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स्वच्छ ऊर्जा के लिए महत्वपूर्ण खनिजों का पता लगाने की योजना पर आगे बढ़ा भारत

प्रतीकात्मक इमेज। बरोसा वैली, एसए, ऑस्ट्रेलिया में एक लिथियम खदान। तस्वीर- डियोन बीटसन/अनस्प्लैश

प्रतीकात्मक इमेज। बरोसा वैली, एसए, ऑस्ट्रेलिया में एक लिथियम खदान। तस्वीर- डियोन बीटसन/अनस्प्लैश

  • मौजूदा समय में, भारत बिजली, परिवहन और अन्य क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा की तरफ जाने के लिए जरूरी खनिजों मसलन लिथियम, निकल, कोबाल्ट और तांबे के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर है।
  • इस साल जून में महत्वपूर्ण खनिजों पर अपनी पहली नीति के बाद भारत सरकार ने हाल ही में सप्लाई बढ़ाने और आयात निर्भरता को कम करने के लिए निजी कंपनियों को इन खनिजों का पता लगाने और खनन करने की अनुमति देने के लिए प्रमुख कानूनों को मंजूरी दे दी है।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि उठाए जाने वाले काफी सारे नए कदम इस बात पर निर्भर करते हैं कि भारत महत्वपूर्ण खनिजों की सप्लाई चेन कितनी तेजी से बनाता है।

भारत सरकार ने 30 महत्वपूर्ण खनिजों की पहचान के दो महीने बाद, प्रमुख खनन कानून ‘खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023’ में संशोधन करने का प्रस्ताव दिया है। इसके बाद निजी कंपनियों को महत्वपूर्ण खनिजों का पता लगाने और खनन करने की अनुमति मिल जाएगी। जबकि पहले इसकी जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी संस्थाओं के कंधों पर थी। 

जून में केंद्र सरकार को लिथियम, कोबाल्ट, निकल, ग्रेफाइट, टिन और तांबे सहित 30 महत्वपूर्ण खनिजों के बारे में पता चला। इन खनिजों को सुरक्षित करना भारत के बिजली, परिवहन और अन्य क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा की और रुख करने के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इससे भारत को कार्बन उत्सर्जन को कम करने के अपने वैश्विक लक्ष्य तक पहुंचने में मदद मिलेगी।

सरकार की हालिया कार्रवाई से पता चलता है कि वह महत्वपूर्ण खनिजों की सुचारू आपूर्ति विकसित करने और वर्तमान आयात निर्भरता को कम करने की राह पर है।

मौजूदा समय में, भारत स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों में इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ जरूरी खनिजों जैसे लौह अयस्क, क्रोमियम, बॉक्साइट, एल्यूमीनियम, जस्ता, सीसा, मैंगनीज आदि का खनन करता है। हालांकि, यहां उन महत्वपूर्ण खनिज का अभाव है, जिन्हें अब इसकी नई नीति में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सौर पैनल, पवन टरबाइन, यूटिलिटी स्केल बैटरी स्टोरेज और ईवी बैटरी जैसी स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए इन खनिजों तक पहुंच जरूरी हो गई है।

भारत में एक ईवी चार्जिंग स्टेशन। तस्वीर- मैक्ससनलेविस/विकिमीडिया कॉमन्स 
भारत में एक ईवी चार्जिंग स्टेशन। तस्वीर– मैक्ससनलेविस/विकिमीडिया कॉमन्स

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट के अनुसार, जहां एक तरफ बैटरियों के निर्माण के लिए तांबा, निकल, लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्वों (Rare Earth Element-REE) की काफी ज्यादा जरूरत होती है, वहीं जस्ता, क्रोमियम और एल्यूमीनियम जैसे अन्य खनिजों का उपयोग बहुत कम होता है।

भारत ने 2030 तक रिन्यूएबल सेक्टर के जरिए ऊर्जा जरूरतों का आधा हिस्सा हासिल करने का लक्ष्य रखा है, इसलिए ग्रिड को स्थिर करने के लिए, रुक-रुक कर बैकअप के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली बैटरी स्टोरेज की जरूरत भी काफी बढ़ गई है।

वर्तमान में भारत लिथियम, निकल और कोबाल्ट के आयात पर पूरी तरह निर्भर है। तो वहीं तांबे के आयात पर निर्भरता 93 फीसदी तक है। निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ये चार खनिज सबसे महत्वपूर्ण हैं।

महत्वपूर्ण खनिज नीति के अनुसार, 30 खनिजों में से कम से कम एक तिहाई ऐसे हैं जिनका अभी भी सौ फीसदी आयात किया जा रहा हैं। इसमें टैंटलम, जर्मेनियम, स्ट्रोंटियम, रेनियम और टेल्यूरियम शामिल हैं जिनका इस्तेमाल सौर पीवी मॉड्यूल और अन्य स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों के निर्माण में किया जाता है।

महत्वपूर्ण खनिजों का आयात कम करना भारत के लिए एक चुनौती 

कोलकाता के एनर्जी ट्रांजिशन कंसल्टेंट मृण्मय चट्टराज ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि हाल की नीतिगत पहलों के माध्यम से भारत आयात को कम करने और अपनी आर्थिक, साथ ही जलवायु परिवर्तन की मजबूरियों के चलते महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति में आत्मनिर्भरता हासिल करने की कोशिश कर रहा है। वह आगे कहते हैं, ” हालांकि, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि वह इन खनिजों के लिए कितनी तेजी से सप्लाई चेन बनाता है। अब चाहे वह इसे अपने घरेलू उत्पादन में निवेश के जरिए करे या फिर रणनीतिक वैश्विक व्यापार साझेदारी के जरिए।”

चट्टराज ने कहा कि दुनिया भर में इन खनिजों की मांग बढ़ गई है क्योंकि देशों ने क्लीन टेक्नोलॉजी में निवेश करना शुरू कर दिया है। वह आगे कहते हैं, “लेकिन इसमें भू-राजनीतिक मुद्दे भी शामिल हैं और यह भारत के लिए इसे काफी चुनौतीपूर्ण बना देता है।”

पिछले महीने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में बिजनेस 20 (बी20) शिखर सम्मेलन में बोलते हुए चेतावनी दी थी कि अगर महत्वपूर्ण और दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के बड़े भंडार वाले देश यह नहीं मानते हैं कि इसे दूसरों के साथ साझा करना उनकी एक वैश्विक जिम्मेदारी है, तो दुनिया में उपनिवेशवाद का एक नया मॉडल उभर सकता है।

चट्टराज के मुताबिक, सरकार को न सिर्फ इन महत्वपूर्ण खनिजों के बारे में सोचना और क्लीन एनर्जी टेकनोलॉजी का उत्पादन बढ़ाना है, बल्कि इसे बड़े पैमाने पर जनता के लिए किफायती बनाने की रणनीति भी तैयार करनी होगी।

उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों की मैन्युफैक्चरिंग लागत का 45 फीसदी हिस्सा इसकी बैटरी का होता है। अगर ये किफायती कीमतों पर उपलब्ध होंगी तो लोगों द्वारा ईवी खरीदने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। यह तब किया जा सकता है जब भारत इन महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति के सामने आने वाली चुनौतियों और मूल्य अस्थिरता पर काबू पा ले।”

खनिज नीति के अनुसार, भारत सरकार देश में महत्वपूर्ण खनिजों की एक संपूर्ण मूल्य श्रृंखला बनाने के लिए आवश्यक नीतियों और प्रोत्साहन योजनाओं को तैयार करने में अन्य मंत्रालयों और विभागों को हर जरूरी सहायता मुहैया कराएगी और उनके साथ कोऑर्डिनेट करेगी। सरकार महत्वपूर्ण खनिजों पर विदेशी संपत्तियों के रणनीतिक अधिग्रहण के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ भी सहयोग कर सकती है।

तमिलनाडु में एक इलेक्ट्रिक स्कूटर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट। तस्वीर- गनोई/विकिमीडिया कॉमन्स 
तमिलनाडु में एक इलेक्ट्रिक स्कूटर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट। तस्वीर– गनोई/विकिमीडिया कॉमन्स

नीति में अगली पीढ़ी के महत्वपूर्ण खनिज भंडार की खोज के लिए अधिक कुशल तरीकों की पहचान करने और महत्वपूर्ण खनिजों की स्थानीय खोज को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों पर राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र के निर्माण का भी समर्थन किया है। आधिकारिक बयान के मुताबिक, भारत की मुख्य एक्सप्लोरेशन एजेंसी ‘भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण’ (जीएसआई) चालू वित्तीय वर्ष में 122 एक्सप्लोरेशन प्रोजेक्ट शुरू करेगी।

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस में ऊर्जा विश्लेषक स्वाति डिसूजा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “यह अच्छा है कि भारत घरेलू स्तर पर महत्वपूर्ण खनिजों की खोज में निवेश कर रहा है, लेकिन लिथियम जैसे खनिजों के लिए व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने में कई साल लगेंगे, जिन्हें अभी हाल ही में खोजा गया है।” इस साल की शुरुआत में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने जम्मू और कश्मीर में एक अनुमानित स्तर की खोज की थी, जहां लिथियम भंडार मिलने की बात कही गई है। 


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डिसूजा के अनुसार, भारत के लिए अपनी सप्लाइ चेन को सुरक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका महत्वपूर्ण खनिजों पर वैश्विक संघ का हिस्सा बनना है। भारत हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका की अध्यक्षता वाले जाने-माने मिनरल क्लब ‘दि मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप (एमएसपी)’ में शामिल हुआ है।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा, भारत ऐसे महत्वपूर्ण खनिजों के बड़े भंडार वाले देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को भी मजबूत करने की तरफ अपने कदम बढ़ा रहा है ताकि ऑफशोर सप्लाई आसान हो सके।

उनके अनुसार, ज्यादातर महत्वपूर्ण खनिज भंडार दक्षिण देशों में हैं। वह कहते हैं, “भारत, पिछले कई सालों से जी20 और सीओपी बैठकों जैसे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वैश्विक दक्षिण के मुद्दे का समर्थन कर रहा है। सप्लाई चेन का निर्माण शुरू करने के लिए अपनी आर्थिक, सांस्कृतिक शक्तियों और व्यापार संबंधों का फायदा उठाना भी हमारे (भारत के) लिए देखने लायक एक और चीज होगी।”

डिसूजा ने कहा कि महत्वपूर्ण खनिजों का प्रसंस्करण और शोधन भारत के लिए भी उतना ही जरूरी है। उन्होने कहा, “दक्षिण कोरिया एक बहुत ही दिलचस्प मॉडल है, जिसने प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग उद्योग में भारी निवेश किया और विनिर्माण लागत कम कर दी है।”

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीर: प्रतीकात्मक इमेज। बरोसा वैली, एसए, ऑस्ट्रेलिया में एक लिथियम खदान। तस्वीर– डियोन बीटसन/अनस्प्लैश

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