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बहुत ज्यादा गर्मी नहीं सह सकता लेपर्ड कैट, जलवायु परिवर्तन का होगा असर

ताइवान में एक तेंदुआ बिल्ली। तस्वीर- ourskyuamlea/विकिमीडिया कॉमन्स।

ताइवान में एक तेंदुआ बिल्ली। तस्वीर- ourskyuamlea/विकिमीडिया कॉमन्स।

  • पश्चिमी घाट में लेपर्ड कैट्स (तेंदुआ बिल्ली/ चीता मार्जार) की आबादी दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग-थलग और आनुवंशिक रूप से भिन्न है। शोध में यह बात सामने आई है। गर्मी को सहन करने की सीमा के चलते मध्य भारत में अब शायद ही इनकी मौजूदगी हो।
  • भारत के ज्यादातर हिस्सों में इस प्रजाति की तादात बहुत अच्छी है। लेकिन इन्हें सड़कों पर वाहनों के चपेट में आने, फंसाने और शिकार करने से लेकर खेतों में कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल और जलवायु परिवर्तन जैसे कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
  • भारत में जंगल में रहने वाली बिल्ली की इस प्रजाति के बारे में जानकारी काफी हद तक अलग-अलग संरक्षित क्षेत्रों में अलग-अलग होने तक सीमित है। लेकिन यह जानकारी पर्याप्त नहीं है, क्योंकि यह प्रजाति अलग-अलग तरह के निवास स्थान में पाई जाती है।

लेपर्ड कैट या तेंदुआ बिल्ली, बिल्ली की एक प्रजाति है जो कद-काठी में छोटी है। इसे IUCN (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) रेड लिस्ट में सबसे कम चिंता वाली श्रेणी में रखा गया है। इसका मतलब है कि इस प्रजाति को तुरंत संरक्षण देने की जरूरत नहीं है। हालांकि, इस प्रजाति को कई खतरों का सामना करना पड़ता है। मसलन, सड़कों पर वाहनों की चपेट में आना, शिकार, खेतों में कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल। साथ ही, मौसम में होने वाले बदलाव से भी इन पर खतरा है। इस प्रजाति पर इन खतरों की सीमा को सिर्फ इन पर केंद्रित अध्ययन से ही जाना जा सकता है। हालांकि, तेंदुआ-बिल्ली की खासियत है कि वह कई तरह के निवास स्थान में जीवित रह सकता है। 

छोटी बिल्ली की प्रजाति से वास्ता रखने वाले इस जीव की आबादी दुनिया भर में व्यापक है। यह दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक पाई जाती है। सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON) की वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक शोमिता मुखर्जी ने कहा, “भारत में यह प्रजाति हिमालय की तलहटी में और हिमालय में, करीब-करीब पूरे पूर्वोत्तर और पूर्वी भाग और उत्तरी-पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट में पाई जाती हैं।” उन्होंने भारत में तेंदुआ-बिल्ली पर शोध भी किया है।

फेलिडे परिवार के सदस्य (इसमें तेंदुआ-बिल्ली भी शामिल हैं) किसी पारिस्थितिकी तंत्र में ट्रॉफिक पदानुक्रम में सबसे ऊपर है। इन्हें अक्सर बड़े निवास स्थान की जरूरत होती है। इस तरह, बिल्ली की ज्यादातर प्रजातियां सिर्फ महाद्वीपों या बड़े द्वीपों पर ही पाई जाती हैं। लेकिन तेंदुआ बिल्ली इसका अपवाद है। यह प्रजाति कई छोटे द्वीपों के साथ-साथ बड़े द्वीपों और एशियाई महाद्वीप में भी पाई जाती है। इसकी 12 उप-प्रजातियां हैं जो व्यापक रूप से पाई जाती हैं। इससे व्यापक निवास स्थान के साथ-साथ आला दर्जे की अनुकूलन क्षमता का पता चलता है इनमें उष्णकटिबंधीय सदाबहार वर्षावन, समशीतोष्ण, शंकुधारी और झाड़ीदार वनों के साथ ही घास के मैदान भी शामिल हैं। पिछले साल प्रकाशित कंबोडिया के एक अध्ययन में पाया गया कि इस प्रजाति को सदाबहार जंगल पसंद हैं, लेकिन वे जगह के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। इसी वजह से इस प्रजाति का व्यापक वितरण देखने को मिलता है। 

पश्चिम बंगाल के सुंदरबन टाइगर रिजर्व में एक तेंदुआ बिल्ली। तस्वीर- सौम्यजीत नंदी/विकिमीडिया कॉमन्स।
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन टाइगर रिजर्व में एक तेंदुआ बिल्ली। तस्वीर– सौम्यजीत नंदी/विकिमीडिया कॉमन्स।

ज्यादा ध्यान देने की जरूरत

शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में छोटी बिल्लियों को लेकर दिलचस्पी कम है। संरक्षण से जुड़े ज्यादातर अध्ययन तेंदुए और बाघ जैसी बिल्ली की करिश्माई प्रजातियों पर केंद्रित हैं। इस वजह से, इस फेलिड की जानकारी काफी हद तक अलग-अलग संरक्षित क्षेत्रों में आबादी के अलग-अलग अनुमान तक ही सीमित है। स्वतंत्र वैज्ञानिक प्रिया सिंह का मानना है कि यह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि तेंदुआ-बिल्ली बहुत ज्यादा बहुमुखी होता है और फसल के खेतों और कॉफी और पाम ऑयल के बागानों सहित कई तरह के आवासों में पाया जाता हैं।

कंबोडिया के अध्ययन में यह भी पाया गया कि अन्य मांसाहारी जीव-जंतुओं वाले निवास स्थान में रहने के बावजूद इस प्रजाति की आबादी पर इसका कोई ख़ास असर नहीं था। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्होंने मांसाहारी जीव-जंतुओं के बीच जीवित रहने के लिए कुछ तरीके विकसित किए हैं। मिजोरम के डंपा टाइगर रिजर्व के एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि एक तरीका रात में घूमना-फिरना हो सकता है। छोटी और सामान्य आकार की चार बिल्लियों के अस्थायी गतिविधि पैटर्न पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि तेंदुआ-बिल्ली रात में घूमते हैं। इसे जीवित रहने के लिए एक संभावित विशेषता माना गया, जिसके तहत वे अन्य मांसाहारी जीव-जंतुओं के साथ संसाधनों को सफलतापूर्वक बांटते हैं। डंपा में 2014-15 में किए गए अध्ययन की अगुवाई करने वाली प्रिया सिंह ने कहा, “वे अपनी गतिविधि के समय को बदल कर खुद को अलग कर रहे थे। तेंदुआ-बिल्ली रात में सक्रिय रहने वाले शिकार को खा जाते हैं। हो सकता है कि वे बसे हुए पक्षियों या अंडों या सांपों या छिपकलियों, गेको आदि का शिकार कर रहे हों।” 

तेंदुआ-बिल्ली पर जारी भारतीय डाक टिकट। बाघों और तेंदुओं जैसी बड़ी बिल्लियों पर शोध और संरक्षण पहल पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा, शोधकर्ता छोटी बिल्लियों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत पर जोर देते हैं। तस्वीर- भारत सरकार/विकिमीडिया कॉमन्स।
तेंदुआ-बिल्ली पर जारी भारतीय डाक टिकट। बाघों और तेंदुओं जैसी बड़ी बिल्लियों पर शोध और संरक्षण पहल पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा, शोधकर्ता छोटी बिल्लियों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत पर जोर देते हैं। तस्वीर– भारत सरकार/विकिमीडिया कॉमन्स।

गर्मी को लेकर संवेदनशील

भारत में तेंदुआ-बिल्ली के बारे में सबसे अलग बात यह है कि इसकी आनुवंशिक रूप से दो अलग-अलग आबादी हैं। इसका पता साल 2010 में मुखर्जी और टीम की ओर से किए गए फाइलोजेनेटिक अध्ययन से चला था। इसके अलावा, यह प्रजाति मध्य भारत को छोड़कर लगभग पूरे भारत में पाई जाती है।

भारत के अलग-अलग जैव-भौगोलिक क्षेत्रों से 40 तेंदुआ-बिल्लियों के मल के नमूने लेकर माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए विश्लेषण किया गया। इससे पता चला कि पश्चिमी घाट की आबादी आनुवंशिक रूप से अलग और भौगोलिक रूप से अन्य भारतीय और दक्षिण-पूर्व एशियाई आबादी से अलग है। शोधकर्ताओं ने मध्य भारत में इसकी अनुपस्थिति से अनुमान लगाया कि लगभग 20,000 साल पहले एलजीएम/ LGM (अंतिम हिमनद अधिकतम/ Last Glacial Maximum) के दौरान भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र में तापमान में बढ़ोतरी के चलते तेंदुआ-बिल्ली की आबादी बंट गई और मध्य भारत में ज्यादा गर्मी ने वहां इनकी मौजूदगी को सीमित कर दिया.

मुखर्जी ने मोंगाबे इंडिया को बताया,ऐसा लगता है कि तेंदुआ-बिल्ली के लिए 40 डिग्री सेल्सियस तापमान एक सीमा है। मॉडलिंग अध्ययनों ने आनुवंशिक डेटा का समर्थन किया है। पूर्व में लिखे गए साहित्य और संग्रहालय के नमूनों ने भी इसकी पुष्टि की, जिसमें मध्य भारत से तेंदुआ-बिल्ली का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला था।

दक्षिण भारत के चार बाघ अभ्यारण्यों – बिलिगिरि रंगास्वामी मंदिर (बीआरटी), भद्रा, बांदीपुर और नागरहोल बाघ अभ्यारण्यों में इस प्रजाति पर किए गए आबादी घनत्व अनुमान ने मुखर्जी के नतीजों की पुष्टि की है कि तेंदुआ-बिल्ली गीले क्षेत्रों को पसंद करती हैं और उनका वितरण सालाना बारिश से सकारात्मक रूप से प्रभावित होता है। सबसे ज्यादा सालाना बारिश वाले भद्रा ने तेंदुए बिल्ली की आबादी की सबसे ज्यादा घनत्व को सपोर्ट किया इसके बाद बीआरटी का स्थान रहा। सूखे रिजर्व, नागरहोल और बांदीपुर में प्रजाति का बहुत कम घनत्व पाया गया। लक्षित अध्ययनों की कमी के कारण, यह धारणा बनी हुई है कि जलवायु परिवर्तन और और इसके चलते तापमान में बढ़ोतरी प्रजाति पर प्रतिकूल असर डाल सकता है, जो कि तापमान सीमा को दिखाता है।

बांदीपुर और नागरहोल में प्रजाति की कम संख्या का एक अन्य संभावित कारण इन संरक्षित क्षेत्रों में बाघ और तेंदुए का ज्यादा घनत्व होना भी है। इसके चलते प्रतिस्पर्धी के चलते प्रजाति बाहर हो जाती है। मिजोरम के डंपा टाइगर रिजर्व को देखते हुए यह एक संभावना है, जहां इसकी स्थिति के बावजूद कोई बाघ नहीं है, यहां छोटी और सामान्य बिल्लियों की चार प्रजातियों की एक स्वस्थ आबादी है। पूर्वोत्तर भारत में अनुसंधान का दशकों का अनुभव रखने वाली प्रिया सिंह का मानना है कि रिजर्व में बाघ नहीं होने से छोटी बिल्लियों की आबादी को फायदा पहुंचा रही है।

मलेशिया में किनाबातांगन नदी के किनारे एक पेड़ पर बैठी एक तेंदुआ-बिल्ली। यह दुनिया की सबसे व्यापक रूप से पाई जाने वाली छोटी बिल्ली की प्रजाति है जो दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक पाई जाती है। तस्वीर - माइक प्रिंस/विकिमीडिया कॉमन्स।
मलेशिया में किनाबातांगन नदी के किनारे एक पेड़ पर बैठी एक तेंदुआ-बिल्ली। यह दुनिया की सबसे व्यापक रूप से पाई जाने वाली छोटी बिल्ली की प्रजाति है जो दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक पाई जाती है। तस्वीर – माइक प्रिंस/विकिमीडिया कॉमन्स।

बेहतर जागरूकता, केंद्रित अध्ययन बचाव के लिए जरूरत

भारत में छोटी बिल्लियों के संरक्षण के प्रमुख खतरों में से एक बाघ-केंद्रित वन प्रबंधन और संरक्षण के तरीके हैं जिनका देश में पालन किया जाता है। सिंह ने कहा कि बाघों की अनुपस्थिति के चलते डंपा टाइगर रिजर्व और इसकी छोटी बिल्लियों की स्वस्थ आबादी को वह सम्मान या मान्यता नहीं मिलती जिसके वे हकदार हैं। डंपा में बाघों को फिर से लाने की मांग बढ़ रही है। उनका मानना है कि यह छोटी बिल्लियों की आबादी के लिए हानिकारक होगा।

शोधकर्ताओं का मानना है कि लोगों में छोटी बिल्लियों की प्रजातियों और उनके संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता की कमी है। चूंकि तेंदुआ-बिल्ली इंसानी जगहों में निवास करती हैं और मुर्गों का शिकार करती हैं, इसलिए इस वजह से हत्याओं की रिपोर्टें असामान्य नहीं हैं। एक समाधान के रूप में, सिंह ने समुदायों को ना सिर्फ शिकार से मुर्गीपालन के नुकसान के लिए पर्याप्त मुआवजा देने का सुझाव दिया, बल्कि लोगों की त्वरित प्रतिक्रियाओं से बचने के लिए उन्हें सुरक्षित तरीके से रखने का सुझाव दिया। इस तरह के सहभागी दृष्टिकोण शायद छोटी बिल्लियों जैसे कम जानकारी वाले जानवरों के संरक्षण का सबसे अच्छा तरीका है।

मुखर्जी ने कहा कि तेंदुआ-बिल्लियों को संरक्षित करने से किसानों को फायदा होगा, क्योंकि वे चूहों को खाते हैं और प्राकृतिक कीड़ों को नियंत्रित करने के रूप में काम करते हैं। उन्होंने छोटे और सामान्य जंगली बिल्ली संरक्षण को मजबूत करने के लिए खेती वाली जगहों में कीटनाशकों के इस्तेमाल को विनियमित करने का सुझाव दिया। मुखर्जी के अनुसार, ओईसीएम (अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपाय) का त्वरित कार्यान्वयन, एक नया संरक्षण दृष्टिकोण जिसमें संरक्षण के लिए नए क्षेत्र शामिल हैं, छोटी बिल्लियों के संरक्षण के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण है। ओईसीएम का कार्यान्वयन पश्चिमी घाट में तेंदुआ-बिल्ली की आबादी के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत सारे वृक्षारोपण और कृषि-वानिकी प्रथाएं हैं। तेंदुआ-बिल्ली इन जगहों में पाई जाती हैं। मुखर्जी ने सुझाव दिया, ”इससे उनके संरक्षण में बड़ा अंतर आएगा।

 

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बैनर तस्वीरः ताइवान में एक तेंदुआ बिल्ली। तस्वीर– ourskyuamlea/विकिमीडिया कॉमन्स।

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