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तेल रिसने से मछली पकड़ने का काम बंद, एन्नोर में मछुआरों पर आजीविका का संकट

एन्नोर में मछुआरों के नौ गांवों के 2,000 से ज्यादा मछुआरे दिसंबर की शुरुआत से पास की कोसस्थलैयार नदी, एन्नोर क्रीक और बंगाल की खाड़ी में नहीं गए हैं। तस्वीर - लास्या शेखर/मोंगाबे।

एन्नोर में मछुआरों के नौ गांवों के 2,000 से ज्यादा मछुआरे दिसंबर की शुरुआत से पास की कोसस्थलैयार नदी, एन्नोर क्रीक और बंगाल की खाड़ी में नहीं गए हैं। तस्वीर - लास्या शेखर/मोंगाबे।

  • सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनिंग कंपनी से कथित तौर पर कच्चा तेल चेन्नई के उत्तर में कोसस्थलैयार नदी, जैव विविधता वाले एन्नोर क्रीक और बंगाल की खाड़ी में रिस गया। इससे प्रदूषण फैलने के साथ-साथ मछली पकड़ने का काम रुक गया।
  • इस घटना से कम से कम 2,301 मछुआरा परिवार प्रभावित हुए हैं और 787 नावें खराब हो गई हैं। मछली पकड़ने का काम बंद होने से इस समुदाय को बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। मछुआरा समुदाय का कहना है कि उन्हें दिया गया मुआवजा पर्याप्त नहीं है।
  • पारिस्थितिकी विज्ञानियों ने तेल रिसने से इलाके में मैंग्रोव पर असर पड़ने को लेकर चिंता जताई है। मैंग्रोव, मछलियों के प्रजनन के लिए जरूरी जगह होने के साथ-साथ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का एक अहम हिस्सा है।

कड़ाके की ठंड वाले दिसंबर की 21 तारीख की शाम को 38 साल के मछुआरे एम संतोष कुमार ने कातर नजरों से कोसस्थलैयार नदी का सामना किया। नदी चेन्नई शहर के उत्तर में बहती है और बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह नदी कुमार के लिए आजीविका का सबसे अहम साधन है। अब इस नदी में दिसंबर की शुरुआत में चेन्नई में आए चक्रवात मिचौंग के बाद आई बाढ़ के पानी के साथ बड़े पैमाने पर तेल रिसाव के निशान मौजूद हैं।

दिसंबर की शुरुआत से ही कुमार और एन्नोर (उत्तरी चेन्नई के पास बसा इलाका) के नौ गांवों के मछुआरे मछली पकड़ने के लिए कोसस्थलैयार नदी, एन्नोर क्रीक और बंगाल की खाड़ी में नहीं गए हैं। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने चक्रवात मिचौंग से पहले रेड अलर्ट जारी किया था। मिचौंग के चलते तीन और चार दिसंबर के दरम्यान 36 घंटों में हुई 45 सेमी की जोरदार बारिश ने चेन्नई को तबाह कर दिया। इससे शहर में पानी भर गया।

तूफान के चलते मछुआरे एक सप्ताह तक मछली पकड़ने नहीं जा सके। चक्रवात के गुजरने के बाद हुए तेल रिसाव के चलते पानी मछली पकड़ने लायक नहीं रहा। इससे एन्नोर में मछुआरों की जिंदगी पूरी तरह से रुक गई है।

चार दिसंबर को सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनिंग कंपनी चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीपीसीएल) से कच्चा तेल कथित तौर पर कोसस्थलैयार नदी, एन्नोर क्रीक और समुद्र में लीक हो गया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान – मद्रास (आईआईटी-एम) के एक विशेषज्ञ ने नाम नहीं छापने की शर्त पर मोंगाबे-इंडिया से इसकी पुष्टि की और कहा कि बाढ़ के कारण समस्या और विकराल हो गई, क्योंकि तेल तेजी से फैल गया।

कोसस्थलैयार नदी में फैले तेल की 21 दिसंबर को ली गई तस्वीर। तस्वीर: लास्या शेखर/मोंगाबे।
कोसस्थलैयार नदी में फैले तेल की 21 दिसंबर को ली गई तस्वीर। तस्वीर: लास्या शेखर/मोंगाबे।

मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि तेल रिसाव 20 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसका फैलाव कासिमेदु बंदरगाह से लेकर संतोष कुमार के गांव से सटे कोसस्थलैयार नदी तक है। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) की तकनीकी टीम ने तेल रिसाव के स्रोत का पता लगाने के बाद बताया, “चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के दक्षिण गेट के नजदीक तेल के साथ तूफान का कुछ पानी भी जमा हुआ है और इससे तेल होने का पता चलता है।” 

हालांकि, सीपीसीएल के एक वरिष्ठ अधिकारी इस दावे का खंडन करते हैं। सफाई स्थल पर, अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर मोंगाबे-इंडिया को बताया कि तेल रिसाव के लिए पेट्रोलियम कंपनी को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। अधिकारी ने बताया, चिंताद्रिपेट के औद्योगिक एस्टेट में मोटरों को साफ करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तेल ने पानी को दूषित कर दिया है। चूंकि हमारी रिफाइनरी प्रभावित क्षेत्र के सबसे करीब स्थित है, इसलिए हमें दोषी ठहराया गया है। और इसलिए, हम सफाई गतिविधि का हिस्सा बने हैं।” 

सफाई स्थल पर मौजूद टीएनपीसीबी के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि सीपीसीएल का तेल बाढ़ के पानी में मिल गया है। अधिकारी कहते हैं, “इसके अलावा, राज्य सरकार को पुझल और पूंडी जलाशयों से अतिरिक्त पानी छोड़ना पड़ा, जिससे बाढ़ की स्थिति बन गई और इसके चलते तेल तेजी से फैल गया।”

जमीनी हालात

पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और वन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव सुप्रिया साहू ने एक बयान जारी किया जिसमें बताया गया है कि एन्नोर में सफाई का काम 20 दिसंबर, 2023 को पूरा हो गया था। बयान में दावा किया गया कि 105.82 किलोलीटर तैलीय पानी और 393.5 टन तैलीय कीचड़ हटा दिया गया है।

हालांकि, जब इस संवाददाता ने कोसस्थलैयार नदी और एन्नोर क्रीक के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया, तो तेल की परत से पानी, नावें और प्राचीन मैंग्रोव ढके हुए थे। यह ऐसी स्थिति जो मछुआरों के लिए चिंता का विषय है। तेल ने नावों को काला कर दिया है, मछली पकड़ने के कई जालों को बर्बाद कर दिया है और मछलियों को मार डाला है। इसका सीधा असर मछुआरों की आजीविका पर पड़ रहा है।

पिछले सप्ताह कुमार ने अपनी सभी शामें कोसास्थलैयार नदी के किनारे बंधी जर्जर नाव पर बिताईं। कुमार बताते हैं, ”मैं अपने बच्चों के सोने के बाद घर जाता हूं और सुबह उनके जागने से पहले निकल जाता हूं।उन्होंने आगे कहा, हर क्रिसमस पर  मैं अपने बच्चों और पास के अनाथालय के दस अन्य बच्चों के लिए नए कपड़े खरीदता हूं। मुझे नहीं पता था कि मैं अपने बच्चों को किस तरह बताऊं कि मैं इस साल उनके लिए नए कपड़े नहीं खरीद सकता। इसलिए, मैंने उनसे मिलने से परहेज किया” 

तेल रिसाव से क्षतिग्रस्त नावें। तस्वीर- लास्या शेखर/मोंगाबे।
तेल रिसाव से क्षतिग्रस्त नावें। तस्वीर- लास्या शेखर/मोंगाबे।

मछली पकड़ने वाले परिवार पर चक्रवात मिचौंग और तेल रिसाव की दोहरी मार पड़ी है। अब उनके सामने अनिश्चित भविष्य है। जहां पुरुषों पर अनियमित आय की मार पड़ी है, वहीं घर चलाने का बोझ महिलाओं के कंधों पर आ गया है। नेट्टुकुप्पम गांव के एक मछुआरे की पत्नी के श्रीमथी (45) बताती हैं,  “सप्ताह में कुछ दिन मेरे पति दिन भर काम करने के बाद खाली हाथ घर लौटते थे। लेकिन इससे मुझे कभी परेशानी नहीं हुई, क्योंकि मुझे पता था कि अगले दिन या उसके अगले दिन पकड़ अच्छी होगी।” 

मछुआरों को अब समुद्र में जाने के लिए अपनी नावों की मरम्मत करनी होगी।  समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना होगा और सबसे जरूरी बात यही है कि पानी में तेल नहीं होना चाहिए। चूंकि, इनमें से किसी भी काम की समय-सीमा स्पष्ट नहीं है, इसलिए महिलाओं की चिंता बढ़ रही है। एन्नोर कुप्पम की 33 साल की एन रत्ना कहती हैं, “हम अपने पड़ोसियों से प्याज और इमली की भीख मांग रहे हैं।” उनका दावा है कि उनकी 5,000 रुपये की बचत अब ख़त्म हो गई है और उन्होने अपना घर चलाने के लिए अपनी सोने की चेन गिरवी रख दी है।

मछुआरा समुदायों का कहना है कि उनका आर्थिक नुकसान घोषित मुआवज़े से कई गुना ज़्यादा है। तस्वीर- लास्या शंकर/मोंगाबे।
मछुआरा समुदायों का कहना है कि उनका आर्थिक नुकसान घोषित मुआवज़े से कई गुना ज़्यादा है। तस्वीर- लास्या शंकर/मोंगाबे।

अपर्याप्त मुआवजा

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 23 दिसंबर को 9,001 प्रभावित परिवारों के लिए 8.68 करोड़ रुपये के मुआवजे की घोषणा की। इससे हर परिवार को 12,500 रुपये मिलेंगे। साथ ही, 787 क्षतिग्रस्त नावों की मरम्मत के लिए 10,000 रुपये की अतिरिक्त मदद मिलेगी। कुल 8.68 करोड़ रुपए के राहत कोष में से सीपीसीएल 7.53 करोड का खर्च वहन करेगा। हालांकि, मछुआरों का कहना है कि उनका आर्थिक नुकसान घोषित मुआवजे से कई गुना ज्यादा है।

एन्नोर के ही एलुमलाई आर (38) बारह साल की उम्र से मछली पकड़ने के व्यापार में लगे हुए हैं। चार साल पहले मैंने फ़ाइबर नाव खरीदने के लिए 1.7 लाख रुपए खर्च किए थे। मैंने मछली पकड़ने का जाल पचास हजार रुपये में खरीदा था। उनका सवाल है कि टूटी हुई नाव के लिए 10,000 रुपए की रकम किस तरह पूरी है?” 

मछुआरों का दावा है कि कई कोशिशों के बावजूद वे नाव से तेल नहीं हटा पाए हैं। उन्हें डर है कि लंबे समय में तेल में मौजूद रसायन फाइबर को पिघला देंगे और इस तरह नाव टूट जाएगी। तस्वीर - लास्या शेखर/मोंगाबे।
मछुआरों का दावा है कि कई कोशिशों के बावजूद वे नाव से तेल नहीं हटा पाए हैं। उन्हें डर है कि लंबे समय में तेल में मौजूद रसायन फाइबर को पिघला देंगे और इस तरह नाव टूट जाएगी। तस्वीर – लास्या शेखर/मोंगाबे।

एलुमलाई कहते हैं, “यह साल 2004 की सुनामी के बाद हमारे सामने आए चुनौतीपूर्ण समय की यादें ताजा कर देता है।” सुनामी के बाद, मछुआरों ने एक महीने से ज्यादा समय तक समुद्र में जाने से परहेज किया। कुमार के गांव के ही मछुआरे के दिनेश सवाल करते हैं,स्थानीय विधायक ने हर परिवार को पांच किलो चावल उपलब्ध कराया। हमने जो नुकसान उठाया है, उसमें यह किस तरह पर्याप्त है?” 

खतरनाक रसायन और पारिस्थितिकी को नुकसान 

एन्नोर क्रीक में कट्टुकुप्पम और नेट्टुकुप्पम के दूषित क्षेत्रों से पानी के नमूनों का परीक्षण मीडिया हाउस पुथिया थलाईमुरई द्वारा तमिलनाडु टेस्ट हाउस प्राइवेट लिमिटेड में किया गया था। मोंगाबे-इंडिया को जो रिपोर्ट हासिल हुई उसके मुताबिक, परीक्षण किए गए पानी में बेंजीन, टोल्यूनि और स्टाइरीन सहित आठ वाष्पशील कार्बनिक यौगिक के साथ ही नेफथलीन, फ्लोरीन और एन्थ्रेसीन जैसे सोलह पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) शामिल थे।

तमिलनाडु में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाली संस्था पूवुलागिन नानबर्गल के पर्यावरण इंजीनियर प्रभाकरन वीररासु मोंगाबे-इंडिया को बताते हैं, पीने के पानी के लिए भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार, कुल पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन 0.1 भाग प्रति बिलियन होना चाहिए। हालांकि, टेस्ट किए गए पानी में 3,240 भाग प्रति बिलियन का काफी उच्च स्तर दिखा। दूसरी ओर, बेंजीन, स्टाइरीन और एथिलबेन्जीन जैसे वाष्पशील कार्बनिक यौगिक मानकों से 50 से 60 गुना ज्यादा हैं।तुलना में पीने के पानी के लिए मानकों का इस्तेमाल किया गया, भले ही परीक्षण किया गया पानी खारा हो, क्योंकि भारत में कोई वैकल्पिक मानक उपलब्ध नहीं हैं।

मछुआरे चेन्नई में 2017 के तेल रिसाव के दुष्परिणामों को भी याद करते हैं जो लगभग चार सालों तक मछली पकड़ने की गतिविधियों पर असर डालते रहे। एक अध्ययन के अनुसार, रिसाव तब हुआ जब दो मालवाहक जहाज चेन्नई तट से लगभग दो मील दूर टकरा गए, जिससे लगभग 75 मीट्रिक टन भारी ईंधन बंगाल की खाड़ी में फैल गया जो भारी पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) के उल्लेखनीय उच्च प्रतिशत के बारे में भी बताता है। यह एक विषैला यौगिक है जो तेल रिसाव के बाद लंबे समय तक पानी में रहता है।

कोसस्थलैयार नदी में तेल रिसाव के असर के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं, क्योंकि तेल मैंग्रोव की पत्तियों पर कम से कम दस फीट की ऊंचाई तक पहुंचता है। मैंग्रोव मछली के प्रजनन के लिए जरूरी जगह है और साथ ही समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र का एक अहम घटक है।

चेन्नई स्थित जैव विविधता और संरक्षण संगठन, केयर अर्थ ट्रस्ट के पारिस्थितिकी विज्ञानी आरजे रंजीत डेनियल बताते हैं, “दोनों रिसावों के बीच अंतर उनकी जगहों में है।” 2017 के तेल रिसाव के बाद क्षेत्र में जैव विविधता का अध्ययन करने वाले डेनियल कहते हैं, पहला समुद्र में हुआ, लेकिन अभी वाला रिसाव कोसस्थलैयार नदी में हुआ है, जिससे जैव विविधता के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। तेल-युक्त पानी मुहाने में घुस गया है, जिससे यह पिछली घटना से ज्यादा असर डाल रहा है। मैंग्रोव के निशान के साथ जैव विविधता से समृद्ध मुहाना उथला है और ज्वार को लेकर संवेदनशील है। यहां तक ​​कि अगर तेल समुद्र में फैल जाता है, तो यह उच्च ज्वार के दौरान मुहाने में लौट आता है। ” 

तेल दस फुट तक ऊपर आ जाता है, जिससे मैंग्रोव को बहुत नुकसान होता है। कई पक्षी मृत पाए गए हैं। तस्वीर- लास्या शेखर/मोंगाबे।
तेल दस फुट तक ऊपर आ जाता है, जिससे मैंग्रोव को बहुत नुकसान होता है। कई पक्षी मृत पाए गए हैं। तस्वीर- लास्या शेखर/मोंगाबे।

वह आगे बताते हैं, “मुहाने में मैंग्रोव के तने और पत्तियों पर जमा काला तेल खास तौर पर चिंतिंत करने वाला है। इन मैंग्रोव (ज्यादातर एविसेनिया जीनस से संबंधित) में सांस लेने के लिए वाली जड़ें होती हैं जो पानी से निकलती हैं। अगर उनकी जड़ों पर तेल का लेप लग जाता है, तो यह सांस में दिक्कत पैदा करता है, जिससे आखिरकार पौधे सूख जाते हैं।

23 दिसंबर, 2023 को एक्स (इससे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था) पर मैंग्रोव की साफ-सफाई पर अपडेट देते हुए सुप्रिया साहू ने लिखा, “कम गति वाला सी वाटर जेट पाइप जमे हुए तेल को साफ कर देगा, जिसे सोक पैड, स्किमर और ऑयल बूम का इस्तेमाल करके सोखा जाएगा। लगभग 60 हेक्टेयर में फैले मैंग्रोव को साफ करना धीमी और मेहनत वाली प्रक्रिया है।

हालांकि, कुमार और उनके साथी मछुआरों के लिए एकमात्र चिंता यह है कि वे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए प्रचुर मात्रा में मछली पकड़ने के लिए समुद्र में कब जा सकते हैं। इस सवाल का फिलहाल किसी भी अधिकारी के पास स्पष्ट जवाब नहीं है।

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीर: एन्नोर में मछुआरों के नौ गांवों के 2,000 से ज्यादा मछुआरे दिसंबर की शुरुआत से पास की कोसस्थलैयार नदी, एन्नोर क्रीक और बंगाल की खाड़ी में नहीं गए हैं। तस्वीर – लास्या शेखर/मोंगाबे।

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