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हिमाचल प्रदेश में चरवाहों के रास्तों पर चारे-पानी की कमी, पौधरोपण रोकने के आदेश से राहत

आराम फरमाते गद्दी चरवाहे। तस्वीर- आशीष गुप्ता/विकिमीडिया कॉमन्स 

आराम फरमाते गद्दी चरवाहे। तस्वीर- आशीष गुप्ता/विकिमीडिया कॉमन्स 

  • हिमाचल प्रदेश के वन विभाग के चंबा सर्कल ने नवंबर 2022 में एक नोटिस जारी करके कहा कि विभिन्न योजनाओं के तहत प्रवास के रास्तों और चरवाहों के रुकने की जगहों पर किए जा रहे पौधरोपण की वजह से गुणवत्ता वाले चारे तक उनकी पहुंच प्रभावित हो रही है।
  • स्थानीय चरवाहों ने इस आदेश का स्वागत किया लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ एक सर्कल के आदेश से यह समस्या खत्म नहीं होगी क्योंकि यह हर तरफ फैली हुई है।
  • वन विभाग का कहना है कि ग्रेजिंग अडवाइजरी कमेटी की ओर से पहले ही निर्देश दिए गए हैं कि इस तरह के पौधरोपण न किए जाएं लेकिन सच्चाई यह है कि इन निर्देशों का पालन बहुत लचर ढंग से किया जाता है।

हिमाचल प्रदेश में सरकार की ओर से चलाई जा रही पौधरोपण की गतिविधियों ने चरवाहों के प्रति खतरों को बढ़ा दिया है इसके चलते खतरनाक जीवों का विस्तार हो रहा है और हरे चरागाहों तक पहुंच में बाधा आ रही है। पौधरोपण की इन गतिविधियों का सदियों पुराने पशुपालन कारोबार पर भी पड़ रहा है। हालांकि, नंवबर 2022 में आए हिमाचल प्रदेश के वन विभाग के चंबा सर्कल के ऑफिस के आदेश ने इस रुझान को पलटने की कोशिश की है।

इस आदेश ने रिसर्च के उन नतीजों को ही बढ़ावा दिया है जो कहते हैं कि विभिन्न योजनाओं के तहत स्थानीय गद्दी और गुज्जर चरवाहा समुदाय के लोगों के रास्तों में किए जाने वाले पौधरोपण की वजह से उन्हें भारी नुकसान हो रहा है और हरे चरागाहों तक उनकी पहुंच की में बाधा पहुंचने से उन्हें मुश्किल हो रही रही है।

हिमाचल प्रदेश में चरवाहों का मौसम के हिसाब से विस्थापन विधिवित दस्तावेजों में दर्ज किया गया है। इसकी वजह है कि इसमें पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर चढ़ना और उतरना शामिल है ताकि पाले जाने वाले जानवरों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला चारा मिल सके और इससे चरवाहों को आर्थिक फायदा हो सके।

मौसम के हिसाब से होने वाले विस्थापन के दौरान रुके चरवाहे। तस्वीर- Sharma er al.,2022।
मौसम के हिसाब से होने वाले विस्थापन के दौरान रुके चरवाहे। तस्वीर– Sharma er al.,2022।

हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी की साल 2022 में आई एक स्टडी कहती है कि आने-जाने वाले इन रास्तों पर चारे की कमी के चलते यह व्यवसाय बहुत मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। साथ ही, जानवरों की चोरी, जंगली जानवरों के साथ संघर्ष, जानवरों की बीमारियों का खतरा और चरागाहों में जानवरों के पीने की कमी तेजी से बढ़ती जा रही है।

साल 2020 में आई और हिमाचल के चरवाहों पर आधारित एक और स्टडी ‘प्लांटेशन्स एंड पैस्टोरलिस्ट्स’ कहती है कि कि चरवाहों के रास्तों में पौधरोपण कर दिए जाने से चारे वाली झाड़ियों और घासों की प्रजातियां खत्म हो गईं और उनकी जगह पर ऐसे पौधे उग आए जिन्हें जानवर नहीं खाते। इसके अलावा, लैंटाना कैमारा (Lantana Camara) जैसी झाड़ियां उग आईं जो एक तरह का सजावटी पौधा है। यह इन दिनों सबसे ज्यादा उगने वाला खर-पतवार बन चुका है।

इस तरह के पौधरोपण का एक और नुकसान यह है कि शुरुआती चार-पांच सालों तक इसे सरकार की ओर से मजबूत घेराबंदी के अंदर रखा जाता है और यह चरवाहों से दूर हो जाता है। स्टडी आगे कहती है, ‘इस पौधरोपण से होने वाली समस्याओं के खिलाफ बिना पर्याप्त संस्थागत समर्थन के यहां की आजीविका को परंपरागत तरीके से चलाने वाले चरवाहों पर संकट आ जाएगा। इसका नतीजा यह होगा कि गद्दी समुदाय के लोगों को अपने परंपरागत व्यवसाय को छोड़ना पड़ेगा और आजीविका का कोई दूसरा साधन खोजना पड़ेगा।’ 

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चरवाहों के आने-जाने के रास्ते और उनके रास्तों में हुए ऐसे पौधरोपण जो उनके लिए बाधा बनते हैं। (हिमाचल प्रदेश वन विभाग के आदेश के आधार पर चरवाहों से संबंधित डेटा को ट्रेस किया गया। वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश में जनवरी 2016 से जुलाई 2019 के बीच 2,809 पौधरोपण हुए। स्टडी के मुताबिक, 785 पौधरोपण ऐसे थे जिनका डेटा मौजूद नहीं था। इस मैप में चंबा सर्कल में हुए 384 पौधरोपणों को पूरे डेटा के साथ दर्शाया गया है।) मैप्सटेक्नोलॉजी फॉर वाइल्डलाइफ फाउंडेशन।

क्या एक सर्कल का हस्तक्षेप पर्याप्त है?

चंबा के सर्कल हेड पुष्पेंद्र राणा की ओर से जारी किया गया यह आदेश न सिर्फ वन विभाग के लिए आंखें खोलने वाला है बल्कि इससे उन सरकारी संस्थाओं को भी सतर्क हो जाना चाहिए जो जंगल के इलाकों और ऊंचाई पर बसे गांवों की सार्वजनिक जमीनों पर पौधरोपण करवा रही हैं। लंबे समय से इन्हीं जमीनों पर उगने वाले चारे से चरवाहों का व्यवसाय और आजीविका चलती रही है।

इस आदेश के मुताबिक, फील्ड पर मौजूद कर्मचारियों को साफ निर्देश दिए गए हैं कि ऐसी जगहों पर पौधरोपण बिल्कुल न करें जिनसे गद्दियों को समस्या होती है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि अगर रास्ते में आने वाली किसी जमीन पर पौधरोपण करना ही है तो उसके लिए भी वैकल्पिक जमीन तलाशी जाए और इसमें चरवाहा समुदाय के लोगों  से सलाह-मशविरा किया जाए।

इस बारे में मोंगाबे-इंडिया ने पुष्पेंद्र राणा से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी। चंबा के असिस्टेंट प्रोजेक्ट डायरेक्टर रजनीश महाजन ने हमें बताया कि आमतौर पर उनकी पौधरोपण संबंधित गतिविधियां मानसून के समय होती हैं तो यह आदेश आने वाली बरसात के मौसम में प्रभावी होगा।

उन्होंने कहा कि पहले भी इन चीजों का ख्याल रखा जाता था क्योंकि इसमें हमारा भी फायदा होता है। इसका नतीजा यह होता है कि रास्तों में किए जाने वाले पौधरोपण बहुत दिनों तक बच नहीं पाते हैं।

आदेश में कहा गया है कि रास्तों में आने वाली जमीनों को पौधरोपण की जमीन में बदलने के लिए एक वैकल्पिक जमीन की तलाश करनी होगी और इसमें भी चरवाहा समुदाय के लोगों की राय लेनी होगी। तस्वीर- फिलिप रफ़र्ड/विकिमीडिया कॉमन्स।
आदेश में कहा गया है कि रास्तों में आने वाली जमीनों को पौधरोपण की जमीन में बदलने के लिए एक वैकल्पिक जमीन की तलाश करनी होगी और इसमें भी चरवाहा समुदाय के लोगों की राय लेनी होगी। तस्वीर– फिलिप रफ़र्ड/विकिमीडिया कॉमन्स।

हालांकि, अभी भी सवाल यही है कि क्या एक सर्कल ऑफिस के आदेश से इस समस्या का समाधान हो सकता है? चरवाहों का दावा है कि यह समस्या पूरे राज्य में फैली हुई है।

हाल ही में कांगड़ा जिले के पालमपुर से मौसमी प्रवास शुरू करने वाले राज कुमार ने मोंगाबे इंडिया को कहा कि चंबा सर्कल के आदेश का स्वागत है लेकिन हमारे रास्तों में होने वाला पौधरोपण हर जगह फैल गया है।

वह आगे कहते हैं, ‘चरवाहे चाहे हिमाचल प्रदेश के किसी भी हिस्से से हों उन्हें लाहौल घाटी की ऊंची पहाड़ियों पर जाना पड़ता है क्योंकि ऊंचाई पर ही अच्छी गुणवत्ता का चारा मिलता है।’ मंडी और कुल्लू जिले में भी कुछ जगहें हैं लेकिन सरकारी पौधरोपण की वजह से अब वे चरवाहों से दूर हो गई हैं।

वह आगे कहते हैं, ‘एक समय पर ये जगहें  चरवाहों के आराम करने की जगहें थी और जानवरों के लिए रास्ते में मिलने वाले चारे की भी जगहें थीं। अब क्योंकि ये जगहें चरवाहों की पहुंच से बाहर हो गई हैं तो चरवाहों को नए रास्ते ढूंढने पड़ते हैं जो कि खतरनाक हैं और वे आर्थिक रूप से भी बोझ साबित होते हैं।’

राज कुमार ने यह भी कहा कि उन लोगों ने इन समस्याओं को अपने समुदाय के बीच भी उठाया। इसके अलावा, वन विभाग के उन अधिकारियों के सामने भी ये समस्याएं रखी गईं जिन्होंने चरवाहों को जानवर चराने की अनुमति दी थी। हालांकि, चरवाहों को कहीं से किसी तरह की मदद नहीं मिली।

आजीविका के संरक्षण के लिए जरूरी है डिजिटल रणनीति 

प्रिंसिपल चीफ कन्जर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (PCCF) राजीव कुमार ने मोंगाबे-इंडिया से कहा कि स्टेट लेवल ग्रेजिंग रिव्यू कमेटी की ओर से पहले ही निर्देश जारी किए गए हैं जो कहते हैं कि चरवाहा समुदाय के प्रवासियों के रास्ते पर किसी तरह का पौधरोपण न किया जाए। उन्होंने आगे कहा कि दो साल पहले चरवाहा समुदाय ने यह मुद्दा उठाया था और इस मीटिंग में हुई चर्चाओं को हिमाचल प्रदेश के वन विभाग के सभी सर्कल में भेजा गया और उनका पालन करने को कहा गया।

राजीव कुमार ने आगे कहा, ‘हम इन निर्देशों के लागू किए जाने की समीक्षा करते हैं और चरवाहा समुदाय की अगली मीटिंग में इसे फिर उठाया जाएगा।’

हालांकि, वन अधिकार कार्यकर्ता और हिमाचल घुमंतू पशुपालक महासभा के राज्य सलाहकार अक्षय जसरोटिया ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि ग्रेजिंग कमेटी की ओर से जारी निर्देश सिर्फ कागजों पर हैं और इनको बमुश्किल ही एग्जीक्यूटिव आदेशों का समर्थन मिला है।

अक्षय जसरोटिया ने कहा, ‘अगर इस तरह के निर्देश सभी सर्कल ऑफिस को दिए गए थे तो चरवाहों के आने-जाने के रास्तों पर होने वाले पौधरोपण रुके क्यों नहीं?’ उन्होंने यह भी बताया कि हाल ही में कुल्लू जिले में एक वन अधिकारी को ज्ञापन दिया गया और उनसे मांग की गई कि हमटा पास और जिया ब्रिज के पास पारंपरिक प्रवासी रास्तों पर हुए सरकारी पौधरोपण को हटाया जाए. हालांकि, इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

रोहतांग दर्रे के पास रुके चरवाहे। तस्वीर- ट्रिनिटी सिफर/विकिमीडिया कॉमन्स।
रोहतांग दर्रे के पास रुके चरवाहे। तस्वीर– ट्रिनिटी सिफर/विकिमीडिया कॉमन्स।

अक्षय जसरोटिया ने आगे कहा कि इस समस्या से जुड़े कई मुद्दे हैं। पहला, जंगल की जमीन पर होने वाला हर पौधरोपण वन विभाग की ओर से नहीं किया जाता है। कई बाहरी एजेंसियों को भी अलग-अलग सरकारी योजनाओं के तहत पौधरोपण संबंधी गतिविधियां करने का काम मिला हुआ है। हालांकि, समस्या ये है कि अलग-अलग विभागों के बीच कोई सामंजस्य नहीं है जिसके चलते चरवाहों के रास्तों में अनचाहे पौधरोपण होते रहते हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि वन विभाग के पास हिमाचल प्रदेश में मौजूद इन प्रवासी रास्तों और उनके रुकने की जगह का पर्याप्त डेटा मौजूद नहीं है। इसके अलावा, चरागाह की जमीनों और उनकी क्षमता की कोई पहचान नहीं हुई है।

जसरोटिया ने आगे कहा, ‘जब तक इन चीजों को डिजिटल नहीं किया जाता, तब तक चरवाहों की आजीविका से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए रणनीति नहीं बना जा सकेगी। चंबा सर्कल ने चरवाहों के रास्ते की सही जगहों की एकदम ठीक लोकेशन बताकर अच्छा काम किया है। इसी तरह के प्रयासों की जरूरत हर सर्कल के मुखिया की ओर से किए जाने की जरूरत है।’

उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा सिस्टम में समस्या यह है कि चरवाहों की आजीविका के संरक्षण को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी जाती है जबकि वे आर्थिक और पर्यावरणीय संरक्षण में वे अहम भूमिका निभाते हैं।

विशेषज्ञों ने की आदेश को बढ़ाने की मांग

देहरादून स्थित सेंटर फॉर इकोलॉजी, डेवलपमेंट एंड रिसर्च में पैस्टोरल रिसर्चर विजय रामप्रसाद ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि चंबा सर्कल का आदेश एक सकारात्मक संदेश है। हालांकि, इस आदेश को वन विभाग के सभी सर्कल में लागू किए जाने की जरूरत है।

उनके मुताबिक, चरवाहों के ये रास्ते लंबे और कई तरह के हैं, ये अलग-अलग इलाकों से होकर गुजरते हैं और ये सालों तक चरवाहों के आने-जाने से बने हैं।

विजय रामप्रसाद ने आगे कहा, ‘यही वजह है कि हिमाचल प्रदेश के वन विभाग के सभी सर्कलों में इसी तरह के आदेश जारी करने और प्रवासी रास्तों की देखभाल किए जाने की जरूरत है जो कि समुचित संरक्षण के लिए जरूरी हैं।’

हिमाचल प्रदेश के ऊंचे ढलानो पर अपने जानवरों के साथ मौजूद चरवाहे। तस्वीर- Sharma et al.,2022
हिमाचल प्रदेश के ऊंचे ढलानो पर अपने जानवरों के साथ मौजूद चरवाहे। तस्वीर- Sharma et al.,2022

उन्होंने आगे कहा कि राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों के चरागाह वाले इलाकों में भी प्रशासन को इसी तरह के आदेश जारी करने की जरूरत है क्योंकि वहां पर भी पौधरोपण संबंधी गतिविधियों की वजह से चरवाहे इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

दिल्ली स्थित सेंटर ऑफ पैस्टोरलिज्म के जुड़े अनिरुद्ध सेठ कहते हैं कि देशभर में चरवाहों के रास्तों की मैपिंग करने से राज्य की संस्थाओं, निजी उद्योग और सिविल सोसायटी को फायदा हो सकता है और इससे देशभर में चरवाहों के व्यवसाय को फैलाया जा सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि चंबा फॉरेस्ट डिवीजन का यह तकनीकी आदेश चरगाहा वाले इलाकों और विस्थापन पर पौधरोपण वाली गतिविधियों के असर को रेखांकित करने की ओर उठाया गया सराहनीय कदम है। ऐसे में यह जरूरी है कि हिमाचल प्रदेश में भी अन्य सर्कल इसका अनुकरण करें।

 

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बैनर तस्वीर: आराम फरमाते गद्दी चरवाहे। तस्वीर– आशीष गुप्ता/विकिमीडिया कॉमन्स

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