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हिमालयी क्षेत्र की कमजोर स्थिति की चेतावनी देते इन इलाकों में बार-बार आते भूकंप

अध्ययन के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में आठ से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों को ट्रिगर करने के लिए पर्याप्त तनाव जमा हो गए हैं। तस्वीर- अब्दुलसयद/विकिमीडिया कॉमन्स

अध्ययन के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में आठ से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों को ट्रिगर करने के लिए पर्याप्त तनाव जमा हो गए हैं। तस्वीर- अब्दुलसयद/विकिमीडिया कॉमन्स

  • इस साल 21 मार्च को उत्तर भारत के कई राज्यों में लोगों ने भूकंप के तेज झटके महसूस किए। भूकंप की तीव्रता 6.6 मापी गई और इसका केंद्र अफगानिस्तान में था।
  • अध्ययन बताते हैं कि हिमालयी क्षेत्र में जमीन के भीतर काफी तनाव जमा हो गया है जो भविष्य में गंभीर भूकंपों की संभावना का संकेत दे रहा है।
  • चेतावनी के बावजूद, भूकंप के सही समय की भविष्यवाणी करना मुश्किल है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि एहतियात बरतने से ही नुकसान को कम किया जा सकता है।

इस साल 21 मार्च को उत्तर भारत के कई राज्यों में लोगों ने भूकंप के तेज झटके महसूस किए और दिल्ली समेत उत्तरी राज्यों में बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के अनुसार, रिक्टर स्केल पर 6.6 तीव्रता का भूकंप अफगानिस्तान के फैजाबाद में रात 10 बजकर 17 मिनट पर आया था। और इसके झटके जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई राज्य और पाकिस्तान में महसूस किए गए थे। 

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि लगातार आ रहे झटके और भूकंप एक चेतावनी हैं, खासकर हिमालयी क्षेत्र के राज्यों के लिए। वे नुकसान को कम करने के लिए निवारक उपायों की मांग कर रहे हैं क्योंकि इस क्षेत्र में ताकतवर भूकंप आने की संभावना बनी हुई है।

साल 2020 में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि हिमालयी क्षेत्र भूकंपीय रूप से सबसे सक्रिय महाद्वीपीय क्षेत्रों में से एक है। रिएक्टर स्केल पर 8 की तीव्रता वाले भूकंपों को ट्रिगर करने के लिए जमीन के भीतर पर्याप्त तनाव जमा हो गया है। अनुमान है कि ये भूकंप लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकते हैं।

हिमालयी क्षेत्रों के अधिकांश राज्य जोन IV और V में आते हैं। भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा तैयार किए गए भूकंपीय ज़ोनिंग मानचित्र के अनुसार, ज़ोन V उच्चतम भूकंपीय जोखिम को दर्शाता है। मानचित्र के अनुसार, कश्मीर घाटी, हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी भाग, उत्तराखंड का पूर्वी भाग, उत्तरी बिहार का हिस्सा और सभी उत्तर-पूर्वी राज्य जोन V में आते हैं।

भारत में भूकंपीय क्षेत्रों का ग्राफ। तस्वीर- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय/विकिमीडिया कॉमन्स 
भारत में भूकंपीय क्षेत्रों का ग्राफ। तस्वीर– पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय/विकिमीडिया कॉमन्स

लद्दाख, जम्मू-कश्मीर का बाकी हिस्सा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्से, दिल्ली और सिक्किम जोन IV में आते हैं। गुजरात, पश्चिमी राजस्थान, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भी असुरक्षित हैं।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में औसतन हर साल 30 से अधिक भूकंप आते हैं। पिछले पांच सालों में जम्मू-कश्मीर में लगभग 150 भूकंप आए हैं, जिनमें ज्यादातर 3 से 5 की तीव्रता वाले हैं। उत्तराखंड में पिछले दस सालों में 700 से ज्यादा भूकंप आ चुके हैं।

इन राज्यों की संवेदनशीलता को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि ताकतवर भूकंप की स्थिति से निपटने के लिए पहले से तैयार रहना ही सबसे अच्छा है। मौसम विज्ञान विभाग, जम्मू-कश्मीर के निदेशक, सोनम लोटस ने कहा, “हम भूकंप के समय, उसकी तीव्रता और उसका केंद्र कहां होगा, इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं। चूंकि जम्मू-कश्मीर आपदाओं के प्रति संवेदनशील है, इसलिए हमें ऐसी किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए अच्छी तरह से तैयार रहना होगा।”

कश्मीर में भूकंप की तीव्रता मापने के लिए श्रीनगर में स्थित भारतीय मौसम विभाग केंद्र। हिमालयी क्षेत्र में आठ से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों को ट्रिगर करने के लिए जमीन के भीतर पर्याप्त तनाव जमा हो गया हैं। तस्वीर-मुदस्सिर कुल्लू 
कश्मीर में भूकंप की तीव्रता मापने के लिए श्रीनगर में स्थित भारतीय मौसम विभाग केंद्र। हिमालयी क्षेत्र में आठ से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों को ट्रिगर करने के लिए जमीन के भीतर पर्याप्त तनाव जमा हो गया हैं। तस्वीर-मुदस्सिर कुल्लू

जम्मू विश्वविद्यालय के एक भूविज्ञानी और सेवानिवृत्त प्रोफेसर मंजूर अहमद मलिक ने कहा कि सक्रिय भूकंपीय गतिविधि के कारण हिमालय का यह हिस्सा लगातार भूकंप का सामना करता आया है। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “अध्ययनों से संकेत मिलता है कि कश्मीर हिमालय में एक उच्च तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है, लेकिन हम सटीक समय की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं। चूंकि हमारे पास एक नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र है, हमें नुकसान को कम करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपायों को अपनाने की जरूरत है।” 

पहले से की गई तैयारी से नुकसान कम होगा

जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष हर्ष के. गुप्ता ने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि इस क्षेत्र में कब और कहां विनाशकारी भूकंप आएगा। उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों सहित हिमालयी क्षेत्र के कई हिस्से भूकंप की चपेट में हैं। हमें भूकंप के साथ रहना है। सभी तरह  के निर्माण कार्यों में भूकंप से बचाव की पद्धति का सख्ती से पालन करना होगा। भूकंप सुरक्षा के बारे में स्कूली छात्रों को ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। हिमालयी बेल्ट के साथ भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली की भी तैनाती जरूरी है। हमें हिमालयी भूकंप क्षेत्र के आसपास के क्षेत्र में भूकंप सुरक्षा दिवस भी मनाना चाहिए, जैसे हर साल, 16 जनवरी को नेपाल में किया जाता है।”

कश्मीर में भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए मैनुअल सिस्मोग्राफ। तस्वीर- मुदस्सिर कुल्लू 
कश्मीर में भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए मैनुअल सिस्मोग्राफ। तस्वीर- मुदस्सिर कुल्लू

उन्होंने बताया कि 2001 में विनाशकारी भूकंप के बाद, गुजरात सरकार ने 2003 में भूकंपीय अनुसंधान संस्थान की स्थापना की। उन्होंने कहा, “पिछले कई सालों से संस्थान भूकंप के खतरे के आकलन और गुजरात में भूकंप प्रतिरोधी समाज के विकास को लेकर सराहनीय काम करता आ रहा है।” 

उन्होंने दावा किया कि उत्तराखंड में भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली (ईईडब्ल्यूएस) को सफलतापूर्वक लागू किया गया है। उन्होंने सुझाव दिया, “इस प्रणाली में नेटवर्क के एक अंडाकार आकार में 169 भूकंपीय सेंसर शामिल हैं। इसके जरिए उत्तराखंड के नागरिकों को 280 किमी पूर्व-पश्चिम और 120 किमी उत्तर-दक्षिण हिस्से में आने वाले तीन मध्यम भूकंपों के बारे में सफलतापूर्वक सचेत किया गया था- नवंबर 9, 2022, (5.8 तीव्रता वाला भूकंप), 12 नवंबर, 2022, (5.4 तीव्रता वाला भूकंप) और जनवरी 24, 2023 (5.8 तीव्रता वाला भूकंप)। इन भूकंपों से उत्तराखंड में किसी तरह के नुकसान की संभावना नहीं थी। उत्तराखंड में ईईडब्ल्यूएस का उचित कामकाज एक अच्छा विकास है और इसी तरह की प्रणालियों को हिमालयी भूकंप बेल्ट के आसपास के कई स्थानों पर स्थापित करने की जरूरत है।” 


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इन हस्तक्षेपों के अलावा, लोगों को कई एहतियातन उठाए जाने वाले कदमों के बारे में भी जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि वे अपने स्तर पर इसके लिए काम कर सकें।

जम्मू यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले मलिक बिल्डिंग कोड लागू करने पर जोर देते हैं। उन्होंने कहा, “हमें भूकंप प्रतिरोधी संरचनाओं का निर्माण करना होगा। बिल्डिंग कोड का पालन करने की जरूरत है। भगवान न करे अगर भारत या पाकिस्तान में तुर्की को टक्कर देने वाला भूकंप आता है, तो और अधिक नुकसान होगा। फरवरी में तुर्की और सीरिया में आए भूकंप में अब तक 50,000 लोगों की जान जा चुकी है।

वह बताते हैं, “हमें घरों, इमारतों, फ्लाईओवरों या पुलों को भूकंप प्रतिरोधी तरीके से बनाने के लिए प्रशिक्षित इंजीनियरों और मिस्त्रियों की जरूरत है। हमें उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करने और आपदाओं के बारे में जनता के बीच जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है।”

बीआईएस ने भूकंप प्रतिरोधी डिजाइन और इमारतों के निर्माण के लिए भारतीय मानकों को प्रकाशित किया है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने इसे सरल भाषा में तैयार कर प्रकाशित किया था।

विशेषज्ञों की राय है कि लोगों को इन कोडों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। आपदा प्रबंधन पर बड़े पैमाने पर काम करने वाले कश्मीर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मोहम्मद सुल्तान ने कहा कि कश्मीर एक संवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र है। उन्होंने बताया, “हर निर्माण के लिए बिल्डिंग कोड दिए गए हैं, लेकिन भूकंप के मानकों का ठीक से पालन नहीं किया जाता है। इमारतों को भूकंपरोधी बनाने पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है।

कश्मीर में भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए डिजिटल सिस्मोग्राफ। तस्वीर- मुदस्सिर कुल्लू।
कश्मीर में भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए डिजिटल सिस्मोग्राफ। तस्वीर- मुदस्सिर कुल्लू।

उन्होंने कहा कि किसी भी निर्माण की नींव मजबूत होनी चाहिए। “कश्मीर में पारंपरिक घर हुआ करते थे, जिन्हें धाजी देवरी कहा जाता है। ये भूकंप प्रतिरोधी थे और जलवायु के अनुकूल तैयार किए गए थे। ये घर आधुनिक निर्माणों की तुलना में कहीं अधिक मजबूत थे और भूकंप का सामना कर सकते थे। भीषण भूकंप के दौरान भी उनके गिरने की संभावना कम थी।”

सुल्तान ने कहा कि लोगों को घर बनाने से पहले किसी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। “इन विशेषज्ञों की सलाह पर उस जगह का चयन किया जाना चाहिए, जिस पर आपको निर्माण करना है। इसके अलावा, हमें भवन निर्माण योजना बनाते समय और निर्माण के दौरान उनकी सलाह को मानना भी होगा। वहीं दूसरी तरफ इन विशेषज्ञों को मिट्टी के प्रकार, रेत या चट्टानों को ध्यान में रखते हुए नींव की गहराई भी तय करनी होगी। साथ ही लोहा, सीमेंट, लकड़ी, ईंटों या पत्थरों जैसी कितनी सामग्री का उपयोग करना है, इसके बारे में भी बताना होगा। वे यह भी तय करेंगे कि किसी खास जगह पर कौन सा डिजाइन बनाया जा सकता है। अगर इन सभी को बेहतर तरीके से लागू किया जाए तो बहुत फर्क पड़ेगा।

कश्मीर विश्वविद्यालय के भू-सूचना विज्ञान विभाग में पढ़ाने वाले इरफ़ान रशीद ने भूकंप-रोधी संरचनाओं को बनाने के लिए इमारतों की उचित कोडिंग का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा, “हम देख रहे हैं, श्रीनगर के बाहरी इलाके में आर्द्रभूमि पर निर्माण कार्य शुरू हो गए हैं। किसी भी बड़े भूकंप के दौरान इन इलाकों को काफी ज्यादा नुकसान झेलना पड़ सकता है।”

 

बैनर इमेज: अध्ययन के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में आठ से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों को ट्रिगर करने के लिए पर्याप्त तनाव जमा हो गए हैं। तस्वीर– अब्दुलसयद/विकिमीडिया कॉमन्स

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