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उत्तर प्रदेश: रखरखाव के अभाव में बंद पड़े आरओ प्लांट्स, दूषित पानी पीने को मजबूर ग्रामीण

छड़उवा खेड़ा से तीन किलोमीटर दूर सीधे हैंडपंप से पीने का पानी लेता ग्रामीण। तस्वीर- सुमित यादव

छड़उवा खेड़ा से तीन किलोमीटर दूर सीधे हैंडपंप से पीने का पानी लेता ग्रामीण। तस्वीर- सुमित यादव

  • उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के सिकंदरपुर कर्ण ब्लॉक में सरकार ने आठ साल पहले पानी साफ करने के लिए आरओ प्लांट लगाया था। रखरखाव के अभाव में प्लांट बंद पड़े हैं।
  • पानी साफ करने का कोई दूसरा विकल्प न होने की वजह से इलाके के लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। कई ग्रामीण पेट संबंधी बीमारियां होने की शिकायत करते हैं।
  • जिम्मेदार अधिकारियों के मुताबिक आरओ प्लांट के संचालन या मेंटेनेंस के लिए अलग से कोई फंड या योजना नहीं है जिससे इसका मेंटेनेंस कराया जा सके।

“पानी मुँह में डाल कर देखिए, बिल्कुल नमक के घोल जैसा है। कोई इसे एक गिलास नहीं पी सकता,” हैंडपंप से पानी निकालते हुए 52 वर्षीय रामदुलारी कहने लगीं। देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 70 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के सिकंदरपुर कर्ण ब्लॉक के छड़उवा खेड़ा गाँव की रहने वाली रामदुलारी गाँव के प्राथमिक विद्यालय में रसोइया हैं जो पिछले 10 साल से विद्यालय में बच्चों के लिए मध्याहन भोजन (मिड-डे मील) बना रही हैं।

विद्यालय के अंदर जंग लगे जर्जर हैंडपंप से पानी निकाल कर दिखाते हुए रामदुलारी ने बताया कि पानी बिल्कुल पीला निकलता है, पीने में भी नमकीन लगता है। इससे खाना बनाने पर खाना भी नमकीन लगता है। चावल और रोटी भी पीली पड़ जाती है। वह कहती हैं कि स्कूल में पढ़ने वाले लगभग 150 बच्चों के लिए इसी पानी से खाना बनता है। कुछ बच्चे घर से पीने के लिए पानी लाते हैं, लेकिन अधिकतर बच्चे इसी पानी को पीते हैं। 

स्कूल की बाउंड्री से जुड़ा एक आरओ (रिवर्स ऑस्मोसिस) प्लांट लगा है। जिसकी टोटी टूटी पड़ी है। इस प्लांट के दरवाज़े पर लगा ताला लंबे समय से खोला नहीं गया है। पीछे लगी खिड़की के पल्ले गायब हो चुके हैं। अंदर झांक कर देखने पर पूरे कमरे में मकड़ी के जाले और धूल के बीच आरओ प्लांट लगा दिखाई देता है, जो लंबे समय से बंद पड़ा है। 

शंकरखेड़ा गाँव में खराब पड़ा सोलर आरओ प्लांट। तस्वीर- सुमित यादव/मोंगाबे
शंकरखेड़ा गाँव में खराब पड़ा सोलर आरओ प्लांट। तस्वीर- सुमित यादव/मोंगाबे

रिवर्स ऑस्मोसिस, पानी साफ करने की एक प्रक्रिया है। इसमें दूषित जल में घुली सूक्ष्म अशुद्धियों को अलग कर पानी को साफ किया जाता है। 

रामदुलारी आगे बताती हैं कि लगभग छः से सात साल पहले यह आरओ प्लांट लगाया गया था, इसमें चार टोटियां बाहर लगी हुई थीं। और एक स्कूल के अंदर लगाई गई थी। बच्चे इसी का पानी पीते थे। बाहर लगी टोटियों से गाँव के लोग पानी लेते थे। सर का पल्लू खींचते हुए रामदुलारी कहती हैं कि इसका पानी बहुत अच्छा था। “पीने में बिलकुल नमकीन नहीं था। लेकिन यह महज दो साल में खराब हो गया। उसके बाद कई बार बनाया गया लेकिन कभी बनने के बाद 10-15 दिन से ज्यादा नहीं चला। अब तो करीब तीन साल से बन्द पड़ा है। एक बूंद पानी नहीं निकला,” उन्होंने बताया। 

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए सिकंदरपुर कर्ण ब्लॉक के 26 गांवों में “आरओ आधारित मिनी वाटर सप्लाई योजना” के तहत आरओ प्लांट लगाए गए थे। इसी योजना में एक आरओ प्लांट छड़उवा खेड़ा में भी लगा था। जिससे लोगों को पीने के लिए शुद्ध पानी मिलने लगा था। लेकिन यह प्लांट ज्यादा दिन चल नहीं सके। इस हालत में लोगों को या तो पानी खरीद कर पीना पड़ता है या फिर उन्हें गाँवो में लगे इंडिया मार्का/देशी हैंडपंपों का दूषित पानी पीने के लिए मजबूर होना पड़ा।

पानी खरीदने को मजबूर ग्रामीण 

छः लोगों के अपने परिवार में रामदुलारी अकेली कमाने वाली सदस्य हैं। उनके पति छोटेलाल का पैर एक्सीडेंट में टूट गया था तब से चल नहीं पाते हैं। रामदुलारी के चार बच्चे हैं जिनमे दो बेटियां और दो बेटे हैं। पूरे परिवार के लिए रामदुलारी रोज एक डिब्बा (20 लीटर) पानी खरीदती हैं, जो पूरे परिवार के लिए पर्याप्त नहीं होता है। 

इसी गांव के कमल निषाद (35) कहते हैं, “आरओ प्लांट से एक नंबर की व्यवस्था थी, पानी भी पीने में बहुत अच्छा था। लेकिनज्यादा दिन चला नहीं। लगने के डेढ़ से दो साल में ही खराब हो गया था।” कमल कहते हैं, “सुबह हुई तो सबसे पहले पानी की व्यवस्था करो, इसके लिए दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। वहां से डिब्बे में पानी लाव तब चाय, खाना बनता है। गाँव का पानी ऐसा है कि कपड़ा धो लो,नहा लो। पानी पी नहीं सकते हो। खाना बना दो उसका स्वाद भी अलग रहता है।”

“हम गरीब आदमी हैं, रोज पानी खरीदकर नहीं पी सकते। बीस रुपये का पंद्रह लीटर पानी मिलता है। उसके भी आने का कोई समय नहीं है। जब कभी कोई रिश्तेदार आता है तो खरीद लेते हैं या फिर गाँव से दो किलोमीटर दूर से पानी ले आते हैं। हम लोगों की आदत हो गयी है इसलिए अब पीने में दिक्कत नहीं होती।” 

अधिकारियों के मुताबिक आरओ प्लांट के संचालन या मेंटेनेंस के लिए अलग से कोई फंड या योजना नहीं है जिससे इसका मेंटेनेंस कराया जा सके। तस्वीर- सुमित यादव/मोंगाबे
अधिकारियों के मुताबिक आरओ प्लांट के संचालन या मेंटेनेंस के लिए अलग से कोई फंड या योजना नहीं है जिससे इसका मेंटेनेंस कराया जा सके। तस्वीर- सुमित यादव/मोंगाबे

कमल आगे कहते हैं, “गाँव के हालात इतने खराब हो गए हैं कि रिश्तेदारों ने आना कम कर दिया है और लोग अपनी बेटियों की शादी उनके गाँव में करने से कतराने लगे हैं।” 

छड़उवा खेड़ा से 10 किलोमीटर दूर शंकर खेड़ा गाँव का पानी भी दूषित है। वर्ष 2014-15 में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अंतर्गत संचालित सोलर आधारित मिनी पेयजल योजना के तहत 5,000 लीटर क्षमता के दो आरओ प्लांट लगाए गए थे। गाँव में चार से पांच घरों के बीच में एक कनेक्शन देकर नल लगाया गया था जिससे लोगो को साफ पानी मिलता था। मेंटेनेंस न होने से दोनों आरओ प्लांट कबाड़ हो चुके हैं, टोटियां गायब हो गई हैं और इनकी पाइप लाइन टूट चुकी है।

सेहत पर बुरा असर 

शंकरखेड़ा में दोपहर के एक बजे नीम के पेड़ के नीचे चरपाई पर बैठे प्रेमशंकर लोधी (45) बताते हैं, “हमारे पूरे गाँव का पानी खराब है। हैंडपंप से पानी निकालने पर आपको साफ दिखाई देगा। लेकिन पंद्रह मिनट बाद पानी पीला पड़ जाता है। इसको पीने से लोगों को पेट की बीमारियां हो रही हैं।”

शंकरखेड़ा के पूर्व प्रधान महेश कुमार बताते हैं कि जब गांव में आरओ प्लांट लग गया था तो गाँव में पीने के पानी की समस्या खत्म हो गयी थी। लेकिन जब से यह प्लांट खराब हुआ है फिर से दूषित पानी पीना पड़ता है। इस पानी को पीने से गाँव के ज्यादातर लोगों में पेट की बीमारी हो रही हैं। 

पं. उमाशंकर दीक्षित चिकित्सालय उन्नाव के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ ब्रज कुमार कहते हैं कि 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर दूषित पानी का गंभीर असर पड़ता है। पानी में फ्लोराइड की मात्रा बच्चों के दांतों, हड्डियों को हमजोर बनाती है। लगातार फ्लोराइड/आर्सेनिक युक्त पानी पीने से बच्चों की वृद्धि क्षमता भी प्रभावित होती है और बच्चे ठिगने होते हैं।

वहीं फिजिशियन डॉ आलोक पांडे बताते हैं कि फ्लोराइड, आर्सेनिक और टीडीएस युक्त पानी बच्चों ही नहीं बड़ों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत हानिकारक है। फ्लोराइड युक्त पानी पीने से महिलाओं और बुजुर्गों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। जोड़ों की दर्द की समस्या होने लगती है। लगातार फ्लोराइड/आर्सेनिक युक्त पानी का सेवन करने से हड्डियां कमजोर हो कर टेढ़ी होने लगती हैं और लोगों को सीधे खड़े होने/चलने में दर्द होता है। दूषित पानी से लोगों के दांत भी कमजोर हो जाते हैं। साथ ही पेट की बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है।

जानकारों के मुताबिक आर्सेनिक और टीडीएस युक्त पानी बच्चों ही नहीं बड़ों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत हानिकारक है। फ्लोराइड युक्त पानी पीने से महिलाओं और बुजुर्गों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। तस्वीर- सुमित यादव/मोंगाबे
जानकारों के मुताबिक आर्सेनिक और टीडीएस युक्त पानी बच्चों ही नहीं बड़ों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत हानिकारक है। फ्लोराइड युक्त पानी पीने से महिलाओं और बुजुर्गों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। तस्वीर- सुमित यादव/मोंगाबे

पानी के प्रदूषित होने के सवाल पर महेश कुमार कहते हैं, “कभी कोई जांच तो हुई नहीं तो पता भी नहीं है कि पानी में क्या खराबी है, कभी कोई जांच करने आया भी तो जांच करके ले गया लेकिन वापस यह नहीं बताया गया कि पानी में क्या खराबी है।”

महेश कुमार आगे बताते हैं कि गाँव के पानी का असर लोगों पर ही नहीं जानवरों पर भी है। हम लोग जानवर खरीद कर लाते हैं तब वह बहुत अच्छे और स्वस्थ रहते हैं लेकिन जैसे ही यहां कुछ दिन रहते हैं कमजोर और सुस्त हो जाते हैं। दूध वाले जानवरों में दूध कम निकलता है। जब तक आरओ प्लांट चल रहे थे तो पूरे गाँव में आदमियों से लेकर जानवरों तक को साफ पानी उपलब्ध था।

डॉ भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी लखनऊ के प्रोफेसर डॉ वेंकटेश दत्ता कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के जिन जिलों के भूजल में फ्लोराइड पाया जाता है उन्नाव भी उसमें से एक है। यहाँ के कई इलाकों में 5.5 मिली ग्राम/लीटर तक फ्लोराइड पाया गया है। जो कि बहुत ही घातक है।

उनके अनुसार पानी में फ्लोराइड, आर्सेनिक और टीडीएस जैसे कई अन्य पदार्थो की मात्रा ज्यादा होने पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। पीने योग्य पानी मे 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से ज़्यादा फ्लोराइड की मात्रा नहीं होनी चाहिए। पानी में फ्लोराइड अधिक होने पर लोगों में पेट और हड्डी संबंधी रोग होने लगते हैं। 

मेंटेनेंस के लिए फंड नहीं, जल जीवन मिशन ने बढ़ाया इंतज़ार

जल निगम के अधीक्षण अभियंता धर्मेंद्र कुमार बताते हैं कि यह योजना सात से आठ साल पुरानी है। इसका मेंटेनेंस पीरियड भी खत्म हो गया है। आरओ प्लांट के संचालन या मेंटेनेंस के लिए अलग से कोई फंड या योजना नहीं है जिससे इसका मेंटेनेंस कराया जा सके।

 धर्मेंद्र कुमार ने आरओ प्लांट की मेंटेनेंस पीरियड समाप्त होने की बात कहते हुए आरओ प्लांट को फिर से चलाने को लेकर असमर्थता जताई। उन्होंने बताया कि जनपद के सभी गाँव जल जीवन मिशन योजना में शामिल हैं। टेंडर प्रक्रिया आखिरी चरण में है। काम शुरू होने पर प्रत्येक घर में पाइप लाइन के माध्यम से सप्लाई दी जाएगी।


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जल जीवन मिशन का डेटा बताता है कि उन्नाव जिले में टैप वाटर कनेक्शन करीब 10% लोगों तक ही पहुँचा है। आंकड़े बताते हैं कि जिले में 4,88,260 घरों में से सिर्फ 49,016 घरों तक ही पानी पहुँचाया जा सका है। वहीं  छड़उवा खेड़ा की आबादी 716 है। गाँव में एक दर्जन से अधिक इंडिया मर्का हैंडपंप हैं, जिनमें से ज्यादातर खराब हैं। जो चल रहे हैं वह भी प्रदूषित पानी दे रहे हैं। लेकिन जल जीवन मिशन के रेकॉर्ड में पानी की क्वालिटी को लेकर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

शंकर खेड़ा की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। यहां के 187 परिवार दूषित पानी को मजबूर हैं। यहां के प्रधान विनोद यादव (32) बताते हैं कि ग्राम पंचायत के पास हैंडपंप के मरम्मत का पैसा होता है जिससे समय-समय पर हैंडपंपों की मरम्मत करायी जाती है। ग्राम पंचायत में आरओ प्लांट की मरम्मत की कोई मद नहीं है। अधिकारियों से भी कई बार आरओ प्लांट के मरम्मत को लेकर कहा गया लेकिन फंड की कमी बताते हुए मना कर दिया गया है। 

जल जीवन मिशन को लेकर विनोद यादव ने कहा कि उन्हें योजना की जानकारी है लेकिन गाँव तक पानी कब आएगा पता नहीं है। तब तक लोगों को इसी जहर से प्यास बुझाना मजबूरी बन चुकी है।

 

बैनर तस्वीरः उन्नाव छड़उवा खेड़ा से तीन किलोमीटर दूर सीधे हैंडपंप से पीने का पानी लेता ग्रामीण। उत्तर प्रदेश के जिन जिलों के भूजल में फ्लोराइड पाया जाता है उन्नाव भी उसमें से एक है। तस्वीर- सुमित यादव/मोंगाबे

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