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सौर पैनलों से चौंध का खतरा, स्वच्छ ऊर्जा की ओर रुख करने वाले हवाई अड्डों के लिए सुरक्षा की चिंता

जापान के नारिता हवाई अड्डे पर लगे सौर पैनल। प्रतिकात्मक तस्वीर। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले हवाई अड्डों को एक चुनौती का सामना करना पड़ता है क्योंकि सौर पैनलों से निकलने वाली चमक पायलटों के लिए फ्लैश ब्लाइंडनेस और कुछ देर तक दिखाई न देने जैसी समस्याओं का कारण बन सकती है। तस्वीर-ताकाशी एम/फ्लिकर

जापान के नारिता हवाई अड्डे पर लगे सौर पैनल। प्रतिकात्मक तस्वीर। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले हवाई अड्डों को एक चुनौती का सामना करना पड़ता है क्योंकि सौर पैनलों से निकलने वाली चमक पायलटों के लिए फ्लैश ब्लाइंडनेस और कुछ देर तक दिखाई न देने जैसी समस्याओं का कारण बन सकती है। तस्वीर-ताकाशी एम/फ्लिकर

  • भारतीय हवाई अड्डे ऊर्जा की अपनी भारी-भरकम जरुरतों और कार्बन उत्सर्जन को देखते हुए तेजी से सौर ऊर्जा की ओर रुख कर रहे हैं।
  • हवाई अड्डों पर सौर ऊर्जा को अपनाने के कदम में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा चिंता सौर पैनलों पर सूरज की रोशनी की वजह से उत्पन्न होने वाली ‘चौंध’ या प्रतिबिंब है जो फ्लैश ब्लाइंडनेस का कारण बन सकती है। सौर पैनलों की ऊपरी कांच की सतह प्रकाश को प्रतिबिंबित करती है, जिसकी वजह से आंखों में जलन, धुंधलापन छाने और थोड़ी देर के लिए दिखाई न देने जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
  • भारत के पास इस चौंध (ग्लेयर) को मापने के लिए अपना कोई मानक नहीं है। इसलिए इन सोलर पैनलों से आने वाली चौंध का विश्लेषण करने के लिए हम अन्य देशों के लिए डिजाइन किए गए सिमुलेशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं।

मार्च की शुरूआत में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) ने घोषणा की थी कि वह 2024 तक अपने सभी हवाई अड्डों पर 100 फीसदी नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल करने लगेगा। एएआई भारत का सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है जिसके पास हवाई अड्डों के रखरखाव और संचालन का जिम्मा है। यह जिन 137 हवाई अड्डों का प्रबंधन करता है, उनमें से पहले ही 38 हवाई अड्डों पर 40 मेगावाट की अधिकतम क्षमता वाले इन-हाउस सौर संयंत्र चालू कर दिए गए हैं। 2015 में केरल का कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 45 एकड़ भूमि पर 12 मेगावाट का पीक प्लांट स्थापित करके पूरी तरह से सौर ऊर्जा से चलने वाला दुनिया का पहला हवाई अड्डा बन चुका है।

सौर पैनल सस्ते होने की वजह से हवाई अड्डों को अपने बिजली बिल के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन को कम करने और सूरज से मिलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल करने का अवसर मिला है। 2019-2020 में भारत में हवाई अड्डों की वार्षिक बिजली खपत 884 मिलियन यूनिट थी। अगर देखा जाए तो दुनियाभर की कमर्शियल एविएशन इंडस्ट्री कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों का तीन प्रतिशत उत्सर्जित करती है।

कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पूरी तरह से सौर ऊर्जा से चलने वाला दुनिया का पहला हवाई अड्डा है। इसने 45 एकड़ जमीन पर 12 मेगावाट का पीक प्लांट स्थापित किया है। मानचित्र- गूगल अर्थ प्रो 
कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पूरी तरह से सौर ऊर्जा से चलने वाला दुनिया का पहला हवाई अड्डा है। इसने 45 एकड़ जमीन पर 12 मेगावाट का पीक प्लांट स्थापित किया है। मानचित्र- गूगल अर्थ प्रो

जून में एएआई की ओर से जारी एक बुकलैट ‘सस्टेनेबल ग्रीन एयरपोर्ट्स मिशन’ (SUGUM) में कहा गया था कि “रनवे के आसपास बफर भूमि के साथ-साथ टर्मिनलों, हैंगर और कार पार्क की छतों पर बड़े, सपाट और खुले हिस्से की उपलब्धता के कारण हवाई अड्डों में सौर ऊर्जा उत्पादन की महत्वपूर्ण संभावनाएं हैं। आमतौर पर, नियमों के मुताबिक जमीन के ये हिस्से अन्य गतिविधियों के लिए अनुपयुक्त होते हैं।” 

लेकिन सौर पैनलों पर पड़ने वाली रोशनी की चौंध (ग्लेयर) से दुर्घटनाओं का खतरा पैदा हो सकता है। पैनलों पर लगा कांच प्रकाश को परावर्तित करता है, जो भले ही कुछ मिनटों के लिए रहता है, लेकिन ये लैंडिंग और टेक-ऑफ के दौरान पायलट की आंखों पर असर डाल सकता है। जाहिर है इससे हवाई यातायात नियंत्रण (एटीसी) टावर पर काम कर रहे कर्मचारियों को भी देखने में दिक्कते आ सकती हैं। यह घटना ठीक वैसी ही है जैसे सूरज के उगने या छिपते समय, उस दिशा में कार चलाने वाले व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए दिखाई देना बंद हो जाना। 

इस चौंध के खतरे को पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका में 2012 में उजागर किया गया था। जब मैनचेस्टर बोस्टन क्षेत्रीय हवाई अड्डे पर हवाई यातायात नियंत्रकों ने शिकायत की थी कि सौर पैनलों से प्रतिबिंब के कारण वे ठीक से नहीं देख पा रहे थे। बताया गया कि चौंध की वजह से 3.5 मिलियन डॉलर मूल्य के इन सौर पैनलों को अस्थायी रूप से तिरपाल से ढंकना पड़ा था। 2013 में कैलिफोर्निया में इवानपा सोलर इलेक्ट्रिक जेनरेटिंग सिस्टम के पास उड़ान भरने वाले पायलटों ने भी इनसे आने वाली चौंध के बारे में शिकायत की थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (एफएए) के 2015 के एक अध्ययन में कहा गया है, “पायलटों ने इस चौंध को कुछ देर के लिए ‘अंधा’ कर देने वाला बताया। और इनमें से कम से कम एक पायलट ने तो यह शिकायत कि की ये चौंध ‘सूरज को देखने जैसी’ थी।”

यूनिवर्सिटी मलेशिया पहांग के मैकेनिकल और ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी फैकल्टी के सीनियर लेक्चरर सुधाकर कुमारसामी ने कहा, “उच्च सौर ऊर्जा क्षमता और सौर को व्यापक रूप से अपनाने के कारण ‘चौंध’ का ये मुद्दा भारत में खासा महत्वपूर्ण हो सकता है।” वह आगे कहते हैं, “भौगोलिक परिस्थितियां जैसे साफ आसमान और तेज धूप ‘चौंध’ से जुड़ी चिंताओं को और बढ़ा सकती हैं। इस वजह से ‘चौंध’ का विश्लेषण करना और इससे निपटने के लिए बनाई जाने वाली रणनीतियां महत्वपूर्ण हो जाती हैं।”

एटीसी के लिए क्लियर विजन जरूरी, सौर पैनलों की प्रतिबिंबित चौंध उनके काम में बाधा डाल सकती है

हालांकि सौर पैनलों को प्रकाश को अवशोषित करने के लिए डिजाइन किया गया है, लेकिन सौर पैनलों की ऊपरी कांच की सतह प्रकाश को प्रतिबिंबित करती है, जिसकी वजह से आंखों में जलन, धुंधलापन छाने और थोड़ी देर के लिए दिखाई न देने जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

एटीसी के लिए समस्या मुख्य रूप से सुबह और शाम को होती है, जब सूरज कम ऊंचाई पर होता है। जब सूरज की रोशनी पैनल पर निचले कोण से टकराती है, तो प्रतिबिंब का कोण भी कम होगा। लेकिन जब सूर्य आकाश में ऊपर चला जाता है, तो प्रतिबिंब का कोण भी अधिक होगा, जिससे प्रतिबिंब एटीसी के ऊपर से गुजर जाएगा, जिससे उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, विमानों पर ये प्रतिबिंबित चौंध दिन के किसी भी समय भी पड़ सकती है, जो इस पर निर्भर करती है कि विमान किस जगह पर मौजूद हैं। विमान के उड़ान भरने और हवाई अड्डों पर उतरने यानी लैंडिंग और टेक-ऑफ का समय काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस समय विमान कम ऊंचाई पर होता है।

अध्ययनों से पता चलता है कि अगर लगभग सात वाट प्रति वर्ग मीटर का सौर सूर्यातप (किसी खास समय में किसी सतह पर सौर विकिरण) नंगी आंखों में प्रवेश करता है, तो यह ऑफ्टर-इमेज की समस्या पैदा कर सकता है जो चार से बारह सेकंड तक बनी रहती है। आफ्टर इमेज से मतलब उस छवि से है जो मूल छवि के संपर्क में आने के बाद भी आंखों में दिखाई देती रहती है, जिससे थोड़े समय के लिए कुछ भी दिखाई देना बंद हो जाता है। आंखों पर सौर प्रतिबिंबित चौंध के प्रभाव को हरे रंग (कुछ क्षणों के लिए दिखना बंद हो जाना), पीला (थोड़े ज्यादा समय के लिए दिखना बंद हो जाना) और लाल (आंखों में जलन) के रूप में बांटा गया है। चूंकि पीवी पैनल परावर्तित प्रकाश पर फोकस नहीं करते हैं, इसलिए आंखों में जलन की संभावना कम होती है। अहमदाबाद की ‘ग्रीन ऑप्स’ सौर मामलों पर सलाह देने वाली एक कंपनी है, जिसने हवाई अड्डे की सौर परियोजनाओं के लिए ‘चौंध’ का विश्लेषण किया है। इसके संस्थापक निदेशक गुरप्रीत सिंह वालिया, ने कहा, “हरे रंग की चौंध पायलटों पर ज्यादा असर नहीं डालती है क्योंकि यह एक कुछ क्षणों की चौंध का कारण बनती है। लेकिन एक पीली चौंध उनकी एकाग्रता को भंग कर सकती है। हालांकि, एटीसी टॉवर पर हरी और पीली दोनों ही चौंध सुरक्षित नहीं मानी जाती हैं।

लगभग सात वाट प्रति वर्ग मीटर का सौर सूर्यातप ‘आफ्टर इमेज’ पैदा कर सकता है, जिसका असर चार से बारह सेकंड तक बना रहता है। ग्राफ- फोर्ज सोलर
लगभग सात वाट प्रति वर्ग मीटर का सौर सूर्यातप ‘आफ्टर इमेज’ पैदा कर सकता है, जिसका असर चार से बारह सेकंड तक बना रहता है। ग्राफ– फोर्ज सोलर 

एएआई के एक अधिकारी 2016 में अहमदाबाद हवाई अड्डे पर उस समय तैनात थे, जब हवाई अड्डा सौर ऊर्जा से संचालित हुआ था। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि एटीसी को एक क्लियर लाइन ऑफ विजन की जरूरत होती है। “अगर वे चौंध की शिकायत करते, तो हम तुरंत मॉड्यूल को बंद कर देते (चौंध पैदा करने वाले सौर पैनलों को हटा देते हैं)।” 

भारत और बाकी के उत्तरी गोलार्ध में सूर्य के पथ को ट्रैक करने और ज्यादा से ज्यादा बिजली उत्पन्न करने के लिए पैनल आमतौर पर दक्षिण की ओर मुख करके लगाए जाते हैं। कुमारसामी ने समझाते हुए कहा, “आम तौर पर, दक्षिण की ओर लगे मॉड्यूल से चौंधलगने की संभावना अधिक होती है, जो पायलटों को खासा परेशान करती है। इसकी वजह से चौंध का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन दोनों के बीच का संबंध अन्य कारकों पर भी निर्भर करता है।” चौंध को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में सूर्य की स्थिति, पैनल किस तरफ झुका है, सतह की बनावट, रंग और पीवी मॉड्यूल की जगह शामिल हैं।

इसके लिए बने दिशानिर्देशों पर एक नजर

संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, स्विट्जरलैंड, फ्रांस और ऑस्ट्रिया जैसे देशों में चौंध विश्लेषण के लिए अपने खुद के दिशानिर्देश हैं। हालांकि, चकाचौंध पर बनी अमेरिकी एफएए की अंतरिम 2013 नीति का व्यापक रूप से पालन किया जाता रहा था। लेकिन 2021 में आई एक अंतिम नीति ने इसे हटा दिया। 2013 की नीति में चौंध का विश्लेषण करने के लिए ‘सोलर ग्लेयर हैज़र्ड एनालिसिस टूल’ (एसजीएचएटी) के इस्तेमाल की बात कही गई थी। यह साल के सभी दिनों में दिन के सभी घंटों की चौंध और चकाचौंध का आकलन करने के लिए एक वेब-आधारित सिमुलेशन सॉफ्टवेयर है। यहां तक कि यह किसी खास जगह पर सौर संयंत्र से उत्पादित की जा सकने वाली बिजली का अनुमान भी लगा सकता है। 

इस उपकरण को सैंडिया नेशनल लेबोरेटरीज ने तैयार किया है और फोर्ज सोलर के रूप में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध है। वालिया ने बताया, “फोर्ज सोलर का इस्तेमाल आमतौर पर भारत में चौंध का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है।” एटीसी टॉवर और रनवे कोऑर्डिनेट्स, सौर इंस्टॉलेशन कोऑर्डिनेट्स मसलन सोलर पैनल कितनी ऊंचाई पर लगे है, यह कितना झुका हुआ है, इसका अज़ीमुथ एंगल क्या है आदि स्थितियों को ध्यान में रखकर यह सॉफ्टवेयर हरे, पीले या लाल चौंध के बारे में वर्चुअली बताता है। हालांकि, इस समय चौंध का विश्लेषण करने वाले और भी कई सिमुलेशन उपकरण बाजार में उपलब्ध हैं।

कुमारसामी ने अपने एक शोध पत्र में प्रतिबिंबित ‘चौंध’ का आकलन करने वाली तकनीकों की तुलना करते हुए कहा, ” मौजूदा समय में, एसजीएचएटी रियल टाइम में कितने बेहतर तरीके से काम कर रहा है यह इनपुट डेटा की सटीकता, हवाई अड्डे के वातावरण और मौजूद कम्प्यूटेशनल रिसोर्सिस जैसे कारकों से प्रभावित हो सकता है।” वह आगे कहते हैं, “ वर्चुअली हम जैसे चीजों को पाते हैं जरूरी नहीं कि रिअल टाइम में भी वो वैसी ही हो। सिमुलेशन हर गतिविधि को सटीक रूप से कैप्चर नहीं कर सकता है और इसे थोड़ा आसान बनाने की जरूरत है, ताकि यह रीयल टाइम की तरह चीजों के बारे में बता सके। 

हालांकि भारत के पास इस चौंध को मापने के लिए अपनी कोई मूल्यांकन नीति नहीं है। लेकिन नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को हवाई अड्डों पर सौर परियोजनाएं स्थापित करने से पहले हवाई अड्डा संचालकों को चौंध का आकलन करने की जरूरत होती है। एएआई के कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस के महाप्रबंधक जे.बी. सिंह ने एक ईमेल प्रतिक्रिया में मोंगाबे-इंडिया को बताया, “सुरक्षित तरीके से विमान संचालन के लिए ऑपरेशनल एरिया/हवाई अड्डे के नजदीकी क्षेत्रों के गंभीर मामलों पर डीजीसीए नजर रखता है। इसलिए हवाईअड्डा परिसर में सौर परियोजनाएं शुरू करने से पहले डीजीसीए की मंजूरी ली जाती है।”

सोलर पैनल से निकलने वाली चौंध का असर सिर्फ एयर साइड या ऑपरेशनल एरिया यानी रनवे, टैक्सीवे और एटीसी तक ही सीमित नहीं है। इसके प्रभावित क्षेत्र में पूरा हवाई क्षेत्र आता है। कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा के पास भारत की सबसे बड़ी हवाई अड्डा सौर सुविधा मौजूद है। लेकिन इसके परिचालन क्षेत्र में कोई पैनल नहीं है। कोचीन हवाई अड्डे से अक्सर उड़ान भरने वाले एक पायलट ने कहा, “शोल्डर्स (रनवे के आस-पास के क्षेत्र) पर कोई भी ऐसी चीज नहीं होनी चाहिए जिसकी वजह से संचालन में कोई बाधा आए। क्योंकि विमान रनवे से बाहर जा सकता है। इसलिए रनवे के साथ बनी नालियों को भी ढक दिया जाता है।” अपना नाम न बताने की शर्त पर पायलट ने कहा, “आदर्श रूप से, वहां कोई सौर पैनल नहीं लगाया जाना चाहिए।”

संयुक्त राज्य अमेरिका के मिनेसोटा में मिनियापोलिस-सेंट पॉल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक पार्किंग स्थल, जिसकी छत पर सौर पैनल लगे हैं। तस्वीर-टोनी वेबस्टर/फिल्कर 
संयुक्त राज्य अमेरिका के मिनेसोटा में मिनियापोलिस-सेंट पॉल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक पार्किंग स्थल, जिसकी छत पर सौर पैनल लगे हैं। तस्वीर-टोनी वेबस्टर/फिल्कर

लेह में तैनात एक अन्य एएआई अधिकारी ने भी अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सुरक्षा के लिहाज से, वे ऑपरेशनल एरिया की बजाय छत या पार्किंग क्षेत्रों पर सौर पैनल स्थापित करना पसंद करते हैं। “लेकिन जिन हवाई अड्डों पर जमीन की कमी है, वहां परिचालन क्षेत्र का इस्तेमाल सौर ऊर्जा के लिए किया जाता है।” उधर दिल्ली हवाईअड्डे का प्रबंधन करने वाली कंपनी दिल्ली एयरपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की ओर से एक ईमेल प्रतिक्रिया में कहा गया कि दिल्ली हवाई अड्डा अपने ऑपरेशनल एरिया में सौर ऊर्जा स्थापित करने वाला पहला हवाई अड्डा है और उसे आज तक किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है। कोलकाता हवाई अड्डे के परिचालन क्षेत्र के 67.5 एकड़ में भी 15 मेगावाट का पीकग्राउंड माउंटेड सौर संयंत्र लगा है।

सोलर फिजिबिलिटी एक्सपर्ट रतीश आर. नायर ने कहा कि डीजीसीए के निर्देशों के मुताबिक एटीसी टावरों और पायलटों पर इससे पड़ने वाली चौंध का आकलन करना होता है क्योंकि इन दोनों को ही नेकेड आई विजन की जरूरत होती है। नायर ने कहा, “डिजिटल एटीसी और ‘इंस्ट्रूमेंटल’ लैंडिंग सिस्टम के आने से, इन दोनों जगहो पर नेकेड आई विजन बेकार हो जाएगा। यहां कोई एटीसी टावर नहीं होगा और कहीं से भी निगरानी हो सकेगी। तब चौंध कोई मुद्दा नहीं रहेगा। 

जमीनी हकीकत

बड़े स्तर पर चौंध का आकलन करने के अलावा, इसे कम करने के सामान्य उपायों में पैनल ओरिएंटेशन और इनके झुकाव के कोण में बदलाव, ग्लास या टेक्सचर्ड वाले ग्लास पर एंटी-रिफ्लेक्टिव कोटिंग (एआरसी) की जा सकती हैं।

सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, साउथ कोरिया के एक अध्ययन में पाया गया कि अगर सौर पैनल रनवे और संभावित उड़ान पथों से उलटी दिशा में हैं, तो वे विमान मार्ग के बाहर सूर्य की किरणों को प्रतिबिंबित करेंगे। अध्ययन में कहा गया है, “एक हवाई अड्डा पूरी तरह से लगभग एक खुली जगह होता है, यहां कहीं छाया नहीं होती है। अगर चौंध से बचने के लिए सौर पैनलों को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके लगाया जाए तो वार्षिक ऊर्जा उत्पादन में सिर्फ 6 फीसदी का नुकसान झेलना पड़ेगा।”

ग्लास निर्माण कंपनी बोरोसिल रिन्यूएबल्स लिमिटेड के मार्केटिंग और स्ट्रेटजी प्रमुख स्वप्निल वालुंज के अनुसार, बाजार में लगभग 98 प्रतिशत सौर पैनलों में एंटी-रिफ्लेक्टिव कोटिंग होती है, लेकिन इसमें एंटी-ग्लेयर गुण नहीं होते है। 2019 में, बोरोसिल ने एक एंटी-ग्लेयर सोलर ग्लास ‘सेलीन’ लॉन्च किया था, जो हवाई अड्डों के पास पीवी इंस्टॉलेशन के लिए उपयुक्त है। वालुंज ने बताया,  “नियमित सौर ग्लास (जो आम तौर पर एंटी-रिफ्लेक्टिव कोटिंग के साथ होता है) की तुलना में, एंटी-ग्लेयर ग्लास में एक विशेष रूप से डिजाइन की गई बनावट होती है जो परावर्तित प्रकाश को फैलाती है। रेसिल्टेंट इमेज या प्रतिबिंब चिकनी सतह से चौंध के विपरीत तेज नहीं होती है। बल्कि यह अस्पष्ट होती है। सौर पैनल में टेक्सचर्ड जोड़ने से सूरज की रोशनी फैलती है और यह पैनल से निकलने वाली चकाचौंध से निपटने का एक किफायती तरीका है।” हालांकि, यह उत्पाद भारतीय बाजार में मजबूत बढ़त नहीं बना सका है।

कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लगे सौर पैनल। पैनल ओरिएंटेशन और उनके झुकाव की दिशा में बदलाव, एंटी-रिफ्लेक्टिव कोटिंग, पैनल और संचालन क्षेत्र के बीच निश्चित दूरी बनाए रखना चकाचौंध को कम करने के कुछ उपाय हैं। तस्वीर - श्रीजिथक 2000/विकिमीडिया कॉमन्स 
कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लगे सौर पैनल। पैनल ओरिएंटेशन और उनके झुकाव की दिशा में बदलाव, एंटी-रिफ्लेक्टिव कोटिंग, पैनल और संचालन क्षेत्र के बीच निश्चित दूरी बनाए रखना चकाचौंध को कम करने के कुछ उपाय हैं। तस्वीर – श्रीजिथक 2000/विकिमीडिया कॉमन्स

उन्होंने कहा, “कर्नाटक के हुबली हवाई अड्डे पर 8 मेगावाट के संयंत्र को छोड़कर, भारत में कहीं भी एंटी-ग्लेयर ग्लास का इस्तेमाल नहीं किया गया है। हम जानते थे कि ‘सेलीन’ का एक बड़ा बाजार होगा, इसलिए सुरक्षा के लिहाज से हम इस उत्पाद के साथ आगे बढ़े। लेकिन अब हम इसे निर्यात करते हैं।” 

उन्होंने आगे बताया, “एंटी-ग्लेयर ग्लास के इस्तेमाल को अनिवार्य न करना सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। फ्रांस के हवाई अड्डों के पास सौर मॉड्यूल के उपयोग के लिए चौंध को लेकर एक स्पष्ट रूप से परिभाषित मानक है।”

एएआई के एक सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि, भले ही चकाचौंध विश्लेषण करने की जिम्मेदारी हवाईअड्डा संचालक की है, लेकिन यह काम हवाई अड्डे पर सोलर स्थापित करने के लिए नामित सोलर इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन एजेंसी (ईपीसी) ठेकेदार को सौंप दिया गया है। 2016 में सौर ऊर्जा चालू होने पर चेन्नई हवाई अड्डे पर तैनात एएआई के एक अधिकारी ने कहा, “चौंध का विश्लेषण करना और फिर इसे एएआई के संचालन विभाग द्वारा अनुमोदित करना ईपीसी के कार्य क्षेत्र में आता है।”

दूसरी ओर, ईपीसी ठेकेदारों के लिए, प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए चौंध का विश्लेषण महज एक मंजूरी है। अहमदाबाद स्थित एक सौर डेवलपर ने कहा, “चौंध विश्लेषण एक सैद्धांतिक अभ्यास है और मेरी राय में ये वास्तव में महत्वपूर्ण नहीं है।” उधर वालिया इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि भयावह खतरों का अध्ययन शुरुआती चरण में किया जाना चाहिए, न कि आखिर में जब ईपीसी आती है।

मोंगाबे-इंडिया ने हवाई अड्डों पर सौर पैनल स्थापित करने में उनके अनुभव और उनके चौंध विश्लेषण को समझने के लिए विक्रम सोलर (एक सौर पैनल निर्माण कंपनी जिसने कोचीन, कोलकाता और चार अन्य भारतीय हवाई अड्डों पर संयंत्र स्थापित किए हैं) से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।

 

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बैनर तस्वीर: जापान के नारिता हवाई अड्डे पर लगे सौर पैनल। प्रतिकात्मक तस्वीर। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले हवाई अड्डों को एक चुनौती का सामना करना पड़ता है क्योंकि सौर पैनलों से निकलने वाली चौंध पायलटों के लिए फ्लैश ब्लाइंडनेस और कुछ देर तक दिखाई न देने जैसी समस्याओं का कारण बन सकती है। तस्वीर-ताकाशी एम/फ्लिकर

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