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कश्मीर में जंगली सूअरों की वापसी से हंगुल के निवास स्थान और फसल खतरे में

कश्मीर के किसानों ने जंगली सूअरों को दूर रखने और अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए अपने खेतों में लोगों को तैनात किया है। तस्वीर- आकिब हुसैन 

कश्मीर के किसानों ने जंगली सूअरों को दूर रखने और अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए अपने खेतों में लोगों को तैनात किया है। तस्वीर- आकिब हुसैन 

  • स्थानीय लोगों, किसानों और वन्यजीव संरक्षणवादियों का कहना है कि कश्मीर में तेजी से प्रजनन करने वाले जंगली सूअर की तादाद बढ़ रही है। यह प्रजाति इस क्षेत्र की मूल निवासी नहीं है और 1980 के दशक में इसे स्थानीय रूप से विलुप्त घोषित कर दिया गया था। साल 2013 में इन्हें फिर से देखा गया था।
  • दाचीगाम नेशनल पार्क में गंभीर रूप से लुप्तप्राय हंगुल के लिए सूअरों की उपस्थिति नुकसानदायक साबित हो रही है। किसानों का यह भी आरोप है कि जंगली सूअर उनकी फसलें उजाड़कर खेतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
  • वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि हो सकता है बढ़ते तापमान के कारण क्षेत्र में जंगली सूअरों की आबादी बढ़ रही हो। वन्यजीव संरक्षण विभाग कश्मीर में जंगली सूअरों की उपस्थिति के बारे में और अधिक जानने के लिए एक विस्तृत अध्ययन कर रहा है।

कश्मीर में 30 साल बाद 2013 में, जंगली सूअर फिर से सामने आए और तब से उनकी संख्या बढ़ती जा रही है। इससे स्थानीय निवासियों और वन्यजीव विशेषज्ञों में चिंता पैदा हो गई है। हालांकि अभी तक आधिकारिक जनगणना नहीं हुई है। वन अधिकारियों का अनुमान है कि कश्मीर में लगभग 200 जंगली सूअर (भारतीय सूअर, सस स्क्रोफ़ा क्रिस्टेटस) हैं। तेजी से प्रजनन करने वाले सूअर उत्तरी कश्मीर के उरी, लिम्बर, लाचीपोरा और बलवार में देखे गए हैं। उन्हें मध्य कश्मीर के दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में भी देखा गया है। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, सुअरों की बढ़ती संख्या गंभीर रूप से लुप्तप्राय हंगुल की पारिस्थितिकी को परेशान कर सकता है, क्योंकि दोनों जानवर एक ही निवास स्थान साझा करते हैं।

जंगली सूअर कश्मीर के मूल निवासी नहीं हैं और पहली बार इस क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा गुलाब सिंह (1846-1857) के समय में आए थे।

जम्मू और कश्मीर के वन्यजीव विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी इंतेसार सुहैल 2017 में जंगली सूअरों पर किए गए एक अध्ययन के सह-लेखक हैं। उनके मुताबिक, जंगली सूअरों को महाराजा द्वारा शिकार के मकसद से लाया गया था। उन्होंने कहा, “यह जानवर कुछ समय तक यहां फलता-फूलता रहा। फिर 1980 में यह पूरी तरह से गायब हो गया। यह कोई देशी जानवर नहीं था।” 

अध्ययन के अनुसार, जंगली सुअर को तब कश्मीर में एक आक्रामक प्रजाति के रूप में मान्यता दी गई थी और इसलिए इनके संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया था। तब इस प्रजाति को स्थानीय रूप से विलुप्त माना गया और 1984 से 2013 के बीच इन्हें कश्मीर में कहीं भी नहीं देखा गया था। साल 2013 में, सुहैल को उत्तरी कश्मीर में काजीनाग रेंज के लिम्बर और लच्छीपोरा वन्यजीव अभयारण्यों में एक मृत सुअर मिला। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “1980 के दशक के बाद पहली बार कोई जंगली सूअर (रिकॉर्ड किया गया) मिला था। 2013 के बाद से इस जानवर को कई जगहों पर देखा गया है। फिलहाल यह पूरे कश्मीर में पाया जाता है। हालांकि, घाटी में जंगली सूअरों की सटीक संख्या जानने के लिए कोई जनगणना नहीं की गई है।”

लिम्बर और लाचीपोरा वन्यजीव अभयारण्य काजीनाग पर्वत श्रृंखला में स्थित हैं। यह इलाका कश्मीर घाटी के उत्तर-पश्चिम में बारामूला जिले में पड़ता है। यह क्षेत्र उत्तर-पश्चिमी तरफ भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा के करीब उरी में झेलम नदी के उत्तरी तट और इसके उत्तर में शमशबरी पर्वत श्रृंखला (कुपवाड़ा जिले का लंगेट वन प्रभाग) पर स्थित है।

सुहैल के अनुसार, बढ़ता तापमान जंगली सूअरों की आबादी के फिर से बढ़ने के पीछे का एक बड़ा कारण है। वे इस क्षेत्र के घने ठंडे मौसम में टिक नहीं पाते हैं। उन्होंने कहा, “हमने पिछले कई सालों से भीषण सर्दी नहीं देखी है। जंगली सूअरों की संख्या में गिरावट के लिए कश्मीर को दो से तीन गंभीर ठंडी सर्दियों की जरूरत है।” उनके मुताबिक, सूअर कश्मीर के अन्य हिस्सों में भी आए होंगे।

कश्मीर हिरण से मुकाबला

सुहैल बताते हैं कि जंगली सूअर के फिर से इस क्षेत्र में दिखाई देने के लाभकारी और प्रतिकूल दोनों प्रभावों का गहन अध्ययन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “जंगली सूअर हंगुल के लिए संसाधनों में प्रतिस्पर्धा का कारण बन सकते हैं, क्योंकि दोनों जानवर एक ही निवास स्थान साझा करते हैं। लेकिन ये तेंदुओं के लिए एक अच्छा शिकार हो सकते हैं। अगर सुअरों की संख्या ऐसे ही बढ़ती रही तो भोजन की तलाश में तेंदुओं के इंसानी इलाकों में आने की घटनाओं में कमी आएगी।” 

दाचीगाम नेशनल पार्क में हंगुल। तस्वीर- मोहम्मद दाऊद/मोंगाबे 
दाचीगाम नेशनल पार्क में हंगुल। तस्वीर- मोहम्मद दाऊद/मोंगाबे

साल 2022-2023 में, जम्मू और कश्मीर सरकार के वन्यजीव विभाग ने दाचीगाम नेशनल पार्क में जंगली सूअरों पर छह महीने तक नजर रखी थी। उनके अध्ययन में, दाचीगाम नेशनल पार्क में जंगली सूअर के पारिस्थितिक पहलू, जंगली सूअर और हंगुल की भोजन आदतों की तुलना की गई। परिणामों से पता चला कि बढ़ती जंगली सूअर की आबादी दाचीगाम नेशनल पार्क और घाटी के अन्य हिस्सों की पारिस्थितिकी को प्रभावित कर सकती है।

141 वर्ग किमी में फैला दाचीगाम, पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर के राज्य पशु ‘हंगुल’ या कश्मीर हिरण के घर के रूप में जाना जाता है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट और भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार अनुसूची I प्रजाति के अनुसार हंगुल एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है।


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20वीं शताब्दी की शुरुआत से हंगुल की संख्या में गिरावट आई है। उस समय लगभग 3000 से 5000 हुंगल बचे रहने का अनुमान लगाया गया था। हालांकि आधिकारिक जनसंख्या आंकड़ों और स्वतंत्र शोध के बीच डेटा में अंतर के साथ, पिछले कुछ सालों में हंगुल आबादी के अलग-अलग अनुमान लगाए गए हैं। लेकिन यह निश्चित है कि इनकी आबादी 100 से 261 के बीच है।

एक शोधकर्ता आकिब हुसैन ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “सूअर न सिर्फ हंगुल बल्कि अन्य जानवरों के साथ भी आवास, आश्रय, पानी और अन्य संसाधनों के लिए सीधे मुकाबले में हैं।”

हुसैन ने कहा, “उनकी तेजी से बढ़ती संख्या के भविष्य में गंभीर परिणाम हो सकते है।”

जंगली सूअरों के फसलें उजाड़ने से किसान भी चिंतित 

हुसैन ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “जंगली सूअर बहुत अच्छे प्रजनक होते हैं। इनकी आबादी तेजी से बढ़ती है। ये जड़ें खाने और जमीन खोदने से फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।” उन्होंने कहा, “अपने शोध के दौरान मैंने देखा कि उन्होंने बड़े पैमाने पर मिट्टी उखाड़ी हुई थी, जैसे ट्रैक्टर किसी खेत की जुताई कर रहे हों। अगर इनकी संख्या को नियंत्रित नहीं किया गया, तो वे जल्द ही केसर के खेतों तक पहुंच जाएंगे और दुनिया के सबसे महंगे मसालों में से एक की फसल को नुकसान पहुंचाएंगे।”

कश्मीर स्थित वनस्पतिशास्त्री बशीर अहमद ने कहा, जंगली सूअर पौधों की जड़ों की तलाश में मिट्टी की खुदाई करने के लिए अपने मजबूत थूथन का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने समझाया, “जंगली सूअर अक्सर बड़े समूहों में खाने की तलाश में रहते हैं और थोड़े समय में एक छोटे बाड़े को पूरी तरह से बर्बाद कर सकते हैं। यह उन्हें मिट्टी में जमा ऑर्गेनिक कार्बन का दुश्मन बना देता है। जब मिट्टी में खुदाई होती है, तो कार्बन ग्रीनहाउस गैस के रूप में वायुमंडल में छोड़ा जाता है।”

मोहम्मद इशाक खान उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के उरी में 50 वर्षीय किसान हैं। पिछले 30 सालों से, वह तीन कनाल भूमि (20 कनाल = एक हेक्टेयर) पर औसतन चार से पांच क्विंटल मक्का की खेती कर रहे हैं। हालांकि, 2022 के बाद से कश्मीर में जंगली सूअरों के फिर से सामने आने और पिछले एक दशक में उनकी संख्या के बढ़ने के कारण उन्हें मिलने वाली उपज की मात्रा में गिरावट आई है।

दाचीगाम नेशनल पार्क में एक जंगली सूअर। फोटो-आकिब हुसैन
दाचीगाम नेशनल पार्क में एक जंगली सूअर। तस्वीर-आकिब हुसैन

खान ने कहा, “पिछले साल, मैं सिर्फ 2.60 क्विंटल मक्के का उत्पादन कर सका क्योंकि जंगली सूअरों ने फसल को बहुत नुकसान पहुंचाया था। उन्होंने उरी सहित उत्तरी कश्मीर के कई इलाकों में मक्का, चावल, आम और सेब के पेड़ों जैसी फसलों को नुकसान पहुंचाकर तबाही मचाई है,” खान अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ रहते हैं।

इस साल, कई किसानों ने जंगली सूअरों को भगाने के लिए अपने खेतों में लोगों को तैनात किया है। खान ने कहा, “मैंने सूअरों को हमारे खेत के अंदर घुसने से रोकने के लिए एक अस्थायी बाड़ भी लगाई है। हालांकि, ये अस्थायी तरीके हैं। सरकार को इस मुद्दे को बहुत गंभीरता से लेना होगा।” 

उरी के एक अन्य किसान अब्दुल हमीद ने कहा कि सूअरों को दूर रखना मुश्किल है, क्योंकि वे ज्यादातर रात में आते हैं। वह बताते हैं, “हम रात के समय अपने खेतों में नहीं जा सकते क्योंकि तेंदुए और भालू जैसे जंगली जानवरों से सामना होने की संभावना रहती है। वहां सेना के जवान भी गश्त कर रहे होते हैं। पिछले साल ऐसी कई घटनाएं हुईं जब जंगली सूअरों ने लकड़ी की बाड़ को नुकसान पहुंचाया और कई खेतों में फसलें उखाड़ दीं।”

वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि जंगली सूअरों पर विस्तृत अध्ययन जरूरी है। वन्यजीव संरक्षण कोष, जम्मू-कश्मीर के कार्यकारी निदेशक नदीम कादरी का कहना है कि वन्यजीव संरक्षण विभाग जंगली सूअर की आबादी में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी उपाय लागू करेगा। उन्होंने कहा, “विभाग फिलहाल  इस महत्वपूर्ण मामले पर एक व्यापक अध्ययन कर रहा है, और हम विशेषज्ञों से परिणामों का उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं।”

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