Site icon Mongabay हिन्दी

श्रीलंका में खोजी गई समुद्री पक्षी की नई प्रजाति, मिला हनुमान का नाम

हनुमान प्लोवर जमीन पर घोंसला बनाने वाला पक्षी है और अंडे और चूजे दोनों अपने परिवेश से अच्छी तरह छिपे रहते हैं। तस्वीर - जूड जनिथा निरोशन।

हनुमान प्लोवर जमीन पर घोंसला बनाने वाला पक्षी है और अंडे और चूजे दोनों अपने परिवेश से अच्छी तरह छिपे रहते हैं। तस्वीर - जूड जनिथा निरोशन।

  • केंटिश प्लोवर समुद्रों के आसपास रहने वाला पक्षी है और ठंड के मौसम में इसका श्रीलंका और भारत में आना-जाना लगा रहता है। लेकिन इन पक्षियों की एक प्रजाति साल भर श्रीलंका और दक्षिण भारत में रहना पसंद करती है।
  • इस आबादी की शारीरिक विशेषताएं प्रवासी केंटिश प्लोवर से अलग होती हैं और इसे एक अलग उप-प्रजाति के रूप में पहचाना गया है। आनुवंशिक विश्लेषण के जरिए इसका पता चला है।
  • आमतौर पर इस उप-प्रजाति को हनुमान प्लोवर कहा जाता है। इसका नाम भगवान हनुमान के नाम पर रखा गया है। महाकाव्य रामायण के मुताबिक भगवान हनुमान ने श्रीलंका और भारत को जोड़ने वाला पुल बनाया था। इसी जगह पर संयोग से इस पक्षी का पहला सैंपल एकत्र किया गया था।

संस्कृत के प्राचीन महाकाव्य रामायण में ताकतवर वानर देवता हनुमान ने उत्तरी श्रीलंका के मन्नार क्षेत्र को तमिलनाडु के रामेश्वरम से जोड़ने के मकसद से पुल बनाने के लिए सेना की अगुवाई की थी। सदियों बाद इस पौराणिक पुल के आसपास पाई जाने वाली एक पक्षी को हनुमान प्लोवर नाम दिया गया है। यह प्लोवर को अन्य तटीय पक्षियों से अलग करने में मदद करने वाला पहला नमूना है।

इस अध्ययन को आगे बढ़ाने वाले कोलंबो विश्वविद्यालय से जुड़े प्राणीशास्त्र के प्रोफेसर संपत सेनेविरत्ने कहते हैं, “हमने इस प्लोवर की असली जगह से जुड़ी पौराणिक कथाओं का जश्न मनाने के लिए पक्षी के सामान्य नाम के रूप में हनुमान प्लोवर को चुना।” सेनेविरत्ने ने मोंगाबे को बताया कि पक्षी को वैज्ञानिक रूप से चराड्रियस सीबोहमी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ऐसा ब्रिटिश पक्षी विज्ञानी हेनरी सीबोहम के सम्मान में किया गया है, जिन्होंने 1887 में सबसे पहले सुझाव दिया था कि पक्षी की यह श्रीलंकाई आबादी खास प्रजाति हो सकती है।

हनुमान प्लोवर को शुरू में केंटिश प्लोवर (चराड्रियस अलेक्जेंड्रिनस) की उप-प्रजाति माना जाता था। इसलिए वैज्ञानिक रूप से साल 1848 में इसे चराड्रियस अलेक्जेंड्रिनस सीबोहमी के रूप में वर्गीकृत किया गया था। केंटिश प्लोवर यूरेशिया और उत्तरी अफ्रीका में पाए जाने वाले सामान्य समुद्री पक्षी हैं जो उत्तरी अफ्रीका में प्रजनन करते हैं और शीतकालीन प्रवासी है। केंटिश प्लोवर बड़ी संख्या में श्रीलंका की ओर पलायन करते हैं और प्रवासी मौसम के बाद प्रजनन वाली जगहों पर वापस चले जाते हैं – सिर्फ एक प्रजाति को छोड़कर जो पूरे साल हिंद महासागर के इस द्वीप में रहना पसंद करती है।

कुछ प्रवासी पक्षी  जिन्हें “आवारा” के नाम से जाना जाता है, एक या दो सीज़न तक वापस नहीं जाते हैं। लेकिन श्रीलंकाई और दक्षिण भारतीय आबादी काफी अलग है, क्योंकि पक्षी प्रजनन भी करते हैं। जब भी उन्होंने प्रवासी मौसम के बाद केंटिश प्लोवर को देखा, तो सेनेविरत्ने के मन में यह जानने की दिलचस्पी पैदा हुई कि वे कहां से आते हैं और वे द्वीप पर प्रजनन क्यों करते हैं।

केंटिश प्लोवर एक व्यापक पक्षी है और चीन में प्रजनन करने वाली उप-प्रजाति को भी एक नई प्रजाति के रूप में पहचाना गया है जिसे व्हाइट-हेडेड प्लोवर नाम दिया गया है। ग्राफिक- संपत सेनेविरत्ने।
केंटिश प्लोवर एक व्यापक पक्षी है और चीन में प्रजनन करने वाली उप-प्रजाति को भी एक नई प्रजाति के रूप में पहचाना गया है जिसे व्हाइट-हेडेड प्लोवर नाम दिया गया है। ग्राफिक- संपत सेनेविरत्ने।

खास आबादी

सेनेविरत्ने ने विकासवादी पारिस्थितिकी में अपनी पीएचडी के लिए साल 2008 में श्रीलंका छोड़ दिया था।  लेकिन इस रहस्य को जानने का उनका जुनून कभी शांत नहीं हुआ। साल 2009 की छुट्टियों के दौरान, सेनेविरत्ने ने केंटिश प्लोवर घोंसले का निरीक्षण करने के लिए खास तौर पर श्रीलंका के सुदूर दक्षिणी गांव मिरिजाविला में एक केबिन किराए पर लिया। चिलचिलाती धूप को नजरअंदाज करते हुए  उसकी आवाज़ रिकॉर्ड करने के लिए उन्होंने पूरे दो दिन नवजात शिशु को देखने में बिताए।

प्लोवर पर दुनिया भर की समीक्षाएं इस संभावना को उजागर करती रहती हैं कि प्लोवर की कुछ उप-प्रजातियां नई और खास हो सकती हैं। इस बीच, आनुवंशिक अध्ययनों ने चीनी उप-प्रजाति को खास बनाने में मदद की  और साल 2019 में इसे चीन में सन यात-सेन विश्वविद्यालय के यांग लियू के नेतृत्व वाली एक टीम द्वारा सफेद चेहरे वाले प्लोवर (सी. डीलबेटस) के रूप में मान्यता दी गई थी।

इसके बाद,  श्रीलंकाई केंटिश प्लोवर उप-प्रजाति के अध्ययन के लिए सेनेविरत्ने की जिज्ञासा और बढ़ गई। एक बैठक के दौरान, सेनेविरत्ने ने यांग को उत्तरी मन्नार में घोंसले बनाने वाले प्लोवर का एक वीडियो दिखाया, जिसे उनके एक छात्र ने फिल्माया था। इसके बाद, यांग ने श्रीलंकाई और दक्षिण भारतीय प्रजातियों के अध्ययन पर सहयोग करने पर सहमति दी।

अगली चुनौती फील्ड स्टडी करने के लिए टीम ढूंढने की थी। सौभाग्य से, सेनेविरत्ने का आदर्श साथी वह छात्र था जिसने ग्राउंड नेस्टिंग प्लोवर का फिल्मांकन किया। उसका नाम जूड जनिथा निरोशन था। यह प्लोवर शुष्क क्षेत्र में रहता है और फील्ड स्टडी का मतलब था चिलचिलाती धूप और मिट्टी के मैदानों के नीचे लंबे समय तक रहना था। फिर भी मन्नार अध्ययन में निरोशन की दिलचस्पी इन सब पर हावी हो गई। टीम ने श्रीलंका के साथ-साथ चीनी तट के 29 क्षेत्रीय स्थानों से 937 पक्षियों के डेटा एकत्र किए।

अनुसंधान दल ने श्रीलंका और चीन के 29 फील्ड लोकेशन से लगभग 1,000 नमूने एकत्र किए। तस्वीर में सेनेविरत्ने और निरोशन को हनुमान प्लोवर का माप लेते हुए दिखाया गया है। तस्वीर - कोलंबो विश्वविद्यालय।
अनुसंधान दल ने श्रीलंका और चीन के 29 फील्ड लोकेशन से लगभग 1,000 नमूने एकत्र किए। तस्वीर में सेनेविरत्ने और निरोशन को हनुमान प्लोवर का माप लेते हुए दिखाया गया है। तस्वीर – कोलंबो विश्वविद्यालय।

आनुवंशिक तुलना

फ़ील्डवर्क अध्ययन का सिर्फ एक पहलू है। टीम को प्रयोगशाला में भी कई तरह के काम करने पड़े, क्योंकि वे एक जैसी प्रजातियों के नमूनों की तुलना करते हुए आनुवंशिकी का अध्ययन करना चाहते थे। कैसिबोहमी का मूल प्रकार का नमूना यूनाइटेड किंगडम में वाल्टर रोथ्सचाइल्ड के निजी संग्रह का हिस्सा था और 1930 के दशक में, अमेरिकी प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय को बेच दिया गया था। साल 2020 में टीम को किस्मत का साथ मिला। संग्रहालय कोविड19 के चलते बंद था और सीमित समय के लिए सिर्फ आधिकारिक कामों के लिए खुला था।


और पढ़ेंः करोड़ों वर्ष पहले श्रीलंका और भारत के बीच नहीं था समुद्र, छिपकली की कहानी से सामने आया रहस्य


हालांकि, टीम की कोशिश बेकार नहीं गई, क्योंकि आनुवंशिक विश्लेषण के नतीजों ने इस बात का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत दिए कि श्रीलंकाई और भारतीय प्लोवर आबादी असल में एक अलग प्रजाति है। तो, वैज्ञानिकों की एक नई पीढ़ी आखिरकार इस बात को उजागर कर रही है कि एक सदी पहले जिस पक्षी को एक खास प्रजाति माना जाता था, वह वास्तव में खास है।

विश्लेषण से यह भी पता चला कि प्रजनन समूह आनुवंशिक और फेनोटाइपिक रूप से प्रवासी केंटिश प्लोवर और चीनी सफेद चेहरे वाले प्लोवर से अलग है। निरोशन ने मोंगाबे को बताया कि आनुवंशिक विश्लेषण से पता चला है कि हनुमान प्लोवर लगभग 1.19 मिलियन साल पहले ही अलग हो गया था।

अपनी बहुत ज्यादा गतिशील प्रकृति के बावजूद प्रवासियों के लिए द्वीप, शिकारियों या उन जगहों से बचना हो सकता है जहां पक्षियां कुछ समय पहले तक रह रही थी। यह सुझाव दिया गया है कि एडम ब्रिज के पार समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी ने धीरे-धीरे एक उपयुक्त तटीय घोंसले के आवास का निर्माण किया होगा। यूनाइटेड किंगडम में ट्रिंग में प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में पक्षियों के प्रमुख क्यूरेटर और शोध के सह-लेखक एलेक्स बॉन्ड ने कहा, समय के साथ श्रीलंका में प्रजनन करने वाली नस्ल धीरे-धीरे मुख्य भूमि वाली नस्ल से अलग हो गई। 

हनुमान प्लोवर, जिसे पहले केंटिश प्लोवर की उप-प्रजाति के रूप में पहचाना जाता था। तस्वीर साभार - तुषारा सिरिवर्धना।
हनुमान प्लोवर, जिसे पहले केंटिश प्लोवर की उप-प्रजाति के रूप में पहचाना जाता था। तस्वीर साभार – तुषारा सिरिवर्धना।

स्थानीय प्रजातियों को बचाना

बॉन्ड ने कहा, जब दुनिया भर में जैव विविधता पर खतरा बढ़ रहा है, यह समझना कि हमें किस चीज की रक्षा करनी चाहिए, संरक्षण में एक अहम चीज है और यह द्वीपों के लिए विशेष रूप से सच है, जहां स्थानीयता की ज्यादा दर का मतलब सीमित फंडिंग पर ज्यादा दबाव हो सकता है। इस मामले में, श्रीलंकाई आबादी को यह मानकर छोड़ दिया गया होगा कि यह वही केंटिश प्लोवर था जो दूसरी जगहों पर बड़ी संख्या में मौजूद था। लेकिन यह दिखाते हुए कि हनुमान प्लोवर खास है, अनुसंधान ने दिखाया कि संरक्षण कोशिशों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। 

श्रीलंका में पक्षियों की करीब 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से 220 यहीं पर प्रजनन करती हैं। वहीं 34 प्रजातियां ऐसी हैं जो स्थानीय हैं और 80 ऐसी उप-प्रजातियां भी हैं जो सिर्फ श्रीलंका में ही पाई जाती हैं।

अपने चूजे के साथ मादा हनुमान प्लावर। तस्वीर - जूड जनिथा निरोशन।
अपने चूजे के साथ मादा हनुमान प्लावर। तस्वीर – जूड जनिथा निरोशन।

कोई उप-प्रजाति, एक प्रजाति की दो या दो से ज्यादा आबादी में से एक होती है। ये प्रजातियों की निवास सीमा के अलग-अलग क्षेत्रों में रहती है। इनकी शारीरिक विशेषताएं भी एक-दूसरे से अलग होती हैं जैसे कि शरीर का आकार, पंखों की छाया, चोंच, पूंछ वगैरह।

दो अलग-अलग आबादी को एक ही प्रजाति के बजाय उप-प्रजाति के रूप में पहचानने का एक सामान्य मानदंड उनकी परस्पर प्रजनन की क्षमता है। लेकिन जंगलों में, उप-प्रजातियां आमतौर पर भौगोलिक अलगाव या यौन अंतर के कारण परस्पर प्रजनन नहीं करती हैं, इसलिए उनके खास प्रजातियां बनने की संभावना है। सेनेविरत्ने ने मोंगाबे को बताया कि आनुवंशिक अनुसंधान तकनीकों के आगमन से ऐसी छिपी हुई क्षमता को उजागर करने में मदद मिलती है और हनुमान प्लोवर जैसे ज्यादा अध्ययन श्रीलंका के एविफ़ुना के बीच स्थानीय प्रजातियों को और बढ़ा सकते हैं।

 

यह खबर सबसे पहले Mongabay.com पर प्रकाशित हुई थी।

बैनर तस्वीर: हनुमान प्लोवर जमीन पर घोंसला बनाने वाला पक्षी है और अंडे और चूजे दोनों अपने परिवेश से अच्छी तरह छिपे रहते हैं। तस्वीर – जूड जनिथा निरोशन।

Exit mobile version