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घटते भूजल के कारण राजस्थान के किसानों के लिए सोलर पंप का इस्तेमाल कर पाना हुआ मुश्किल

चैनपुरा गांव में अपना खेत दिखाते मनोज कुमार। तस्वीर-पारुल कुलश्रेष्ठ/मोंगाबे 

चैनपुरा गांव में अपना खेत दिखाते मनोज कुमार। तस्वीर-पारुल कुलश्रेष्ठ/मोंगाबे 

  • पिछले दशक में राजस्थान में लगभग 99,000 किसानों ने सिंचाई के लिए सौर पंपों की ओर रुख किया है। हालांकि कई जिलों में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है, जिसके चलते किसान अब इन पंपों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
  • इनमें से कई किसान सौर पैनलों को किन्हीं ओर कामों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर उन्हें बेच रहे हैं। उनकी मांग है कि केंद्र सरकार अधिक गहराई से पानी निकालने वाले ज्यादा पावरफुल सौर पंपों पर सब्सिडी दे।
  • हालांकि, विशेषज्ञ अधिक शक्तिशाली पंपों की मांग से असहमत हैं। उनका कहना है कि इससे पानी का अत्यधिक दोहन होगा।

इस साल जून में जैसे ही तापमान बढ़ा, राजस्थान के झुंझुनू जिले के बदनगढ़ गांव में रहने वाले 69 साल के किसान जमन सिंह सैनी की मुसीबतें भी बढ़ने लगीं थीं। वह अपने 31 एकड़ के बाजरा खेत की सिंचाई एक इलेक्ट्रिक पंप से करने की कोशिशों में लगे थे। उनके सामने कई चुनौतियां थीं, मसलन अनियमित बिजली की आपूर्ति, वोल्टेज में उतार-चढ़ाव और उससे जुड़े खर्चे।

हालांकि तकरीबन 10 साल पहले, 2013 में सैनी ने एक सरकारी योजना के जरिए सोलर पंप का विकल्प चुनकर इन चुनौतियों से पार पाने का प्रयास किया था। उन्होंने 3.5 हॉर्सपावर (एचपी) का सौर वाटर पंप लगाने के लिए सब्सिडी के अलावा अपनी जेब से 1.2 लाख रुपये खर्च भी किया था। शुरुआत में सब अच्छा चल रहा था। लेकिन जब 2016 में, भूजल स्तर 400 फीट से नीचे गिर गया, तो सब्सिडी वाले सौर पंप ने काम करना बंद कर दिया। दरअसल इस वाटर पंप की परिचालन क्षमता काफी कम थी। यह सिर्फ 320 फीट (100 मीटर) की गहराई तक ही काम कर सकता था। जब उन्हें अपने वाटर पंप का कोई फायदा नहीं नजर आया तो सैनी ने सौर पैनल और पंप को बेचने का फैसला किया। अब वह सिंचाई के लिए बिजली से चलने वाले पंप पर निर्भर हैं।

सैनी की तरह इस इलाके में कई किसान हैं जिन्होंने पिछले कुछ सालों में अपने खेतों की सिंचाई के लिए में सौर पंपों की तरफ रुख किया है। लेकिन ज्यादातर किसानों के लिए यह काम नहीं कर रहा है। अरावली पर्वतमाला से निकलने वाली काटली नदी के पास के खेतों में कुछ सौर पंप काम कर रहे हैं। यहां आसानी से से पानी निकल पा रहा है क्योंकि भूजल स्तर 200 फीट तक है। लेकिन ज्यादातर जगहों पर, किसानों को सौर पंपों में निवेश करने के अपने फैसले पर पछतावा हो रहा है। 

35 साल के मनोज कुमार यहां से कुछ किलोमीटर दूर चैनपुरा गांव में खेती करते हैं। वह अपनी फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए बाड़ की मरम्मत करने में लगे था। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि उन्होंने 60% सरकारी सब्सिडी के साथ प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना के तहत नवंबर 2022 में सौर पंप लगाया था। उन्हें अपने खेत की सिंचाई के लिए एक स्थायी और प्रभावी समाधान की उम्मीद थी। लेकिन घटते भूजल के कारण, उनका भी सौर वाटर पंप अब बेकार हो चुका है। उन्होंने अब अपना सोलर पैनल बेच दिया है।

सैनी और कुमार की कहानियां राजस्थान में तेजी से घटते भूजल स्तर के बीच नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों को अपनाने में किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को सामने ला रही हैं।

राजस्थान के इंडाली गांव के ओम प्रकाश ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत सिंचाई के लिए एक सौर पंप स्थापित किया था। सोलर पंप ने 2015 में काम करना बंद कर दिया। तस्वीर- पारुल कुलश्रेष्ठ/मोंगाबे।
राजस्थान के इंडाली गांव के ओम प्रकाश ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत सिंचाई के लिए एक सौर पंप स्थापित किया था। सोलर पंप ने 2015 में काम करना बंद कर दिया। तस्वीर- पारुल कुलश्रेष्ठ/मोंगाबे।

भारतीय किसान संघ के प्रदेश महासचिव तुलछा राम सिंवर का कहना है कि पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर, बीकानेर, चूरू, जालोर और बाड़मेर इलाके में कई किसान इसी तरह की समस्या से जूझ रहे हैं।

केंद्रीय भूजल रिपोर्ट 2022 में भूजल की कमी के प्रमुख कारणों के रूप में कम भूजल पुनर्भरण और अत्यधिक दोहन का दावा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, पश्चिमी भारत में,खासतौर पर राजस्थान और उत्तरी गुजरात के कुछ हिस्सों में शुष्क जलवायु है, और वार्षिक भूजल पुनर्भरण कम है। इसमें कहा गया है कि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव राज्यों में भूजल दोहन का स्तर बहुत ऊंचा है।

सोलर पंप के लिए योजनाएं

राजस्थान में किसान एक दशक से सोलर पंप लगा रहे हैं। 2010 में शुरू किए गए जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन (जेएनएनएसएम) ने किसानों को रियायती दर पर सौर पंप दिलाने में मदद की थी। 2019 में, भारत सरकार (जीओआई) ने पीएम-कुसुम नाम से एक और योजना शुरू की जो 7.5 एचपी तक के सौर पंपों के लिए सब्सिडी देती है।

28 फरवरी तक योजना से लाभान्वित होने वाले कुल 57,692 किसानों के साथ, राजस्थान पीएम-कुसुम योजना के लाभार्थियों की सूची में सबसे ऊपर है। इसके बाद महाराष्ट्र (47978) और हरियाणा (44325) हैं। इस योजना का लक्ष्य 2022 तक 30,800 मेगावाट की सौर क्षमता जोड़ने का था। हालांकि, सरकार का कहना है कि कोविड-19 महामारी की वजह से लक्ष्य हासिल नहीं हो सका और इसी वजह से समय सीमा मार्च 2026 तक बढ़ा दी गई है।

राजस्थान में पीएम-कुसुम योजना की नोडल एजेंसी, राजस्थान बागवानी विभाग की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, जेएनएनएसएम और कुसुम योजना के तहत, 2010 से 2023 तक राजस्थान में 99,000 से अधिक सौर पंप स्थापित किए गए हैं।

सौर पैनलों का अब अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल 

जो किसान अब अपने सौर पंपों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, वे सौर पैनलों को अन्य तरीके से काम में ले रहे हैं या उन्हें बेच रहे हैं।

इस्माइलपुर गांव के वीर सिंह (56) का उदाहरण ले लेते हैं। वह अब अपने खेत में सिंचाई करने की बजाय तालाब से पानी खींचने के लिए अपने सौर पंप का इस्तेमाल कर रहे हैं। सिंह ने कहा, “हममें से कई लोगों के पास अपने खेतों के किनारे एक तालाब है। इससे पानी निकाल कर हम उसे इकट्ठा कर लेते है और फिर बाद में उससे खेतों की सिंचाई करते हैं। सोलर पंप पर इतना पैसा खर्च करने और उसका इस्तेमाल न करने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए, मैंने और इलाके के कई किसानों ने खेत तालाबों में सोलर पंप का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। भूजल के लिए हम बिजली के पंपों को काम में लाते हैं।

इसी तरह की कहानी  झुंझुनू जिले के मुरोट गांव में रहने वाले विजेंद्र सिंह (57) की है। भारतीय सेना से सेवानिवृत्त सैनिक ने 2016 में अपने खेतों में सौर पंप स्थापित किए थे। लेकिन भूजल स्तर कम होने के कारण, ये पैनल सिंचाई के लिए किसी काम के नहीं रहे। अब वह अपने घर के लिए बिजली उत्पन्न करने के लिए उनका रीयूज कर रहे हैं।

सिंह ने कहा, “मैंने सौर पंप के साथ लगाए गए दस सौर पैनलों के अलावा 12 सौर पैनल खरीदे हैं। मैं इन्हें अपनी छत पर स्थापित कर रहा हूं। अब इंस्टॉलेशन चार्ज, इन्वर्टर और बैटरी की लागत के साथ इसकी कीमत लगभग रु. 5.5 लाख है। इससे पंखे, कूलर और फ्रिज सहित तीन कमरों के लिए बिजली पैदा करने में मदद मिलेगी। हमारे गांव में बिजली की बहुत कटौती होती है। इसलिए, एक बार सौर पैनल लग जाने के बाद मेरे परिवार को बिजली की किल्लत से छुटकारा मिल जाएगा।

यह पूछे जाने पर कि क्या लोग घरों में पैनल लगाने की दिशा में काम कर रहे हैं, विजेंद्र ने कहा कि सोलर पैनल लगाना हर किसी के बस की बात नहीं है। वह बताते हैं, “सौर पैनल स्थापित करने के लिए एक बार में लगभग छह लाख रुपये का निवेश करना हर किसी के लिए संभव नहीं है। मैं इतना खर्च कर सकता हूं, लेकिन हर कोई इतना सक्षम नहीं है।” 

झुंझुनू के चैनपुरा गांव में बुलेश देवी (35) ने अपनी छत पर टूटे हुए सौर पैनल दिखाए। शुरू में उन्होंने ये पैनल पंपों के लिए लगाए थे। लेकिन अब घर पर बिजली पैदा करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। उन्होंने कहा, “हमने अपनी छत पर दस सौर पैनल लगाए, जिनमें से तीन तेज़ हवाओं में टूट गए। अब, हमें ज्यादा बिजली पाने के लिए और ज्यादा पैनल खरीदने होंगे, जिसके लिए और पैसा लगाना होगा।

बुलेश देवी, अपने घर पर सौर पैनल दिखा रही हैं, जिनमें से कई तेज हवाओं के कारण टूट गए। ये सौर पैनल मूल रूप से सौर पंपों के लिए थे। लेकिन सौर पंपों के काम करना बंद करने के बाद इनका इस्तेमाल घरों में बिजली पैदा करने के लिए किया जा रहा है। तस्वीर- पारुल कुलश्रेष्ठ/मोंगाबे 
बुलेश देवी, अपने घर पर सौर पैनल दिखा रही हैं, जिनमें से कई तेज हवाओं के कारण टूट गए। ये सौर पैनल मूल रूप से सौर पंपों के लिए थे। लेकिन सौर पंपों के काम करना बंद करने के बाद इनका इस्तेमाल घरों में बिजली पैदा करने के लिए किया जा रहा है। तस्वीर- पारुल कुलश्रेष्ठ/मोंगाबे

ऐसे कई किसान हैं जिन्होंने अपने पैनल दूसरों को या फिर उन डीलरों को बेच दिए हैं जिनसे उन्होंने पहले इन्हें खरीदा था।

झुंझुनू जिले के इंडाली गांव के परवेश सैनी (36) ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि उन्होंने 2021 में सोलर पैनल और एक पंप खरीदा था। लेकिन भूजल कम हो जाने के कारण उन्होंने इसे काटली नदी बेसिन के करीब रहने वाले लोगों को बेच दिया। यहां का भूजल स्तर ऊपर है। 

पावरफुल पंप की मांग

केंद्रीय भूजल विभाग द्वारा प्रकाशित 2022 की वार्षिक रिपोर्ट में राजस्थान में भूजल की स्थिति को रेखांकित गया है। इसमें कहा गया है, “देश में भूजल निकासी का समग्र स्तर 60.08% है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव राज्यों में भूजल निष्कर्षण का स्तर बहुत ज्यादा है। यहां यह सौ फीसदी से अधिक है। इसका मतलब है कि इन राज्यों में, वार्षिक भूजल खपत वार्षिक निकाले जाने योग्य भूजल संसाधनों से अधिक है।”

झुंझुनू जिले के चैनपुरा गांव में मनोज कुमार अपने भाई केशव सिंह और दोस्त सूरजभान रायला के साथ खड़े हैं। तस्वीर में मौजूद पिलर तब लगाया गया था जब सोलर पंप के लिए सोलर पैनल लगाए गए थे। जैसे ही भूजल स्तर कम हो गया, उन्होंने सोलर सेट अप बेच दिया। क्योंकि पंप अब इतनी गहराई से पानी नहीं खींच सकता था। तस्वीर-पारुल कुलश्रेष्ठ/मोंगाबे 
झुंझुनू जिले के चैनपुरा गांव में मनोज कुमार अपने भाई केशव सिंह और दोस्त सूरजभान रायला के साथ खड़े हैं। तस्वीर में मौजूद पिलर तब लगाया गया था जब सोलर पंप के लिए सोलर पैनल लगाए गए थे। जैसे ही भूजल स्तर कम हो गया, उन्होंने सोलर सेट अप बेच दिया। क्योंकि पंप अब इतनी गहराई से पानी नहीं खींच सकता था। तस्वीर-पारुल कुलश्रेष्ठ/मोंगाबे

किसानों के लिए भूजल निकालना महंगा है। अगर वे स्तर कम होने के बाद और अधिक गहरी बोरिंग करते हैं, तो इसका खर्चा काफी ज्यादा बैठता है। इसलिए, बहुत से लोग फिर से बिजली के पंपों की ओर रुख कर रहे हैं। यह वाटर पंप अधिक गहराई से पानी खींच सकते हैं।

राजस्थान के झुंझुनू जिले के एक सोलर डीलर सुनील भूरिया के अनुसार, 7.5 एचपी के एक सोलर पंप की कीमत सोलर पैनल, केबल और इंस्टॉलेशन फीस समेत लगभग चार लाख रुपये बैठती है। 60 फीसदी सब्सिडी के बाद भी एक किसान को करीब 1.65 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं।

उसी 7.5 हॉर्स पावर के एक इलेक्ट्रिक पंप की कीमत 30,000 रुपये से 35,000 रुपये के बीच बैठती है। केबल, इंस्टॉलेशन और डिलीवरी शुल्क के साथ यह कीमत 70,000 रुपये तक पहुंच जाती है। लेकिन बड़ी बात ये है कि इलेक्ट्रिक पंप ग्रिड बिजली से चलते हैं। और बिजली का बिल हर महीने लगभग 4,000 से 5,000 रुपये आता है। 

भूरिया ने कहा, “सोलर पंप एक बार का निवेश है। वैसे देखा जाए तो, एक इलेक्ट्रिक पंप की लागत कम होती है और यह उन जगहों पर बेहतर काम करता है जहां भूजल स्तर कम है। ज्यादातर गांवों में खेती के लिए बिजली रात में मिलती है, जिसकी वजह से किसान परेशान रहते हैं। दरअसल सौर पंपों के साथ, किसान को बिजली पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। वह बिना किसी परेशानी के सुबह से शाम तक अपने खेतों की सिंचाई कर सकते हैं। 

लेकिन अधिक गहराई से भूजल निकालने के लिए उन्हें अधिक शक्तिशाली मोटरें लगानी होंगी, जिसकी लागत अधिक होगी। यही कारण है कि इन जिलों के किसान सरकार से अधिक क्षमता वाले पंपों पर सब्सिडी देने की मांग कर रहे हैं।

राजस्थान राज्य बागवानी विभाग इस योजना की नोडल एजेंसी है। किसानों की बढ़ती शिकायतों के आधार पर उन्होंने किसानों के लिए मौजूदा सब्सिडी दर 7.5 एचपी से बढ़ाकर 15 एचपी करने के लिए अप्रैल में केंद्र सरकार को एक पत्र लिखा था। 

राजस्थान बागवानी विभाग के उप निदेशक और पीएम कुसुम योजना के नोडल अधिकारी दानवीर वर्मा ने कहा, “राजस्थान की घटते भूजल दर के मौजूदा हालातों को देखते हुए, हमने सब्सिडी दर में वृद्धि के लिए कहा है। किसानों के लिए ये सोलर पंप उपयोगी हो पाएं, इसके इसलिए राजस्थान में किसानों के लिए सब्सिडी दर 7.5 एचपी से बढ़ाकर 15 एचपी करने के लिए अप्रैल में केंद्र सरकार को पत्र भेजा गया था। अब फैसला करना केंद्र सरकार के हाथ में है।”

किसान संघ भी इस मुद्दे को सरकार के सामने उठा रहे हैं। भारतीय किसान संघ, राजस्थान के तुलछाराम सिंवर कहते हैं, “किसानों को सिंचाई के लिए समय पर बिजली आपूर्ति के लिए सोलर कनेक्शन सबसे अच्छा विकल्प बनकर उभर रहा है। लेकिन अब तक सोलर कनेक्शन को लेकर सरकार ने जो भी योजनाएं बनाई हैं, वो गिरते भूजल स्तर वाले इलाकों में खेती करने वाले किसानों के लिए उपयुक्त नहीं है। पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर, बीकानेर, चूरू, जालौर और बाड़मेर क्षेत्रों में किसान 300 से 500 मीटर गहराई से अपने खेतों की सिंचाई करते हैं। ऐसे में अगर सरकार 20 एचपी के सोलर पंप पर सब्सिडी पर उपलब्ध कराती है, तभी किसानों को इसका फायदा मिल पाएगा।

लेकिन, विशेषज्ञ इस मांग से सहमत नहीं हैं क्योंकि इससे भूजल का और दोहन होगा। सेंटर फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड पीपल (सीईईपी) के सीईओ सिमरन ग्रोवर ने मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए एक एकीकृत और अनुकूलित नीति अपनाए जाने के नजरिए को सही ठहराते हुए कहा कि ये किसानों, समुदायों और पारिस्थितिकी प्रणालियों के हितों को संतुलित करता है। सीईईपी जयपुर स्थित एक थिंकटैंक है जो लो कार्बन ट्रांजिशन पर काम कर रहा है।

ग्रोवर ने कहा, “राजस्थान के 302 ब्लॉकों में से 219 ब्लॉकों ने जमीन से काफी ज्यादा मात्रा में पानी निकाला गया है। देखा जाए तो सौर पंप किसानों के लिए वरदान हो सकते हैं, लेकिन सिंचाई नीतियों के प्रति सतर्क नजरिए की जरूरत है। किसानों और समुदायों की विकास जरूरतों को संतुलित करते हुए जल संरक्षण की ओर भी जोर देने की जरूरत है। इसके लिए बहुआयामी नजरिए को अपनाए जाने की जरूरत है। इसके लिए कम पानी वाली फसलों की ओर रुख किया जाए और ज्यादा पानी वाली फसलों को व्यवस्थित तरीके से कम किया जाना चाहिए। इसके साथ ही बाजारों को प्रोत्साहित करने और कम पानी वाली फसलों को अपनाने के लिए विभिन्न विभागों (बिजली सहित) में कृषि सब्सिडी का पुनर्गठन किया जाए। और सबसे खास बात कि ड्रिप सिस्टम को अनिवार्य रूप से अपनाने के लिए सब्सिडी के साथ जोड़ा जाए। पानी को उचित तरीके से इस्तेमाल करने वाली तकनीकों के लिए उचित प्रोत्साहन और आदेश देकर इनमें से कुछ तरीकों को कुसुम योजना के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है।

 

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बैनर तस्वीर: चैनपुरा गांव में अपना खेत दिखाते मनोज कुमार। तस्वीर-पारुल कुलश्रेष्ठ/मोंगाबे 

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