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नेपालः स्वादिष्ट मोमो के लिए घरेलू और जंगली भैंसों की क्रॉस-ब्रीडिंग, मुसीबत में लुप्तप्राय प्रजाति

लुप्तप्राय जंगली जल भैंस (बुबलस अरनी)। तस्वीर- सेनाका सिल्वा/विकिमीडिया कॉमन्स 

लुप्तप्राय जंगली जल भैंस (बुबलस अरनी)। तस्वीर- सेनाका सिल्वा/विकिमीडिया कॉमन्स 

  • नेपाल में भैंसे का मांस भरकर बनाए गए मोमो नेपाल में बहुत लोकप्रिय हैं। अगर मांस जंगली और घरेलू भैंसों की संकर नस्ल का होता है, तो उसकी कीमत और ज्यादा होती है।
  • घरेलू और लुप्तप्राय जंगली भैंसों की क्रॉस-ब्रीडिंग अवैध है। इससे जंगली आबादी को खतरा हो सकता है। लेकिन लोग ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि एक तो इसके मांस की मांग ज्यादा है। वहीं लोगों में यह विश्वास भी है कि क्रॉस-ब्रीड मादा ज्यादा दूध देती है।
  • कभी-कभी भारत के लोग भी जंगली भैंसों के साथ क्रॉस-ब्रीडिंग की उम्मीद के साथ पूर्वी नेपाल में कोशी टप्पू वन्यजीव रिजर्व के पास भैंसों को खुला छोड़ देते हैं। यह जगह सीमा के पास जंगली भैसों का आखिरी बचा हुआ आवास है।
  • कोशी टप्पू वन्यजीव अभयारण्य में अधिकारियों को जंगली और घरेलू जानवरों की क्रॉस-बीडिंग को नियंत्रित करने में भारी चुनौती का सामना करना पड़ता है।

तीखी सॉस के साथ परोसे जाने वाले मसालेदार मांसाहारी कीमा से भरे मोमो नेपाल और तिब्बत से निकल कर दुनिया भर में लोकप्रिय हो गए हैं। यह नेपाल के लोगों के लिए देश और विदेश दोनों जगहों पर पसंदीदा आहार है। लोग इसे दोपहर के भोजन, रात के खाने और आरामतलबी के वक्त बड़े चाव से खाते हैं। नेपाल में भैंस का मांस भरकर बनाए जाने वाले मोमो की सबसे ज्यादा मांग है। इसके चलते देश के शहरी क्षेत्रों में इस मांस की मांग ज्यादा है। हालांकि, यह मांग नेपाल के पूर्वी मैदानी इलाकों में लुप्तप्राय जंगली जलीय भैंसों (बुबलस अरनी) के लिए खतरा पैदा कर सकती है।

नेपाल कृषि अनुसंधान परिषद (एनएआरसी) के शोधकर्ता भोजन ढकाल कहते हैं, “हमने देखा है कि नेपाल में बाजार में बिकने वाला 70 फीसदी मांस भैंस का होता है।” वह कहते हैं, “अगर मांस जंगली जलीय भैंस और घरेलू भैंस [बुबलस बुबालिस] के क्रॉस-ब्रीड का होता है, तो लोग इस मांस के लिए ज्यादा पैसे देने के लिए तैयार रहते हैं।” 

“इसके अलावा, स्थानीय समुदायों का मानना ​​है कि क्रॉस-बीड से पैदा होने वाली मादा अन्य मवेशियों की तुलना में ज्यादा दूध देती है।”

स्वादिष्ट होने के चलते नेपाल में भैंस के मांस से बनाए जाने वाले मोमो की मांग सबसे ज्यादा है। शहरी क्षेत्रों में इस मांस की मांग और ज्यादा है। तस्वीर - एरेटा एकराफी/फ़्लिकर 
स्वादिष्ट होने के चलते नेपाल में भैंस के मांस से बनाए जाने वाले मोमो की मांग सबसे ज्यादा है। शहरी क्षेत्रों में इस मांस की मांग और ज्यादा है। तस्वीर – एरेटा एकराफी/फ़्लिकर

यही वजह है कि सीमा के दूसरी ओर, भारत के लोग भी अपनी घरेलू भैंसों को पूर्वी नेपाल में कोशी टप्पू वन्यजीव अभयारण्य के पास खुला छोड़ देते हैं। यह जगह जंगली भैंसों के लिए नेपाल का आखिरी बचा हुआ आवास है। कोशी टप्पू वन्यजीव अभयारण्य के मुख्य वार्डन रमेश कुमार यादव कहते हैं, “अभी हाल ही में हमने कुछ लोगों को पकड़ा है जो अपनी भैंसों को वन्यजीव अभ्यारण्य में घुसाने की कोशिश कर रहे थे।” यादव ने कहा, “जंगली भैंसों के साथ घरेलू भैंसों की ब्रीडिंग अवैध है, क्योंकि इससे जंगली आबादी पर खतरा बढ़ जाता है।”

ढकाल कहते हैं, “जब हमने अभयारण्य के आसपास पालतू भैंसों का सर्वेक्षण किया, तो हमने पाया कि कुछ भैंसों में जंगली भैंसों जैसी बाहरी विशेषताएं हैं, जैसे मजबूत मांसपेशियां और शरीर के अलग-अलग हिस्सों में सफेद धब्बे।” उन्होंने कहा, “ऐसा क्रॉस-ब्रीडिंग से ही संभव हो सकता था।” 

दुनिया भर में संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था आईयूसीएन के अनुसार जंगली जलीय भैंस को स्थानीय तौर पर “अरना” के रूप में जाना जाता है। कभी यह जानवर बांग्लादेश, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, श्रीलंका और वियतनाम में भी पाया जाता था। अब यह सिर्फ नेपाल, भारत, भूटान, कंबोडिया, म्यांमार और थाईलैंड में ही है। संस्था का कहना है कि पिछले तीन दशकों में आबादी लगभग 50% तक घटी है। अब इनकी संख्या महज 2,500-4,000 के आसपास हो सकती है। ऐसा  मुख्यतः संकरण (hybridisation) के चलते हुआ है। कुछ का यह भी कहना है कि घरेलू और जंगली भैंसों के साथ व्यापक रूप से क्रॉस-बीडिंग के चलते असली जंगली जलीय भैंस पहले ही विलुप्त हो चुके हैं।

ढकाल का कहना है कि घरेलू नर, जंगली नर से छोटे होते हैं। इसलिए इस बात की बहुत कम संभावना होती है कि उनका जंगली मादा के साथ मिलन होगा। वह कहते हैं, हालांकि, जंगली नर, पालतू भैंस की तुलना में बड़ा और मजबूत होता है और घरेलू मादा के साथ आसानी से उसका मिलन सकता है। इसलिए, नर जंगली भैंसों के आनुवंशिक क्षरण की संभावना कम हो सकती है। 

ढकाल की बातों से यादव सहमत हैं। हालांकि, वह कहते हैं कि इसका मतलब यह नहीं है कि क्रॉस-ब्रीडिंग जारी रहनी चाहिए। वो कहते हैं, जंगली और पालतू भैंस के बीच इस तरह का मिलन एक से दूसरी आबादी में पैर और मुंह जैसी बीमारी के फैलने का कारण बन सकता है और हम लुप्तप्राय प्रजातियों को लेकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। 

लेकिन भारत में बहने वाली कोशी नदी के तट पर रहने वाले स्थानीय समुदायों का कहना है कि उनके पास बहुत कम विकल्प हैं। हालांकि नेपाल के पशुधन उद्योग में भैंसों का प्रमुख योगदान है, लेकिन कम प्रजनन क्षमता और उत्पादकता प्रमुख बाधाएं हैं, जिसमें परजीवी संक्रमण और कम पोषण जैसे कारकों का हाथ है।

स्थानीय समुदाय अक्सर अपनी घरेलू भैंस (बुबलस बुबेलिस) को जंगली जलीय भैंसों के साथ क्रॉस-बीडिंग के लिए जंगल में छोड़ देते हैं। उनका मानना है कि संकर मादा अन्य घरेलू भैंसों की तुलना में ज्यादा दूध देती है। तस्वीर- बेसिल मोरिन/विकिमीडिया कॉमन्स।
स्थानीय समुदाय अक्सर अपनी घरेलू भैंस (बुबलस बुबेलिस) को जंगली जलीय भैंसों के साथ क्रॉस-बीडिंग के लिए जंगल में छोड़ देते हैं। उनका मानना है कि संकर मादा अन्य घरेलू भैंसों की तुलना में ज्यादा दूध देती है। तस्वीर– बेसिल मोरिन/विकिमीडिया कॉमन्स।

अधिकारियों का कहना है कि जंगली भैसों के साथ क्रॉस-बीडिंग के लिए छोड़ी गई घरेलू भैंस के अलावा साल 1976 में संरक्षित क्षेत्र की घोषणा से पहले कोशी टप्पू वन्यजीव रिजर्व में छोड़े गए फेरल भैंस (feral buffaloes) और गायें भी चुनौती है। यादव कहते हैं, रिजर्व के अंदर उनकी चराई से न केवल रोगों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, बल्कि चराई के लिए घास की कमी भी हो जाती है।

अभयारण्य के अधिकारियों ने जंगली भैंसों और मवेशियों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए अलग-अलग योजनाओं को लागू किया है। हालांकि सफलता बहुत कम मिली है । साल 2001 और 2004 के बीच, अधिकारियों ने रिजर्व के अंदर 167 फेरल भैंसों को मार डाला। लेकिन जंगली गायों के मामले में (हिंदुओं द्वारा पवित्र माना जाने वाला नेपाल का राष्ट्रीय पशु), अधिकारी कुछ नहीं कर सकते हैं।

जंगली जलीय भैंस से जुड़ी नेपाल की संरक्षण योजना में कहा गया है कि अभायरण्य के अंदर कम से कम तीन बड़े शेड हाउस बनाने की जरूरत है, ताकि जंगली पशुओं की नीलामी की जा सके। हालांकि, इस तरह की सुविधा को चलाने के लिए बजट जरूरी होता है जो मुश्किल से आता है।


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इन चुनौतियों के अलावा, संरक्षण योजना आक्रामक प्रजातियों के प्रसार की पहचान भी करती है जैसे कि क्रोमोलाएना ऑडोरेटा, यूपेटोरियम एडेनोफोरम, लैंटाना कैमारा और मिकानिया माइक्रांथा, जो घास खाने वाले अरना के लिए खतरा हैं। चूंकि स्थानीय किसान वन उत्पादों के लिए अवैध रूप से संरक्षित क्षेत्र में घुसते हैं, इसलिए घास के मैदान में आग लगने का खतरा होता है, जो भैंस की पसंदीदा घास की प्रजातियों को कम पसंदीदा घास से बदल सकते हैं।

अचानक आने वाली बाढ़ के लिए बदनाम कोसी नदी के रास्ते में बदलाव का भी घास के मैदानों पर नकारात्मक असर पड़ा है, क्योंकि भैंसों का आवास हर साल सिकुड़ता जा रहा है। घास के मैदानों का प्राकृतिक रूप से वनों में बदलना भी एक प्रमुख मसला है।

ढकाल का कहना है कि हाईब्रिड भैंसों के मांस की चाहत रखन वाले लोगों के खिलाफ कठोर कदम उठाने के बजाय किसानों को कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा देना बेहतर होगा, ताकि उन्हें अपनी भैंसों को संरक्षित क्षेत्रों में छोड़ने की जरूरत न पड़े। वे कहते हैं, “हम एक बैल को पकड़ सकते हैं और उसके वीर्य का उपयोग क्रॉस-बीडिंग के लिए कर सकते हैं जिससे मांस और दूध दोनों मिलता है। लेकिन यह आसान नहीं है। हमारे पास ऐसा करने के लिए इंसानी और वित्तीय संसाधन नहीं हैं।”

 

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बैनर तस्वीर: लुप्तप्राय जंगली जल भैंस (बुबलस अरनी)। तस्वीर– सेनाका सिल्वा/विकिमीडिया कॉमन्स 

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