- आंध्र प्रदेश में तुम्मलापल्ले खदान के पास रहने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि यूरेनियम खदान के टेलिंग तालाब से अपशिष्ट भूजल में मिल रहा है, जिससे बड़े पैमाने पर प्रदूषण हो रहा है। तुम्मलापल्ले खदान को देश के सबसे बड़े यूरेनियम भंडार में से एक माना जाता है।
- किसानों ने अपनी फसलों, मुख्य रूप से केले के बागानों पर सफेद धूल की शिकायत की और कहा कि यह फसल बौनी हो रही है। स्थानीय निवासी भूजल प्रदूषण की भी शिकायत करते हैं, जिससे त्वचा संबंधी समस्याएं और बीमारियां होती हैं और महिलाओं में प्रजनन संबंधी समस्याएं भी सामने आ रही हैं।
- प्रदूषण बोर्ड ने यहां से कुछ नमूने लेकर 2019 में एक अध्ययन किया था। भूजल में यूरेनियम संदूषण का उच्च स्तर पाया गया था।
आंध्र प्रदेश के वाईएसआर कडपा जिले के तुम्मलपल्ले और अन्य गांवों के पास यूरेनियम टेलिंग्स तालाब में यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) द्वारा खनन के संभावित प्रभावों के कारण, प्रभावित स्थानीय समुदाय पिछले एक दशक से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। टेलिंग का मतलब खनन प्रक्रियाओं के बाद बचे अपशिष्ट पदार्थ से है।
यह खदान आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी के निर्वाचन क्षेत्र पुलिवेंदुला में स्थित है। जब इसे 2012 में चालू किया गया था, तो कहा गया था कि तुम्मलापल्ले में दुनिया का सबसे बड़ा यूरेनियम भंडार है। इसका उद्देश्य देश के परमाणु कार्यक्रमों को बढ़ावा देना था। शुरूआत में, वाईएसआर कडप्पा जिले में यूरेनियम भंडार 15,000 टन अनुमानित किया गया था। लेकिन 2011 में, यूसीआईएल ने अनुमान को संशोधित कर 1.5 लाख टन कर दिया, जो पिछले अनुमान से 10 गुना अधिक है।
2012 में तुम्मलापल्ले में 1,106 करोड़ रुपये के यूरेनियम अयस्क प्रसंस्करण संयंत्र और खदान को चालू करते समय, किसी भी तरह के प्रदूषण से इंकार किया गया था। उस समय एटॉमिक एनर्जी कमिशन के अध्यक्ष, दिवंगत श्रीकांत बनर्जी ने पर्यावरण प्रदूषण की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि सभी आवश्यक सावधानियां बरती गई हैं। लेकिन किसानों का कहना है कि टेलिंग तालाब कृषि पर असर डाल रहा है। इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) ने संयंत्र के पास रहने वाले लोगों को नौकरियों, एक स्कूल और एक मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल का वादा किया था, जो अभी तक नहीं बनाया गया है।
किसानों ने कहा, टेलिंग तालाब कृषि पर असर डाल रहा है
खदान के पास के गांवों में मब्बुचिंतलापल्ले (एमसी पल्ले), रचाकुंटपल्ले, कोटा और भुमैयाहगरीपल्ले शामिल हैं। केके कोट्टाला, कनमपल्ले, तुम्मलपल्ले और एमसी पल्ले गांव टेलिंग तालाब से प्रभावित बताए गए हैं। पिछले कुछ सालों से टेलिंग तालाब और उसके आसपास की जमीन पर खेती करने वाले किसान अपनी फसल और सेहत में बदलाव देख रहे हैं। वे इसके लिए टेलिंग तालाब को जिम्मेदार मानते हैं। एमसी पल्ले पंचायत के पूर्व सरपंच श्रीनाथ रेड्डी का कहना है कि टेलिंग तालाब का कचरा भूजल में मिल जाता है, जिससे बड़े पैमाने पर प्रदूषण हो रहा है। उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया, “कंपनी अपने परिचालन में लापरवाही बरत रही है और पारदर्शी भी नहीं है।”
यूसीआईएल ने गांवों को अपने यहां से पानी का इस्तेमाल न करने की सलाह दी थी, क्योंकि उनके परीक्षणों में संदूषण पाया गया था, हालांकि संदूषण का कारण क्या था, यह नहीं बताया गया।
रेड्डी ने कहा, “मौजूदा बोरवेलों में पानी के दूषित होने के कारण यूसीआईएल को 2013 से छह गांवों में रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) संयंत्र स्थापित करना पड़ा।” लेकिन आरओ पानी महंगा आता है और पीने के पानी की कमी है। पीने के पानी के टैंकर पानी की आपूर्ति के लिए रोजाना आते हैं, लेकिन पानी पूरा नहीं पड़ता है। यहां रहने वाले लोग नहाने और धोने के लिए दूषित पानी पर निर्भर हैं। यह सेहत पर एक बड़ा असर डालता है।
2016 में, किसानों ने देखा कि बोरवेल का पानी सफेद हो गया और उसका स्वाद भी खारा होने लगा है। किसानों ने अपनी फसलों पर सफेद धूल की शिकायत की, मुख्य रूप से केले के बागानों में। केले के पौधों पर असर पड़ा है वो बौने रह गए है। भूजल प्रदूषण से त्वचा संबंधी समस्याएं और बीमारियां हो रही हैं। न सिर्फ जल और वायु प्रदूषण बल्कि स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव भी गंभीर चिंता का विषय है।
प्रजनन पर पड़ता असर
हालांकि इसके पीछे क्या वजह है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। लेकिन लोगों का मानना है कि इन इलाकों में खदानों की वजह से महिलाओं के बीच प्रजनन संबंधी समस्याओं के मामले बढ़ रहे हैं। क्षेत्र की कई महिलाएं गर्भपात, ब्लीडिंग और हिस्टेरेक्टॉमी की शिकायत करती हैं। रेंस सेलर पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट को एक थीसिस के हिस्से के रूप में, सितंबर और अक्टूबर 2022 में मिस्रिया शेख अली ने एक एथनोग्राफिक रिसर्च किया था। उस रिसर्च के अनुसार, ये मामले विशेष रूप से टेलिंग तालाब के पास के गांवों, यानी तुम्मलपल्ले, कोट्टाला और एमसी पल्ले से रिपोर्ट किए गए थे। तुम्मलापल्ले और कोट्टाला की महिलाओं के साथ उनसे की गई बातचीत और समूह चर्चाओं से प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी कई तरह की समस्याएं निकलकर सामने आई थीं।
नाम न छापने की शर्त पर एक स्थानीय निवासी ने मोंगाबे-इंडिया से इस जानकारी की पुष्टि की और जन्म के समय कम वजन वाले शिशुओं और भ्रूण की विकृति, ट्यूमर और दिल की बीमारियों सहित कई समस्याओं के बारे में भी बताया। इन सबके चलते कई महिलाओं को गर्भावस्था के चौथे या पांचवें महीने में गर्भपात कराना पड़ा है। 2014 से, अकेले तुम्मलापल्ले में एक साल में 11 या 12 गर्भपात होते है। और कभी-कभी, यह संख्या बढ़कर 16 हो जाती है। महिलाओं को रक्तस्राव का सामना करना पड़ा, ट्यूमर हो गया और कम उम्र में ही हिस्टेरेक्टॉमी (गर्भाशय निकाला जाना) से गुजरना पड़ा। इन सालों में, तुम्मलापल्ले में कम से कम 20 ऐसे ऑपरेशन की बात कही गई है। पुरुषों को भी समस्याएं थीं। यहां अनुबंध पर खदानों में काम करने वाले पुरुषों में स्पर्म की संख्या में कमी देखी गई।
यह सभी समस्याएं खनन-संबंधी संदूषण की वजह से हैं या नहीं, यह तय करने के लिए एक चिकित्सा जांच की जरूरत होगी। शेख अली ने एक स्थानीय स्त्री रोग विशेषज्ञ से भी बातचीत की थी। उन्होंने क्षेत्र में गर्भपात की बढ़ती घटनाओं को स्वीकार किया है। हालांकि उनका कहना है कि उचित वैज्ञानिक अध्ययन के बिना इसे रेडिएशन संदूषण से नहीं जोड़ा जा सकता है।
अपनी पीएचडी थीसिस के हिस्से के रूप में किए गए शोध में, शेख अली ने कहा कि महिलाओं में सोनोग्राफी करने के बाद भ्रूण की असामान्यताओं का पता चला था। ऐसे मामलों में, उन्हें अक्सर चिकित्सकीय सहायता से गर्भपात की सलाह दी जाती है। महिलाओं को गंभीर मैंस्ट्रुअल, गायनोलॉजिकल और गर्भावस्था संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जनवरी 2021 और जून 2021 के बीच घर-घर जाकर किए गए सर्वे में उन्होंने पाया कि उस दौरान सात गर्भपात और 15 गर्भधारण हुए थे। एक मामले (गर्भावस्था के छठे महीने) को छोड़कर, अन्य सभी मामले गर्भावस्था के 20 सप्ताह के भीतर सहज गर्भपात के थे। इस दौरान गर्भवती महिलाओं में से लगभग 44% महिलाओं का गर्भपात हुआ था।
उन्होंने कहा, राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, 30% या एक तिहाई गर्भपात सामान्य है। लेकिन एमसी पल्ले में 44% गर्भपात हुए। एमसी पल्ले में लगभग 90% महिलाओं को 10 से 60 दिनों तक असामान्य रूप से लंबे समय तक पीरियड से गुजरना पड़ता है या तीन महीने तक बिल्कुल भी पीरियड नहीं होते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि शादी के बाद एमसी पल्ले में आने वाली 90% महिलाओं ने बताया कि उनके मैंस्ट्रुअल संबंधी समस्याएं उनके यहां आने के 3-5 महीने बाद शुरू हुईं। शेख अली ने कहा कि लोग यह भी रिपोर्ट करते हैं कि बाहरी लोग एमसी पल्ले और कोट्टाला में परिवारों में शादी करने में दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं, जो एक गंभीर सामाजिक-सांस्कृतिक समस्या की ओर इशारा करता है।
भूजल के नमूनों में यूरेनियम का उच्च स्तर पाया गया
2018 में, आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एपीपीसीबी) ने बोरवेल से भूजल के नमूने एकत्र किए और अगस्त 2019 में, उसने यूसीआईएल को कारण बताओ नोटिस जारी किया। नमूनों में यूरेनियम का खतरनाक स्तर दिखाया गया: 690 से 4000 भाग प्रति बिलियन। जबकि एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) के अनुसार, पीने के पानी की स्वीकार्य सीमा 60 भाग प्रति बिलियन थी। इसके अलावा, क्षारीयता, भारी धातुओं और मैग्नीशियम की सांद्रता अनुमेय सीमा से अधिक थी। 2007 में आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एपीपीसीबी) द्वारा इस टेलिंग तालाब को बनाने के लिए सहमति दी गई थी। इसके अनुसार, गाढ़े टेलिंग निपटान तालाब को बेंटोनाइट के साथ न्यूनतम 500 मिलीमीटर (मिमी) परत के साथ 250 माइक्रोन पॉलीथीन परत और 250 मिमी की मिट्टी या रेत की पर्याप्त सुरक्षात्मक परत के साथ बनाया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। मार्च 2016 में, एपीपीसीबी ने एक कारण बताओ नोटिस जारी किया। इसमें यूसीआईएल पर अतिरिक्त एहतियात के तौर पर टेलिंग तालाब को पॉलीथिन की परत नहीं लगाने का आरोप लगाया गया था। कारण बताओ नोटिस के अपने जवाब में, यूसीआईएल ने इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के दिशानिर्देशों का सहारा लिया, जिसमें सिफारिश की गई थी कि टेलिंग तालाब को वांछित मोटाई के साथ उपयुक्त मिट्टी की सामग्री से तैयार किया जाए, न कि एपीपीसीबी द्वारा सुझाए गए बेंटोनाइट से। यूसीआईएल ने यह भी कहा कि कुछ कृषि क्षेत्रों की मिट्टी में नमक की मात्रा का उच्च स्तर भूजल की निरंतर निकासी के कारण हो सकता है।
पर्यावरण और वन मंत्रालय ने 21 फरवरी, 2007 को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) में यह उल्लेख किया था कि खदान से 9,20,650 टन प्रति वर्ष (टीपीए) ठोस कचरा उत्पन्न होगा, जिसे बाहरी रूप से एक मजबूत परत वाले टेलिंग तालाब में डंप किया जाएगा। ईसी ने भूजल प्रदूषण को रोकने और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए प्रोसेसिंग प्लांट और खदान में अतिप्रवाह को इकट्ठा करने, उपचार करने और रीसायकल करने की जरूरत पर भी जोर दिया था। भूमिगत खदान परियोजना का कुल पट्टा क्षेत्र 813.61 हेक्टेयर है, और राज्य सरकार ने चित्रवती नदी से 6000m3/दिन पानी निकालने की अनुमति दी है।
रिपोर्ट ने यूसीआईएल को क्लीन चिट दी, लेकिन समुदाय की शिकायतों का कोई हल नहीं
रेड्डी ने देखा कि कई शिकायतों और जांच के बाद, 2021 में एक नई प्लास्टिक शीट (शायद पॉलीथीन)से टेलिंग तालाब को पाट दिया गया। ये अलग बात है कि एक तरह के अपशिष्ट उत्पाद सोडियम सल्फेट को भी एक इमारत में अलग से इकट्ठा करने और निपटान करने के बजाय तालाब में फेंका जा रहा था। यूसीआईएल की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया था कि इस तरह के अपशिष्टों को तालाब में डंप नहीं किया जाएगा। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि प्रति वर्ष 29,000 टन सोडियम सल्फेट उत्पन्न होगा। रेड्डी के मुताबिक पिछले कुछ सालों में, लगभग दो लाख टन सोडियम सल्फेट को टेलिंग तालाब में डाला गया है। हाल ही में यूसीआईएल के सामने जब यह मामला उठाया गया तो, उसने ऐसा करना बंद कर दिया और सोडियम सल्फेट को बेचा जाने लगा।
तालाब में पड़ा सफेद पाउडर तेज हवा से पूरे क्षेत्र में फैल गया और किसानों ने शिकायत की कि उनकी फसलों और पाइपों में यह पाउडर जैसा पदार्थ जमा हो गया। यूसीआईएल खदान शुरू होने से पहले जल स्तर 50 से 60 फीट तक ऊंचा था, लेकिन यह 800 फीट तक गिर गया था। भूमैयाहगरीपल्ले में तो स्तर 2,000 फीट तक गिर गया है। हालांकि, यूसीआईएल ने कहा कि क्षेत्र के आसपास बताई गई उच्च यूरेनियम सांद्रता भूजल में यूरेनियम के वितरण के अनियमित पैटर्न की वजह से है, जो चट्टान में इन-सीटू यूरेनियम सामग्री की विभिन्न सांद्रता के कारण हो सकता है।
कार्यकर्ताओं के समूह नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट्स (एनएपीएम), ह्यूमन राइट्स फोरम (एचआरएफ) और रायथु स्वराज्य वेदिका (आरएसवी) की 2018 में तुम्मलापल्ले खदान पर एक तथ्य-खोज रिपोर्ट में 2007 की पर्यावरणीय मंजूरी का “घोर उल्लंघन” बताया गया है। और अन्य स्थितियां जिन्होंने लोगों के जीने के अधिकार को खतरे में डाल दिया, यह सब रेडियोएक्टिव टेलिंग तालाब के अंदर परत न लगाने के कारण हुआ है।
हालांकि बार-बार की गई जांच (आईआईटी खड़गपुर और मेकॉन सहित अन्य द्वारा) में यूसीआईएल को क्लीन चिट दे दी गई है, लेकिन समुदाय की समस्याओं का कोई कारण या हल नहीं बताया गया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, चेन्नई की 2021 की एक हालिया रिपोर्ट (जिसे 2023 तक सार्वजनिक नहीं किया गया है) में भी कुछ भी गलत नहीं पाया गया और कहा गया कि भूजल प्रदूषण के लिए यूसीआईएल को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। फिलहाल और ज्यादा जांच की जरूरत है। पिछले दिनों वाईएसआर कडपा कलेक्टर ने स्थिति से निपटने के लिए बैठक बुलाई थीं, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। वर्तमान कलेक्टर विजय राम राजू को मोंगाबे इंडिया ने कुछ सवाल भेजे थे, लेकिन अभी तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है।
सेवानिवृत्त वैज्ञानिक के. बाबू राव ने कहा, “ये सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां हैं जो विज्ञान को नकार रही हैं और ईमानदारी से काम नहीं कर रही हैं और लोगों को नुकसान पहुंचा रही हैं।” उन्होंने आगे कहा, “एपीपीसीबी ने कारण बताओ नोटिस जारी किया और उसके बाद कुछ नहीं हुआ। मूल मुद्दा यह है कि टेलिंग तालाब को ठीक से नहीं बनाया गया था। इसलिए भूजल प्रदूषित हुआ है। हम यूसीआईएल के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उन्हें जिम्मेदारी से काम करना होगा।‘
मोंगाबे-इंडिया ने यूसीआईएल के महाप्रबंधक संजय शर्मा को सवाल भेजे हैं। लेकिन लेख छपने तक उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
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बैनर तस्वीर: खेत में किसान। प्रतिकात्मक तस्वीर। तुम्मलापल्ले खदान के पास रहने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि यूरेनियम खदान के टेलिंग तालाब से अपशिष्ट भूजल में मिल रहा है, जिससे फसलों की ग्रोथ पर असर पड़ रहा है। तस्वीर– सूरज मोंडोल/विकिमीडिया कॉमन्स