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हिल स्टेशनों पर कचरे का बेहतर प्रबंधन जरूरी, सिर्फ प्लास्टिक बैन से नहीं बनेगा काम

कोडईकनाल शहर के सीरादुमकनाल में मौजूद लैंडफिल साइट के पास बने RDF प्लांट में काम करते मजदूर। फोटो: आरती मेनन/मोंगाबे।

  • कोडईकनाल जैसे हिल स्टेशन पर्यटकों की भारी संख्या, कमजोर आधारभूत ढांचों, मुश्किल भूक्षेत्र, मौसम की अनियमित स्थितियों और तेजी से बढ़ते ठोस कचरे की समस्या से जूझ रहे हैं।
  • पर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह जरूरी है कि वे पर्यटकों को नियंत्रित करें, सूखे कचरे को उत्सर्जन की जगह पर ही अलग-अलग करें, उन्हें सही से ले जाएं और उनका निपटारा करीं ताकि वे पानी और हवा को प्रदूषित न करें।
  • प्लास्टिक बैन जिसे कि एक उपचार माना जाता है वह कारगर नहीं है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि ‘प्रदूषक ही भुगतान करे’ का सिद्धांत उपभोक्ताओं पर लागू करने और मैन्युफैक्चरर पर ‘उत्पादकों की जिम्मेदारी बढ़ाने’ की जरूरत है ताकि प्लास्टिक के कचरे को नियंत्रित किया जा सके।

तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के मशहूर हिल स्टेशन कोडईकनाल की लैंडफिल साइट पर लगभग चार महीने पहले आग लग गई थी। इसे बुझाने की खूब कोशिशें की गईं लेकिन महीनों बाद भी आधे जले कचरे से धुंआ उठता देखा जा सकता है जो कि लगातार बना हुआ है। बेंगलुरु की एक संस्था Jhatkaa.org के संस्थापक और लैंडफिल साइट सीरादुमकनाल इलाके के अदुक्कम गांव के निवासी अविजीत मिखाएल कहते हैं, ‘कचरे में मौजूद मीथेन गैस ने आग को बरकरार रखा है।’ यह लैंडफिल साइट एक रिजर्व फॉरेस्ट टाइगर शोला के पास है। इसे यह नाम छोटे कद के पौधे वाले ऊष्णकटिबंधीय पर्वतीय जंगलों से मिला है। दक्षिण भारत के पर्वतीय इलाकों में मौजूद घास के मैदानों वाले जंगलों को स्थानीय भाषा में शोला कहा जाता है।

सीरादुमकनाल में मौजूद इस लैंडफिल साइट को प्रकाशपुरम लैंडफिल साइट भी कहा जाता है। यह साइट अविजीत की तरह की कई निवासियों के लिए पर्यावरण संबंधी समस्या बनी हुई है क्योंकि ये इलाके पुराने जंगलों के पास बसे हुए हैं। यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CBCB) की ओर से साल 2016 में जारी सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के तहत तय गाइडलाइन्स का उल्लंघन करता है। इन नियमों के तहत कहा गया है कि ‘पर्वतीय इलाकों में लैंडफिल साइट बनाने से बचा जाए, वेस्ट ट्रांसफर स्टेशन बनाए जाएं, कचरा फेंकने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो और समतल इलाकों में लैंडफिल साइट बनाए जाएं।’

पश्चिमी घाट में धुंध जैसे बादलों से घिरे एक चर्चित हिल स्टेशन कोडईकनाल का पूमबराई गांव। फोटो: आरती मेनन/मोंगाबे।

21वीं सदी की शुरुआत में यानी साल 2000 के आसपास कोडईकनाल की लैंडफिल साइट एक रिहायशी इळाके शेबागनूर में हुआ करती थी। स्थानीय लोगों के विरोध के बाद इसे जंगल के पास राजस्व विभाग की जमीन पर बना दिया गया। इके खिलाफ कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर चुकी कलाकार मीनाश्री सुब्रमण्यम मोंगाबे इंडिया से कहती हैं कि ऐसा करने से पहले न तो कई स्टडी की गई और न हो ज्याद सोच-विचार किया गया। अब केरल में रह रहीं मीनाक्षी का कहना है, ‘शोला जंगल के पास कचरा फेंकना गलत है। वे इसके लिए बेहतर तरीकों का इस्तेमाल कर सकते थे, कचरों को सोर्स पर ही अलग कर सकते थे और कचरे की प्रोसेसिंग कर सकते थे।’

साल 2018 में इस लैंडफिल साइट पर भूस्खलन हुआ था। इससे, कचरे को रोकने वाले ढलाने पर बनी एक खड़ी दीवार धंस गई। इसका नतीजा यह हुआ कि कार्बनिक और अकार्बनिक कचरे का सड़ा हुआ मिश्रण जंगल में और पेरुमल मलाई शहर की ओर जाने वाली पानी की धारा में जा गिरा। उसके बाद से ही अविजीत मिखाएल सरकार से अपील कर रहे हैं कि लैंडफिल साइट की बायो कैंपिंग करके या बायोमाइनिंग करके इस समस्या का समाधान किया जाए। अपनी एक याचिका में उनका कहना है कि एसी प्रदूषित धारा में से उन्होंने गौर और जंगली भालुओं को पानी पीते देखा है।

वहीं, शहर की नगर पालिका गिरने के बाद बचे हुए कचरे को फिर से मशीनों की मदद से लैंडफिल साइट में डालकर रिटेनिंग दीवार को बनाने में लगी हुई हैं।

टाइगर शोला में पेरुमल मलाई टाउन के निचले इलाकों से आने वाले पानी की एक धारा के पास खड़े अविजीत मिखाएल। लैंडफिल साइट से आने वाले कचरे ने इस धारा को भी प्रदूषित कर दिया है। फोटो: आरती मेनन/मोंगाबे।

CPCB के लेगेसी वेस्ट मैनेजमेंट गाइडलाइन्स में भी बायोमाइनिंग और बायोकैपिंग को समाधान के तौर पर बताया गया है। कोडईकनाल म्युनिसिपैलिटी के कमिश्नर सत्यानंदन ने बताया, ‘कोडईकनाल का गीला मौसम यहां पर कचरे की प्रोसेसिंग को मुश्किल बनाता है। अब यहां पर एक बायोगैस प्लांट लगा है जो कि बायोडीग्रेडेबल कचरे का निपटारा कर रहा है।’

कोडईकनाल के कोडईकनाल इंटरनेशनल स्कूल के सेंटर फॉर एन्वारनमेंट एंड ह्यूमैनिटी में काम करने वाले ठोस कचरे के प्रंबधन के विशेषज्ञ राजामनिकम ठोस कचरे के प्रबंधन के बारे में लबे समय से अध्ययन कर रहे हैं। वह कहते हैं, ‘जहां पर लैंडफिल साइट है वहां की जमीन को नुकसान हो चुका है, ऐसे में अब उसे छोड़ देना चाहिए। बायोमाइनिंग से गैर नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत भी जल जाएंगे। इसके बजाय इस लैंडफिल साइट को सील करके लोगों की पहुंच से दूर कर देना चाहिए। हमें भविष्य के बारे में सोचना होगा और कचरे की मात्रा को कम करने के तरीके ढूंढने होंगे।’

प्रकाशपुरम लैंडफिल साइट पर जलते कचरे से उठते धुएं को कोडईकनाल के रिजर्व फॉरेस्ट टाइगर शोला से देखा जा सका है। साल 2018 में एक भूस्खलन में लैंडफिल साइट की रिटेनिंग दीवार टूट गई थी और जंगल में जा गिरी थी। फोटो: आरती मेनन/मोंगाबे

लैंडफिल साइट के पास 30 टन क्षमता वाला एक रिफ्यूज डेराइव्ड फ्यूल या RDF प्लांट लगाया गया है ताकि मशीन की मदद से कचरे को अलग किया जा सके और कार्बनिक कचरे से कंपोस्ट तैयार हो सके। यहीं पर दो टन क्षमता वाला एक बायो-मीथेनेशन प्लांट भी लगाया गया है ताकि कचरे बायोडिग्रेडेबल वेस्ट को निकाला जा सके और कचरे से बिजली पैदा की जा सके। हालांकि, यह प्रक्रिया तभी प्रभावी रूप से की जा सकती है जब कचरा पहले से ही अलग-अलग आए और बायोडीग्रेडेबल और नॉन-बायोडीग्रेडेबल कचरा अलग हो। फिलहाल, कोडईकनाल में लोगों के घरों में कचरे को अलग करने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।

पहाड़ी शहरों के लिहाज से अलग नहीं है कोडईकनाल की समस्या

कोडईकनाल के पहाड़ी शहर है जिसका क्षेत्रफल 21.45 वर्ग किलोमीटर का है जिसकी अनुमानित जनसंख्या 44,288 (म्यूनिसिपैलिटी 2022) है। इस शहर की म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट (MSQM) की समस्या देश के तमाम पर्वतीय शहरों की समस्या की तरह ही है। इन शहरों में भारी संख्या में आने वाले पर्यटक, कमजोर आधाभूत ढांचे, मुश्किल भूक्षेत्र और मौसम की अनियमित स्थितियां समस्या को और भी गंभीर बना देती हैं।

कोडईकनाल के रिजर्व फॉरेस्ट टाइगर शोला में मौजूद लैंडफिल साइट की गूगल अर्थ सैटलाइट फोटो।

इन शहरों की अर्थव्यवस्था के लिए पर्यटन एक अपरिहार्य हिस्सा है। साल 2022 की एक स्टडी कहती है कि भारत के पर्यटन उद्योग में सबसे बड़ा हिस्सा तमिलनाडु का है। साल 2018 में भारत ने 240 मिलियन डॉलर पर्यटन से कमाए जो कि जीडीपी का 9.2 प्रतिशत हिस्सा था। पहलगाम और गैंगटोक जैसे हिल स्टेशनों में बढ़े पर्यटन और कचरे प्रबंधनों के बारे में किए गए पिछले अध्ययनों में पता चला है कि इन शहरों के निकायों की क्षमता कम है, कचरे के निपटारे के लिए समतल जमीन की कमी है, उबड़-खाबड़ भूभागों की वजह से कचरा इकट्ठा करने वाले ढांचों की कमी और कचरा इकट्ठा करने की कम क्षमता है, कर्मचारियों की संख्या कम है और इन पहाड़ी इलाकों में कचरा प्रबंधन के लिए पर्यटकों और नागरिकों की अनिच्छा भी अहम है। पर्यटन बढ़ने की वजह से इन पहाड़ी इलाकों पर पर्यावरण से जुड़े कई प्रभाव पड़ रहे हैं जैसे कि प्राकृतिक स्रोतों की कमी हो रही है, ईकोसिस्टम तबाह हो रहा है और प्रदूषण बढ़ रहा है।

कोडईकनाल के नागरिकों और विद्यार्थियों का एक अनौपचारिक संगठन शोलाईकुरुवी (शोला में मिलने वाली एक चिड़िया के नाम पर संगठन का नाम रखा गया है) साल 2020 से ही पर्यटन स्थलों और जंगल के अंदरूनी हिस्सों की सफाई का काम कर रहा है।  इस संगठन के कुछ स्वयंसेवक हर दिन कूड़े वाले बैग लिए और दस्ताने पहने इकट्ठा होते हैं और जंगल के इलाकों में सफाई करते हैं। इस सगंठन के संस्थापक जोशुआ एडवर्ड मोंगाबे इंडिया को बताया कि उन्होंने जुलाई में पंबर शोला से 900 किलोग्राम कचरा इकट्ठा किया। वह आगे कहते हैं, ‘पंबर शोला और अन्य शोला में कई नदिया हैं जो कोडईकनाल के लिए पानी की स्रोत हैं और हर समय पर्यटक इसे गंदा कर देते हैं। इसमें फेंके जाने वाले कचरे में सबसे बड़ा हिस्सा इस्तेमाल किए गए डायपर का है। देखा जा सकता है कि ऐसे कुछ डायपर जंगल के पेड़ों पर भी लटके होते हैं।’

क्या प्लास्टिक बैन है पर्याप्त?

प्लास्टिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या से चिंतित कोडईकनाल म्यूनिसिपैलिटी ने 2000 की शुरुआत में ही नॉन-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक बैग्स पर बैन लगा दिया था। साल 2020 में प्लास्टिक की बोतलों पर भी बैन लगा दिया गया।

कोडईकनाल शहर की सीरादुमकनाल लैंडफिल साइट पर धुएं के बीच चलती एक जेसीबी मशीन। फोटो: आरती मेनन/मोंगाबे।

प्लास्टिक कई रूपों में आता है और सिर्फ प्लास्टिक के कैरी बैग और बोतलों पर बैन लगाने से समस्या का व्यापक तौर पर समाधान नहीं होता है जो कि प्रकाशम लैंडफिल साइट पर भी देखा जा सकता है। यहां पर मौजूद RDF प्लांट में जिस बायोडिग्रेडेबल कचरे से कंपोस्ट बनाया जाता है उसमें प्लास्टिक और टूटी बोतलों जैसी चीजों के सबूत भी मिले हैं। अविजीत मिखाएल की याचिका के उत्तर में यहां की म्युनिसिपैलिटी के कमिश्नर ने तमिलनाडु हाई कोर्ट में एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की है। इसमें कहा गया है कि इस कंपोस्ट को किसान खरीदते हैं और मशहूर रोज गार्डन शहर में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। अविजीत लैंडफिल साइट के पास बने गोदाम में पड़ी ढेर सारी कंपोस्ट का निरीक्षण करते हुए मिखाएल कहते हैं, ‘यह फिर से मिट्टी में चला जाएगा और उसे प्रदूषित करेगा।’ यहां पड़े कचरे में भी देखा जा सकता है कि प्लास्टिक के कचरे को अलग करके रखा गया है।

प्लास्टिक पर बैन के बावजूद शोलाईकुरुवी के लोग हर दिन जंगल से प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा करते हैं। दार्जीलिंग के निवासी और दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अर्बनप्लानिंग के प्रोफेसर श्रवण कुमार आचार्य कहते हैं, ‘प्लास्टिक बैन अच्छा प्रयास है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। ज्यादातर हिल स्टेशनों पर प्लास्टिक के बोतल प्रतिबंधित हैं लेकिन 5 लीटर के बोतल उपलब्ध हैं। बिस्किट, चिप्स और अन्य स्नैक्स की प्लास्टिक पैकिं मौजूद हैं। ऐसे में यह प्लास्टिक के कचरे के समाधान के लिए सतत समाधान नहीं है।’

म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर आए नेशनल एक्शन प्लान के मुताबिक, स्थानीय निकाय अपने खुद के नियम बनाएं, वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम बनाएं और लैंडफिल साइट के लिए तकनीकी सुविधाएं विकसित करें और इसके लिए सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 का पालन किया जाए। पर्वतीय इलाकों के लिए बनी इन गाइडलाइन के हिसाब से राजामनिकम ने कोडईकनाल के स्कूलों के लिए एक वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम विकसित किया है। वह कहते हैं, ‘हम इस बात को लेकर बहुत चिंतित होते हैं कि हमारे खाने में क्या होता है लेकिन हम इस बात की बिल्कुल चिंता नहीं करते कि हमारा कूड़ा किन चीजों से मिलकर बन रहा है। हर किसी का कचरा उसकी खुद दी जिम्मेदारी है लेकिन हम समझते हैं कि सरकार इसका ध्यान रखेगी। इस एटीट्यूड को बदलने की जरूरत है।’

प्रदूषण पैदा करने वाले ही उठाएं उसका खर्च

मोंगाबे इंडिया से बात करने वाले विशेषज्ञों ने कहा पहाड़ों में “प्रदूषक ही खर्च उठाए सिद्धांत” को लागू किया जाना चाहिए क्योंकि बहुत सारा कचरा प्लास्टिक पैकेजिंग से आता है, ऐसे में मैन्युफैक्चरर्स को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाए। राजामनिकम कहते हैं कि एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पॉन्सिबिलिटी को लागू किया जाए ताकि प्लास्टिक पैकेजिंग की सर्कुलर इकोनॉमी को मजबूत किया जा सके। साथ ही, उन निर्माताओं को भी जिम्मेदार ठहराया जाए जिनके उत्पाद से प्लास्टिक का कचरा पैदा होता है।

सत्यानंदन कहते हैं कि शहर में हर दिन 19 से 25 मीट्रिक टन कचरा इकट्ठा होता है। कोडईकनाल में छोटे-बड़े कई गैर पंजीकृत होटल हैं जहां लगभग 1.5 लाख पर्यटक सालाना आते हैं और कचरे को अलग करने और उसे इकट्ठा करने में बाधाएं आती हैं। राजामनिकम ने साल 2017 में एक विश्लेषण किया था जो दिखाता है कि नगरपालिका का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा शहर के लगभग 4000 से ज्यादा होटलों और होम स्टे से आता है जबकि इसमें से सिर्फ 170 ही ऐसे हैं जो पंजीकृत हैं। वह आगे कहते हैं, ‘इस डेटा के आधार पर नगर पालिका ने कचरे इकट्ठा करने के लिए 19 डस्ट बिन रखवाए हैं।’ वह आगे कहते हैं जब तक सही डेटा उपलब्ध न हों तक नगर पालिका के लिए सही रणनीति बनाना और उसके हिसाब से कचरे का प्रबंधन करना संभव नहीं है। 

कचरा फेंकने वालों को रोकने के लिए वन विभाग की ओर से लगाया गया पोस्टर। फोटो: आरती मेनन/मोंगाबे।

पोंडिचेरी यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर (इकोलॉजी एंड एन्वायरनमेंटल साइंस) पोय्यामोली का मानना है कि कचरे के प्रबंधन के लिए क्रैडल टू क्रैडल विधि का इस्तेमाल किया जाना जरूरी है  जिसमें कचरे को एक स्रोत के तौर पर देखा जाता है और इसे चक्रण विधि में इस्तेमाल किया जाता है। वह कहते हैं, ‘हमें कचरे से पैसा बनाने के तरीके ढूंढने की जरूरत है।’ ऐसे में सबसे बेहतर कचरा प्रबंधन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कुछ नागरिक TASMAC (तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड) की उस पहल की तारीफ करते हैं जो शराब की खाली बोतलों को लाने वाले को 10 रुपये प्रति बोतल के हिसाब से इन्सेंटिव देती है। इससे ग्राहक इस बात के लिए प्रोत्साहित हुए हैं कि वे बोतलों को न फेकें।

पंबरपुरम के चर्चित हॉलीडे होम्स नाम के होटल के सह-संस्थापक प्रियांक प्रदीप ने अपने रिजॉर्ट में राजामनिकम के ही वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम को लागू किया है। यह रिजॉर्ट कचरे को 13 अलग-अलग श्रेणियों में बांटता है। इसमें कागज की तीन और प्लास्टिक दो अलग श्रेणियां शामिल हैं। वह कहते हैं, ‘हमने यह समझा है कि अगर कचरे को अलग किया जाए तो 70 प्रतिशत कचरे को रिकवर किया जाए।’ यहां रीयूज हो सकने वाले और रीसाइकल किए जाने वाले कचरे को इकट्ठा करके बेचा जाता है और इसके लाभ को कर्मचारियों में बांट दिया जाता है।

म्यूनिसिपिल सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट में कचरे को स्रोत पर ही अलग-अलग कर देना एक अहम पहलू है। कोडईकनाल में यह नहीं हो रहा है क्योंकि यहां शहर में कई जगहों पर डंपिंग साइट पर मिश्रित कचरा ही भरा हुआ है।

जनवरी 2023 में कोडईकनाल के रिजर्व फॉरेस्ट में मौजूद लोवर शोला से इकट्ठा किए गए कचरे के साथ शोलाईकुरुवी संगठन के स्वयंसेवक। फोटो: जोशुआ एडवर्ड।

ठोस कचरे के प्रबंधन के बारे में बनाए गए नेशनल एक्शन प्लान में सुझाव दिया गया है कि छोटे नगर निकायों के कचरे को एकसाथ लाया जाए और उनका निपटारा एकसाथ किया जाए। ऐसी स्थिति में दो या तीन निकायों को साथ आना होगा और एक साइट चुनकर साझा तौर पर संसाधनों और कचरा प्रबंधन की फैसिलटी को तैयार करना होगा। आचार्य कहते हैं, ‘छोटे पहाड़ी शहर अक्सर अपने कचरों को बड़े शहरों को भेजकर रिसाइकल करवाते हैं जो कि महंगा पड़ते हैं। ऐसे में वेस्ट-टू-वेल्थ के लिए एक कॉमन फैसिलिटी बनाना सस्ता तरीका हो सकता है। इन प्रोजेक्ट के लिए भारी मात्रा में कचरे की भी जरूरत होती है जो कि एक निकाय में पैदा नहीं होता है।’

कचरे की एकमात्र वजह पर्यटन भर नहीं

हिल स्टेशनों पर होने वाला प्रदूषण सिर्फ प्लास्टिक प्रदूषण या पर्यटन से पैदा होने वाला कचरा भर नहीं है। शोलाकुरुवी के एडवर्ड कहते हैं कि वह अक्सर देखते हैं कि कंस्ट्रक्शन से निकलने वाले कचरे जैसे कि सीमेंट को भी जंगल और पानी की धाराओं में डाल दिया जाता है। कंस्ट्रक्शन वेस्ट, बायोमेडिकल और इलेक्ट्रॉनिक कचरा ऐसा है जो एक ऐसे ब्लाइंड स्पॉट की तरह है जिसका समाधान खोजने की जरूरत है।

हिल स्टेशनों के लिए पर्यटन एक ऐसी आर्थिक जरूरत है जिसको नियंत्रित करके बेहतर किया जा सकता है। कोडईकनाल के कुछ नागरिकों का मानना है कि कोविड के समय जारी किया जाने वाला ई-पास सिस्टम काफी कारगर है जिससे कि ट्रैफिक को कंट्रोल किया जा सके और इससे गैर-पंजीकृत होटलों की पहचान की जा सके। गर्मियों के महीनों और छुट्टियों के समय, हिल स्टेशनों पर भीड़ इतनी ज्यादा हो जाती है कि ट्रैफिक के चलते यहां की हवा भी प्रदूषित भी होती है। हिमालय के पर्वतीय शहरों का उदाहरण देखते हुए ऐसा ही कुछ कोडईकुनाल में भी करने की मांग की जा रही है। हिमालय के इन शहरों में पर्यटन और जलवायु के सामने आ रही चुनौतियों से निपटने और उनका बेहतर प्रबंधन करने के लिए क्षमता का आकलन किया जा रहा है।

 

बैनर इमेज: कोडईकनाल शहर के सीरादुमकनाल में मौजूद लैंडफिल साइट के पास बने RDF प्लांट में काम करते मजदूर फोटो: आरती मेनन/मोंगाबे।

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