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अपने आस-पास के विकास की जिम्मेदारी लेते शहरी नागरिक

पुट्टेनहल्ली पुट्टाकेरे झील की सतह से जलकुंभी के नरकट हटाते कुछ स्वयंसेवक। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे 

पुट्टेनहल्ली पुट्टाकेरे झील की सतह से जलकुंभी के नरकट हटाते कुछ स्वयंसेवक। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे 

  • झीलों और उद्यानों (अर्बन कॉमन्स) के रखरखाव के लिए शहरी नागरिकों की पहलों को बनाए रखना पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ नागरिकों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।
  • बेंगलुरु के निवासी झीलों के आसपास जैव विविधता के संरक्षण के लिए नागरिकों द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।
  • हालांकि कुछ नागरिक पहलों की आलोचना की जा रही है क्योंकि वे झील के पानी की गुणवत्ता को नजरअंदाज करते हुए सिर्फ झीलों के आसपास शानदार मनोरंजक स्थल बनाने पर ध्यान दे रहे हैं।

8 सितंबर, 2023 को बेंगलुरु की जक्कुर झील के सामुदायिक उद्यान में एक पिकअप ट्रक में लगभग 800 पौधे पहुंचे। यहां वृक्षारोपण अभियान चलाया जा रहा था। इस सामुदायिक उद्यान का विचार 2017 में ‘समुदाय के लिए, समुदाय द्वारा’ शहरी क्षेत्रों में फूलों के अलावा फल और सब्जियों के पेड़ -पौधे उगाने की अवधारणा पर रखा गया था। एक पर्माकल्चर डिज़ाइन कंपनी ने झील के चारों ओर दो किलोमीटर के इलाके में प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर एक फूड गार्डन बनाया। गार्डन को बनाने के लिए सब कुछ प्रकृति से लिया गया था जैसे टूटी हुई छत की टाइलें, बेकार पड़ी धातुएं, पत्थर और सूखे पत्ते। जक्कुर झील के रखरखाव के लिए एक नागरिक पहल ‘जल पोषण ट्रस्ट’ की शुरूआत की गई। इस ट्रस्ट से जुड़ी अन्नपूर्णा कामथ ने बताया कि शुरुआत में यह काफी अच्छा काम कर रहा था। उन्होंने कहा, “कोविड-19 लॉकडाउन की वजह से श्रमिकों और स्वयंसेवकों अपने घर वापस जाने के लिए मजबूर हो गए। उसके बाद से यह पहल उतनी अच्छी तरह से काम नहीं कर पा रही है।” 

जक्कुर झील के पास बने पैदल ट्रैक पर चहलकदमी करते हुए एक शख्स। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे 
जक्कुर झील के पास बने पैदल ट्रैक पर चहलकदमी करते हुए एक शख्स। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे

50 हेक्टेयर में फैली इस झील के किनारों और उसके पांच किलोमीटर के दायरे में बनें पैदल मार्ग को सामुदायिक और संरक्षण क्षेत्रों में बांटा गया है। इसमें झील के चारों ओर जैव विविधता बनाने और संरक्षित करने पर जोर दिया गया है। शुरुआती एक किलोमीटर के रास्ते में सजावटी पौधे हैं और उसके बाद दो किलोमीटर के रास्ते में सब्जियों और औषधीय पौधों का एक बगीचा है, जिसके रखरखाव की जिम्मेदारी आम नागरिकों की है। अगले दो किलोमीटर की जमीन पर बड़े पैमाने पर स्थानीय प्रजाति के पेड़ों का संरक्षण किया गया है। इसमें से ज्यादातर पेड़ फल देने वाले हैं। कामथ ने बताया, “पौधे और पेड़ हम सभी (नागरिक समूह) ने मिलकर चुने हैं। अगर हम इसे बागवानी विभाग पर छोड़ देंगे, तो यहां सिर्फ सजावटी पौधे नजर आएंगे जिनका कोई जैव विविधता मूल्य नहीं होगा।”

शुरुआती कुछ वर्षों तक इन पौधों की देखभाल करने के बाद, संरक्षण क्षेत्र में लगे पेड़ों को प्राकृतिक रूप से पनपने या बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। यह सामुदायिक क्षेत्र परागणकों और पक्षियों के लिए उनके भोजन के स्थान की तरह काम करता है। संरक्षण क्षेत्र उनके घोंसले बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। कामथ ने कहा, “यहां उनके पास शोर-शराबे से दूर शांत जगह है। वे यहां घोंसला बना सकते हैं और आराम कर सकते हैं,” बच्चों का पार्क लगभग पूरी तरह से जल निकासी पाइप जैसे बेकार पड़ी चीजों से बनाया गया है और इसके परिसर में नवकंकारी जैसे पारंपरिक गेम इंस्टॉल किए गए हैं।

जक्कुर झील के पास बने एक मनोरंजक स्थान पर पुनर्निर्मित सामग्रियों से तैयार किया गया एक पारंपरिक खेल। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे 
जक्कुर झील के पास बने एक मनोरंजक स्थान पर पुनर्निर्मित सामग्रियों से तैयार किया गया एक पारंपरिक खेल। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे

आम लोगों की भागीदारी और देखभाल

प्राचीन समय में बड़े पैमाने पर कृषि पर निर्भर रहे बेंगलुरु के लिए झीलें या टैंक ही एकमात्र जल स्रोत हुआ करते थे, क्योंकि यहां पर कोई नदी नहीं थी। लेकिन आधुनिक समय में पाइप से पानी की बेहतर पहुंच के बाद, झीलों ने अपनी प्रासंगिकता खो दी है। सरकार के समर्थन से चलाई जा रही मजबूत नागरिक पहलों द्वारा बचाए और बहाल किए जाने से पहले उनमें से अधिकांश झीले और तलाब कचरे और सीवेज के ढेर में तब्दील हो रहे थे। लेकिन अब हालात बदले हुए हैं। कई झीलों पर नागरिक समूह निगरानी रखते हैं।

झीलें शहरी पारिस्थितिक कॉमन्स हैं जो लोगों को पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की एक श्रृंखला प्रदान करती हैं। सरकारी निकाय ‘बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका’ (बीबीएमपी) के संरक्षण में 167 झीलें हैं। अध्ययनों से पता चला है कि शहरी कामंस पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ आम नागरिकों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी बनाए रखती है। और सबसे बड़ी बात, लोगों का प्रकृति से जुड़ाव भी बना रहता है। बेंगलुरु में जल निकायों के बुनियादी ढांचे के बारे में लोगों की धारणा की पड़ताल करने वाले 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि झीलों का अपने आकार के बावजूद उनका उच्च सामाजिक महत्व हैं और स्थानीय लोगों ने उनकी वजह से पारिस्थितिकी तंत्र से मिलने वाले फायदों की सराहना की है। जागरूकता के साथ ये नागरिक समूह नई पहल और प्रकृति-आधारित समाधानों का स्वागत कर रहे हैं जो न सिर्फ झीलों को समृद्ध रखेंगे बल्कि उनका जैव विविधता के संरक्षण के साधन के रूप में भी काम करेंगे।

बेंगलुरु के उत्तर में येलाहंका में पुट्टेनहल्ली झील लगभग 13 हेक्टेयर में फैली है जिसे 2015 में पक्षी संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित किया गया था। एक नागरिक समूह और वन विभाग इसकी देखरेख करते हैं। समूह की वेबसाइट के अनुसार, इस झील में पक्षियों की 150 प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां परागणकों को आकर्षित करने के लिए 4000 से अधिक फूलों वाले पौधों का एक बटरफ्लाई पार्क भी है।

जे.पी.नगर की पुट्टेनहल्ली पुट्टाकेरे झील नागरिक पहल का एक और शानदार उदाहरण है, जिसने एक ऐसी झील को जीवन की नई दिशा दिखाई है, जो बहुत पहले ही खत्म हो गई होती। पड़ोस की इस छोटी सी झील ने 2006 में उषा राजगोपालन का ध्यान खींचा था। समान विचारधारा वाले लोगों की एक टीम के साथ उन्होंने ‘सेव द लेक’ नामक एक समूह बनाया। इस समूह ने 2008 में बीबीएमपी की झीलों की सूची में झील को शामिल करने की दिशा में काम किया। झील की बेहतरी के लिए बने ‘पुट्टेनहल्ली नेबरहुड लेक इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट’ (पीएनआईएलटी) ने झील के पास लगभग 500 पेड़ लगाए हैं, जो 120 से अधिक पक्षी प्रजातियों का घर है। झील में स्पॉट-बिल्ड डक, डार्टर और ब्रह्मनी काइट जैसे कई तरह के पक्षी आते रहते हैं। झील के बीच में लगा एक जंगली खजूर का पेड़ काफी मशहूर है। यह पीएनआईएलटी का लोगो बन चुका है।

बेंगलुरु में नागरिक समूह शहर की झीलों की देखभाल कर रहे हैं। तस्वीर-अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे
बेंगलुरु में नागरिक समूह शहर की झीलों की देखभाल कर रहे हैं। तस्वीर-अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे

राजगोपालन ने कहा कि जब से उन्होंने पहल शुरू की है तब से झील और जैव विविधता संरक्षण के बारे में उनकी सोच में काफी बदलाव आया है। उन्होंने बताया, “पहले हमने वो पौधे लगाए जो बागवानी विभाग ने हमें दिए थे। लेकिन बाद में हम इस बात को लेकर सतर्क हो गए कि हमें क्या लगाना है। हमने इस बात का ध्यान रखा कि वे शहरी वातावरण के लिए अच्छे स्थानीय पेड़ हों।” 

झील के पानी की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत 

शहरीकरण दुनिया में जैव विविधता के नुकसान के प्रमुख कारणों में से एक है। जैव विविधता के अनुकूल शहर सतत शहरी विकास और मानव कल्याण से जुड़े हुए हैं। वेंकटेशपुरा झील के संरक्षण प्रयासों का नेतृत्व कर रहे अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (एटीआरईई) की शोधकर्ता और जीवविज्ञानी सौभद्रा देवी ने कहा, “शहरों में जैव विविधता दुर्लभ प्रजातियों के बारे में कम और सामान्य मानी जाने वाली चीजों के संरक्षण के बारे में अधिक है।” एटीआरईई उत्तरी बेंगलुरु में पास की एक छोटी झील वेंकटेशपुरा झील के संरक्षण प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है। 

पुट्टेनहल्ली पुट्टाकेरे झील के पास आवासीय परिसर। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे
पुट्टेनहल्ली पुट्टाकेरे झील के पास आवासीय परिसर। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे

देवी ने बटरफ्लाई ट्रेल के साथ झील की परिकल्पना की थी, जो इसे शहरी जैव विविधता हॉटस्पॉट बनाने की राह पर लेकर जा रही है। पोलिनेटर बिहेवियर में विशेषज्ञता रखने वाली देवी ने कहा कि क्योंकि तितलियों को विभिन्न जीवन चरणों में अलग-अलग पौधों की जरूरत होती है, इसलिए पौधों की विविधता पर ध्यान दिया गया है। उन्होंने बताया, “लार्वा अवस्था में तितलियां जिन पौधों की तलाश करती हैं वे वुडएप्पल जैसे काफी सुस्त होते हैं, जबकि वयस्क अवस्था में उन्हें रंगीन, नेक्टर फूलों वाले पौधों की जरूरत होती है। पापिलियो तितलियों को इक्सोरा जैसे पौधों की जरूरत होती है जहां वे उतर सकें और अपने पंख फड़फड़ा सकें।” तितलियों को कम चिपचिपे नेक्टर की जरूर होती है जबकि मधुमक्खियों को ज्यादा सुक्रोज वाले चिपचिपे नेक्टर चाहिए होते हैं। उन्होंने कहा कि चमगादड़ को बॉम्बैक्स सेइबा की तरह कम चिपचिपाहट वाले नेक्टर पसंद होते है। बटरफ्लाई ट्रेल बनाते समय इन सभी जरूरतों को ध्यान में रखा गया है। अकेले रहना पसंद करने वाली मधुमक्खियों के लिए बांस और लकड़ी की डंडियों से एक बी होटल बनाने की योजना बनाई जा रही है। देवी ने कहा, “हम इस जगह को शैक्षणिक बनाने की योजना बना रहे हैं, जहां लोग आराम कर सकें, अपने आस-पास की प्रकृति के बारे में नई चीजें देख सकें और सीख सकें।”

जक्कुर झील के रखरखाव के लिए एक नागरिक पहल ‘जल पोषण ट्रस्ट’ की अन्नपूर्णा कामथ का कहना है कि झील का रखरखाव बीबीएमपी के साथ एक सहयोगात्मक प्रयास है। तस्वीर-अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे
जक्कुर झील के रखरखाव के लिए एक नागरिक पहल ‘जल पोषण ट्रस्ट’ की अन्नपूर्णा कामथ का कहना है कि झील का रखरखाव बीबीएमपी के साथ एक सहयोगात्मक प्रयास है। तस्वीर-अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे

हालांकि, इनमें से कुछ नागरिक पहल झील की पानी की गुणवत्ता की उपेक्षा कर रहे हैं। इसलिए उनकी आलोचना की जा रही है। कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट (जो पहले मीडिया को उपलब्ध कराई गई थी लेकिन अब सार्वजनिक डोमेन में नहीं है) 90 झीलों की स्थिति पर एक गंभीर तस्वीर पेश करती है। इसमें जक्कुर झील भी शामिल हैं। इन झीलों को प्रदूषित माना गया है और मछली पालन के लिए भी ये अनुपयुक्त हैं। इनमें से कुछ झीलों में मछुआरे अनुबंध के आधार पर मछली पकड़ने का काम करते है, जो शहर के कई मछुआरे समुदायों के लिए आजीविका का विकल्प है। रिपोर्ट में घुलित ऑक्सीजन, नाइट्रेट और फॉस्फेट के स्तर के साथ-साथ फेकल कोलीफॉर्म और कुल कोलीफॉर्म सामग्री सहित 25 अलग-अलग मापदंडों को देखा गया था। झीलों के लिए एक नागरिक पहल ‘फ्रेंड्स ऑफ लेक्स’ के सह-संस्थापक राम प्रसाद ने कहा कि रिपोर्ट में सैंपलिंग का समय, स्थान और तापमान जैसी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी का अभाव है। वह कहते हैं, “केएसपीसीबी को सैंपल कलेक्शन के लिए सीपीसीबी दिशानिर्देशों का पालन करना होगा। हम मांग करते हैं कि यह एक लीगल सैंपल कलेक्शन प्रक्रिया हो।”

कामथ ने कहा कि जक्कुर क्षेत्र अभी भी पूरी तरह से शहरी नहीं है और एक पेरी-अर्बन में बदलने के मोड में है। इससे पहले कि इसे पूरी तरह से शहरी झील कहा जा सके, इसमें कई कमियां दूर की जानी हैं। उन्होंने कहा, “कई जगहों पर अनुपचारित सीवेज अभी भी झील में छोड़ा जाता है। कुछ स्थानों पर बरसाती पानी की नालियां टूटी हुई हैं। ये सभी झील में कूड़ा करकट लाते हैं।” उनके मुताबिक उन्होंने झील में प्रदूषण के दो चरम समय देखे हैं। एक तब, जब तापमान बढ़ता है और दूसरा, जब भारी बारिश होती है।

जक्कुर झील के बगल में बहती धारा में अपने ऑटो रिक्शा और स्कूटरों को धोते कुछ लोग। तस्वीर-अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे
जक्कुर झील के बगल में बहती धारा में अपने ऑटो रिक्शा और स्कूटरों को धोते कुछ लोग। तस्वीर-अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे

राम प्रसाद ने कहा, नागरिक समूहों और बीबीएमपी ने झीलों के आसपास मनोरंजक स्थान बनाने के लिए काफी कुछ किया है, लेकिन झील के लिए कुछ भी नहीं किया है। उन्होंने कहा कि यह देखना निराशाजनक है कि झीलों के पानी की गुणवत्ता की लगातार अनदेखी की जा रही है। “शहरी उम्मीदें बारहमासी झीलों की है जो स्विमिंग पूल की तरह बिल्कुल साफ दिखती हैं। झील के पुनरुद्धार का मतलब पानी की गुणवत्ता में सुधार नहीं है।” उन्होंने आरोप लगाया कि झील के रखरखाव के लिए नागरिक समूहों ने बीबीएमपी के साथ जिस एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए हैं, उसमें झील के पानी की गुणवत्ता या इसे सुधारने के तरीकों का भी उल्लेख नहीं है। हालांकि, झील के रखरखाव में शामिल नागरिकों ने कहा कि यह बीबीएमपी के साथ एक सहयोगात्मक प्रयास है। इसमें नागरिकों पर पूरी जिम्मेदारी नहीं थोपी जा सकती है। कामथ ने कहा, “हम झील की निगरानी करते हैं और बीबीएमपी को रिपोर्ट करते हैं।”

झीलें बारहमासी प्रवाह के लिए और गर्मियों के दौरान सूखने से बचने के लिए काफी हद तक उपचारित अपशिष्ट जल पर निर्भर करती हैं। बेंगलुरु की झीलें अब ज्यादातर मनोरंजन के लिए और कुछ मामलों में भूजल पुनर्भरण के लिए हैं। देवी ने कहा कि हमें समय के साथ अनुकूलन करने की जरूरत है। भूजल को रिचार्ज करने के लिए वेंकटेशपुरा झील जैसी छोटी झीलों की जरूरत है क्योंकि शहर में उन इलाकों के लिए कोई अन्य जल स्रोत नहीं हैं जो कावेरी नदी के पानी तक नहीं पहुंच सकते हैं। वह पहले से ही झील के पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के तरीकों पर काम कर रही है, इस तथ्य के बावजूद कि झील को उपचारित अपशिष्ट जल पर निर्भर रहना पड़ सकता है। देवी ने कहा, “हम पानी को साफ रखने के लिए पर्यावरण के अनुकूल चीजों से बने आर्द्रभूमि और तैरते द्वीपों की योजना बना रहे हैं। हम हर समय पानी और तट के स्वास्थ्य की भी निगरानी करेंगे।”

 

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बैनर तस्वीर: पुट्टेनहल्ली पुट्टाकेरे झील की सतह से जलकुंभी के नरकट हटाते कुछ स्वयंसेवक। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे 

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