Site icon Mongabay हिन्दी

संरक्षण के बावजूद कश्मीर में नहीं बढ़ रही हंगुल की आबादी, क्या विलुप्ति की राह पर है यह शर्मीला हिरण

दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के पास हंगुल। तस्वीर- मोहम्मद दाऊद/मोंगाबे। 

दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के पास हंगुल। तस्वीर- मोहम्मद दाऊद/मोंगाबे। 

  • दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान और उसके आसपास हंगुल की आबादी पर लंबे समय तक किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि संरक्षण के बावजूद यह प्रजाति अपनी आबादी नहीं बढ़ा पाई है।
  • दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान और उसके आसपास की हंगुल आबादी दाचीगाम में प्रजातियों की एकमात्र व्यवहार्य आबादी है। यह प्रजाति गंभीर रूप से खतरे में है और हस्तक्षेप के बिना इसके पूरी तरह खत्म होने की आशंका है।
  • शोधकर्ताओं की सलाह संरक्षण से जुड़े कामों को बढ़ाने की है। जैसे कि हंगुल के बछड़े के जीवित रहने की निगरानी करना, जंगली कुत्तों को हटाना, आवास के लिए मवेशियों की मौजूदगी को कम करना।। साथ ही, आबादी को बढ़ाना और मौजूदा उपयुक्त आवासों में हंगुल को फिर से बसाना।

दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के भीतर हंगुल या कश्मीर हिरण की आबादी पर 19 सालों तक निगरानी के बाद नई जानकारियां सामने आई हैं। इनसे पता चलता है कि संरक्षण के बावजूद यह प्रजाति अपनी आबादी नहीं बढ़ा पाई है। शोधकर्ताओं की ओर से किए गए जनसंख्या व्यवहार्यता विश्लेषण में पाया गया कि आबादी में और ज्यादा कमी आने की आशंका है।

अध्ययन के लेखकों में से एक स्टेफानो फोकार्डी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हालांकि, सर्वेक्षण के तरीकों में जरूरी सुधार की आवश्यकता है, लेकिन निगरानी डेटा से मिले जनसांख्यिकीय मापदंडों से पता चलता है कि यह आबादी खत्म होने के कगार पर है।”

प्रजातियों की दीर्घकालिक निगरानी पर आधारित अध्ययन का मुख्य उद्देश्य, इसकी नायाब विकासवादी स्थिति और संरक्षण चुनौतियों को देखते हुए, हंगुल की आबादी में बढ़ोतरी की यथार्थवादी भविष्यवाणियां करना था।

लोअर दाचीगाम का एक दृश्य जहां सर्दियों के दौरान ज्यादातर हंगुल पाए जाते हैं। तस्वीर - एजेटी जॉनसिंह/विकिमीडिया कॉमन्स।
लोअर दाचीगाम का एक दृश्य जहां सर्दियों के दौरान ज्यादातर हंगुल पाए जाते हैं। तस्वीर – एजेटी जॉनसिंह/विकिमीडिया कॉमन्स।

दुनिया भर में लाल हिरण, हिरणों की एक व्यापक प्रजाति है। लेकिन अल्बानिया और आयरलैंड में स्थानीय रूप से यह प्रजाति विलुप्त हो गई है। कई अन्य देशों में लाल हिरण गंभीर रूप से खतरे में हैं। हंगुल को इसका नाम इसके पसंदीदा भोजन, इंडियन हॉर्स चेस्टनट (हिंदी में कनोर/बनखोर; स्थानीय नाम हनदून) से मिला है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में लाल हिरण की एकमात्र जीवित उप-प्रजाति है। यह आनुवंशिक रूप से भी नायाब है।

फोकार्डी बताते हैं,हंगुल को पहले यूरोपीय लाल हिरण की पूर्वी उप-प्रजाति माना जाता था। हालांकि, हाल के आनुवंशिक अध्ययनों से पता चला है कि यह यारकंद या तारिम हिरण और बुखारा हिरण के साथ, तारिम लाल हिरण की एक उप-प्रजाति है। इन आबादी की संरक्षण स्थिति का पता नहीं है। इसलिए, यह जरूरी है कि हम प्रजातियों का संरक्षण करें।

दाचीगाम में 289 हंगुल

आईयूसीएन के अनुसार, हंगुल गंभीर रूप से संकटग्रस्त है। अध्ययन में कहा गया है कि एक समय कश्मीर के पहाड़ों, हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के कुछ हिस्सों और पाकिस्तान में इनकी आबादी बहुतायत में थी। सन् 1900 में पांच हजार से घटकर सन् 1947 में इनकी आबादी दो हजार पर आ गई। हालांकि, आबादी का सटीक अनुमान अब भी उपलब्ध नहीं है।

इस साल मार्च में जम्मू और कश्मीर सरकार के वन्यजीव संरक्षण विभाग की ओर से सालाना सर्वेक्षण कराया गया। इसमें पता चला कि दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान और उसके आसपास हंगुल की संख्या में मामूली बढ़ोतरी हुई है। साल 2019 में इनकी आबादी 237 थी और 2021 में यह बढ़कर 261 हो गई। वहीं, 2023 में और बढ़कर 289 (इनमें हंगुल का दूसरा घर शिकारगढ़ भी शामिल है जहां 14 हंगुल पाए गए) हो गई है। सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि हंगुल की आबादी स्थिर है, लेकिन इस क्षेत्र में आबादी में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं हई है। इसकी वजहें आवास का खत्म होना और अवैध शिकार, मवेशियों की चराई, पारिस्थितिकी से जुड़े खतरे, शिकार, अशांत गलियारे और लैंडस्केप और जनसंख्या में कम आनुवंशिक बदलाव जैसे कारक हैं।

मार्च में जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है,जनसंख्या व्यवहार्यता, जनसंख्या संरचना, घटती आबादी, आवास में खतरा और अंतःप्रजनन की संभावना के संबंध में जनसंख्या की संवेदनशीलता के आधार पर यह प्रजाति खतरे में है। दुनिया भर में इस प्रजाति पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।


और पढ़ेंः कश्मीर में जंगली सूअरों की वापसी से हंगुल के निवास स्थान और फसल खतरे में


कश्मीर में हंगुल संरक्षण के लिए वन्यजीव संरक्षण विभाग के साथ मिलकर काम करने वाले कश्मीर स्थित स्वतंत्र वन्यजीव शोधकर्ता अजय सिंह कहते हैं, “सालों से हंगुल को भारत में सबसे ज्यादा सुरक्षा दी गई है। यह भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत अनुसूची I प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध है। यह प्रजाति दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के भीतर पूरी तरह से संरक्षित है। इसे भारत सरकार की ओर से सबसे ज्यादा संरक्षण प्राथमिकता वाली प्रजातियों में भी सूचीबद्ध किया गया है।

विलुप्त होने से बचाने के लिए हस्तक्षेप जरूरी

संरक्षण योजना के लिए जानकारी उपलब्ध कराने के लिए, लंबे समय तक निगरानी अध्ययन में शामिल रहे शोधकर्ताओं ने 19 सालों से ज्यादा समय (जनवरी 2001 से मार्च 2020) तक दाचीगाम में हंगुल की निगरानी की। वर्तमान आबादी के विलुप्त होने के जोखिम का आकलन करने के लिए जनसंख्या व्यवहार्यता विश्लेषण किया गया था। छोटी आबादी में जनसांख्यिकीय प्रक्रियाओं की अनिश्चितताओं को ध्यान में रखने के लिए, तय किए गए और कई संभावनाओं में से एक, दोनों फॉर्मूलेशन का इस्तेमाल किया गया और कई सीनेरियो विकसित किए गए। यह अध्ययन अगस्त में प्रकाशित हुआ था।

अध्ययन में पाया गया कि अगर दाचीगाम में हस्तदक्षेप नहीं किया गया, तो हंगुल की आबादी खत्म हो सकती है। लिंगानुपात महिलाओं की ओर झुका हुआ है, जो वयस्क पुरुषों की मृत्यु दर ज्यादा होने का संकेत देता है। अध्ययन में पाया गया कि बछड़ों की मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी हुई है और इसमें और बढ़ोतरी से हंगुल पूरी तरह खत्म हो सकते हैं।

मैं बछड़े से भरे-पूरे हंगुल के घटते अनुपात को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हूं जो जल्द ही आबादी में गिरावट का कारण बन सकता है। फोकार्डी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “दूसरी समस्या गर्मियों में मवेशियों के बीच प्रतिस्पर्धा और आम तौर पर फौज और विद्रोहियों की मौजूदगी के चलते अवैध शिकार है।” छोटी आबादी का आकार, आनुवंशिकी में कम बदलाव और अलग-अलग रेंज भी हंगुल को विलुप्त होने के भंवर में फंसा सकती है।

दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के पास घूमते हंगुल। फोटो मोहम्मद दाऊद/मोंगाबे।
दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के पास घूमते हंगुल। फोटो मोहम्मद दाऊद/मोंगाबे।

आगे का रास्ता

फोकार्डी कहते हैं,जब बड़ी संख्या में हिरण की कोई भी प्रजाति मौजूद होती है, तो वह शिकारियों के लिए भोजन का एक अहम स्रोत बन जाती है। दूसरी ओर, यह अलग-अलग चराई के जरिए लैंडस्केप को आकार भी देता है और पारिस्थितिकी इंजीनियरों की भूमिका भी निभाता है। लेकिन लोग पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण की समस्या को नजरअंदाज कर देते हैं।” 

शोधकर्ता कई तरह के संरक्षण से जुड़े कामों की सलाह देते हैं। जैसे, बछड़े के जीवित रहने की निगरानी करना और जंगली कुत्तों को हटाना। दाचीगाम और आसपास के क्षेत्रों में मवेशियों की मौजूदगी को कम करने की भी जरूरत है, जिससे आवासों को फिर से विकसित करने और आबादी बढ़ाने में मदद मिलेगी।

अध्ययन में कहा गया है कि आबादी का छोटा आकार और जनसांख्यिकीय मापदंडों में बड़े उतार-चढ़ाव से पता चलता है कि प्रजातियों की ऐतिहासिक सीमा के भीतर मौजूदा उपयुक्त आवासों में हंगुल को फिर से लाना जरूरी है। इसमें कहा गया है,इसके लिए प्रजनन केंद्र और उपयुक्त रीस्टॉकिंग क्षेत्रों को चुनने की आवश्यकता होगी। शिकारगाह संरक्षण रिजर्व रिस्टॉकिंग के लिए अच्छी जगह होगी, क्योंकि इसमें हंगुल के लिए एकमात्र संरक्षण प्रजनन केंद्र है और अभी भी यहां 10-15 हंगुल रहते हैं, जो पास के शिकारगाह और ओवेरा-अरु वन्यजीव अभयारण्यों के बीच है। रिपोर्ट के लेखकों के मुताबिक, लिद्दर घाटी में ओवरा-अरु वन्यजीव अभयारण्य काफी हद तक इंसानी असर से मुक्त है और यह पारिस्थितिकी के लिहाज से बहुत हद तक दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान जैसा है। “इसके अलावा, ओवेरा-अरु वन्यजीव अभयारण्य को दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान से जोड़ने वाला एक गलियारा है, जो दूसरी व्यवहार्य हंगुल आबादी बनाने के लिए फायदेमंद होगा।”

संरक्षण प्रजनन, संरक्षण आनुवंशिकी और सामुदायिक विकास की दिशा में अलग-अलग संस्थागत प्रयास किए गए हैं, लेकिन उन कोशिशों ने अभी तक हंगुल आबादी पर कोई अहम प्रभाव नहीं दिखाया है।

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

बैनर तस्वीर: दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के पास हंगुल। तस्वीर- मोहम्मद दाऊद/मोंगाबे। 

Exit mobile version