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ओडिशा में ताड़ का पेड़ लगाकर आकाशीय बिजली से बचने की तैयारी

मोरोक्को, अफ्रीका में बिजली गिरने की घटना। प्रतीकात्मक तस्वीर- अब्देलहामिद बौ इखेसायेन/विकिमीडिया कॉमन्स।

मोरोक्को, अफ्रीका में बिजली गिरने की घटना। प्रतीकात्मक तस्वीर- अब्देलहामिद बौ इखेसायेन/विकिमीडिया कॉमन्स।

  • आखिरी वार्षिक लाइटनिंग रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली गिरने की घटनाओं के मामले में ओडिशा अभी भी शीर्ष राज्य बना हुआ है।
  • हालांकि, ओडिशा ने बिजली गिरने की घटनाओं से होने वाली मौतों में कमी हुई है और साल 2019-20 की तुलना में यह आंकड़ा 2020-21 में 156 मौतों पर आ गया है।
  • अब यह राज्य प्रदेश भर में बड़े स्तर पर पाम ट्री लगाने की तैयारी की जा रही है ताकि बिजली गिरने की घटनाओं को कम किया जा सके और मौतों की संख्या घटाई जा सके।

ओडिशा के खोरदा जिले में 44 साल के सनोज पात्रा अपने एक एकड़ के धान के खेतों को देखने गए थे और उसी वक्त बिजली गिरने से वहीं पर उनकी मौत हो गई। उसी दिन यानी 2 सितंबर 2023 को ओडिशा के चार अन्य जिलों में बिजली गिरने से कुल 11 लोगों की मौत हो गई। एक ही दिन में ओडिशा में बिजली गिरने से जुड़ी 39,392 घटनाएं हुईं। इसमें, बादल से बादल पर और बादल से जमीन पर बिजली गिरने की घटनाएं शामिल थीं।

एक बादल से बिजली के झटके दूसरे बादल या जमीन पर गिर जाने की घटना को आकाशीय बिजली गिरना कहा जाता है। बिजली गिरने के असर में इंसानों के शरीर जल जाना, चमड़ी ऐंठ जाना, कई अंग का काम करना बंद हो जाना, दिल की धड़कन रुकना और तुरंत मौत हो जाना शामिल है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ओडिशा में 2 सितंबर को हुई घटना मॉनसून के महीनों में बार-बार ड्राई स्पेल आने की वजह से हुई।

एफएम यूनिवर्सिटी, बालासोर के प्रोफेसर मनोरंजन मिश्रा कहते हैं, “यह कोई नई घटना नहीं है. बारिश के पैटर्न में बदलाव के सeथ मॉनसून के बीच में लंबे ड्राई स्पेल की वजह से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ जाती हैं।” प्रोफेसर मनोरंजन ने भारत में बिजली गिरने की घटनाओं पर विस्तृत रिसर्च की है और इसकी स्टडी के लिए भारत के मौसम विभाग के साथ मिलकर एक जियोस्पैटियल लैब स्थापित की है।

भारत के पूर्व तट पर स्थित राज्य ओडिशा प्राकृतिक आपदाओं के प्रति ज्यादा रुझान वाला है और बिजली गिरने की घटनाओं की वजह से मौत के मामलों में यह अभी भी शीर्ष पर बना हुआ है। हाल में हुई मौतों के बाद अंतर विभागीय प्रयास प्रस्तावित किए गए हैं ताकि मौत की संख्या कम की जा सके।

बिजली गिरने को प्राकृतिक आपदा घोषित करने का प्रस्ताव

एक अप्रैल 2015 को ओडिशा ने बिजली गिरने की घटनाओं को ‘राज्य विशेष के लिए आपदा’ घोषित कर दिया। इसी के आधार पर बिजली गिरने की घटना में जान गंवाने वाले एक व्यक्ति के परिवार को मुआवजे के तौर पर चार लाख रुपये दिए गए। हालांकि, हाल ही में ओडिशा ने एक नया प्रस्ताव केंद्र सरकार के सामने रखा है कि बिजली गिरने की घटनाओं को प्राकृतिक आपदा घोषित किया जाए।

प्रमिला मलिक जब ओडिशा की राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री थीं तब उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हम चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से जाने वाली जानों की संख्या को कम करने में कामयाब रहे हैं। राज्य में बीते कुछ समय में बिजली गिरने की घटनाओं की वजह से हुई मौतों की वजह से हम मांग कर रहे हैं कि बिजली गिरने की घटनाओं को राष्ट्रीय आपदा कहा जाए।” अब वह अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे चुकी हैं और ओडिशा विधानसभा की स्पीकर बन गई हैं। वह आगे कहती हैं, “हम उन 16 राज्यों में शामिल हैं जिन्होंने बिजली गिरने की घटनाओं को राज्य में आपदा घोषित किया है। मृत्यु दर काफी ज्यादा है और इसे प्राकृतिक आपदा घोषित किए जाने से प्रभावित परिवारों को ज्यादा मुआवजा मिल सकेगा। हम इसके लिए केंद्र सरकार के संपर्क में हैं।”

एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2021-22 के मुताबिक, बिजली गिरने की घटनाओं में जान गंवाने वालों में ज्यादातर (96 प्रतिशत) ग्रामीण क्षेत्र से हैं जिनमें किसान, चरवाहे, मछुआरे, जंगल में शिकार करने वाले और खुले में काम करने वाले मजदूर शामिल हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2019-20 की तुलना में 2020-21 में बिजली गिरने की घटनाओं में 34 प्रतिशत का इजाफा हुआ और फिर 2021-22 में इसमें 19.5 प्रतिशत की कमी आ गई।

कई स्टडी में यह भी सामने आया है कि वैश्विक स्तर पर औसत वायु तापमान में बढ़ोतरी के साथ ही हर साल बिजली गिरने की घटनाओं में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी।

बिजली गिरने पर कंडक्टर की तरह काम करता है ताड़ का पेड़

बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोतरी और उनके असर की आशंकाओं को देखते हुए ओडिशा में इसे कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। 

2 सितंबर को बिजली गिरने की घटनाओं में हुई मौतों के बाद ओडिशा राज्य सराकर ने वन और कृषि विभागों को निर्देशित किया है कि वे ताड़ के पेड़ को बढ़ाएं ताकि ऐसी मौतों की संख्या को कम किया जाए, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।

डिजास्टर मिटिगेन फंड के तहत आपदाओं के प्रति लचीले प्रोजेक्ट लागू करने के लिए अंतर विभागीय मीटिंग की अध्यक्षता करने वाले विशेष राहत आयुक्त (SRC) सत्यब्रत साहू ने वन, पर्यावरण और कृषि विभाग के अधिकारियों से कहा है कि संरक्षित वनों में वे बड़े स्तर पर ताड़ का पेड़ लगवाएं। इसके अलावा अन्य संवेदनशील जिलों में भी वृक्षारोपण करवाया जाए ताकि बिजली गिरने से जुड़ी आपदाओं को कम किया जा सके।

ओडिशा स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (OSDMA) के मैनेजिंग डायरेक्टर और अतिरिक्त विशेष राहत आयुत्त ज्ञान रंजन दास कहते हैं, “हमने कई स्टडी देखी हैं जिनमें पाया गया है कि ताड़ का पेड़ बिजली गिरने की घटनाओं को रोकने में उपयोगी हैं। सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों में और खासकर खेतों के आसपास ताड़ का पेड़ लगवाए जाएंगे।”

थाईलैंड और बांग्लादेश जैसे देशों ने बिजली गिरने की घटनाओं से होने वाली मौतों को कम करने के लिए बड़े स्तर पर ताड़ के पेड़ लगवाए हैं। 

एक खेत के बगल में लगाए गए पाम ट्री। तस्वीरः गायत्री प्रियदर्शिनी/विकिमीडिया कॉमन्स
एक खेत के बगल में लगाए गए ताड़ के पेड़। तस्वीरः गायत्री प्रियदर्शिनी/विकिमीडिया कॉमन्स

भारतीय मौसम विभाग, भुवनेश्वर में वरिष्ठ वैज्ञानिक उमाशंकर दास कहते हैं, “क्योंकि पौधे खाद और पानी लेते हैं इसलिए वे बिजली को सोख लेते हैं और खुद ही खराब हो जाते हैं।” एक लंबा ताड़ का पेड़ बिजली गिरने पर उसे रोक लेता है और जमीन पर उसके सीधे प्रभाव को कम कर देता है। हालांकि, बिजली गिरने पर लोगों को पेड़ के नीचे खड़े नहीं होना चाहिए। पहले ये पाम ट्री सामान्य हुआ करते थे लेकिन इनका कोई उपयोग न होने की वजह से इनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती गई। हमें उम्मीद है कि इस वृक्षारोपण से हम बिजली गिरने के असर को कम कर सकते हैं।

वन विभाग से संपर्क किया गया तो जवाब मिला कि वृक्षारोपण की प्रक्रिया 2024 में ही शुरू की जाएगी क्योंकि इस साल तो पौधे लगाने का समय जा चुका है। 

कंपनसेटरी अफोरेस्टेसन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी (CAMPA), ओडिशा के सीईओ एम योगजयनंद कहते हैं, “साल 2018 में भी ऐसी ही अधिसूचना जारी की गई थी और हमने सभी आरसीसीएफ से उसके अपडेट के बारे में जानकारी भी मांगी थी। इस साल हमारा ज्यादा ध्यान मौजूदा ताड़ के पेड़ को संरक्षित रखने पर है। क्योंकि इस प्रजाति के लिए छूट मिली हुई है इसलिए इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए ट्रांजिट परमिट की जरूरत नहीं होती है। कहीं पर अवैध तरीके से पेड़ गिराने और उसे ले जाने से रोकने के लिए हम इसे छूट वाली सूची से बाहर ले जाने की सोच रहे हैं।”

वह आगे कहते हैं कि अगले साल से प्रशासनिक संस्थाएं नए वृक्षारोपण की योजना बना रही हैं। इसके लिए वे इलाकों का विशेष सर्वे करने वाली हैं ताकि जरूरत और जगह की पहचान की जा सके।

जागरूकता ही है कुंजी

जहां ये बड़े स्तर पर किए जाने प्रयास ध्वस्त हो जा रहे हैं, वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि स्थानीय स्तर जागरूकता फैलाना अभी भी काफी कारगर तरीका हो सकता है जिससे कि बिजली गिरने की परिस्थिति में मौत की संख्या को कम किया जा सके।

भारत का मौसम विभाग बिजली गिरने के बारे में रंगों के कोड वाली विशेष अनुमान जारी करता है। पहला अनुमान बिजली गिरने की घटनाओं से तीन दिन पहले जारी की जाती है और दूसरी चेतावनी तीन घंटे पहले जारी की जाती है।


और पढ़ेंः पचास साल में हुई डेढ़ लाख मौत, हर प्राकृतिक आपदा लेती है औसतन 20 लोगों की जान


दास कहते हैं, “खेतों में या खुले में काम करने वाले लोगों तक यह जानकारी पहुंचाने के लिए बेहतर तरीकों की जरूरत है। ये अनुमान तभी फायदेमंद होते हैं जब लोग गिरने वाली बिजली या तूफान के बारे में पहले से जान सकें, उसी के हिसाब से अपने दिन की योजना बना सकें और अपनी सुरक्षा के उपाय कर सकें।”

वहीं, मिश्रा का कहना है कि बीच-बीच में बिजली गिरने से भी मौतें होती रहती हैं जिसकी वजह से सालाना आंकड़े में बढ़ोतरी होती रहती है। वह आगे कहते हैं, “लोगों को इसके बारे में बताने के लिए आक्रामक प्रचार-प्रसार की जरूरत है ताकि वे समझ सकें कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। अनुमान लगाने वाली एजेंसियों की ओर से अडवाइजरी जारी करने का तय समय होता है और यह जरूरी है कि ये अनुमान सुबह-सुबह ही लोगों तक पहुंच जाएं, जब वे काम के लिए बाहर जाने वाले हों।”

एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट ने अपने सुझावों में राज्यों को सलाह दी है कि वे भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से खतरे को कम करने के लिए लाइटनिंग माइक्रो-जोनेशन करें। रिपोर्ट कहती है, “हर राज्य के लिए लाइटनिंग रिस्क मैनेजमेंट प्रोग्राम को अपने हिसाब से बनाना चाहिए। इसके लिए उस राज्य विशेष के मौसम, बिजली की तीव्रता और उसकी बारंबारता का ध्यान दिया जाना चाहिए।”

 

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बैनर तस्वीर: मोरोक्को, अफ्रीका में बिजली गिरने की घटना। प्रतीकात्मक तस्वीर– अब्देलहामिद बौ इखेसायेन/विकिमीडिया कॉमन्स।

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