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महाराष्ट्रः बेमौसम बारिश और अधिक गर्मी ने खराब की अल्फांसो आम की फसल, बढ़ी कीमत

अल्फांसो आम। तस्वीर – हिरेन कुमार बोस।

अल्फांसो आम। तस्वीर – हिरेन कुमार बोस।

  • बेमौसम बारिश, ठंड वाले कम दिन, लंबे समय तक कम गर्मी और अधिकतम तापमान में अचानक हुई बढ़ोतरी ने इस बार महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में आम की फसल पर असर डाला है।
  • कोंकण को अल्फांसों आम के लिए भी जाना जाता है। इस बार इनकी कीमत 700 से 1000 रुपए प्रति दर्जन रही। पिछले साल अल्फांसों की कीमत 500 से 700 रुपए प्रति दर्जन थी। इस आम की बड़ी मंडी पुणे है।
  • जानकारों का कहना है कि मौसम में होने वाले बदलावों से निपटने के लिए आम उत्पादकों को विशेषज्ञों द्वारा खेती के लिए सुझाए गए तरीकों और मौसम संबंधी एडवाइजरी पर अमल करना चाहिए।

बेमौसम बारिश और तापमान में अचानक हुई बढ़ोतरी ने महाराष्ट्र में अल्फांसो आम की पैदावार को कम कर दिया है। इस वजह से पिछले साल की तुलना में इन आमों की कीमत लगभग दोगुनी हो गई।

इस साल अप्रैल में यह फल पुणे की सरकारी मंडी (APMC/एपीएमसी) मे 700 से 1000 रुपये प्रति दर्जन बिका। वहीं पिछले साल एक दर्जन की कीमत 500 से 700 रुपए थी। 

अल्फांसो (मैंगीफेरा इंडिका) आम अपने स्वाद, सुगंध और गुणवत्ता के चलते दुनिया भर में मशहूर है। तटीय महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर इस आम की खेती होती है। यह यहां की मुख्य फसल है। यहां की अर्थव्यवस्था में भी इसका बहुत ज्यादा महत्व है। कोंकण क्षेत्र में लगभग 1,64,000 हेक्टेयर क्षेत्र में इस आम की खेती होती है। इसमें ठाणे, पालघर, रायगढ़, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिले शामिल हैं।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में मौसम का बदलता मिजाज अल्फांसो की पैदावार पर असर डाल रहा है। इस साल भी बेमौसम बारिश और तापमान में उतार-चढ़ाव का असर उत्पादन पर पड़ा। इसके चलते कीमतें भी बढ़ गई।

पुणे की एपीएमसी मंडी में एक व्यस्त दिन। यहां आम के सीजन में महाराष्ट्र के कोंकण इलाके और कर्नाटक से आम की हजारों पेटियां आती हैं। तस्वीर- हिरेन कुमार बोस।
पुणे की एपीएमसी मंडी में एक व्यस्त दिन। यहां आम के सीजन में महाराष्ट्र के कोंकण इलाके और कर्नाटक से आम की हजारों पेटियां आती हैं। तस्वीर- हिरेन कुमार बोस।

बाजार में आम की कम आवक से बढ़ी कीमत

अल्फांसो आम तौर पर मार्च के आखिर में गुड़ी पड़वा पर आता है। यह हिंदू त्योहार पारंपरिक नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। वहीं अप्रैल के आखिर में आने वाले जैन और हिंदू त्योहार अक्षय तृतीया पर इस आम की दावत दी जाती है। इसके साथ ही आम का सीजन भी शुरू होता है। इस साल, 22 अप्रैल को त्योहार के दौरान, पुणे की सरकारी मंडी में इस आम की महज 2,000 पेटियां ही आई। ये आम महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के तटीय गांवों में फैले बागों से आए थे। प्रमुख फल व्यापारी डीबी उर्सल एंड ग्रैंड सन्स के रोहन उर्सल कहते हैं, “आम तौर पर, पुणे मंडी में अक्षय तृतीया पर आठ हजार से दस हजार पेटियां (अल्फांसो आम) आती हैं।” “हालांकि, इस साल, कोंकण के अल्फांसो आम (स्थानीय नाम हापुस) की एक हजार पेटियां ही आई। कर्नाटक के गुलबर्गा और बीदर के बागों में भी इसी नाम से उगाए जाने वाले आम भी मंडी में आए थे और दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा भी दिखी।”

उन्होंने बताया कि हर दिन आम की पेटियों की आवक एक हजार से दो हजार के बीच रही। इसके चलते एक दर्जन आम की कीमत बढ़ कर 700 से 1000 रुपए तक पहुंच गई। पिछले साल आम की कीमत 500 से 700 रुपए प्रति दर्जन थी। उर्सल कहते हैं, ऐसा तब हुआ जब कर्नाटक हापुस की कीमत प्रति दर्जन 300 रुपए के आस-पास ही रही।

बेमौसम बारिश, ठंड के कम दिनों में पैदावार पर असर

पिछले कुछ सालों से आम के पेड़ों पर मंजर आने और फल लगने के दौरान बेमौसम बारिश हो रही है। ठंड भी कम दिनों तक पड़ रही है। लंबे वक्त तक तापमान कम रह रहा है। साथ ही फरवरी से मार्च के दौरान अधिकतम तापमान में अचानक हो रही बढ़ोतरी कोंकण के ठाणे, पालघर, रायगढ़, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिलों में आम की पैदावार पर असर डाल रही है। इसके चलते पिछले कुछ सालों में पैदावार घटी है।

अल्फांसों पेड़ की नजदीक से ली गई तस्वीर। इसमें मंजर के साथ कच्चे आम भी दिख रहे हैं। तस्वीर – राम कुलकर्णी/विकीमीडिया कॉमन्स
अल्फांसों पेड़ की नजदीक से ली गई तस्वीर। इसमें मंजर के साथ कच्चे आम भी दिख रहे हैं। तस्वीर – राम कुलकर्णी/विकीमीडिया कॉमन्स

डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ में बागवानी विभाग के सहायक प्रोफेसर योगेश पारुलेकर कहते हैं, “कोंकण क्षेत्र में मौसम में बड़े बदलाव ने फसल फेनोलॉजी खासकर वनस्पति विकास की गतिशीलता को बिगाड़ दिया है।  इससे आखिरकार पौधे का प्रजनन जीवन-चक्र प्रभावित हो रहा है।” “इस वजह से उत्पादन चक्र पर असर पड़ रहा है, फसल तैयार होने में देरी हो रही है और उपज की गुणवत्ता और किसानों की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव दिख रहा है।”

संदेश पाटिल के अनुसार, जलवायु में बदलाव और इससे पैदा होने वाली समस्याओं ने पैदावार की लागत बढ़ा दी है। इससे उपज में तीन-चौथाई की गिरावट आई है। पाटिल का अलीबाग में कांकेश्वर की तलहटी में 24 एकड़ बगीचा है। वह बारीक से बारीक जानकारी भी रखने में माहिर हैं। उनका कहना है कि कोंकण में बारिश का पैटर्न बदल गया है। इसका मतलब है कि मानसून की वापसी लंबी हो गई है। “आमतौर पर, यह (मानसून की वापसी) 20 सितंबर के आसपास होती है, लेकिन अब, यह अक्टूबर के आखिर में होती है।” वह कहते हैं कि ठंड आने में देरी होने से पैदावार पर असर पड़ता है। “उदाहरण के लिए, पिछले साल ठंड नवंबर के बजाय दिसंबर में शुरू हुई थी। हमारे यहां महीने के हर दिन बेमौसम बारिश होती है। इससे फसल में संक्रमण होता है और कीटनाशकों की कोई भी मात्रा उन्हें नियंत्रित नहीं कर पाती। इस तरह उत्पादन लागत बढ़ जाती है। आम तौर पर जो गर्मी हम अप्रैल में अनुभव करते हैं, वह इस साल फरवरी में ही शुरू हो गई। इस वजह से फल झुलस गए।

अल्फांसो आमों के लिए सबसे लोकप्रिय क्षेत्रों में से एक सिंधुदुर्ग में देवगढ़ के 50 साल के विद्याधर जोशी तीसरी पीढ़ी के अल्फांसो उत्पादक हैं। अपने पुराने पेड़ों (पुराने पेड़ जो पर्याप्त फल देने में असमर्थ हैं) का कायाकल्प करने वालों में पहले नंबर पर हैं। उनके मुताबिक साल 2021 और 2022 में छह हजार पेटियों (17 से 18 किलो आम वाली पेटियां) का उत्पादन हुआ था। इसके मुकाबले इस साल पेटियों की संख्या गिरकर 3,000 पर आ गई। जोशी महाराष्ट्र में मुंबई, पुणे, कोल्हापुर, सतारा, सांगली, नागपुर और यहां तक कि आंध्र प्रदेश के हैदराबाद जैसे शहरों में भी ग्राहकों को अपनी पूरी उपज ऑनलाइन बेचते हैं।

जोशी कहते हैं, “नवंबर में नई पत्तियों के आने से मंजर आने में देरी हुई। इससे कच्चे फलों के गिरने की घटनाएं बढ़ी और  पैदावार में कमी आ गई।” “दिसंबर में फूल आने के समय कुहासे वाले मौसम की स्थिति ने अनुचित परागण की शुरुआत की और थ्रिप्स, फ्रूट बोरर, मिज फ्लाई और मीली बग जैसे कीड़ों में बढ़ोतरी हुई।”

आम के बगीचे में गिरे कच्चे फल। तस्वीर- हिरेन कुमार बोस
आम के बगीचे में गिरे कच्चे फल। तस्वीर- हिरेन कुमार बोस

क्या कर सकते हैं किसान

किसानों ने महसूस किया है कि अल्फांसो तेजी से विकसित होने वाली किस्म है। क्योंकि यह हर दूसरे साल फल देता है। ट्रिमिंग और छंटाई को नापसंद करता है और ज्यादा घनत्व वाले वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त नहीं है, जो स्पंजी ऊतक सिंड्रोम से ग्रस्त है। और अब, यह मौसम की स्थिति में बदलाव से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

आम के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस परियोजना के अधिकारी और दापोली स्थित कॉलेज ऑफ हॉर्टिकल्चर के सहायक प्रोफेसर महेश कुलकर्णी का कहना है कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए किसानों को विश्वविद्यालय की ओर से बताए गए  बेहतरीन तरीकों का पालन करना होगा। साथ ही मौसम को लेकर मिलने वाले अपडेट पर अमल करना होगा। वह आगे कहते हैं, “उदाहरण के लिए, अगर तापमान ज्यादा है, तो किसान को सिंचाई करनी चाहिए। परंपरागत रूप से ऐसा नहीं किया जाता है, क्योंकि फल आने के दौरान इसे उचित नहीं माना जाता। फलों को झुलसने से बचाने के लिए, फलों को थैले में रखने की जरूरत होती है, जो कि अधिकांश बागानों में संभव नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पेड़ों की लंबाई बढ़ गई है और वहां तक पहुंचना मुश्किल है।


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चंद्रशेखर भदसावले खेती में उत्कृष्टता के लिए महाराष्ट्र के कृषि भूषण पुरस्कार से सम्मानित हैं। वे अनाज, दालों और सब्जियों की खेती में इस्तेमाल की जाने वाली सगुण रीजनरेटिव तकनीक के इनोवेटर हैं। उनके पास अल्फांसो के 70 पेड़ हैं जो 1980 के दशक की शुरुआत में नेरल के सगुना बाग में लगाए गए थे। वे कहते हैं, “हम भी हर महीने बेमौसम बारिश का अनुभव करते हैं, जिसके चलते खर-पतवार बहुत बढ़ जाती है। इसके बाद  गर्म और शुष्क दौर शुरू होता है।” “संयोग से, हमारी फसल प्रभावित नहीं हुई। मेरा मानना है कि इसका कारण मिट्टी की बढ़ी हुई कार्बन सामग्री हो सकती है। हम अपने बाग में पूरी तरह से नो-टिलिंग का इस्तेमाल करते हैं। खर-पतवार को नियंत्रित करने के लिए स्प्रे का इस्तेमाल करते हैं। इसके चलते केंचुए पैदा हो जाते हैं। हम ग्लिरिसिडिया के पत्तों का उपयोग करते हैं जो नाइट्रोजन से भरपूर होते हैं।

महाराष्ट्र राज्य आम उत्पादक एसोसिएशन के अध्यक्ष चंद्रकांत मोकल के अनुसार, सर्दियों की अनियमितता, लगातार बादल छाए रहने और कभी-कभार होने वाली बारिश से कीटों को पनपने का मौका मिलता है। इसके चलते किसानों ने अपनी फसल बचाने के लिए 10 से 12 के बीच स्प्रे का इस्तेमाल किया। हालांकि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग छह स्प्रे के इस्तेमाल पर जोर देते हैं।

अपने बगीचे में महाराष्ट्र राज्य आम उत्पादक एसोसिएशन के अध्यक्ष चंद्रकांत मोकल। तस्वीर – हिरेन कुमार बोस
अपने बगीचे में महाराष्ट्र राज्य आम उत्पादक एसोसिएशन के अध्यक्ष चंद्रकांत मोकल। तस्वीर – हिरेन कुमार बोस

मोकल ने कहा, जैविक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ाने के प्रयास में, एसोसिएशन ने कई बागवानी सम्मेलनों और सभाओं का आयोजन किया है और बाग मालिकों के बीच जैविक खाद, जैसे वर्मीकम्पोस्ट आदि के नमूने वितरित किए हैं। हमने आम उत्पादकों को पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए राज्य सरकार से अभ्यावेदन किया है, जैसा कि 2014-2015 में किया गया था। तब राज्य सरकार ने हर हेक्टेयर पर 50,000 रुपए की मदद दी थी। 

 

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बैनर तस्वीर: अल्फांसो आम। तस्वीर – हिरेन कुमार बोस।

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