिकॉर्ड 170 लाख टन उत्पादन हुआ था। लेकिन 2022 में लू के चलते पैदावार घटकर 130.9 लाख टन रह गई। इस साल भी हम पिछले साल के आंकड़े से आगे नहीं निकल सकते।

गुरविंदर सिंह की एक और चिंता है। वह है उपज की गुणवत्ता। बहुत ज्यादा बारिश के बाद खेतों में पानी के ठहराव से तैयार गेहूं में नमी का स्तर 14% की सीमा से अधिक होने की संभावना है।

दूसरी तरफ, हरियाणा भी भारत के बड़े गेहूं उत्पादक राज्यों में शुमार है। हरियाणा के कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक रोहतास कुमार ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि राज्य के लगभग एक लाख (100,000) किसानों ने ई-फसल क्षतिपूर्ति पोर्टल पर पंजीकरण कराया है। यहां आवेदन देकर किसान खराब हुई फसल के लिए मुआवाजे का अनुरोध करते हैं। अनुरोधित मुआवजे की कुल राशि लगभग 500,000 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए है।

कुमार ने कहा कि हरियाणा में गेहूं की फसल 23 लाख हेक्टेयर में बोई गई थी। इसका मतलब है कि राज्य में फसल क्षेत्र के 20% से कुछ ज्यादा हिस्से पर हाल में हुई अधिक बारिश का असर पड़ा है। उन्होंने कहा, “राज्य 110 लाख टन के लक्षित उत्पादन को प्राप्त नहीं कर सकता है।”

वहीं मौसम विभाग के अनुसार उत्तर प्रदेश में एक मार्च से तीन अप्रैल के बीच 251% ज्यादा बारिश हुई। राज्य सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 35,480 हेक्टेयर क्षेत्र में अब तक 33% से अधिक फसल नुकसान की गणना की गई है। इस साल राज्य में गेहूं का कुल रकबा 95 लाख हेक्टेयर के करीब है, जो देश में सबसे ज्यादा है।

पंजाब के मोगा जिले में गेहूं की फसल को हुआ नुकसान। 2022 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए भारत की ओर से खरीदे गए कुल गेहूं का लगभग 74% हिस्सा पंजाब और हरियाणा का है। तस्वीर: विशेष व्यवस्था से।
पंजाब के मोगा जिले में गेहूं की फसल को हुआ नुकसान। 2022 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए भारत की ओर से खरीदे गए कुल गेहूं का लगभग 74% हिस्सा पंजाब और हरियाणा का है। तस्वीर: विशेष व्यवस्था से।

राजस्थान में भी गेहूं की फसल को अच्छा-खासा नुकसान हुआ। राज्य में मार्च में 353% अतिरिक्त बारिश हुई थी। ताजा मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राज्य में बेमौसम वर्षा के चलते 29.6 लाख हेक्टेयर में से 388,000 हेक्टेयर में गेहूं की फसल पर असर पड़ा है।

लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगा भारत

हालिया रिपोर्टों के मुताबिक, भारत के कृषि आयुक्त पीके सिंह ने मीडिया से कहा कि शुरुआती अनुमान के अनुसार, प्रमुख उत्पादक राज्यों में हाल की बेमौसम बारिश और ओला गिरने के चलते लगभग आठ से दस प्रतिशत तक गेहूं की फसल खराब होने का अनुमान है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि देर से बुवाई वाले क्षेत्रों में बेहतर उपज की संभावना से उत्पादन में कमी की भरपाई होने की उम्मीद है।

हालांकि, कृषि व्यापार नीति के जानकार देविंदर शर्मा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “मुझे नहीं लगता कि भारत 1120 लाख टन के अपने लक्षित उत्पादन के आसपास पहुंचने की स्थिति में है।” उन्होंने कहा कि इसकी वजह इस साल सभी प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में व्यापक और लगातार बारिश होना है। यह पिछले साल के विपरीत है, जब लू उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों तक ही सीमित थी। इस बार, बेमौसम बारिश भारत के सभी हिस्सों में हुई है।


और पढ़ेंः नर्मदापुरम: गेहूं की नहीं बढ़ रही उपज, उर्वरकों के बेतहाशा इस्तेमाल ने बढ़ाई चिंता


शर्मा ने कहा कि गेहूं की फसल को तो काफी नुकसान हुआ ही है। अन्य प्रमुख रबी फसलों को भी खराब मौसम के चलते नुकसान हुआ है, जिससे किसानों को बहुत ज्यादा वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा है।

फसल को होने वाले संभावित नुकसान का असर सरकार की निर्यात नीतियों में भी देखा जा रहा है। भारत की खरीद एजेंसी, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के प्रमुख अशोक के मीणा ने 28 मार्च को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि जब तक सरकार घरेलू आपूर्ति के साथ सहज महसूस नहीं करती है, तब तक गेहूं निर्यात पर पाबंदी जारी रहेगा। लू से प्रभावित गेहूं के मौसम के मद्देनजर घरेलू बाजार में आपूर्ति संबंधी चिंता के बाद भारत ने पिछले साल मई में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी।

केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 में भारत का गेहूं निर्यात 5496.7 लाख डॉलर का था। यह अप्रैल 2021 और जनवरी 2022 के बीच 217% बढ़कर 17420 लाख डॉलर हो गया।

पिछले साल मार्च में वाणिज्य मंत्रालय की ओर से मीडिया के लिए जारी बयान के अनुसार, देश पिछले वित्तीय वर्ष में गेहूं के निर्यात को बढ़ाने की राह पर था लेकिन खराब मौसम ने निर्यात पर ब्रेक लगा दिया।

अब सबकी निगाहें आगामी खरीद सीजन पर टिकी हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार साल 2023 के लिए 350 लाख टन के गेहूं खरीद लक्ष्य को पूरा कर सकती है। 2022 में, ज्यादा निजी व्यापार और गेहूं उत्पादन में कमी के चलते वह लक्ष्य से पीछे रह गया था।

पंजाब के फिरोजपुर जिले में गिरी हुई गेहूं की फसल के साथ किसान। तस्वीर: विशेष व्यवस्था के जरिए।
पंजाब के फिरोजपुर जिले में गिरी हुई गेहूं की फसल के साथ किसान। तस्वीर: विशेष व्यवस्था के जरिए।

बेमौसम बारिश के चलते पंजाब और हरियाणा के अधिकांश हिस्सों में कटाई में देरी हुई। केंद्र सरकार की सालाना खरीद के लिए ये दोनों राज्य प्रमुख बाजार हैं। अप्रैल के शुरुआती दिनों में मंडियों में गेहूं की आवक बहुत धीमी थी और अप्रैल के तीसरे सप्ताह तक इसमें तेजी आने की संभावना थी।

किसानों के लिए मजबूत सुरक्षा प्रणाली की जरूरत

पंजाब के फिरोजपुर जिले में जैतो के पास डोड गांव के किसान देविंदर सिंह सेखों ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि उनके पास तीन हेक्टेयर खेत है और उनके खेतों में पूरा गेहूं बर्बाद हो गया है।

उनके प्रखंड के कई इलाकों में कमोबेश यही स्थिति है। उन्होंने कहा, “सभी की निगाहें राज्य सरकार पर है कि वह किसानों को समय पर पर्याप्त मुआवजा देती है या नहीं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हमारे लिए हालात बहुत मुश्किल होंगे।

पंजाब सरकार ने बारिश से प्रभावित किसानों के लिए 15,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजे की घोषणा की है। विपक्षी दल और कृषि निकाय मुआवजे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के वैश्विक राजनीतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र पैनल, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की हालिया रिपोर्ट ने निकट भविष्य में चरम मौसमी घटनाएं और ज्यादा बढ़ने की भविष्यवाणी की है। इसकी वजह वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी है। इसने यह भी चेतावनी दी कि प्रभावों से निपटने के लिए कार्रवाई के लिए समय बहुत कम है। उन्होंने कहा कि चूंकि चरम मौसम की घटनाओं का प्रभाव भारत में खेती पर काफी दिखाई दे रहा है, इसलिए भारत सरकार और राज्य सरकारों के लिए इससे निपटने के लिए दीर्घकालिक कदम उठाने का समय आ गया है।

उन्होंने कहा, इसमें कृषि क्षेत्र में मौसम के हिसाब से लचीलापन लाने वाले उपायों को बढ़ाना शामिल है। जैसे कि सिंचाई की बेहतर सुविधाएं, मिट्टी और जल संरक्षण, शुरुआती चेतावनी की बेहतर प्रणाली और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए किसानों को तैयार करने में मदद के लिए अनुकूलन (एडेप्टेशन) पर प्रशिक्षण।”

बेंगलुरु स्थित फाउंडेशन फॉर एग्रेरियन स्टडीज के निदेशक संदीपन बक्सी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि किसानों के लिए बेहतर मुआवजा प्रणाली इस बहस का एक अहम पहलू है क्योंकि वे चरम मौसमी घटनाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

पंजाब के लांबी इलाके में गेहूं की गिरी हुई फसल को देखते किसान। तस्वीर: विशेष व्यवस्था के जरिए।
पंजाब के लांबी इलाके में गेहूं की गिरी हुई फसल को देखते किसान। तस्वीर: विशेष व्यवस्था के जरिए।

उन्होंने कहा कि किसानों का नुकसान वास्तविक है, भले ही गेहूं के कुल उत्पादन लक्ष्य पूरे हों या नहीं। इस स्तर पर फसल बीमा बहुत अहम हो जाता है।

लेकिन संदीपन ने कहा कि पूरे भारत में फसल बीमा कवरेज कम है। मुआवजा कई अन्य कारकों पर भी निर्भर करता है, जैसे कि राज्य समय पर उपज डेटा की उपलब्धता के साथ क्षेत्रों और फसलों को अधिसूचित करते हैं या नहीं।

उन्होंने कहा, “इस तरह से फसलों को होने वाले नुकसान की पर्याप्त भरपाई करने के लिए, सरकार को सामान्य तरीके से हटकर काम करना पड़ सकता है।”

उनके अनुसार, नीति में यह पक्का करना होगा कि किसानों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों को इन अप्रत्याशित नुकसानों के लिए पूरा मुआवजा दिया जाए।

साल 2022 में, फाउंडेशन फॉर एग्रेरियन स्टडीज ने बताया कि 2012-13 में धान और गेहूं की खेती करने वाले पांच प्रतिशत से कम किसान परिवारों का फसल बीमा था। 2018-19 में, यह धान के लिए आठ प्रतिशत और गेहूं के लिए सात प्रतिशत तक बढ़ गया। ये आंकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 70वें और 77वें दौर पर आधारित थे।

देविंदर शर्मा का मानना है कि मौजूदा फसल बीमा योजना किसानों के बजाय निजी बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार की गई है।

उन्होंने कहा, “जब तक यह दृष्टिकोण नहीं बदलता है, तब तक किसानों को नुकसान उठाना पड़ेगा। अब ये नुकसान और ज्यादा होगा क्योंकि चरम मौसमी घटनाएं ज्यादा नियमित होने वाली हैं।”

वहीं, कुछ विशेषज्ञ अनुकूलन योजनाओं पर भी ध्यान देने पर जोर दे रहे हैं। हैदराबाद में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कार्यकारी निदेशक जी. वी. रमनजनेयुलू ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि केंद्र सरकार को जलवायु परिवर्तन से निपटने वाली किस्मों पर काम करना चाहिए जो उपज को प्रभावित नहीं करती हैं और किसानों को चरम मौसमी स्थितियों से पार पाने में मदद करती हैं।

क्षेत्र में रिसर्च अभी बहुत खराब है। हमें बदलती वास्तविकताओं के लिए अनुकूल होने के लिए समय और ऊर्जा का निवेश करना चाहिए। अन्यथा, किसानों के लिए प्रतिकूल मौसमी स्थितियों की स्थिति से लड़ना मुश्किल होता है।”

 

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बैनर तस्वीर: मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में तैयार हो रही गेहूं की फसल। जब भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाने का फैसला किया तो फसल का निर्यात 17420 लाख डॉलर तक पहुंच गया था। तस्वीर – यान फॉर्गेट/विकिमीडिया कॉमन्स।

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