- बांग्लादेश के सुंदरबन में मानव-बाघ संघर्ष में साल 2000 से अब तक, लगभग 300 लोग और 46 बाघ मारे जा चुके हैं।
- यहां के अधिकारियों ने उन नदियों और नहरों के किनारे बाड़ लगाने का फैसला किया है जिनका इस्तेमाल बड़ी बिल्लियां यानी बाघ मानव बस्तियों को पार करने के लिए करते हैं।
- विशेषज्ञ भारतीय सुंदरबन में इस इंतजाम को एक बेहतर उपाय मानते हैं। उनके मुताबिक, जहां बाड़ लगाने से बाघ मानव बस्तियों से दूर रहेंगे, वहीं मनुष्यों और उनके मवेशी भी भटकते हुए बाघों के आवासों तक नहीं पहुंच पाएंगे।
- सुंदरबन दुनिया का एकमात्र ऐसा मैंग्रोव जंगल है, जहां बाघ पाए जाते हैं। लेकिन मानवीय और प्राकृतिक कारणों से पारिस्थितिकी तंत्र का लगातार क्षरण हो रहा है।
अधिकारी सुंदरबन में मानव-बाघ संघर्ष से निपटने के लिए एक नए और अनोखे समाधान के साथ आगे आए हैं। वह इस इलाके को नायलॉन की बाड़ लगाकर सुरक्षित बनाने का प्रयास कर रहे हैं। दरअसल, उनका लक्ष्य मैंग्रोव में समुदायों और लुप्तप्राय बड़ी बिल्लियों की रक्षा करना है।
यह कदम बांग्लादेश वन विभाग की तीन-वर्षीय सुंदरबन बाघ संरक्षण परियोजना का हिस्सा है। इसे मार्च 2022 में शुरू किया गया था और इसका उद्देश्य बाघों और मनुष्यों को एक-दूसरे के स्थानों से दूर रखना है।
परियोजना निदेशक और बांग्लादेश के पश्चिमी सुंदरबन के प्रभागीय वन अधिकारी अबू नासर मोहसिन ने मोंगाबे को बताया, “शुरुआत में, हम सुंदरबन में 60 किलोमीटर तक पॉलीप्रोपाइलीन जाल की बाड़ लगाएंगे। और नेट फेंसिंग लगाने का काम अगले वित्तीय वर्ष (2023-2024) में शुरू हो जाएगा।”
बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर स्थित सुंदरवन, दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव जंगलों में से एक है। यह एकमात्र ऐसा मैंग्रोव जंगल है, जहां बाघ (पैंथेरा टाइग्रिस) पाए जाते हैं। लेकिन मानवीय और प्राकृतिक कारणों से पारिस्थितिकी तंत्र का लगातार क्षरण हो रहा है। क्षेत्र में मानव आबादी बढ़ रही है और समुदाय अपनी आजीविका के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों पर निर्भर हो रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों का जरूरत से ज्यादा दोहन, भूमि सुधार, प्रदूषण, मछली पालन और खेती, मैंग्रोव के घटते वन एरिया के प्रमुख कारणों में से है।
सुंदरबन का बड़ा हिस्सा भी सूख रहा है क्योंकि इसमें मिलने वाली नदियां और चैनल तलछट से भर गए हैं। इसकी वजह से लोगों को मैंग्रोव वन के कुछ हिस्सों तक पहुंचने आसान हो गया है। जबकि उनके लिए पहले ऐसा कर पाना बेहद मुश्किल था।
मोहसिन ने कहा, “लोग अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं। स्थानीय लोग अक्सर अपने मवेशियों और भैंसों को चरने के लिए सुंदरबन ले जाते है। यही वजह है कि बाघ पालतू जानवरों पर हमला करने के लिए इस मानवीय बस्तियों की ओर खिंचे चले आते हैं।”
उन्होंने कहा कि बाघों और इंसानों के बीच बढ़ती निकटता का मतलब यह भी है कि बड़ी बिल्लियों में कुत्तों जैसे घरेलू जानवरों से होने वाली बीमारियों का खतरा काफी बढ़ गया हैं। मोहसिन ने कहा, सूखी नदियों और नहरों के किनारे जालीदार बाड़ लगाई जाएगी ताकि लोग और उनके पालतू जानवर सुंदरबन में प्रवेश न कर सकें।
मानव-बाघ संघर्ष बढ़ा
सुंदरबन में बाघों और मनुष्यों के बीच हमेशा असहज सह-अस्तित्व रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में एक-दूसरे के इलाकों में दोनों की घुसपैठ काफी तेज हो गई है। इस साल 12 जनवरी की सुबह दो बाघ भोला नदी पार कर गए और बागेरहाट नगर पालिका के सोनातला गांव के हिस्से में घूमते रहे।
हालांकि इस मामले में, बाघ बिना किसी को नुकसान पहुंचाए जंगल में लौट आए। लेकिन कैसे इतने मामले हैं, जहां घबराए हुए ग्रामीण अपने इलाकों में आए बाघों पर हमला करते हैं और उन्हें मार डालते हैं। बाघों के लिए पालतू पशुओं के चलते गांव उनके लिए आसान शिकार के मैदान बन जाते हैं, और वे अक्सर रात में, इन बस्तियों तक पहुंचने के लिए नदियों में तैर कर आते हैं।
वन विभाग के अनुसार, पिछले 15 सालों में सुंदरबन में बाघ के 50 से अधिक बार मानव बस्तियों में घुसने की घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं के दौरान दोनों तरफ के लोग हताहत हुए हैं। वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2021 के बीच सुंदरबन में 49 बाघों की मौत हो चुकी है।
मोहसिन ने कहा कि इस सदी की शुरुआत से अब तक मानव-बाघ संघर्ष में लगभग 300 लोग और 46 बाघ मारे गए हैं।
2018 के एक सर्वेक्षण से पता चला कि बांग्लादेश के सुंदरबन (पश्चिमी भाग के प्रबंधन की जिम्मेदारी भारत की है) के हिस्से में बाघों की अनुमानित आबादी सिर्फ 114 है। हालांकि यह 2015 में अनुमानित संख्या 106 से थोड़ा अधिक है, लेकिन यह 2004 में अनुमानित 440 की संख्या से काफी कम है।
अवैध शिकार, मानव-बाघ संघर्ष और प्राकृतिक आपदाएं बांग्लादेश के एकमात्र प्राकृतिक बाघ निवास स्थान सुंदरबन में बड़ी बिल्लियों की तेजी से गिरावट का कारण बने हैं।
भारतीय उदाहरण बताते हैं कि बाड़ मददगार साबित होगी
बांग्लादेश की सीमा से सटे भारत के पश्चिम बंगाल के हिस्से में पड़ने वाले सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों ने काफी पहले मैंग्रोव के 90 किलोमीटर (56-मील) क्षेत्र में नायलॉन जाल की बाड़ लगा दी थी। इसके बाद से उन्होंने मानव बस्तियों में प्रवेश करने वाले बाघों की कथित संख्या में नाटकीय गिरावट देखी है।
पूर्व मुख्य वन संरक्षक और आईयूसीएन के पूर्व देश प्रतिनिधि इश्तियाक उद्दीन अहमद के अनुसार, बांग्लादेश में भी ऐसा कर बाघों को यहां के गांवों में और लोगों को जंगल में प्रवेश करने से रोका जाना चाहिए। इससे मानव-बाघ संघर्ष की संभावना कम हो जाएगी।
ढाका में जहांगीरनगर यूनिवर्सिटी में जूलॉजी के प्रोफेसर और बांग्लादेश टाइगर एक्शन प्लान के सह-लेखक एम. मोनिरुल एच. खान ने भी समस्या के समाधान के लिए एक प्रभावी साधन के रूप में बाड़ लगाने की योजना का स्वागत किया।
उन्होंने कहा, “इसका एक और बड़ा फायदा है। स्थानीय समुदाय बाघों के संरक्षण के लिए आगे आएंगे क्योंकि बड़ी बिल्लियों के प्रति उनकी दुश्मनी की भावना कम हो जाएगी।”
उद्धरण:
इस्लाम, एस.एम., एंड भुइयां, एम.ए. (2018)। सुंदरवन मैंग्रोव फॉरेस्ट ऑफ बांग्लादेश: कॉजेज ऑफ डिग्रेडेशन एंड सस्टेनेबल मैनेजमेंट ऑप्शन. एनवायरमेंट सस्टेनेबिलिटी, 1(2), 113-131. doi:10.1007/s42398-018-0018-y
यह लेख पहली बार Mongabay.com पर प्रकाशित हुआ था।
बैनर तस्वीर: बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर स्थित सुंदरबन, दुनिया का एकमात्र ऐसा मैंग्रोव जंगल है, जहां बाघ पाए जाते है। तस्वीर– सागर/फ़्लिकर