- भारत में जंगली हाथियों के बचाव और उसके बाद देखभाल के लिए अलग-अलग राज्यों में कई रेस्क्यू केंद्र हैं। केंद्र सरकार द्वारा साल 1992 से हाथियों के लिए प्रोजेक्ट एलीफैंट भी चलाया जा रहा है। लेकिन, निजी स्वामित्व वाले हाथी जो सर्कस, सैलानियों की सवारी या सड़कों पर भीख मांगने के काम में लाए जाते हैं, उनके लिए बचाव और पुनर्वास की सुविधा बहुत ही कम है।
- देश में कुछ संस्थाएं इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, जिनमें से एक है, वाइल्डलाइफ एसओएस जिसने उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से साल 2010 में मथुरा जिले में भारत का पहला और एकमात्र हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र स्थापित किया।
- एलिफेंट कंज़र्वेशन एन्ड केयर सेंटर नामक इस केंद्र की स्थापना गंभीर रूप से प्रताड़ित और शोषित हाथियों के पुनर्वास के उद्देश्य से की गयी। अभी तक इस केंद्र में 30 से ज्यादा हाथियों का पुनर्वास हुआ है जिन्हें विभिन्न राज्यों से बचाकर लाया गया था।
- ये हाथी निजी तौर पर स्वामित्व में थे और इनका भीख मांगने व श्रम कराने के लिए इस्तेमाल किए जाने का दर्दनाक इतिहास रहा है। हालांकि, अब ये हाथी भारी बोझ उठाने या गर्म सड़कों पर चलने के लिए मजबूर नहीं हैं।
आज से 14 साल पहले हरियाणा के पलवल हाईवे पर एक हथिनी चोटिल घूम रही थी। वन्यजीवों को बचाने वाली एक टीम ने उसकी देखभाल की। गंभीर चोट की वजह से उसे बचाया न जा सका। हथिनी का नाम चंपा था और बचाने वाली टीम वाइल्डलाइफ एसओएस नामक संस्था की थी। इस संस्था की स्थापना साल 1995 में भारत के भारत के वन्यजीवन की रक्षा के लिए की गई थी।
चंपा को बचा न पाने की एक वजह ऐसी सुविधाओं का न होना था जो कि हाथियों के इलाज के लिए जरूरी है। इस घटना से प्रेरणा लेते हुए वाइल्डलाइफ एसओएस ने साल 2010 में अपने हाथी संरक्षण प्रयासों की शुरुआत की। संस्था ने ऐसे ही प्रताड़ित हाथियों को बचाने की यात्रा की शुरुआत की।
हाथी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की पहली अनुसूची के तहत संरक्षित जानवर है और भारत में हाथी को खरीदना या बेचना गैर कानूनी है। ऐसे में अधिकतर बंदी हाथी या तो दान में दिए जाते हैं और या फिर गैर कानूनी तरीकों से रखे जाते हैं।
बंदी हाथियों की दर्द
साल 2018 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के प्रोजेक्ट एलीफैंट की गणना के अनुसार, देश में उस समय 2,454 बंदी हाथी थे। इनमें से, 560 प्रदेशों के वन विभाग के पास थे, 1,687 निजी स्वामित्व में थे, 85 चिड़िया घरों में, 96 मंदिरों में और बाकी के हाथी सर्कस में थे।
निजी स्वामित्व, मंदिरों और सर्कस में रखे गए हाथियों को अधिकतर बड़ी ही क्रूर परिस्थितियों में रखा जाता है। कई हाथियों को भीख माँगने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें तपतपाती सड़कों पर चलने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे इनके पैरों में कई चोटें होती हैं। इसके अलावा अंकुश जैसे नुकीले शस्त्रों से प्रहार, मारपीट, और पर्याप्त खाना ना दिया जाना भी इन हाथियों को दी जाने वाली प्रताड़नाओं में शामिल है।
“बंदी हाथी हमारे भारत में भी हैं और संसार में भी हैं जो कि इंसानी सभ्यता में किसी न किसी तरह से काम में लिए जाते हैं। जितने भी हाथी हमें काम करते हुए दिखाते हैं इन सब का जन्म स्थान जंगल रहा है। ऐसे जानवर के साथ जिसको हम खुद अपना भगवान गणेश या फिर हमारा हेरीटेज एनिमल एवं जंगल का रखवाला तक की संज्ञा देते हैं, उसके साथ इतना बुरा बर्ताव हमारा समाज खुद करता है। एशियन एलिफेंट को हमने एंडेंजर्ड स्पीशीज की कैटेगरी में डाल दिया है और अभी भी अगर हमारा समाज उनके प्रति समर्पित नहीं होता है तो हम बहुत जल्दी इनको पूरी तरीके से खो सकते हैं,” शिवम राय, हेड कॉर्डिनेटर, प्रोजेक्ट एलिफेंट, वाइल्डलाइफ एसओएस कहते हैं।
कैसे किया जाता है बचाए गए हाथियों का संरक्षण
वाइल्डलाइफ एसओएस के इस हाथी संरक्षण और देखभाल केंद्र लगभग 20 एकड़ क्षेत्रफल में फैला है, जिसमें एक अस्पताल कैम्पस और निवासी हाथियों के लिए अलग-अलग एनक्लोजर हैं। हर एनक्लोजर में एक इलाज क्षेत्र और एक बड़ा क्षेत्र उनके विचरण के लिए होता है। हाथियों के लिए उपचार क्षेत्र को संक्रमण से बचने के लिए सीमेंट से बनाया गया है, जबकि विशाल क्षेत्रों में नरम मिट्टी की सतह है, जो उनके पैरों के लिए लाभदायक हैं।
इन बड़े जानवरों को संरक्षण केंद्र तक पहुंचाने के लिए एक विशेष रूप से डिजाइन की गई हाथी एम्बुलेंस का सहारा लिया जाता है। यह भारत की पहली और इकलौती हाथी एम्बुलेंस है, 11 टन से अधिक वजन की हाथी एम्बुलेंस में हाथी को लोड कर केंद्र लाया जाता है। इसमें बचाव दल के लिए बैठने की उचित व्यवस्था, पशु चिकित्सक केबिन और एयर कंडीशनिंग जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
हाथी के पैर उसके शरीर का बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण अंग है। इतने बड़े जानवर का संतुलन बनाए रखने के लिए वे स्वाभाविक रूप से मुलायम, बड़े, संवेदनशील पैड्स के साथ बने होते हैं, जो पैर ज़मीन पर पड़ने पर दबाव को छांटने के लिए प्राकर्तिक रूप से डिजाईन किए गए हैं। ये यह भी सुनिश्चित करते हैं कि दबाव पूरे पैर के बाकी हिस्सों में स्थानांतरित होता रहे। हालांकि, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बंदी हाथियों की स्थिति उनकी प्राकृतिक आवास की तुलना में कुछ भी नहीं है। वे क्रूर प्रथाओं को मानने के लिए मजबूर किए गए, जो उनके पैरों की प्राकृतिक स्थिति को स्थायी रूप से क्षति पहुंचाता है।
“हमारे द्वारा रेस्क्यू किए गए बहुत से हाथी अपने संवेदनशील फुटपैड्स के साथ तपती सड़कों पर चलने के लिए मजबूर किए गए जिसके कारण उन्हें पैरों से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं। अपने जीवन के अधिकांश समय वह सड़कों पर भिक्षा मांगने, परेड़ में भारी आभूषणों और बोझ के साथ पर्यटकों को सवारी कराने और अन्य कठिनाईयों का सामना करते रहे, जिससे उनकी कमर में फ्रैक्चर भी हुए, जो जंगली हाथियों से बहुत अलग एक शारीरिक हानि है,” वाइल्डलाइफ एसओएस की पशु चिकित्सा सेवाओं के उप निदेशक, डॉ. इलियाराजा ने कहा।
उपचार की आवश्यकता वाले हाथियों को चिकित्सा सेवा प्रदान की जाती है, जिसमें जोड़ों से संबंधित समस्याओं के लिए लेज़र थेरेपी मासाज और हल्दी के साथ गुनगुने पानी में मिश्रित औषधीय फुटबाथ भी शामिल हैं। ये फुटबाथ उनके पैरों के नाखून और पैड में चोट, फोड़े, संक्रमण आदि की चिकित्सा के लिए कारगर साबित होता है। ऐसे हाथियों के लिए जिन्हें पैरों में अधिक समस्या है, देखभालकर्ता उनके लिए एक विशेष मड पाईल बनाते हैं, जिससे हाथी लंबे समय तक खड़ा ना रहे और उसके सहारे आराम कर सके। यह उनके पैरों को राहत भी प्रदान करता है। पैरों की पीड़ा से राहत के लिए एक हाइड्रोथेरेपी पूल भी है। पूल में जाने पर पानी के प्रभाव से हाथियों को अपने पैरों से वज़न हटाने में मदद मिलती है।
बचाव के दौरान परेशानियां
वाइल्डलाइफ एसओएस का हाथी संरक्षण केंद्र वन विभाग के सहयोग से संचालित होता है। यह साझेदारी रेस्क्यू ऑपरेशन, कार्यशालाओं, पशु चिकित्सा और बचाव तकनीकों में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रेरित है। हाथियों को बचाने के दौरान, विशेषतः कानूनी लड़ाई लड़ने हेतु वन विभाग का साथ और सहयोग एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कदम साबित होता है।
किसी भी बंदी हाथी के मालिक को राज्य के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन या अन्य किसी सम्बंधित अफसर द्वारा लिखित आर्डर के बिना उसके पोषण, प्राप्ति, या परिवहन की अनुमति नहीं है। इसलिए, किसी भी बचाव या उपचार क्रिया को उपयुक्त राज्य के वन विभाग के पर्यवेक्षण में किया जाता है। यदि किसी भी संबंध में कोई अनचाही स्थिति हो, तो विभाग भी एक प्रवर्तन एजेंसी के रूप में कार्रवाई करता है, ताकि भीड़ नियंत्रण की जा सके या हाथी की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
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“जो हाथी यहां आते हैं हम उनका लीगल डॉक्यूमेंटेशन व हेल्थ की जांच रिपोर्ट का सुपरविजन करते हैं। संस्था की स्थापना के बाद से सेंट्रल जू अथॉरिटी द्वारा समय-समय पर निरीक्षण किया जाता है। वन विभाग के अधिकारी जांच करने जाते हैं कमी पाई जाने पर दिशा-निर्देश दिए जाते हैं और दिशा निर्देशों का अगर पालन न हो तो कार्यवाही भी की जाती है,” मथुरा वन विभाग के प्रभागीय निदेशक रजनीकांत मित्तल ने बताया।
प्रोजेक्ट एलिफेंट डिवीजन है जो की 1992 में शुरू हुआ था केंद्र सरकार के वन परिवर्तन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा जो गाइडलाइन आती है उनको फॉलो कराया जाता है सी डब्ल्यू एल डब्ल्यू के वाइल्डलाइफ वार्डन के द्वारा जो भी सरकारी निर्देश आते हैं उनको भी हमारे द्वारा पूरा कराया जाता है।
हाथी को बचाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करने और विभिन्न अनुमतियों और सहायता की आवश्यकता है। कानून प्रभावी एजेंसियों के साथ करीबी सहयोग होना आवश्यक है, जिससे संभावित हिंसक भीड़ को संभाला जा सके और रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल सभी सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। बचाव दल और हाथी दोनों की सुरक्षा को महत्वपूर्ण मानकर संवाद कौशल जरूरी है जिससे हाथी के मालिकों को स्वामित्व छोड़ने के लिए मनाया जा सके।
बैनर तस्वीरः वाइल्डलाइफ एसओएस के प्रांगण में टहलते हुए दो हाथी। तस्वीर साभार- वाइल्डलाइफ एसओएस