Site icon Mongabay हिन्दी

चाय बागान की महिला मजदूरों के लिए सर्पदंश बड़ा खतरा, हर साल होती हैं कई मौत

चाय बागान श्रमिक। तस्वीर - CC BY-NC-SA 3.0 IGO © यूनेस्को-UNEVOC/अमिताव चंद्रा।

चाय बागान श्रमिक। तस्वीर - CC BY-NC-SA 3.0 IGO © यूनेस्को-UNEVOC/अमिताव चंद्रा।

  • हर साल खासकर गर्मियों में, असम के चाय बागानों में जहरीले सांपों के काटने कई मौत होती हैं।
  • चाय बागानों में काम करने वाली महिला मजदूरों को सांपों के काटने का ज्यादा खतरा रहता है, क्योंकि वे मुख्य रूप से बागानों में चाय की पत्तियों तोड़ती हैं। यह काम उन्हें जहरीले सांपों के लगातार संपर्क में लाता है।
  • स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले लोगों का कहना है कि इस खतरे से निपटने के लिए समय पर जहर का असर खत्म करने वाली दवाइयों तक पहुंच और जन जागरूकता जरूरी है। साथ ही स्थानीय प्रजातियों के सांपों के काटने का इलाज करने के लिए इलाके के हिसाब से मोनोवैलेंट एंटीवेनम (खास तरह के सांप के जहर में काम आने वाली दवा) का विकास की जरूरी है।

पाही भूमिज उस दिन को याद करके कांप उठती हैं। वह कहती हैं कि मौत से बच निकलने के लिए वह ऊपर वाले की शुक्रगुजार है।

भूमिज असम के शिवसागर जिले के एक गांव में रहती हैं। इस साल पांच मई को वह अपने गांव से सटे एक चाय बागान में काम करने गई। 16 साल की भूमिज को चाय के पत्ते तोड़ने के लिए अस्थायी रूप से काम पर ऱखा गया था। दोपहर में, जब वह चाय की पत्तियां तोड़ रही थी, तो उसे अपने टखने में दर्द महसूस हुआ। तभी उसकी नजर चाय के पौधों के नीचे घास पर रेंगते हुए एक मोनोकल्ड कोबरा (नाजा कौथिया) पर गई। भूमिज तुरंत समझ गई कि उसे सांप ने काट लिया है।

आनन-फानन में उसे घर ले जाया गया। शाम में भूमिज को शिवसागर जिले के डेमाउ मॉडल अस्पताल में भर्ती कर दिया गया।

अस्पताल के एनेस्थेसियोलॉजिस्ट सुरजीत गिरि ने कहा, “वह बेहोश थी और उसकी सांस बहुत धीरे चल रही थी। धड़कन भी सुनाई नहीं पड़ रही थी।” अस्पताल में आईसीयू सुविधा नहीं होने से हम परेशान थे, लेकिन फिर भी हम उसे बचाने की पूरी कोशिश में लगे हुए थे। आखिर में एम्बु बैग हमारे काम आया।

एम्बु बैग को बैग वाल्व मास्क (बीवीएम) भी कहा जाता है। यह हाथ में पकड़ने वाला उपकरण है जिसका इस्तमाल बहुत कम सांस लेने वाले रोगी में वेंटिलेशन देने के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल भूमिज के फेफड़ों को मैन्युअल रूप से फिर से काम करने लायक बनाने के लिए किया गया था, क्योंकि एंटीवेनम इंजेक्शन की जरूरी खुराक दी जा रही थी। कुछ मिनट बाद, उसकी दिल की धड़कन सामान्य हो गई और वह होश में आ गई। एंटीवेनम कुछ ही घंटों में कोबरा के जहर को बेअसर करने में सफल रहा। भूमिज को अगले दिन छुट्टी दे दी गई। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “मैं उस भयानक दिन को याद नहीं करना चाहती, लेकिन मैं जीवित रहने के लिए (सबकी) आभारी हूं।”

असम के शिवसागर जिले में एक चाय बागान। पत्ते तोड़ने के काम को आसान बनाने के लिए चाय की झाड़ियों को एक-दूसरे के पास लगाया जाता है। हालांकि, जब चाय तोड़ने वाले कमर तक ऊंचे चाय के पौधों वाले बागान के बीच में जाते हैं, तो उनके पैर पूरी तरह से छिप जाते हैं और वे मुश्किल से नीचे की चीजें देख पाते हैं। इससे सांप काटने का खतरा बढ़ जाता है। तस्वीर - विकास के. भट्टाचार्य।
असम के शिवसागर जिले में एक चाय बागान। पत्ते तोड़ने के काम को आसान बनाने के लिए चाय की झाड़ियों को एक-दूसरे के पास लगाया जाता है। हालांकि, जब चाय तोड़ने वाले कमर तक ऊंचे चाय के पौधों वाले बागान के बीच में जाते हैं, तो उनके पैर पूरी तरह से छिप जाते हैं और वे मुश्किल से नीचे की चीजें देख पाते हैं। इससे सांप काटने का खतरा बढ़ जाता है। तस्वीर – विकास के. भट्टाचार्य।

असम के चाय उद्योग में 4.17 लाख महिला श्रमिक काम करती हैं। इनमें से अधिकांश चाय के पत्ते तोड़ने के काम में लगी हुई हैं। सबूत बताते हैं कि असम में बड़ी संख्या में महिला चाय श्रमिक हर साल सांप के काटने का शिकार होती हैं। और समय पर एंटीवेनम न मिल पाने के कारण उनमें से बहुत से लोग कोबरा के काटने से बच नहीं पाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने साल 2017 में सांप काटने को उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (एनटीडी) घोषित किया था। साथ ही, 2030 तक इससे होने वाली मौत और विकलांगता को आधा करने के लिए 2022 में दुनिया भर में एक पहल शुरू की थी। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि हर साल 81,000 से 138,000 लोगों की सांप काटने से मौत हो जाती है। दुनिया भर में और इससे लगभग तीन गुना अधिक संख्या में लोग जीवित रहते हैं लेकिन उनके अंग काम करना बंद कर देते हैं और स्थायी रूप से विकलांग हो जाते हैं। भारत सांप काटने से सबसे ज्यादा पीड़ित देशों में से एक है और दुनिया में होने वाली कुल सालाना मौत में से लगभग आधी मौत यहीं होती हैं।

चाय बागान की महिला मजदूरों पर ज्यादा खतरा

असम के चाय बागानों में सांप काटने के खतरे का उल्लेख जॉर्ज एम. बार्कर की ए टी प्लांटर्स लाइफ इन असम (1884) में मिलता है। इस किताब में असम के चाय उद्योग के शुरुआती दिनों में कैसा जीवन होता था, इसकी जानकारी मिलती है।

साल 1988 में प्रकाशित श्रमशक्ति रिपोर्ट ने सांप काटने को चाय बागान श्रमिकों के लिए एक व्यावसायिक खतरे के रूप में पहचाना। साल 2021 में, असम कृषि विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में भी चाय श्रमिकों के लिए, विशेष रूप से चाय के पत्ते तोड़ने वाली महिलाओं के लिए, व्यावसायिक खतरों में से एक के रूप में जहरीले सांप के काटने को गिना गया था।

चाय जैसे वृक्षारोपण वाले काम में, लिंग के आधार पर श्रम का पारंपरिक बंटवारा होता है। आमतौर पर महिलाएं प्रसंस्करण के लिए चाय के पत्ते तोड़ने का काम करती हैं। पुरुष मुख्य रूप से कारखानों में काम करते हैं, मशीन चलाते हैं या ऐसा काम करते हैं जिसमें शारीरिक श्रम ज्यादा लगता है।

पूर्वी असम में एक चाय बागान के अंदर पेड़ पर चिपकाया गया पोस्टर। इसमें कहा गया है कि बागान में पाए जाने वाले सांपों और अन्य वन्यजीवों का शिकार ना करें। इन बागानों में सांप काटने की कई घटनाएं दर्ज की जाती हैं, जिसके चलते कभी-कभी बदला लेने के लिए सांपों को मार भी दिया जाता है। इनमें स्थानीय और कमजोर सांपों की प्रजातियां भी शामिल होती हैं। तस्वीर - विकास के. भट्टाचार्य।
पूर्वी असम में एक चाय बागान के अंदर पेड़ पर चिपकाया गया पोस्टर। इसमें कहा गया है कि बागान में पाए जाने वाले सांपों और अन्य वन्यजीवों का शिकार ना करें। इन बागानों में सांप काटने की कई घटनाएं दर्ज की जाती हैं, जिसके चलते कभी-कभी बदला लेने के लिए सांपों को मार भी दिया जाता है। इनमें स्थानीय और कमजोर सांपों की प्रजातियां भी शामिल होती हैं। तस्वीर – विकास के. भट्टाचार्य।

इसके चलते, पुरुषों की तुलना में चाय बागान में काम करने वाली महिला श्रमिकों को सांप काटने का घातक खतरा ज्यादा रहता है।

भूमिज कहती हैं, “पत्ते तोड़ने के काम को आसान बनाने के लिए चाय की झाड़ियां एक-दूसरे के पास लगाई जाती हैं।” इसका मतलब है कि जब हम मैदान के बीच में जाते हैं, तो हमारे पैर पूरी तरह से छिप जाते हैं। हमारे पास नीचे जो कुछ भी है उस पर ध्यान देने का समय ही नहीं रहता है। हमें हर दिन एक तय मात्रा में चाय की पत्तियां तोड़नी होती हैं।


और पढ़ेंः [वीडियो] क्या सांप और इंसान बैंगलुरु जैसे शहर में साथ रह सकते हैं?


खतरा बढ़ाने वाली बात यह है कि इस क्षेत्र में पाए जाने वाले कुछ जहरीले सांप, जैसे कि हरे रंग वाले पिट वाइपर की कई प्रजातियां, चाय की हरी पत्तों में छिप सकती हैं। यानी उनका पता लगाना लगभग नामुमकिन है।

गिरि ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि अस्पताल में सांप काटने के ज्यादातर मरीज गांवों से आते हैं और वे या तो खेतों या चाय बागानों में काम करते हैं जहां इंसानों और सांपों के बीच संपर्क आम है।

जागरूकता की कमी और चाय बागानों का दूर होना

असम के चाय बागानों में कई तरह के सांप पाए जाते हैं। इनमें किंग कोबरा (ओफियोफैगस हन्ना), मोनोकल्ड कोबरा (नाजा कौथिया), बैंडेड क्रेट (बुंगारस फासियाटस), ब्लैक करैत (बुंगारस नाइजर) और इस क्षेत्र के लिए स्थानिक हरे पिट वाइपर की कई प्रजातियां शामिल हैं। हर साल गर्मियों में, इन चाय बागानों में, सांप काटने और इनसे होने वाली मौत की घटनाओं में बढ़ोतरी होती है। 

असम के बक्सा जिले में सामाजिक कार्यकर्ता प्रभात दास पनिका ने कहा कि पिछले कुछ सालों से राज्य में सांपों और सांप के काटने के इलाज के बारे में जागरूकता बढ़ी है। साथ ही, विषरोधी इलाज तक पहुंच बेहतर हुआ है। “इन दिनों कई कंपनियों के मालिकाना हक वाले बड़े बागानों में यह इलाज उपलब्ध है।”

हालांकि, असम के दूरदराज के इलाकों में फैले कई मध्यम और छोटे चाय बागानों में ऐसा नहीं है। सबूत और पिछली बातों से पता चलता है कि इन चाय बागानों में अभी भी सांप काटने के इलाज की गंभीर कमी है।

अंगशुमन सरमा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से श्रम अध्ययन में पीएचडी हैं। साथ ही, असम के चाय बागानों के जानकार भी हैं। सरमा ने कहा कि “सभी चाय बागान स्वास्थ्य केंद्रों में सांप काटने के इलाज की सुविधाएं होनी चाहिए, लेकिन ज्यादातर बागानों में अभी भी एंटीवेनम की सुविधा नहीं है।”

असम के चाय बागानों में कई प्रजातियों के सांप पाए जाते हैं। हर साल गर्मियों में, सांप काटने और इससे होने वाली मौत की घटनाओं में बढ़ोतरी होती है। इसके चलते कभी-कभी बदला लेने के लिए में सांपों की हत्या भी हो जाती है। मोनोकल्ड कोबरा की तस्वीर - जोनाथन हाकिम/फ़्लिकर और ब्लैक क्रेट की तस्वीर रिजॉइस गस्सा/विकिमीडिया कॉमन्स। 
असम के चाय बागानों में कई प्रजातियों के सांप पाए जाते हैं। हर साल गर्मियों में, सांप काटने और इससे होने वाली मौत की घटनाओं में बढ़ोतरी होती है। इसके चलते कभी-कभी बदला लेने के लिए में सांपों की हत्या भी हो जाती है। मोनोकल्ड कोबरा की तस्वीर – जोनाथन हाकिम/फ़्लिकर और ब्लैक क्रेट की तस्वीर रिजॉइस गस्सा/विकिमीडिया कॉमन्स।

पहुंच और सांपों और सांप काटने के बाद देखभाल के बारे में जागरूकता दोनों में बहुत अंतर है। “इसके चलते, कई लोग अभी भी वैकल्पिक उपचार यानी झाड़-फूंक करने वालों के पास जाते हैं।”

गिरि ने लोगों को सांप और सांप काटने के प्रति जागरूक करने के लिए असमिया भाषा में एक किताब भी लिखी है। उन्होंने कहा, “जहरीले सांपों के बारे में व्यापक जागरूकता से सांप-मानव संघर्ष को काफी हद तक कम किया जा सकता है।” “असम जैसे स्थानों में यह और भी अधिक अहम है, क्योंकि राज्य में एक बड़ी ग्रामीण आबादी के लिए एंटीवेनम तक समय पर पहुंच अभी भी दूर की कौड़ी है।” उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में स्थानीय रूप से पाई जाने वाली सांपों की कुछ प्रजातियों जैसे रेड-नेक्ड कीलबैक (रबडोफिस सबमिनिएटस) और कई तरह के हरे पिट वाइपर के काटने के इलाज के लिए कोई एंटीवेनम नहीं है।

इसके अलावा, आम तौर पर चाय के बागान मानव बस्तियों से बहुत दूर होते हैं। बड़ी संख्या में बागान से पास के शहरों तक पहुंचने की व्यवस्था बहुत खराब है। टूटी-फूटी सड़कों या गंदगी से भरे रास्तों के चलते, वहां तक पहुंचने में घंटों लग जाते हैं। इसके चलते सांप काटने वाले मरीज को एंटीवेनम इलाज जैसी स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने में देरी हो जाती है, जिससे मरीजों के बचे रहने की दर काफी कम हो जाती है।

गिरि ने कहा, “जरूरत इस बात की है कि किसी भी इलाके के 20 किलोमीटर के भीतर एंटीवेनम उपलब्ध कराया जाए, ताकि सांप काटे हुए मरीज का एक घंटे के भीतर उचित इलाज हो सके।”

इलाके के हिसाब से मोनोवैलेंट एंटीवेनम की जरूरत

भारत में सिर्फ पॉलीवैलेंट एंटीवेनम (कई प्रजातियों के जहर के असर को कम करने वाला) बनता है जो भारतीय सांपों के चार बड़े‘ – स्पेक्टेल्ड कोबरा (नाजा प्रजाति), क्रेट (बंगारस प्रजाति), रसेल वाइपर (दबोइया रसेली), सॉ-स्केल्ड वाइपर (एचिस कैरिनैटस प्रजाति) के जहर को प्रभावी ढंग से बेअसर करता है। ) ये प्रजातियां ही भारत के अधिकांश हिस्सों में बड़ी संख्या में मौत के लिए जिम्मेदार हैं।

पूर्वोत्तर भारत में, जहां असम है, इन चार बड़ी प्रजातियों की सिर्फ दो उप-प्रजातियां आम तौर पर पाई जाती हैं: कोबरा और करैत। यहां तक कि इन दो उप-प्रजातियों के लिए भी, भारतीय एंटीवेनम का असर अपेक्षाकृत कम है।

पूर्वोत्तर भारत में कई अन्य जहरीले सांप भी पाए जाते हैं। इनमें ग्रीन पिट वाइपर, रेड-नेक्ड कीलबैक और किंग कोबरा की कई प्रजातियां शामिल हैं। पूर्वोत्तर भारत में चाय बागानों और खेतों में पिट वाइपर का काटना आम है, भारतीय एंटीवेनम का वाइपर के काटने पर कोई असर नहीं पाया गया है। लाल गर्दन वाला कीलबैक, इस क्षेत्र की एक सामान्य प्रजाति है जिसे पहले गैर विषैला माना जाता था। लेकिन  अब इसे पीछे के नुकीले विषैले सांप के रूप में जाना जाता है। इस प्रजाति के काटने के इलाज के लिए बहुत कम रिसर्च हुआ है और कोई एंटीवेनम भी नहीं है।

पूर्वोत्तर भारत में कई अन्य जहरीले सांप भी पाए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रजातियों पर भारतीय एंटीवेनम का असर कम है। तस्वीर - बैरी रोग/विकिमीडिया कॉमन्स।
पूर्वोत्तर भारत में कई अन्य जहरीले सांप भी पाए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रजातियों पर भारतीय एंटीवेनम का असर कम है। तस्वीर – बैरी रोग/विकिमीडिया कॉमन्स।

गिरि ने कहा, “इसलिए, हमें पूर्वोत्तर भारत में पाए जाने वाले विषैले सांपों पर रिसर्च करने और इलाके के हिसाब से खास, मोनोवैलेंट एंटीवेनम के संभावित विकास की दिशा में काम करने की तुरंत जरूरत है।”

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बैनर तस्वीर: चाय बागान श्रमिक। तस्वीरCC BY-NC-SA 3.0 IGO © यूनेस्को-UNEVOC/अमिताव चंद्रा।

Exit mobile version