Site icon Mongabay हिन्दी

जलवायु परिवर्तन का असर, पहाड़ों पर ज्यादा ऊंचाई की तरफ जा रहे हिम तेंदुए

जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ राष्ट्रीय उद्यान में हिम तेंदुए की कैमरा ट्रैप तस्वीर। एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और इंसानी खलल के कारण हिम तेंदुए पहाड़ों में और ज्यादा ऊंचाई की ओर जा रहे हैं। तस्वीर- जम्मू-कश्मीर वन्यजीव संरक्षण विभाग।

जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ राष्ट्रीय उद्यान में हिम तेंदुए की कैमरा ट्रैप तस्वीर। एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और इंसानी खलल के कारण हिम तेंदुए पहाड़ों में और ज्यादा ऊंचाई की ओर जा रहे हैं। तस्वीर- जम्मू-कश्मीर वन्यजीव संरक्षण विभाग।

  • ग्रेटर हिमालय के तीन मांसाहारी जीवों पर जलवायु परिवर्तन और इंसानी खलल के असर से जुड़े एक अध्ययन में पाया गया कि हिम तेंदुए पहाड़ों में ज़्यादा ऊंचाई की तरफ जा रहे हैं। साथ ही, वे इंसानी बस्तियों से भी दूर हो रहे हैं। वहीं, सामान्य तेंदुए और एशियाई काले भालू ज्यादा वनस्पति वाले निचले क्षेत्रों में आ गए हैं।
  • हिम तेंदुओं का तेजी से इंसानों के साथ संघर्ष बढ़ रहा है, क्योंकि हिमनदों के पिघलने से जल संसाधनों पर असर पड़ रहा है और इससे क्षेत्र में पशुपालन के तरीक़े बदल रहे हैं।
  • अध्ययन के नतीजों में हिमालयी क्षेत्र जैसी ही चुनौतियों का सामना करने वाले अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े मांसाहारी जीवों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए नीतिगत निहितार्थ हो सकते हैं।

ग्रेटर हिमालय में लंबे समय के प्रबंधन के लिए जलवायु अनुकूल संरक्षण तरीक़ों की अहमियत पर जोर देने वाले एक नए अध्ययन से पता चलता है कि इंसानी खलल और जलवायु परिवर्तन, हिम तेंदुओं को पहाड़ों में और ऊपर और इंसानों के संपर्क से दूर भेज रहे हैं।

इस अध्ययन में क्षेत्र में तीन मांसाहारी जीवों – हिम तेंदुए (पेंथेरा अनसिया), सामान्य तेंदुए (पैंथेरा पार्डस) और एशियाई काला भालू (उर्सस थिबेटानस) के वितरण में स्पेटियो-टेम्पोरल (जगह और समय के साथ) बदलाव पर प्रमुख आवास विशेषताओं के साथ-साथ इंसानी खलल और जलवायु कारकों के असर की जांच की गई। हिम तेंदुआ मानव बस्तियों से दूर, पहाडों पर और ऊपर की ओर चला गया है। वहीं, सामान्य तेंदुआ और एशियाई काला भालू ज्यादा वनस्पति वाले निचले क्षेत्रों में आ गए हैं। इस तरह, ये दोनों प्रजाति मानव बस्तियों के करीब आ गई हैं। यही नहीं, इंसानों के साथ इनका नकारात्मक मेलजोल हो रहा है।

गंगटोक के पास हिमालयन जूलॉजिकल पार्क, बुलबुली में हिम तेंदुए की तस्वीर। एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय खलल के कारण हिम तेंदुए पहाड़ों में और ऊपर की तरफ जा रहे हैं। तस्वीर - नंदा रमेश/विकिमीडिया कॉमन्स।
गंगटोक के पास हिमालयन जूलॉजिकल पार्क, बुलबुली में हिम तेंदुए की तस्वीर। एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय खलल के कारण हिम तेंदुए पहाड़ों में और ऊपर की तरफ जा रहे हैं। तस्वीर – नंदा रमेश/विकिमीडिया कॉमन्स।

अध्ययन में कहा गया है कि सामान्य तेंदुए और एशियाई काले भालू ज्यादा ऊंचाई वाली जगहों पर स्थानीय स्तर पर विलुप्त होने (विशिष्ट क्षेत्रों में प्रजातियों के वितरण और आबादी में गिरावट) के मामले में इन दोनों को बहुत अधिक नुकसान होता है। रिसर्च ने समय के साथ उनके स्थानिक वितरण में बदलाव को समझने के लिए दो अलग-अलग अवधियों – 1990 के दशक की शुरुआत और 2016-2017 के आसपास – के बीच सभी तीन मांसाहारियों के वितरण पैटर्न की तुलना की। अध्ययन में यह भी पाया गया कि स्थायी ग्लेशियरों वाले क्षेत्रों में हिम तेंदुओं को “सीमा संकुचन” या पहले की सीमा से गायब होने का सामना करने की संभावना कम थी, जो उनके संरक्षण में हिमनद आवरण को बनाए रखने की अहमियत पर प्रकाश डालता है।

तीनों मांसाहारी जीवों के लिए अहम परिदृश्य

अध्ययन क्षेत्र का परिदृश्य ग्रेटर हिमालय में ज्यादा ऊंचाई वाला किश्तवाड़ राष्ट्रीय उद्यान था। यह हिम तेंदुए जैसी प्रतिष्ठित प्रजातियों और हिमालय क्षेत्र में जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक अहम क्षेत्र है। अध्ययन के प्रमुख लेखक मुजफ्फर ए. किचलू ने बताया कि हालांकि, यह क्षेत्र काफी हद तक सुदूर और विरल आबादी वाला है, लेकिन यहां इंसानी बस्तियां भी हैं, जिनमें गांव और ट्रांसह्यूमन बस्तियां भी शामिल हैं। इन्हें स्थानीय तौर पर ढोक के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र में भारी बर्फबारी और हल्की गर्मियों के साथ गलाने वाली ठंड पड़ती है। वहीं सर्दियों की जलवायु विविधताएं पारिस्थितिकी तंत्र को आकार देने और वन्यजीवों के वितरण के लिए महत्वपूर्ण हैं।

अध्ययन में समय-समय पर प्रजातियों के वितरण का आकलन किया गया। यह मुख्य रूप से लोगों द्वारा वन्यजीवों को देखे जाने पर आधारित था। स्नो लेपर्ड ट्रस्ट में विज्ञान और संरक्षण के निदेशक कौस्तुभ शर्मा ने कहा कि अध्ययन पद्धति के रूप में स्थानीय लोगों की देखी गई कहानियों और उपाख्यानों का इस्तेमाल करने के पीछे प्राथमिक कारण समय से पीछे जाकर यानी अतीत से जानकारी एकत्र करना था। यह किसी अन्य तरीके से संभव नहीं है। वो अध्ययन करने वाली हस्तियों में भी शामिल थे।

अध्ययन क्षेत्र का परिदृश्य ग्रेटर हिमालय में ज्यादा ऊंचाई वाला किश्तवाड़ राष्ट्रीय उद्यान था। यह हिम तेंदुए जैसी प्रतिष्ठित प्रजातियों और हिमालय क्षेत्र में जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक अहम क्षेत्र है। तस्वीर-नीरज शर्मा।
अध्ययन क्षेत्र का परिदृश्य ग्रेटर हिमालय में ज्यादा ऊंचाई वाला किश्तवाड़ राष्ट्रीय उद्यान था। यह हिम तेंदुए जैसी प्रतिष्ठित प्रजातियों और हिमालय क्षेत्र में जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक अहम क्षेत्र है। तस्वीर-नीरज शर्मा।

उत्तरी गोलार्ध की तुलना में मध्य और दक्षिण एशियाई पर्वत ज्यादा तेजी से गर्म होते पाए गए हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया में स्नो लेपर्ड और रेंज-लैंड्स कंजर्वेशन प्रोग्राम के प्रमुख ( विज्ञान और नीति) ऋषि के. शर्मा ने कहा, जलवायु परिवर्तन पूरे हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहा है। इस वजह से हिम तेंदुए की प्रजातियों पर कई तरीके से असर हो रहा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे बदलावों के हिसाब से खुद को ढालने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, शर्मा रिसर्च का हिस्सा नहीं थे।

वहीं, हिम तेंदुओं पर जलवायु परिवर्तन के असर पर एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि बढ़ते तापमान, सिकुड़ते ग्लेशियर, रिसाव और झरनों जैसी उथली सतही जल सुविधाओं का नुकसान, अल्पाइन घास के मैदानों का शुष्क अल्पाइन स्टेपी घास के मैदानों में परिवर्तन, ऊपर की ओर खिसकना, ट्रीलाइन (ऊंचे पहाड़ों पर ऐसी जगह जहां पेड़ नहीं उगते हैं) और गंभीर मौसम घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति कुछ ऐसे बदलाव हैं जो हिम तेंदुए की आबादी पर प्रतिकूल असर डाल रहे हैं।

शर्मा ने कहा कि हिम तेंदुओं की एक शारीरिक सीमा होती है जो उन्हें बहुत ज्यादा ऊंचाई पर जाने से रोकती है। साथ ही, जलावुय परिवर्तन के चलते बदलते ट्रीलाइन जानवरों को तेंदुए जैसे अन्य बड़े मांसाहारी जानवरों के साथ भोजन, स्थान और अन्य संसाधनों को साझा करने के लिए मजबूर कर रही हैं और इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।

जलवायु परिवर्तन से इंसानों के बढ़ता संघर्ष हुआ गंभीर

हिम तेंदुए जैसी बड़ी मांसाहारी प्रजातियां पारिस्थितिकी तंत्र की गतिशीलता में अहम भूमिका निभाती हैं। उनके संरक्षण के लिए दूसरी चुनौती इंसान और मांसाहारी जीवों के बीच जटिल संबंध है। हिमालयी क्षेत्र में मवेशियों को पालने के तरीकों में बदलाव के कारण हिम तेंदुए तेजी से इंसानों के साथ संघर्ष में उलझ रहे हैं। हिमनदों के पिघलने से जल संसाधनों की उपलब्धता पर असर पड़ने के कारण पशुपालन के तरीके बदल रहे हैं।

किश्तवाड़ राष्ट्रीय उद्यान में एशियाई काला भालू। अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सामान्य तेंदुआ और एशियाई काले भालू जैसे मांसाहारी जीव ज्यादा वनस्पति वाले निचले क्षेत्रों में जा रहे हैं, जिससे वे इंसानी बस्तियों के करीब आ रहे हैं। तस्वीर- राजा आमिर।
किश्तवाड़ राष्ट्रीय उद्यान में एशियाई काला भालू। अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सामान्य तेंदुआ और एशियाई काले भालू जैसे मांसाहारी जीव ज्यादा वनस्पति वाले निचले क्षेत्रों में जा रहे हैं, जिससे वे इंसानी बस्तियों के करीब आ रहे हैं। तस्वीर- राजा आमिर।

कौस्तुभ शर्मा ने कहा कि हिम तेंदुए इंसानों की ज्यादा मौजूदगी वाली जगहों से बचते हैं। लेकिन उन्हें अपनी रेंज के कई हिस्सों में लोगों के साथ इंटरैक्ट करते हुए और जानवरों का शिकार करते हुए पाया गया है। यह उनके अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है। किचलू के अनुसार, सामान्य तेंदुए को भी पशुधन की ज्यादा हानि के लिए जिम्मेदार पाया गया है, जिसके चलते लोगों में इस शिकारी जीव के प्रति ज्यादा नकारात्मक रवैया पैदा होता है। चूंकि, समुदाय संरक्षण में प्रमुख हितधारक हैं, इसलिए सह-अस्तित्व के लिए इन जानवरों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अहम है। जलवायु परिवर्तन मौजूदा चुनौतियों के साथ संपर्क करके और उनके असर को बढ़ाकर इन खतरों को बढ़ा रहा है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन के नतीजों में हिमालय क्षेत्र में बड़े मांसाहारी जीवों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए कई नीतिगत निहितार्थ हैं। यह उन क्षेत्रों के लिए भी शायद उपयोगी है जहां इसी तरह की चुनौतियां हैं। किचलू ने कहा, “मध्य और दक्षिण एशियाई पहाड़ों के तेजी से गर्म होने को देखते हुए, जलवायु-अनुकूल संरक्षण रणनीतियां बनाना जरूरी है। इसमें संरक्षित क्षेत्र की सीमाओं को समायोजित करना, जलवायु के हिसाब से गलियारे बनाना और हिमनद संसाधनों की रक्षा के उपायों को लागू करना शामिल हो सकता है।”

वहीं आवास में परिवर्तन, मानव-वन्यजीव संपर्क, प्रजातियों के वितरण और संसाधनों के आवंटन की लगातार निगरानी के लिए ज्यादा रिसर्च की जरूरत है। उन्होंने इंसानों और मांसाहारी जीवों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए नीतियों का सुझाव दिया। इनमें शिकार के कारण पशुधन के नुकसान के लिए मुआवजा कार्यक्रम, शिक्षा और जागरूकता अभियान और समुदाय-आधारित संरक्षण पहल का विकास जो मांसाहारी जीवों के संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करते हैं। किचलू ने कहा, “नीतियों को मांसाहारी आवासों में पशुधन के स्थायी प्रबंधन पर भी ध्यान देना चाहिए। पशुपालन के लिए बेहतरीन तरीकों को प्रोत्साहित करना, जैसे कि पशुधन की सुरक्षा के बेहतर तरीके और पशुधन बीमा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, मांसाहारी जीवों के साथ संघर्ष को कम करने में मदद कर सकता है।

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

बैनर तस्वीर: जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ राष्ट्रीय उद्यान में हिम तेंदुए की कैमरा ट्रैप तस्वीर। एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और इंसानी खलल के कारण हिम तेंदुए पहाड़ों में और ज्यादा ऊंचाई की ओर जा रहे हैं। तस्वीर- जम्मू-कश्मीर वन्यजीव संरक्षण विभाग।

Exit mobile version