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मिजोरम में लुप्तप्राय छोटी बिल्लियों का गुपचुप तरीके से हो रहा है व्यापार

म्यांमार में किनाबातांगन नदी के किनारे देखी गई एक तेंदुआ बिल्ली। म्यांमार सीमा पर मानव रहित सीमा क्षेत्र और मिजोरम और म्यांमार को विभाजित करने वाली तियाउ नदी के किनारे घने जंगल ने भारत के इस हिस्से में पहुंच, व्यापार को आसान बनाने और अवैध शिकार में सामान्य वृद्धि में योगदान दिया है। तस्वीर- माइक प्रिंस/विकिमीडिया कॉमन्स

म्यांमार में किनाबातांगन नदी के किनारे देखी गई एक तेंदुआ बिल्ली। म्यांमार सीमा पर मानव रहित सीमा क्षेत्र और मिजोरम और म्यांमार को विभाजित करने वाली तियाउ नदी के किनारे घने जंगल ने भारत के इस हिस्से में पहुंच, व्यापार को आसान बनाने और अवैध शिकार में सामान्य वृद्धि में योगदान दिया है। तस्वीर- माइक प्रिंस/विकिमीडिया कॉमन्स

  • पूर्वोत्तर भारत में एशियाई सुनहरी बिल्ली, मार्बल्ड बिल्ली और तेंदुआ बिल्ली जैसी छोटी फेलिड प्रजातियों के वन्यजीव व्यापार में तेजी देखी जा रही है। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय नियामक नीतियों के चलते बाघ, तेंदुए और हिम तेंदुए जैसी बड़ी बिल्लियों के अंगों का व्यापार काफी मुश्किल हो गया है।
  • यह क्षेत्र जैव विविधता से समृद्ध इंडो-बर्मा हॉटस्पॉट का हिस्सा है और जंगली बिल्लियों की लगभग 10 प्रजातियों का घर है। इनमें एशियाई सुनहरी बिल्ली, तेंदुआ बिल्ली, मार्बल्ड कैट और फिशिंग कैट जैसी छोटी बिल्लियां शामिल हैं।
  • छोटी बिल्लियों की खाल, खोपड़ी, हड्डियां, पंजे, दांत आदि को कभी-कभी बाघ और तेंदुए जैसी बड़ी बिल्लियों के शरीर के अंग बताकर बेचा दिया जाता है।

पूरे एशिया में मध्यम वर्ग के बीच बढ़ती मांग के चलते दुर्लभ वन्यजीव प्रजातियों के उत्पादों का व्यावसायिक मूल्य काफी हद तक बढ़ गया है। भारत-म्यांमार सीमा पर दुर्लभ छोटी बिल्ली प्रजातियों के अवैध व्यापार पर एक नए अध्ययन से पता चलता है कि वन्यजीव व्यापार से इतने अधिक फायदे हैं कि इनका धड़ल्ले से व्यापार किया जा रहा है और इसके चलते न सिर्फ इनके निवास स्थान को नुकसान पहुंचा है बल्कि यह कई प्रजातियों के अस्तित्व के लिए दूसरा सबसे बड़ा प्रत्यक्ष खतरा भी बन गया है।

एशियाई सुनहरी बिल्लियों और अन्य छोटे फेलिडों के अवैध व्यापार की ओर ध्यान आकर्षित करने वाला यह पेपर बताता है कि, बाघ, तेंदुए और हिम तेंदुए जैसी बड़ी बिल्लियों के शरीर के अंगों का व्यापार बढ़ती अंतरराष्ट्रीय नियामक नीतियों के कारण काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है, इसलिए अन्य प्रजातियों पर दबाव बढ़ गया है। इसका खामियाजा सबसे ज्यादा छोटी फेलिडे प्रजातियों को उठाना पड़ रहा है। क्लाउडेड तेंदुए (नियोफेलिस नेबुलोसा और एन. डायर्डी), एशियाई सुनहरी बिल्लियां (कैटोपुमा टेम्मिनकी) और मार्बल बिल्लियां (पार्डोफेलिस मार्मोराटा) उन प्रजातियों में से हैं जिन्हें उनके बड़ी प्रजातियों के नाम पर बेचा जा रहा है। म्यांमार, भारत, चीन, मलेशिया और थाईलैंड में उनके अंगों का व्यापार बढ़ गया है।

पूर्वोत्तर भारत जैव विविधता से समृद्ध इंडो-बर्मा हॉटस्पॉट का एक हिस्सा है। यहां जंगली बिल्लियों की लगभग 10 प्रजातियों का घर है, जिनमें एशियाई सुनहरी बिल्ली, तेंदुआ बिल्ली (प्रियोनैलुरस बेंगालेंसिस), मार्बल्ड बिल्ली और फिशिंग कैट (प्रियोनैलुरस विवरिनस) जैसी छोटी बिल्लियां शामिल हैं। ये बिल्लियां पूर्वोत्तर भारत के अधिकांश राज्यों जैसे असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड आदि में पाई जाती हैं।

शोधकर्ता, वन्यजीव जीवविज्ञानी और पेपर के मुख्य लेखक, अमित कुमार बल ने 2022 की सर्दियों के दौरान, मिजोरम के चम्फाई जिले में मुरलेन नेशनल पार्क (एमएनपी) के आसपास रहने वाले कुछ लोगों के साथ अनौपचारिक बातचीत की थी। बल पिछले कुछ सालों से मिज़ोरम और म्यांमार की सीमा के पास पड़ने वाले कुछ गांवों में एक शोधकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं।

एक मार्बल्ड कैट का शव, एक एशियाई सुनहरी बिल्ली और एक एशियाई सुनहरी बिल्ली की त्वचा। तस्वीरें अमित कुमार बल 
एक मार्बल्ड कैट का शव, एक एशियाई सुनहरी बिल्ली और एक एशियाई सुनहरी बिल्ली की त्वचा। तस्वीरें अमित कुमार बल

बातचीत के दौरान उन्हें पता चला कि मुरलेन नेशनल पार्क के पास एक गांव की सीमा पर एक स्थानीय शिकारी ने एक एशियाई सुनहरी बिल्ली को मार गिराया है। बल कहते हैं, हालांकि शिकारी बुशमीट के लिए खासतौर पर जंगली सूअर या हिरण का शिकार करना चाहता था। लेकिन गलती से उसका सामना इस प्रजाति की बिल्ली से हो गया। तब उसे लगा कि बिल्ली की त्वचा, खोपड़ी, हड्डियों, पंजे और दांतों को बेचकर आसानी से कुछ पैसा कमाया जा सकता है। ये एक अच्छा अवसर है और उसने उस अवसर का फायदा उठाया।

मिजोरम में छोटी बिल्लियों का बढ़ता व्यापार

बल ने साथी शोधकर्ताओं सुशांतो गौडा और एंथनी जे. जिओर्डानो के साथ मिलकर पेपर तैयार किया था। “दि प्राइस ऑफ गोल्ड? -ए नोट ऑन दि इल्लिगल ट्रेड इन एशियाटिक गोल्डन कैट एंड अदर स्माल फील्ड बिटवीन मिजोरम (इंडिया) और म्यांमार दिस ईयर” हालांकि भारत में बाघ और तेंदुए जैसी बड़ी बिल्लियों का उनके शरीर के अंगों के लिए अवैध शिकार आम बात है, लेकिन यह पेपर उनके परिवार के छोटे सदस्यों के व्यापार के बारे में जानकारी देता है। इन जानवरों की लुप्तप्राय प्रकृति के कारण उनके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

छोटी बिल्लियों के शिकार और अवैध व्यापार के बारे में विस्तार से बताते हुए, पेपर उस बातचीत का जिक्र करता है, जो बल ने मुरलेन में एक स्थानीय शिकारी के साथ की थी। वह कहते हैं,”एक एशियाई सुनहरी बिल्ली दिखने के बाद शिकारी को पता चला कि बिल्ली की मूल्यवान खाल, साथ ही उसकी खोपड़ी, हड्डियों, पंजे और दांतों को बेचकर ‘आसानी से पैसा कमाया’ जा सकता है। यह एक अच्छा मौका है” पेपर में कहा गया है कि समुदाय के किसी अन्य व्यक्ति ने अगस्त 2022 में एक सुनहरी बिल्ली को मारा था और म्यांमार में एक खरीदार को बेच दिया था।

पेपर ने नोट किया कि हाल के दिनों में छोटी बिल्लियों के शरीर के अंगों जैसे हड्डियों, खोपड़ी और पंजे की मांग के बढ़ जाने से अवैध व्यापार को बढ़ावा मिला है। तियाउ नदी के किनारे घने जंगल मिजोरम और म्यांमार को बांटते है। म्यांमार सीमा से लगे क्षेत्रों की सीमा बल निगरानी नहीं करते हैं। शायद इसके कारण ही भारत के इस हिस्से में पहुंच और व्यापार करना आसान हो गया है और अवैध शिकार बढ़ गया है। 

पेपर में लिखा था “जिस समूह से हमने मूल रूप से बात की थी, उसके एक अन्य शिकारी ने 2019 की शुरुआत में एमएनपी में एक मार्बल्ड कैट और एक लियोपार्ड कैट, दोनों को मारने का दावा किया था। इन बिल्लियों को कथित तौर पर एक बंदूक (एक सिंगल बैरल ब्रीच लोडिंग 12-बोर राइफल) से मार दिया गया था। उन्होंने हमें बताया कि उनके शरीर के अंगों का म्यांमार में व्यापार किया गया।” 

मिजोरम के मुरलेन में देखी गई एक दुर्लभ और लुप्तप्राय तेंदुआ बिल्ली। तस्वीर- अमित कुमार बल 
मिजोरम के मुरलेन में देखी गई एक दुर्लभ और लुप्तप्राय तेंदुआ बिल्ली। तस्वीर- अमित कुमार बल

मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए बल ने कहा कि म्यांमार में छोटी मांसाहारी बिल्लियों मसलन मार्बल्ड कैट, गोल्डन कैट और तेंदुआ बिल्ली को सिर्फ उनके अवैध काले बाजार मूल्य के लिए अवसरवादी रूप से मार दिया जाता है। इस तरह के शिकार में आमतौर पर शिकारी का मचान पर इंतजार करना शामिल है। मचान ऊंचे पेड़ की शाखाओं पर बना एक अस्थायी मंच होता है, जहां एक शिकारी शाम से देर रात तक शिकार के इंतजार में बैठ सकता है।

बल ने खुलासा किया कि फेलिड्स की खाल, खोपड़ी, दांत और हड्डियों को सजावट और औषधि में काम लिए जाने के लिए तेजी से व्यापार किया जा रहा है और म्यांमार इस अवैध व्यापार में केंद्रीय भूमिका निभाता नजर आता है।

मिजोरम राज्य के चम्फाई जिला में एमएनपी पड़ता है। यह इलाका हाल ही में वन्यजीवों और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं में सीमा पार व्यापार के केंद्र के रूप में उभरा है। मोंगाबे-इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, मई 2022 में चम्फाई में कछुए, सांप, ऊदबिलाव और एक जंगली बिल्ली सहित विदेशी वन्यजीवों की 468 प्रजातियां जब्त की गईं थीं।

छोटी बिल्लियों को खतरा

बल के मुताबिक, क्योंकि बड़ी बिल्लियों का शिकार करना कठिन होता जा रहा है, इसलिए तस्कर अब छोटी बिल्लियों को निशाना बना रहे हैं।

बल ने कहा, “बढ़ते अंतरराष्ट्रीय संबंधों के चलते बाघ, तेंदुए और हिम तेंदुए जैसी बड़ी बिल्लियों को मारना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है, शिकारी अब अपनी नजरें छोटे फेलिड्स की ओर मोड़ रहे हैं।” इन जानवरों का व्यापार सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि चीन, मलेशिया, थाईलैंड आदि जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में होता है। वह आगे कहते हैं, “मौजूदा समय में गोल्डन कैट और मार्बल्ड कैट भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अनुसूचित प्रजातियों के रूप में संरक्षित हैं। हालांकि, भारत के जंगलों में इन छोटी बिल्लियों की स्थिति और व्यवहार्यता अभी भी स्पष्ट नहीं है

इन छोटी बिल्लियों की प्रजातियों की लुप्तप्राय प्रकृति पर बात करते हुए ‘आरण्यक’ के प्रोजेक्ट ऑफिसर, आइवी फरहीन हुसैन ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “ये छोटी बिल्लियां इतनी लुप्तप्राय हैं कि उन्हें शायद ही कभी देखा जाता है। वे अपने आवास को लेकर भी बहुत संवेदनशील होती हैं। उनके आवास में हल्का सा भी बदलाव उन्हें बहुत परेशान कर देता है। यही प्रमुख कारण है कि ये जानवर इतने लुप्तप्राय हैं। इसलिए अगर उनके रहने की जगह प्रभावित होती है, तो हमें पता चल जाएगा कि इसका उनकी आबादी पर भी असर पड़ेगा।” आरण्यक एक गैर-सरकारी संगठन है जो पूर्वोत्तर भारत में जैव विविधता के संरक्षण पर काम कर रहा है।

वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “छोटी बिल्लियों का व्यापार बहुत कम होता है। अतीत में, हमने लेपर्ड कैट, सिवेट कैट और फिशिंग कैट के नमूने जब्त किए थे। पिछले पांच सालों में हमें छोटी बिल्लियों के शिकार का कोई मामला नहीं मिला है। वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि छोटी बिल्लियों की हड्डियों और खाल को बाघ और तेंदुए के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन ऐसा कभी-कभी होता है क्योंकि कई खरीदार बहुत स्मार्ट नहीं होते हैं।

शिकार कम करने के उपाय

पेपर में कहा गया है कि क्षेत्र में गरीबी और उच्च स्तर के भ्रष्टाचार ने स्थानीय लोगों को इस अवैध व्यापार में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है। क्षेत्र में अवैध व्यापार को कम करने के लिए वन्यजीव संरक्षण नजरिए में सामाजिक आर्थिक विकास और ग्रामीण समुदायों की सकारात्मक भागीदारी की जरूरत है।

बल के मुताबिक, मुरलेन में लोग शिकार के खतरों के प्रति जागरूक होने लगे हैं। इस वर्ष जंगल में छोटी बिल्लियों को मारने में कमी आई है।

वन्यजीव जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एक हाउस होर्डिंग। तस्वीर-नबारुण गुहा 
वन्यजीव जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए एक हाउस होर्डिंग। तस्वीर-नबारुण गुहा

वन विभाग के सहयोग से वह छोटी बिल्लियों के संरक्षण के संबंध में एमएनपी में गांव के लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमने इन गांवों के बाजारों में इन जानवरों को बचाने के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए होर्डिंग्स लगाए हैं। हम ये होर्डिंग्स ज्यादातर मिजो भाषा में लगाते हैं ताकि ये ज्यादातर लोगों तक पहुंच सकें। जागरूकता पैदा करने के लिए हम मिजोरम के सबसे शक्तिशाली गैर सरकारी संगठन ‘यंग मिजो एसोसिएशन’ (वाईएमए) की भी मदद ले रहे हैं।”

पेपर ने सुझाव दिया कि स्थानीय आजीविका के लिए शिकार के सामाजिक-आर्थिक महत्व की स्वीकृति, ग्रामीण समुदायों की सकारात्मक भागीदारी, भागीदारी में स्थानीय लोगों की भर्ती और विविध, वैकल्पिक आजीविका-आधारित गतिविधियों के लिए समर्थन इस वन्यजीव और जैव विविधता हॉटस्पॉट में अधिक स्वागत योग्य दृष्टिकोण होने की संभावना है। 

बल ने मुरलेन में तीन साल से अधिक समय बिताने के बाद इस जगह और इसके लोगों के साथ एक अनोखा रिश्ता बनाया है, जो आज फल दे रहा है। बल ने कहा, “इस साल, अब तक छोटी बिल्लियों की कोई हत्या नहीं हुई है। मैंने उनसे कहा कि ये बिल्लियां दुर्लभ हैं और आपको गर्व होना चाहिए कि ये आपके नजदीक पाई जाती हैं। एक शिकारी ने अपनी बंदूक बेच दी और कहा कि वह खेती करना चाहता है। कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने पर्यटकों के लिए होमस्टे खोले हैं और गाइड के रूप में भी काम कर रहे हैं। वे समझ गए हैं कि पर्यटकों के आने के लिए, उन्हें इस जंगल में समृद्ध जीवों को संरक्षित करने की जरूरत है।” 

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीर: म्यांमार में किनाबातांगन नदी के किनारे देखी गई एक तेंदुआ बिल्ली। म्यांमार सीमा पर मानव रहित सीमा क्षेत्र और मिजोरम और म्यांमार को विभाजित करने वाली तियाउ नदी के किनारे घने जंगल ने भारत के इस हिस्से में पहुंच, व्यापार को आसान बनाने और अवैध शिकार में सामान्य वृद्धि में योगदान दिया है। तस्वीर– माइक प्रिंस/विकिमीडिया कॉमन्स

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