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[टिप्पणी] भारत के सबसे दक्षिणी जिले में एक परिवार के सौर ऊर्जा अपनाने की कहानी

छत पर सौर प्रणाली स्थापित करने वाले कार्यकर्ता की एक प्रतिनिधि छवि। तस्वीर- ट्रिन ट्रॅन/पेक्सल्स।

छत पर सौर प्रणाली स्थापित करने वाले कार्यकर्ता की एक प्रतिनिधि छवि। तस्वीर- ट्रिन ट्रॅन/पेक्सल्स।

  • भारत को प्रचुर मात्रा में धूप मिलती है जिसका उपयोग ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है। हालाँकि, सौर ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने के संबंध में बहुत सारी जानकारी है, लेकिन विवरण बहुत हद तक तकनीकी हैं।
  • ग्राहकों के पास फोटोवोल्टिक (पीवी) सौर पैनलों से लेकर ग्रिड या ऑफ-ग्रिड विकल्पों तक कई विकल्प हैं।
  • इस टिप्पणी में, लेखिका, जो कन्याकुमारी जिले के सुचिन्द्रम में रहती हैं, सौर ऊर्जा के उपयोग पर एक उपभोक्ता के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती हैं, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सौर ऊर्जा स्थापित करने में क्या शामिल है, नुकसान, सब्सिडी और ग्रिड से ग्रिड में स्थानांतरित होने पर सौर ऊर्जा उपयोग का प्रबंधन कैसे किया जाए।
  • टिप्पणी में विचार लेखिका के हैं।

भारत की भौगोलिक स्थिति उष्ण कटिबंध में है। मानसून के मौसम के कुछ दिनों को छोड़कर, सूरज पूरे साल चमकता रहता है। अनुमान के मुताबिक, भारत को सालाना लगभग 3000 घंटे धूप मिलती है। ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में, यह 5,000 ट्रिलियन kWh ऊर्जा है जो सौर विकिरण से वार्षिक रूप से उत्पन्न की जा सकती है।

निःसंदेह, ये अनुमानित गणनाएँ हैं। लेकिन यह पुष्टि करता है कि सूर्य एक ऊर्जा स्रोत है जिसका हमें उपयोग करना चाहिए। पर्यावरण को होते नुकसान को देखते हुए, जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न बिजली की जगह सौर ऊर्जा को एक स्वच्छ और नवीकरणीय विकल्प के रूप में देखा जाता है।

यदि कोई सौर ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया की जांच करता है, तो सोलर सेल्स या सोलर पैनल के निर्माण से लेकर इसकी स्थापना और अंतिम उपयोग तक, यह कहना मुश्किल है कि यह पर्यावरणीय क्षरण को रोक देगा या यह पूरी तरह से एक ‘हरित’ ऊर्जा है।

हालांकि, इन संदेहों को एक तरफ रखते हुए, मैं इस प्रश्न का जवाब देना चाहूंगी कि एक आम व्यक्ति के लिए सौर ऊर्जा से उत्पन्न ऊर्जा प्रणाली का क्या मतलब है?

एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जिसने बहुत सोच-विचार के बाद, अपने घरेलू उपयोग के लिए छत पर सौर ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने का निर्णय लिया है, मैं इस प्रणाली और इसमें शामिल प्रक्रियाओं के बारे में अपने विचार और अनुभव साझा करना चाहती हूँ।

हम वर्षों से विद्युत ग्रिड से सौर ऊर्जा की ओर बढ़ने पर विचार कर रहे थे। लेकिन भारी लागत की वजह से हम इसे लगाने में झिझक रहे थे। 2010 से अब तक इसकी लागत कम हो गई, हालांकि पहले मिलने वाली सब्सिडी छीन ली गई है। सब्सिडी के बारे में हम थोड़ी देर बाद बात करेंगे।

तमिलनाडु के सुचिन्द्रम में लेखिका के घर की छत पर लगे सोलर पैनल। तस्वीर- गीता अय्यर।
तमिलनाडु के सुचिन्द्रम में लेखिका के घर की छत पर लगे सोलर पैनल। तस्वीर- गीता अय्यर।

आखिरकार हमें जिस वजह से अपना निर्णय बदलना पड़ा वह था – ग्रिड से बिजली आपूर्ति की प्रकृति। अनियमित आपूर्ति, वोल्टेज में उतार-चढाव से या तो महंगे बिजली के उपकरणों को नुकसान पहुंचाता था या बिजली पर निर्भर उपकरणों की दक्षता कम हो जाती थी। गर्मी के दिनों में बिजली कटौती और कम वोल्टेज की समस्या आम हो गई है। ये कारण सौर ऊर्जा की तरफ जाने के लिए प्रमुख थे। 

सौर ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने के संबंध में जानकारी की कोई कमी नहीं है। लेकिन यह जानकारी काफी हद तक तकनीकी है। ऐसे में कोई कैसे निर्णय ले पायेगा? हम अपनी बिजली की सभी जरूरतों को सौर ऊर्जा पर स्थानांतरित करना चाहते थे। हम यह भी जानते थे कि सौर पैनल ही थे जो सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करते थे और इन्वर्टर के माध्यम से इसे हमारे उपयोग के लिए विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते थे। इसलिए, पहला कदम मासिक बिजली खपत की गणना करना था। इससे हमें उत्पन्न होने वाली ऊर्जा की मात्रा और उसके लिए आवश्यक सौर पैनलों की संख्या निर्धारित करने में मदद मिली। अगला कदम सौर पैनलों का चुनाव था।

सोलर पीवी के लिए कई विकल्प

फोटोवोल्टिक (पीवी) सौर पैनल विभिन्न प्रकार के होते हैं। सभी पैनल सिलिकॉन आधारित हैं लेकिन उनमें फॉस्फोरस और बोरान जैसे अन्य अणु भी हो सकते हैं। पैनल की दक्षता सिलिकॉन अणुओं के संरेखण या एलाइनमेंट में निहित है। बाजार में अलग-अलग प्रकार के सोलर सेल उपलब्ध हैं। इनमें मोनोक्रिस्टलाइन या पॉलीक्रिस्टलाइन सोलर सेल शामिल हैं; पतली फिल्म वाले सोलर सेल; अनाकार (अमोर्फोस) सिलिकॉन सोलर सेल, और बायो-हाइब्रिड सोलर सेल।

इनमें सबसे कुशल मोनोक्रिस्टलाइन फोटोवोल्टिक सोलर सेल हैं। बेहतर तकनीक ने इन मोनोक्रिस्टलाइन पीवी पैनलों को सौर ऊर्जा ग्रहण करने में और भी अधिक प्रभावी बनाने के तरीके खोज लिए हैं। हमने जो सोलर पैनल लगाया है वह आधा कटा हुआ (हाफ-कट) मोनो पीईआरसी सोलर सेल है। मोनोक्रिस्टलाइन पैनल क्यों, और ये शब्द हाफ-कट और पीईआरसी क्या दर्शाते हैं?

फोटोवोल्टिक सोलर पैनल की दक्षता सिलिकॉन अणुओं के संरेखण में निहित है। तस्वीर-धीरय ऐथल/मोंगाबे।
फोटोवोल्टिक सोलर पैनल की दक्षता सिलिकॉन अणुओं के संरेखण में निहित है। तस्वीर-धीरय ऐथल/मोंगाबे।

मोनोक्रिस्टलाइन सेल्स को एक एकल सिलिकॉन स्रोत से काटा जाता है, जबकि पॉलीक्रिस्टलाइन सेल्स को सिलिकॉन के विभिन्न स्रोतों से मिश्रित किया जाता है। तो, पहला अधिक कुशल है लेकिन महंगा भी है।

मॉड्यूल की प्रदर्शन दक्षता और स्थायित्व में सुधार के लिए मोनोक्रिस्टलाइन सोलर सेल्स को आधे में काटा जाता है। चूंकि वे छोटे होते हैं, इसलिए उन्हें टूटने के प्रति अधिक प्रतिरोधी माना जाता है क्योंकि उन्हें कम जगह की आवश्यकता होती है। इन्हें स्थापित करने में मेहनत, वायरिंग और रैकिंग की लागत कम होती है। साथ ही, यह उसी दिए गए स्थान में अधिक बिजली उत्पन्न करता है।

पीईआरसी का मतलब ‘पैसिवेशन एमिटर रियर कॉन्टैक्ट सेल’ है और इसे करंट प्रवाह में सुधार के लिए लगाया जाता है। एक मानक मोनोक्रिस्टलाइन सेल में एक समान काला सतह क्षेत्र (बीएसएफ) होता है। इसके विपरीत, एक मोनो पीईआरसी में पीछे की निष्क्रियता परत के रूप में एल्यूमीनियम ऑक्साइड (Al2O3) और हाइड्रोजनीकृत सिलिकॉन नाइट्राइड (SiNx: H) स्टैक पर बीएसएफ होता है। यह पिछली सतह की ऑप्टिकल परावर्तनशीलता में सुधार करता है, जिससे लाइट ट्रैपिंग में सुधार के कारण सोलर सेल में अवरक्त प्रकाश का अवशोषण बढ़ जाता है, जिससे प्रकाश और इलेक्ट्रॉनों के कैप्चर में सुधार होता है।

सोलर सेल्स को अंतिम रूप देने के बाद, हमारा अगला विचार यह था कि क्या सूर्य से उत्पन्न ऊर्जा को ग्रिड के साथ साझा किया जाएगा या बैटरी या एक प्रणाली में संग्रहीत किया जाएगा जहां इन दोनों प्रक्रियाओं का एक साथ उपयोग किया जा सकता है।

ऑन-ग्रिड, ऑफ-ग्रिड या हाइब्रिड

तेज़ धूप वाले दिनों में पीवी सेल्स द्वारा उत्पन्न बिजली की मात्रा किसी के उपभोग की संभावना से अधिक होती है। यदि उत्पन्न अतिरिक्त बिजली सामान्य ग्रिड को भेज दी जाती है – वह प्रणाली जो हमारे घरों को बिजली की आपूर्ति करती है – तो आपने ऑन-ग्रिड सौर प्रणाली का विकल्प चुना है। यदि आप ग्रिड से कनेक्ट न होकर बैटरी में उत्पन्न अतिरिक्त बिजली को संग्रहित करना चुनते हैं तो यह एक ऑफ-ग्रिड प्रणाली है। यदि आप दोनों प्रणालियों को एक साथ संचालित करने का निर्णय लेते हैं, तो आपके पास एक हाइब्रिड प्रणाली है। इनमें से प्रत्येक विकल्प के अपने फायदे और नुकसान हैं।

ऑन-ग्रिड सिस्टम स्थापित करना सस्ता है क्योंकि इसमें बैटरी में निवेश नहीं करना पड़ता है। लागत में अंतर एक से डेढ़ लाख रुपए के बीच कहीं भी हो सकता है। इसमें नेट मीटर लगाने की लागत शामिल नहीं है। उत्पन्न विद्युत ऊर्जा को सामान्य ग्रिड में भेजा जाता है। बदले में, कोई भी उपयोग के लिए ग्रिड से ऊर्जा आयात कर सकता है। यह विशेष रूप से रात में एसी या हीटर जैसे भारी खपत वाले उपकरणों को चलाने और किसी अन्य उपयोग के लिए उपयोगी है। ऑफ-ग्रिड प्रणाली में, एसी और हीटर चलाने के लिए अधिक बैटरी की आवश्यकता होती है, जिससे लागत बढ़ जाती है।

ऑन-ग्रिड सिस्टम स्थापित करना सस्ता है क्योंकि इसमें बैटरी में निवेश नहीं करना पड़ता है। तस्वीर-मनीष कुमार/मोंगाबे।
ऑन-ग्रिड सिस्टम स्थापित करना सस्ता है क्योंकि इसमें बैटरी में निवेश नहीं करना पड़ता है। तस्वीर-मनीष कुमार/मोंगाबे।

ऑन-ग्रिड उपभोक्ताओं के लिए एक द्वि-दिशात्मक मीटर स्थापित किया जाता है, जिसे आमतौर पर नेट मीटर कहा जाता है। यह ग्रिड से निर्यात और आयात की गई बिजली की इकाइयों की गणना करता है। जब निर्यात आयात से अधिक हो जाता है, तो बिजली विभाग आपको ग्रिड को आपूर्ति की गई अतिरिक्त इकाइयों के लिए भुगतान करेगा। यदि निर्यात आयात से कम है (यानी, आप ग्रिड से जो निकालते हैं वह आपके द्वारा दिए गए से अधिक है), तो आप से इसके लिए शुल्क लिया जाएगा। मानसून या सर्दियों को छोड़कर, सिस्टम द्वारा उत्पन्न ऊर्जा अक्सर आपकी आवश्यकताओं से अधिक होती है। तो, आप कुछ पैसे कमा सकते हैं और कुछ वर्षों के भीतर स्थापना के लिए खर्च की गई लागत वापस पा सकते हैं। लेकिन यहाँ एक पेच है। 

जब ग्रिड को आपके द्वारा निर्यात की गई बिजली के लिए भुगतान करने की बात आती है तो भारत में राज्यों के बीच कोई समान बिलिंग प्रक्रिया नहीं है। उदाहरण के लिए, केरल और कर्नाटका में सौर ऊर्जा उपयोगकर्ताओं के लिए यह एक सीधी बिलिंग प्रक्रिया है। उन्हें ग्रिड को आपूर्ति की जाने वाली प्रति यूनिट बिजली की वही दर मिलती है जो नियमित उपभोक्ताओं से ली जाती है। लेकिन तमिलनाडु में बिलिंग प्रणाली थोड़ी अलग है। प्रति यूनिट खपत के लिए कई भुगतान स्लैब मौजूद हैं। पहली 200 यूनिट तक यह 2.20 रुपये प्रति यूनिट है। लेकिन इससे ऊपर प्रति यूनिट भुगतान की दर बढ़ जाती है। ऐसे उपभोक्ताओं को प्रति माह करीब 450 रुपये नेटवर्क सर्विस चार्ज भी देना होगा। तमिलनाडु में परिवारों के लिए उतना फायदा नहीं हैं जितना केरल और कर्नाटका में है।

ऑफ-ग्रिड प्रणाली में, उत्पन्न बिजली सीधे खपत की जाती है, और अतिरिक्त बैटरी में संग्रहित की जाती है। देर शाम से सुबह तक, जब सूर्य से कोई बिजली उत्पादन नहीं होता है, तो बैटरियों में संग्रहीत ऊर्जा की खपत होती है। सिस्टम को स्टोर करने और चलाने के लिए आवश्यक बैटरियों की संख्या खपत की गई बिजली की इकाइयों और उपयोग किए गए उपकरणों के लिए बिजली की आवश्यकता के आधार पर तय की जाती है।

ऑफ-ग्रिड प्रणाली का लाभ यह है कि कोई भी व्यक्ति काम या ज्यादा वोल्टेज की समस्या के बिना निर्बाध ऊर्जा प्राप्त कर सकता है। नुकसान यह है कि अगर आप एसी और हीटर चलाना चाहते हैं तो बैटरी और पैनल की संख्या बढ़ जाती है, जिससे आपकी लागत बढ़ जाती है। पैनल स्थापित करने के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता होती है। ट्रांसमिशन हानि से बचने के लिए बैटरियों को सोलर पैनल से अधिक दूर नहीं रखा जाना चाहिए। बैटरियों को पैनल से 20 फीट की दूरी पर रखना सबसे अच्छा है। ऑफ-ग्रिड प्रणाली की आवर्ती लागत भी होती है। बैटरी केवल 12 साल तक चलती है, जिसके अंत में उन्हें बदलना पड़ता है। इसलिए कई लोग ऑन-ग्रिड प्रणाली को पसंद करते हैं।

ऑन-ग्रिड प्रणाली में, यदि बिजली गुल हो जाती है, रखरखाव के लिए शटडाउन हो जाता है, ट्रांसमिशन में बाधा आती है, तो सौर ऊर्जा पैदा होने के बावजूद, बिजली उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं होगी। ऐसे समय में ग्रिड पर काम करने वालों की सुरक्षा के लिए सोलर पैनल द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को ग्रिड में आपूर्ति करने से रोक दिया जाएगा। ऑन-ग्रिड प्रणाली का दूसरा नुकसान यह है कि आपके विद्युत उपकरण ग्रिड द्वारा आपूर्ति की जाने वाली बिजली की अनियमितताओं से सुरक्षित नहीं हैं। आपको सर्ज या लो वोल्टेज का सामना करना पड़ेगा। ऑफ-ग्रिड सिस्टम के साथ ऐसा नहीं होता है। 

दोनों प्रणालियों के नुकसान को दूर करने के लिए, कुछ लोग हाइब्रिड प्रणाली या जिसे मैं मिश्रित प्रणाली के रूप में संदर्भित करना चाहूंगी, का विकल्प चुनते हैं। हाइब्रिड प्रणाली में एक विशेष प्रकार के इन्वर्टर का उपयोग किया जाता है, जबकि मिश्रित प्रणाली में, दो अलग-अलग इनवर्टर – एक ऑन-ग्रिड के लिए और दूसरा ऑफ-ग्रिड कनेक्शन के लिए। ऐसी प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि उपभोक्ता रात में या जब बैटरियां आवश्यक बिजली की आपूर्ति नहीं कर पाती हैं, तब ग्रिड से बिजली ले सकता है। इसी प्रकार, उत्पन्न अतिरिक्त बिजली को ग्रिड में निर्यात किया जा सकता है, और आय उत्पन्न की जा सकती है।


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मैंने छह 450 वॉट के सौर पैनलों से जुड़ा तीन किलो-वोल्ट-एम्पीयर (केवीए) इन्वर्टर स्थापित किया है। छह पैनल मिलकर 2.7 किलोवाट (KW) या 10.8 यूनिट बिजली पैदा करते हैं। तीन केवीए इन्वर्टर 3.5 किलोवाट के इनपुट का समर्थन कर सकता है। जगह की कमी के कारण, हमें पैनलों की संख्या छह तक सीमित करनी पड़ी, जिससे उत्पादन 2.7 किलोवाट तक सीमित हो गया। सामान्य नियम यह है कि एक किलोवाट का सौर पैनल प्रतिदिन 4-5 यूनिट बिजली पैदा करने में सक्षम होगा।

ऑन-ग्रिड परिदृश्य में, हमारे पास उपयोग के लिए उत्पन्न सभी 10.8 इकाइयाँ होंगी। ऑफ-ग्रिड प्रणाली होने के कारण, कुछ बिजली का उपयोग बैटरियों में प्रत्यक्ष (डीसी) धारा को प्रत्यावर्ती (एसी) धारा में परिवर्तित करने में किया जाता है। इसलिए, मुझे प्रतिदिन 7-8 यूनिट बिजली मिलती है। बरसात के दिनों में यह घटकर 5-6 यूनिट प्रतिदिन रह जाता है। लागत में वृद्धि के बावजूद, हमें मिलने वाली बिजली की गुणवत्ता में कोई बदलाव किए बिना निर्बाध बिजली आपूर्ति के लिए हमने ऑफ-ग्रिड प्रणाली को प्राथमिकता दी।

रख-रखाव एवं उपयोग

सोलर पैनलों को महीने में कम से कम एक बार साफ करना पड़ता है ताकि उन पर जमी धूल की परत हट जाए। उपभोक्ता को बैटरी को आसुत जल से भरने की आवश्यकता होती है, यह एक अन्य लागत है जिस पर समय-समय पर विचार किया जाना चाहिए। बैटरी का जीवनकाल इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी कितनी अच्छी तरह देखभाल की जाती है।

उपयोग के संदर्भ में, हमें अपने विद्युत उपकरणों के संचालन में विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम ऐसे उपकरणों का उपयोग न करें जिन्हें एक साथ उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है। वॉटर हीटर और ओवन का एक साथ उपयोग नहीं किया जा सकता। इसी तरह जब मुझे मोटर पंप चलाना होता है तो मैं फ्रिज के अलावा कोई अन्य उपकरण नहीं चलाती।

इन्वर्टर पर डिस्प्ले पैनल और इन्वर्टर पर स्थापित इंटरनेट से जुड़ा वाई-फाई मुझे बताता है कि किसी भी समय कितनी इकाइयाँ उत्पन्न हो रही हैं और बैटरी में कितना प्रतिशत संग्रहीत है। इसलिए, हम आमतौर पर अपनी मोटर, वॉशिंग मशीन या ओवन तब चलाते हैं जब उत्पादन अपने चरम पर होता है। यह आमतौर पर सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच होता है। दोपहर में जब सूरज अपने चरम पर होता है तो बिजली उत्पादन कम हो जाता है क्योंकि कड़ी धूप के कारण सौर पैनल गर्म हो जाते हैं।

मैंने जो सिस्टम चुना है वह एसी चलाने में सक्षम नहीं है। इसका कारण यह था कि हमारे पास अधिक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए अतिरिक्त पैनल लगाने के लिए जगह नहीं थी। इसके बजाय यह ग्रिड से बिजली आपूर्ति से जुड़ा है, जो मेरी छत पर सौर प्रणाली से अलग है। मुझे यहां यह बताना होगा कि जिन दिनों केवल सीमित धूप उपलब्ध होती है, सिस्टम बैटरी को चार्ज करने के लिए ग्रिड से बिजली लेता है। यदि मैं एसी का उपयोग नहीं करती, तो ग्रिड से मेरा मासिक बिल शून्य या न्यूनतम (लगभग 50 रुपये या प्रति माह) होता है। जब मैं एसी का उपयोग करती हूं तभी मेरा बिल बढ़ता है। फिर भी, यह लगभग रु. 150 प्रति माह है, जो कि मेरे हज़ारों के मासिक बिल को देखते हुए काफी कम है।

जयपुर में रूफटॉप सोलर सिस्टम स्थापित किया गया। तस्वीर- जयपुरशर्मा/विकिमीडिया कॉमन्स।
जयपुर में रूफटॉप सोलर सिस्टम स्थापित किया गया। तस्वीर– जयपुरशर्मा/विकिमीडिया कॉमन्स।

मैंने अब तक घरेलू उपयोग के लिए छत पर सौर ऊर्जा प्रणालियों के उपयोग का उल्लेख किया है। जब व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की बात आती है तो यह अलग बात है। हमारे घर का सिस्टम ऊर्जा उत्पन्न करता है जो तीन सदस्यों के एक छोटे परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकता है। यदि समान विनिर्देश के लिए ऑन-ग्रिड सिस्टम स्थापित किया जाता है, तो यह चार लोगों के परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकता है। हमारे लिए, ऐसी विद्युत आपूर्ति का होना महत्वपूर्ण था जो हमारे उपकरणों को नुकसान न पहुँचाए और दिन और रात के हर समय उपलब्ध रहे। उस मामले में, हम सौर ऊर्जा से उत्पन्न बिजली प्रणाली से खुश हैं, हालांकि हम यह भी जानते हैं कि यह पूरी तरह से हरित ऊर्जा नहीं है जैसा कि सभी के द्वारा घोषित किया गया है।


लेखिका जीव विज्ञान और पर्यावरण शिक्षा पर काम करती हैं।


 

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बैनर तस्वीर:  छत पर सौर प्रणाली स्थापित करने वाले कार्यकर्ता की एक प्रतिनिधि छवि। तस्वीर- ट्रिन ट्रॅन/पेक्सल्स।

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